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Amazing Event : बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम, अज़ीज़ साथियों, आज की यह पोस्ट एक सच्ची घटना पर आधारित है जिसमें एक दस साला बच्ची का अल्लाह पर भरोसे का हैरत अंगेज़ वाक़िया आप पढ़ेंगे। ये Amazing Event उस वक़्त पेश आया जिस वक़्त मेरे अज़ीज़ दोस्त जनाब मौलाना मुहम्मद आसिम असअद सलफी, इटावी बच्चों को ट्यूशन पढ़ा रहे थे। इस Amazing Event को आख़िर तक ज़रूर पढ़िए, उम्मीद करते हैं कि आपको ये Amazing Event ज़रुर पसन्द आयेगा, लोगों की इस्लाह के लिए इसे ज़रुर शेयर करें।
एक दस साला बच्ची का अल्लाह पर भरोसे का हैरत अंगेज़ वाक़िया
(बक़लम: मौलाना मुहम्मद आसिम असअद सलफी, इटावी हफ़िज़हुल्लाह)
Amazing Event : मैं जहाँ भी ट्यूशन पढ़ाने जाता हूँ मेरा ये मामूल है कि बच्चों को नमाज़ की ख़ुसूसन ताकीद करता हूँ साथ ही रोज़ाना सबक़ सुनने से पहले हर एक से ये सवाल भी करता हूँ कि उसने नमाज़ पढ़ी या नहीं? बल्कि कुछ जगह पर तो मेरा ये उसूल है कि एक भी नमाज़ झूट जाने पर सबक़ नहीं सुनता हूँ और उन्हें ताकीदन थोड़ा मारता भी हूँ। अल-हम्दु लिल्लाह! इस सख़्ती के काफी अच्छे नताइज भी मुझे देखने को मिले हैं।
पस इसी तरह मैं आज एक जगह पढ़ाने गया और मामूल के मुताबिक़ नमाज़ के बारे में सवाल किया। दस साल की एक बच्ची फ़ातिमा ने ऐतिराफ़ करते हुए कहा कि मैंने कल इशा की नमाज़ नहीं पढ़ी थी। मगर उसके (8 और 12 साल) दोंनों भाईयों का कहना था कि उसने अस्र की नमाज़ भी नहीं पढ़ी है। मैंने उससे पूछा तो उसने इस इलज़ाम को क़बूल करने से साफ़ इंकार कर दिया और कहा कि मैंने अस्र की नमाज़ पढ़ी लेकिन उसके दोनों भाई अब भी इसी बात पर अड़े थे कि फ़ातिमा ने अस्र की नमाज़ नहीं पढ़ी।
कुछ देर तक आपस में यूँ ही बहस होती रही यहां तक कि फ़ातिमा ने आखि़र में एक ऐसा जुम्ला बोला कि मुझे उन दोनों भाईयों को चुप करवाना पड़ा। चूँकि फ़ातिमा के पास नमाज़ पढ़ने का कोई सबूत नहीं था इस लिए उसने दलील देते हुए कहा कि अगर ऐसा ही है तो चलो दो पर्चियां बनाओ एक में लिखो कि ‘‘नमाज़ पढ़ी’’ और दूसरे में लिखो ‘‘नमाज़ नहीं पढ़ी’’ और फिर क़ुरआ अंदाज़ी करो तुम देख लेना कि मैं वही पर्ची उठाउंगी जिसमें लिखा होगा कि ‘‘नमाज़ पढ़ी है’’।
यक़ीन जानें फ़ातिमा के इस जुम्ले से मुझे इतना ताज्जुब नहीं हुआ जितना ताज्जुब मुझे उसके इस ऐतिमाद से हुआ कि जिस ऐतिमाद के साथ उसने ये जुम्ला बोला था। वो अपने लहज़े और मोक़िफ़ में इस क़दर पुर ऐतिमाद थी जैसे कोई शख़्स दिन को दिन और रात को रात कहने में पुर ऐतिमाद होता है कि ज़र्रा बराबर किसी शक व शुबा की गुंज़ाइश नहीं पायी जाती।
हांलांकि यक़ीन तो मुझे उसके ऊपर पहले से था क्योंकि वो झूठ नहीं बोलती है मगर जब इस क़दर ऐतिमाद, भरोसे और अल्लाह पर तवक्कुल के साथ उसने ये जुम्ला कहा तो फिर लियत्मइन्ना क़ल्बी के तहत मैंने भी सोचा कि क्यों न इसी वक़्त उसके कहे पर अमल कर लिया जाए ताकि दूध का दूध और पानी का पानी हो जाए और इंकार करने वालों पर हुज्जत क़ायम हो जाए।
पस मैंने बिना किसी को बताए अपनी जेब से चुपके से दस का सिक्का निकाला और अपने बाएं हाथ की मुट्ठी में इस नियत से पूछ लिया कि अगर उसने नमाज़ पढ़ी होगी तो वो उसी सिक्के वाले हाथ को खोलेगी। फिर मैंने दोनों हाथ उसकी तरफ बढ़ाते हुए कहा कि अब इनमें से किसी एक को टच करो।
दोनों भाई भी ये मंज़र देख रहे थे (वाज़ह रहे कि अब तक किसी को पता नहीं था कि मैं करने क्या वाला हूँ)। फिर आखि़रकार वही हुआ जिसका मुझे भी यक़ीन था और जो होना भी चाहिए था यानी फ़ातिमा ने मेरे बाएं हाथ को टच किया फिर मैंने सबके सामने मुट्ठी खोली तो उसमें सिक्का मौजूद था तब मैंने उसे बताया कि मैंने ये सिक्का यही सोच कर रखा था कि अगर तुमने सिक्का वाले हाथ को टच किया तो तुमने नमाज़ पढ़ी है और अगर मुट्ठी खाली हुई तो तुमने नमाज़ नहीं पढ़ी। अल-हम्दु लिल्लाह! तुमने बिल्कुल सही हाथ को टच किया है। ये सुनकर वो बेहद ख़ुश हुई और बेचारे दोनों भाई निगाहें झुकाकर ख़ामोश हो गये। मैंने उनसे कहा कि देखा मैं कह रहा था ना कि इसने नमाज़ पढ़ी है मगर तुम मान नहीं रहे थे बल्कि उल्टा इस पर इल्ज़ाम लगा रहे थे। अब आ गया ना यक़ीन, अब तो समझ गये ना कि वो सच कह रही थी और उसने हक़ीक़त में नमाज़ पढ़ी थी।
यक़ीनन सच बात है कि कुछ इंसान बचपन में ही अपने रब को पा लेते हैं और उसे हक़ीक़ी तौर पर पहचान लेते हैं जबकि कुछ लोग बड़े होकर भी बल्कि अपनी पूरी ज़िदगी गुज़ार कर दुनिया से रूख़्सत भी हो जाते हैं मगर अपने रब को नहीं पा पाते और न ही उसे इस तरह पहचान पाते हैं जिस तरह उसको पहचानने का हक़ है।
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