Numbers : 786 का सच (हक़ीक़) क्या है? जानिऐ : Truth of 786


Numbers 786 : बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम, अस्सलामु अलैकुम व रह मतुल्लाहि व ब रकातुहू! अज़ीज़ दोस्तों, पोस्ट की हैडिंग से आप जान ही चुके हैं कि इस पोस्ट में Numbers 786 का सच क्या है? जानकारी दी जा रही है। इन Numbers 786 की हक़ीक़त जानना आपके लिए बहुत ज़रूरी है। अगर आज हमने इन Numbers 786 के सच को नहीं जाना तो समझ लीजिए कि हम अंजाने में किसी गुनाह का इर्तिकाब कर रहें हैं। अतः आप सभी से गुज़ारिश है कि Numbers 786 की हक़ीक़त पर आधारित इस पोस्ट को पूरा ज़रूर पढ़ लीजिए ताकि दूध का दूध और पानी का पानी हो जाए एवं गुनाह करने से बच जाऐं, अब पेश है : What is the truth of the numbers 786?

कुरान और हदीस की दूरी के सबब आज मुसलमानों में ना जाने कितनी ऐसी बुराई हैं जिसे वो अच्छाई समझ के कर रहा है और उसे अपने दीन का हिस्सा समझता है। इसी क़िस्म की एक बुराई 786 है जिसे आम तौर पर लोग किसी काम की शुरूआत (जैसे ख़त, दुकानों में, गाड़ियों में) में लिख देते हैं और यह समझते हैं कि ये بسم اللّٰه الرحمٰن الرحيم है। जबकि न तो कभी नबी (सल्ल0) ने इसे किसी काम की शुरूआत में लिखा न कभी सहाबा ने इसे लिखा। ग़ौर व फ़िक्र की बात यह है कि आख़िर इन हरफ़ों के नम्बर का सिस्टम बनाया किसने ये भी लोग नहीं जानते। आइये देखते हैं कि इन नम्बरों की सच्चाई क्या है-

ऊर्दू नम्बर सिस्टम


इस नम्बर सिस्टम के हिसाब से अगर بسم اللّٰه الرحمٰن الرحيم के हरफ़ों को अलग अलग करके जोड़ा जाये तो –
जोड़ 788 निकलता है। ग़ौर करने की बात यह है कि जब بسم اللّٰه الرحمٰن الرحیم के हरफ़ों को अलग किया जाता है तो اللّٰہ और الرحمٰن लिखने में अलिफ़ हरफ़ को नहीं जोड़ा जाता जिससे हरफ़ों का जोड़ 786 आता है लेकिन अगर अलिफ़ को भी साथ में लेकर जोड़ा जाये तो 788 आता है। उर्दू पढ़ने वाले ये समझ सकते हैं के अगर रहमान से अलिफ़ हटा देंगे तो वह रहमन पढ़ा जायेगा तो फिर بسم اللّٰہ الرحمٰن الرحیم से रहमान और अल्लाह से अलिफ को हटाकर नम्बरों को जोड़ना कैसे सही हुआ। सही जानकारी के मुताबिक 786 नम्बर हिन्दू मज़हब के भगवान हरी कृष्णा (ہری کرشنا) के नाम के हरफ़ों के नम्बरों का जोड़ है। नीचे देखें –

इसके अलावा 786 का जोड़ न जाने कितने शिर्किया नम्बरों का जोड़ हो सकता है। सबसे ज़्यादा फ़िक्र की बात ये है कि जिस नम्बर सिस्टम को लोग मानते चले आ रहे हैं उसका नबी (सल्ल0) या उनके सहाबी से कोई ताल्लुक नहीं और जिस बात का ताल्लुक नबी सल्ल0, सहाबा से नहीं तो हम आम इन्सानों को ये हक़ कैसे हासिल के हम किसी चीज़ को दीन का काम समझकर करें। जबकि 786 का तज़किरा न किसी हदीस में, न ही किसी अईम्मा से और न ही किसी बुजुर्ग से मिलता है। अगर हक़ीक़त में ये दीन ए इस्लाम का हिस्सा होता तो कहीं न कहीं इसके बारे में कोई सही बात ज़रूर मिलती।

अगर इन नम्बर सिस्टम को माना जाये तो मुहम्मद के नम्बर 92 होते हैं तो इस नम्बर सिस्टम के मानने वाले मुसलमानों को दरूद शरीफ़ जिसे वो दिन रात पढ़ते हैं उसमें जहाँ-जहाँ मुहम्मद आता है वहाँ-वहाँ 92 कहना चाहिए। अगर بسم اللّٰہ الرحمٰن الرحیم के नम्बरों से लिखना और पढ़ना जायज़ है तो फिर क़ुरआन को भी नम्बरों से पढ़ना भी जायज़ हुआ और नमाज़ों को भी नम्बरों से पढ़ना जायज़ हुआ। नाऊज़ोबिल्लाह! ज़रा ग़ौर करें क्या यही दीन है।
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