Sacrifice : क़ुर्बानी की तारीख़ (इतिहास) और हुक्म : Commands


बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम : अस्सलामु अलैकुम व रह मतुल्लाहि व ब रकातुहू! इस पोस्ट में आप जानेंगे क़ुर्बानी की तारीख़ (इतिहास) और क़ुर्बानी Sacrifice का हुक्म History of Sacrifice and Commands क़ुरआन और हदीस़ की रोशनी में। अतः पेश है – History of Sacrifice and Commands.

क़ुरबानी की शुरूआत हज़रत आदम अलै0 के दौर से होती है। हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के दोनों बेटे हाबील व क़ाबील ने दुनिया-ए-इंसानियत में पहली क़ुर्बानी बहुज़ूर परवरदिगार पेश की। चुनांचे हाबील ने एक मैंढे की क़ुर्बानी पेश की और क़ाबील ने ग़ल्ला वगैरह का तसद्दुक़ पेश किया। अल्लाह पाक ने तक़्वा की बुनियाद पर हाबील की क़ुर्बानी क़बूल फ़रमायी और क़ाबील की रद कर दी। इसका ज़िक्र क़ुरआन मजीद की सूरह 5 अल-मायदा की आयत नं० 27 में यूँ आता है:
“और ज़रा इन्हें हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के दोनों बेटों का क़िस्सा हक़ के साथ सुना दो जब उन दोनों ने क़ुर्बानी की तो उन में से एक की क़ुर्बानी क़बूल की गई और दूसरे की ना की गई उसने कहा मैं तुझे मार डालूंगा, उसने जवाब दिया ‘बेशक अल्लाह तो मुत्तक़ियों की क़ुर्बानी क़बूल करता है।”

ये आयते करीमा तारीख़े क़ुर्बानी के आगाज़ का पता देती है। नीज़ क़ुर्बानी की मक़बूलियत का सबब तक़वा क़रार देती है। लिहाज़ा हमें चाहिए कि क़ुर्बानी की रूह को समझें और वह असबाब इख्तियार करें जिनसे हमारी क़ुर्बानी को क़ुबूलियत हासिल हो। दर हक़ीक़त क़ुरआन मजीद के मुताले से मालूम होता है कि अल्लाह पाक ने हज़रत आदम अलैहिस्सलाम से लेकर नबी करीम जनाब मुहम्मद रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम तक हर क़ौम व मिल्लत को क़ुर्बानी का हुक्म दिया है चुनांचे हर क़ौम व मिल्लत इस अमल के ज़रिए अल्लाह का तक़र्रूब हासिल करती रही। अल्लाह पाक ने सूरह 22 हज की आयत नं० 34 में इरशाद फ़रमाया है:

“हम ने हर क़ौम व मिल्लत के लिए क़ुर्बानी का एक क़ायदा मुक़र्रर किया ताकि लोग उन जानवरों पर अल्लाह का नाम लें जो उसने उनको बख़्शे हैं (इन मुख्तलिफ़ तरीकों के अन्दर मक़सद एक ही है) पस तुम्हारा माबूद एक ही माबूद है और उसी के तुम मुतीअ व फ़रमांबर्दार बनो और ऐ नबी सल्ल० आजिज़ाना रविश इख़्तियार करने वालों को (जन्नत) की बशारत दे दो।”

क़ुरआन के हवाले से हमें क़ुर्बानी की तारीख़ और हर क़ौम व मिल्लत में क़ुर्बानी का अमल जारी रहने का सबूत मिलता है। अलबत्ता इस्लाम में क़ुर्बानी जैसे मुक़द्दस अमल की मशरूइय्यत और मसनूनिय्यत हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के इस अमल व सुन्नत से शुरू होती है जो आपने अपने लख़्ते जिगर की क़ुर्बानी पेश करके अल्लाह पाक की रज़ा व ख़ुशनूदी हासिल की, और दुनिया ए इंसानियत में एक अज़ीम मिसाल क़ायम की। अल्लाह तआला को ये अदा बहुत पसन्द आयी और इस अमल को इस्लामी शिआर बना दिया, क़ुरआन की सूरह साफ्फ़ात की आयत नं० 99-110 में इसकी तफ़सील यूँ आई है:

“और हज़रत इब्राहिम ने फ़रमाया मैं अपने रब की तरफ़ जाता हूँ, वही मेरी रहनुमाई करेगा, मेरे मालिक मुझे एक लड़का इनायत कर दे जो नेक हो, तो हमने एक बुर्दबार लड़के के पैदा होने की बशारत दी, जब वो लड़का इस लायक हुआ कि इब्राहीम के साथ दौड़ सके तो इब्राहिम ने कहा बेटा मैं ख़्वाब में देखता हूँ कि मैं तुझे ज़िबह कर रहा हूँ तो देख तेरी क्या राए है? लड़के ने कहा अब्बा जान जो अल्लाह का हुक्म हुआ है उसको फ़ौरन बजा लाइये, इन शा अल्लाह आप मुझे सब्र करने वालों में से पायेंगे। जब बाप और बेटा दोनों हुक्म ए इलाही बजा लाने पर तैयार हो गये और बाप ने बेटे को माथे के बल पछाड़ा और हमने इब्राहीम को पुकारा, ऐ इब्राहीम तूने अपना ख़्वाब सच कर दिखाया हम नेकों को ऐसा ही बदला दिया करते हैं। बेशक ये खुली आज़माइश थी और हमने उस लड़के के बदले में बड़ी क़ुर्बानी दी और हमने इब्राहीम का ज़िक्रे ख़ैर पिछले लोगों में बाक़ी रखा। (हर शख़्स ये कहता है) सलामती हो इब्राहीम पर जिस तरह हमने इब्राहीम को बदला दिया इसी तरह नेकों को बदला देते हैं।”

इस्लाम में क़ुर्बानी की मशरूइय्यत और मसनूनिय्यत दौरे इब्राहीम से मशरूअ होने का तज़किरह ज़ैद बिन अरक़म की रिवायत में यूँ आता है:

“यानी सहाबा ए किराम ने आंहज़रत सल्ल० से दरयाफ्त किया कि क़ुर्बानी की हैसियत और असलियत क्या है? आपने फ़रमाया तुम्हारे दादा इब्राहीम की सुन्नत और यादगार है। सहाबा ने अर्ज़ किया फिर इसमें हमारे लिए क्या सवाब है? फ़रमाया हर बाल के बदले एक नेकी मिलेगी। फिर पूछा ऐ अल्लाह के रसूल सल्ल० ऊन के बारे में क्या ख़्याल है? हर ऊन के बदले एक नेकी मिलेगी। (हाकिम, अहमद, इब्ने माजा)।
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