मगर दीन वही मंजुर है जो आलिम ने बताया है भले ही वो गलत हो


हर एक शख्स अपनी ज़रूरत का सामान खरीदने के लिए 10 (दस) दुकानों में जाकर खोजता  है मगर दीन वही मंज़ूर है जो आलिम ने बताया है भले ही वो गलत हो

यही हाल यहूदी और ईसाइयों का था 

◆उन्होंने अल्लाह को छोड़कर अपने अपने उलेमा और दरवेशों को रब्ब बना लिया है (क़ुरआन : सुरह: तौबा सुरह: नं0 9 आयत नं0 31)

इस आयत की तफ़्सीर  में हदीस

◆इस आयत को सुनकर  इब्ने हातिम र.अ. ने नबी ﷺ से फरमाया यहूदी और नसारा (ईसाई) ने अपने उलेमा की कभी इबादत नही की फिर ये क्यों कहा गया के उन्होंने अपने उलेमा को रब्ब बना लिया ?

नबी ﷺ ने कहा उनके उलेमा ने जिस चीज़ को हलाल करार दिया उसको उन्होंने हलाल ,और जिस चीज़ को हराम कर दिया,उसको हराम ही समझा यही इनकी इबादत है. (तिर्मिज़ी हदीस नं0 3095)

(यानि किसी चीज को हलाल और हराम करने का अधिकार सिर्फ अल्लाह को है)

आज उम्मत यकीनन यहूदी नसारा ( ईसाइ ) की नक़्शे कदम पर चल रही है इसकी दलील ये हदीस है 

◆नबी ﷺ फरमाया तुम पहले की उम्मतों की पैरवी करोगी सहाबी रसूल ने कहा इससे मुराद कही यहूदी और नसारा ( ईसाई ) तो नही नबी ﷺ कहा बिल्कुल (सही बुखारी हदीस नं07320)

आज उम्मत का भी यही हाल है अपने अपने आलिमो की बातो को सुनकर सभी मसलक में बट रहे है। हम यह नही कहते है की आलिमो की मत सुनो,  उनकी बात को मानो लेकिन अगर बात क़ुरान और हदीस से हो तो मानो , वरना मत मानो चाहे कितना भी बड़ा आलिम हो अल्लाह का हुक्म भी यही है

◆ऐ ईमान वालो ! अल्लाह की बात मानो और रसूल की और उन लोगों की जो तुममें से हुक्म देने का अधिकार रखते हों। फिर अगर तुम्हारे बीच किसी मामले में झगड़ा हो जाए तो उसे अल्लाह और रसूल की तरफ़ फेर दो। अगर तुम हक़ीक़त में अल्लाह और आख़िरत के दिन पर ईमान रखते हो। काम करने का यही एक सही तरीक़ा है और अंजाम के लिहाज़ से भी बेहतर है (क़ुरआन सुरह: निसा सुरह: नं0 4 आयत नं0 59) 

अल्लाह का भी यही हुक्म  है कि अल्लाह और उसके रसूल की मानो और साथ उलेमा की वही बात मानो जो अल्लाह और उसके रसूल (क़ुरआन और हदीस) की बाते बता हो 

◆नबी ﷺ सहाबा से खिताब करते हुए फरमाया के में तुम में दो चीज़े छोड़कर जा रहा हु अगर तुम इसे मज़बूती से पकड़े रखा तो कभी गुमराह नही होंगे और वो है किताब ( क़ुरान और हदीस ) अल्लाह और सुन्नते रसूल (सही मुस्लिम हदीस नं0 6225 , 6228)

  बेशक  हिदायत और सही रास्ते पर चलने के लिए क़ुरान और हदीस है और कोई चीज़ नही है किसी मोलवी की वो किताब नही जो क़ुरान और हदीस की बाते ना लिखी हो सिर्फ किस्से कहानी अपनी तरफ से लिखी गई हो

◆नबी ﷺ ने फरमाया मेरी उम्मत 73 फिरको में बट जाएगी सिवाय एक के सभी फिरके जहन्नम में जाएंगे सहाबी ए रसूल ने कहा वो कोनसा फिरका नबी ﷺ ने फरमाया जो मेरे और मेरे सहाबा के नक्से कदम पर होगा। (तिर्मिज़ी हदीस नं0 2641)

◆हज़रत स़ौबान र.अ से बयान है नबी ﷺ ने फरमाया: "मै अपनी उम्मत में गुमराह करने वाले इमामों से डरता हूँ (सुनन दारमी हदीस नं0 2794)

नोट: मतलब एैसे गुमराह उलमा भी इस उम्मत में पैदा होंगे जो खुद गुमराह होंगे, और अपने फायदे के लिए गलत बातें बता कर उम्मत को गुमराह किया करेंगे।

अल्लाह से दुआ है हमे हक़ बात समझने की तौफ़ीक़ दे आमीन!

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