बदख़्वाबी (स्वप्नदोष)
शबाब (यौवन) और जवानी आने और बालिग़ (युवा) होने की शुरुआत में जिंसी जज़्बात में शदीद इन्तेशार (विस्तार) और हैजानो-तूफ़ान (आंधी) पैदा होते रहते हैं। जहां किसी को देखा और चेहरे पर नज़र पड़ी, तबियत में इन्तेशार पैदा हो गया। कोई गाना सुन लिया, सिनेमा देखा, नाविल पढ़ा या इश्को-मुहब्बत की बातें सुनी तो यकदम (तुरंत) इश्तिआल (उत्तेजना) पैदा हुआ। अब अगर अक्लमंदी और ज़ब्लो-इस्तिक़लाल (चित्त की दृढ़ता) के साथ इनको क़ाबू में न रखा जाए तो क़दम डगमगाने लगते हैं और नादान और न तजुर्बेकार नौजवान इस जिंसी तूफ़ान और ख़्वाहिश से मग़लूब (लाचार) हो जाता है। उसकी अक़लो-फ़िक्र ही उसे रोकने में नाकाम रहती है और वह बुरी राह पर चलकर तरह-तरह की ख़राब आदतों और गंदी और घिनौनी बीमारियों का शिकार हो जाता है, जो उसे शादी करने और सेहतमंद औलाद (संतति) पैदा करने के क़ाबिले नहीं छोड़ते।
याद रखिए, आपकी सेहतो-तन्दुरुस्ती और आपका मुस्तक़बिल (भविष्य) ख़ुद आपके हाथ में है। आप ही इसे बना और बिगाड़ सकते हैं।
नौजवानों में जोश (उत्साह) ज़्यादा होने की वजह से अजू-ए-मख़्सूस (लिंग) में इंतेशार (फैलाव) होने लगता है। इसे नगत यानी खै़ज़िश (उत्थापन) भी कहते हैं और ऐसा उमूमन उस वक़्त होता है, जबकि गुफ़्तगू-मुतालअह (अध्ययन) या ख़्यालात में जिंस (यौन) को अपनी तवज्जोह (ध्यान देना) का मर्कज़ (केन्द्र) बना लिया जाए यानी गुफ़्तगू, ख़्यालात और मुतालअह वग़ैरह में लड़कियों को ही अपने ज़हन में रखा जाए। इस तरह ऊजू (लिंग) को बार-बार छुआ जाए, तो उससे भी खैज़िश (उत्थापन) होती है। अगर मसाना (मूत्राशय) पेशाब से भरा हुआ हो तो भी ऐसा हो जाता है। इसलिए जब पेशाब की हाजत (इच्छा) हो तो फौरन पेशाब करें और उसे जबरन रोकने की कोशिश न करें। अगर क़ब्ज़ की वजह से आंतों में फुज़ला, वायु इकट्ठा हो जाए तो भी खैज़िश हो जाता है।
इसलिए क़ब्ज़ से हर हालात में बचते रहें और गंदे ख़्यालात और गंदी गुफ़्तगू से भी बचें।
नौजवानों में बालिग़ (युवा) होने के बाद मनी पैदा होती रहती है और जिन ख़ज़ानों में इसका स्टाक (भंडार) रहता है, जब वह भर जाता है, तो किसी न किसी तरह से उसका ख़ारिज होना ज़रूरी हो जाता है, क्योंकि ताज़ा मनी (वीर्य) मुसलसल (क्रमश:) बनती रहती है और इस ज़खी़रे (भंडार) के लिए जगह का खाली होना ज़रूरी है। इसलिए जब मनी का ज़खी़रा ज़्यादा हो जाता है, तो नींद की हालत में बेइख्तेयार (अनैच्छिक) निकल जाती है। इसमें लज़्ज़त भी होती है और ख़्वाब में ऐसा महसूस होता है, जैसे कि किसी से जिंसी फ़अल (क्रिया) में मसरूफ़ (व्यस्त) हैं। मनी के इस तरह ख़्वाब में निकल जाने को अहतेलाम (स्वप्नदोष) कहते हैं। इसी को बदख़्वाबी कहा जाता है। महीने में एक या दो बार, कभी-कभी तीन या चार बार एहतलाम हो जाना कोई ख़तरनाक बात नहीं। लेकिन कभी ऐसे बदख़्वाबी हर दूसरे-तीसरे दिन या रोज़ाना रात को होने लगती है, जबकि मनी के ख़ज़ाने भी इतने भरे हुए नहीं होते यानी खज़ाना अभी भरने नहीं पाया कि मनी ख़ारिज होने लगी, तो यह ख़तरनाक बात है और जब यह वारदात (घटनाएं) बढ़ जाती है, तो अक्सर ऐसा भी होता है कि दिन में ज़रा जिंसी ख़्याल आया और मनी ख़ारिज हो गई। यह हालत बिल्कुल तबाहकुन (विनाशकारी) होती है। इससे सेहत का दीवाला निकल जाता है और उसकी वजह आम तौर पर शहवानी (काम प्रवृत्ति) ख़्यालात, इश्को-मुहब्बत की बातें और जिंसी बेताबी व बेक़रारी (बेचैनी) होती है।
बदख़्वाबी मामूलन कितनी बार होना चाहिए? इस सवाल का जवाब मुश्किल है, क्योंकि इसका इंहेसार (संबंध) मुख़्तलिफ़ अशख़ास (लोगों) की तबियतों और मुख़्तलिफ़ हालात और वाक़्यात पर होता है। आमतौर पर हफ़्ते (सप्ताह) में एक बार बदख़्वाबी हुआ करती है। मगर एक ही शख़्स में यह कम ज़्यादा भी हो सकता है।
बदख़्वाबी बढ़ने के कारण क्या हैं?
शहवत (काम प्रवृत्ति) को भड़काने वाली गुफ़्तगू (वार्ता), गंदे नाविलों का मुतालअह (अध्ययन), सिनेमा देखना और राग-रंग की दिलचस्पियों से मनी का इख़्राज (निष्कासन) यानी बदख़्वाबी बढ़ जाती है। कभी-कभी गोश्त, अंडा, मछली, चाय, तेज़ मसालों, नशेदार चीज़ों और ज़्यादा खट्टी चीज़ों के खाने से भी बदख़्वाबी की रफ़्तार बढ़ जाती है, क्योंकि यह चीज़ें बराहे रासत (सीधे) दिमाग़ में जोश पैदा कर देती हैं। ज़्यादा देर तक चित्त सोने और ज़रूरत से ज़्यादा गरम कपड़ा ओढ़ने से, नरम बिस्तर पर सोने से भी बदख़्वाबी ज़्यादा हो जाती है।
बदख्वाबी किस उम्र में होने लगती है? इसका ठीक जवाब भी मुश्किल है। मगर यह उमूमन बलूग़ के क़रीब (14-18 साल की उम्र में) हुआ करती है। बाज़ अवक़ात इससे भी ज़्यादा उम्र तक नहीं होती, जैसा कि सादा मिजाज़, नेक और परहेज़गार नौजवानों के साथ होता है।
नौजवानों में बदख्वाबी एक तबई फ़अल (प्राकृतिक क्रिया) है, लिहाज़ा इससे ख़ौफ़ज़दा (भयभीत) होने की ज़रूरत नहीं है, बल्कि ज़रूरत इस बात की है कि ऐसी ख़्वाहिशात, जज़्बात, हालात और ख़ुराक से परहेज़ करें, जो बदख़्वाबी को बढ़ाती हैं। कुछ नौजवान यह समझते हैं कि बदख़्वाबी ज़्यादा होने से उनकी क़ुब्बते-मर्दानगी कम हो जाएगी। चुनांचे वह ऐसे बदहवास और खौफ़ज़दा हो जाते हैं उनमें स्नायु दुर्बल बल्कि नफ़िसयाती (विषयी) नामर्दी तक पैदा हो जाने का ख़तरा है। लेकिन हम जेल में ऐसे तरीक़े आपको बताते हैं जिनसे बदख़्वाबी की रफ़्तार कम हो जाएगी और आपकी सेहत भी ठीक रहेगी।
कसरते एहतलाम की रोकथाम
1. हर उस चीज़ को तर्क (त्याग) कर दिया जाए, जो शहवत (कामुकता) पैदा करें और जिंसी जज़्बे को उभारे
2. तेज़ मसालेदार ग़िज़ा, तंबाकू, चाय, कॉफी और गोश्त की ज़्यादती से परहेज़ किया जाए।
3. शाम का खाना ग़ुरेबे आफ़ताब (सूर्य अस्त) से पहले या फ़ौरन बाद खा लेना चाहिए।
4. दिन के वक़्त ख़ूब जिस्मानी (शारीरिक) मेहनत और वर्जिश की जाए, ताकि शाम को थकन महसूस होकर रात में नींद जल्दी और अच्छी आए और दिमाग़ को पूरा आराम मिले।
5. सोने से पहले जिंसी हालात और शहवत भड़काने वाली किताबों के मुतालअह से परहेज़ किया जाए।
6. सोने से पहले कद्रे (थोड़ी) चहलक़दमी की जाए या थोड़ी देर मामूली दिलचस्पी की किताबों का मुतालअह किया जाए जो गै़र जिंसी मौजू (विषयक) की किताबें हों।
7. इशा की नमाज़ पढ़ने के बाद हर आफ़त (संकट) और बला से महफूज़ रहने की दुआ की जाए।
8. पीठ के बल हरगिज़ न सोया जाए, बल्कि दाएं करवट सोना बेहतर है।
9. सोने से पहले पेशाब कर लिया जाए और ऊजू मख़्सूस (लिंग) को ठंडे पानी से धो लिया जाए, ताकि इन्तेशार (विस्तार) पैदा न हो।
10. नरम गद्दा और बिस्तर इस्तेमाल न किया जाए, बल्कि सख़्त बिस्तर पर सोया जाए।
11. सर ढांप कर सोना, मुंह लिहाफ़ (रज़ाई, पल्ली) के अन्दर कर लेना, ज़्यादा गरम कपड़े इस्तेमाल करना नुक़सानदेह है। इस तरह अजू मख़्सूस में इन्तेशार पैदा होकर बदख़्वाबी हो जाती है।
12. इश्तेहारी दवाओं, अनाड़ी और अताई हकीमों और डॉक्टरों के इलाज से परहेज़ किया जाए, क्योंकि इनसे नुक़सान ज़्यादा और नफ़ा (लाभ) कम होता है।
13. कसरते एहतलाम से ज़्यादा परेशान होने की बजाय, उसका मुनासिब (उचित) इलाज किया जाए। इसके लिए ज़रूरी अद्विया (औषधियों) का इलाज भी हम आप लोगों को ज़रुत बताएंगे।
Read Hindi News : Click Here
Please do not share any spam links in this blog.