Need Friend : बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम! अस्सलामु अलैकुम व रह मतुल्लाहि व ब रकातुहू, मेरे प्यारे नौजवान दोस्तों! जिंदगी गुज़ारने के लिए आपको यक़ीनन दोस्त की ज़रूरत Need Friend पड़ती है और आप दोस्त के बगै़र रह भी नहीं सकते। दरअसल राज़ की बातें कहने, दुःख-दर्द का माजरा सुनाने और हंसी-खु़शी में शरीक होने के लिए दोस्त की बहुत ज़रूरत Need Friend होती है, क्योंकि इन नाज़ुक लम्हात (क्षणों) में आपका भाई भी आपके काम नहीं आ सकता, बल्कि आपको उससे राज़दारी ही बरतनी पड़ती है, ताकि वह आपकी पोशीदा (गुप्त) सरगर्मियों (उत्साहों) से वाक़िफ़ (परिचित) न हो सके, अतः हमेें एक अच्छे दोस्त की ज़रूरत Need Friend पड़़ती है । इसलिए यह एक हक़ीक़त है कि बेतकल्लुफ़ राज़दार और विश्वसनीय Need Friend दोस्त के बगै़र यह दुनिया उदास और वीरान नज़र आने लगती है। Need Friend is very important so दोस्त और दोस्ती दानाओं (बुद्धिमानों) ने दोस्तों के मुताल्लिक चंद निहायत (अत्यधिक) क़ीमती बातें कही हैं, जिन्हें हम आपकी रहनुमाई (दिशा-निर्देश) के लिए दर्ज करते हैं। Need Friend पर अक्लमंदों ने कहा है – Some Important Quotes on Need Friend:
(1) भाई बाजू (भुजा) होते हैं और दोस्त दिल और दिल के बगै़र कोई इंसान ज़िंदा नहीं रह सकता, ख़्वाह उसके बाजू़ मौजूद ही क्यों न हों।
(2) दोस्त दो को एक और एक को ग्यारह बना देता है।
(3) दोस्त ऐसे भेदों से भी वाक़िफ होता है, जिनके मुताल्लिक़ घर वालों को गुमान (संदेह) तक नहीं होता।
(4) दोस्त वह नहीं जो दस्तरख़्वान पर आपके साथ मौजूद न हो, बल्कि दोस्त तो वह है जो हर मश्किल में आपका साथ दे।
(5) दोस्त हमेशा अच्छा मश्वरा (सलाह) देता है।
(6) नेक और वफ़ादार दोस्त बहुत बड़ी नेमत है।
(7) शेख़ सअदी रह० ने फ़रमाया है कि दोस्त ख़्वाह कितना ही अज़ीज़ क्यों न हो, उससे राजे़दिल न कहो, क्योंकि जब कभी तुमसे झगड़ेगा तो सबसे पहले उसी राज़ को दूसरे से बता करके तुम्हें ज़लील (अपमानित) करेगा।
अब आप पर दोस्ती की अहमियत वाज़ेह (स्पष्ट) हो चुकी है। इसलिए हम आपको दोस्ती का मेयार (स्तर) और अच्छे दोस्तों की पहचान बताते हैं, जिस पर आप खु़द भी पूरे उतरें और जो दोस्त इस मेयार पर पूरा उतरे, उसकी दिलो-जान से क़द्र करें, क्योंकि दोस्त सिर्फ राज़दां ही नहीं होता, बल्कि जिंदगी के हर मोड़ पर एक वफ़ादार रफ़ीक़ (मित्र) भी होता है। इस सिलसिले (धारा) में एक ख़ास उसूल याद रखिए, कि अगर आपने खुद को एक अच्छा दोस्त साबित (सिद्ध) किया तो इंशाअल्लाह आपको भी अच्छे ही दोस्त मिलेंगे।
दोस्ती का जो मेयार हम आपको बता रहे हैं, वह हमारा अपना तैयार करदा नहीं है, बल्कि उस खुदा का बनाया हुआ है, जो हर इंसान के सीने के राज़ और उसकी नज़र खोट से वाक़िफ़ है, जो हर इंसान की फ़रियाद (पुकार) सुनता और उसे हर हाल में देखता है और हमेशा हमसी बेहतरी चाहता है। यह मेयारे दोस्ती उसने अपने प्यारे नबी और हमारे आक़ा हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के ज़रिए हमें बताया है और अपने कलामे-पाक यानी कुरआन मजीद में, जो दीन और दुनिया दोनों में सरबुलंदी का ज़ामिन (प्रतिभू) है, लिख दिया है, ताकि हम उसे गौ़र से पढ़ें, समझें और उस पर अमल करें।
अब आप बताइए, क्या आप ऐसे शफ़ीक़ (दोस्त) रहनुमाओं की बात को न मानेंगे?
कुरआन पाक में अल्लाह तआला ने फ़रमाया है
(1) अपने रफ़ीक़ों (दोस्तों) पर अहसान करो।
(2) जो शख़्स तुम्हारे पास बैठते हों, उनके साथ भी अहसान करो।
(3) अपने दोस्त के घर खाना खा लेने में तुम पर कोई तंगी नहीं है।
(4) तुम्हारी दोस्ती अल्लाह और रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के बाद सिर्फ ऐसे ईमानदार लोगों के साथ होनी चाहिए जो नमाज़ को क़ायम करते हों, ज़कात (धर्म-दान) देते हों, रुकूअ करने वाले हों, नेक बातों का हुक्म (आदेश) देते हों और बुरी बातों से रोकते हों।
(5) जिन लोगों ने दीने-इस्लाम को खेल-तमाशा बना रखा है और वह दीन और अज़ान का मज़ाक़ उड़ाते हों और दुनिया की जिंदगी के फ़रेब (छल) में आए हुए हों, उनसे दोस्ती मत रखो और उनको छोड़ दो।
(6) जो दान का मज़ाक़ उड़ाए, उनके पास भी मत बेठो । अगर तुमने ऐसा किया तो अल्लाह तआला के यहाँ तुम भी उन्हीं के साथी समझे जाओगे।
(7) अपने और अल्लाह के दुश्मनों को, और उन लोगों को जिन पर अल्लाह का ग़ज़ब (प्रकोप) नाज़िल हुआ, दोस्त मत बनाओ।
(8) ऐसे लोगों की सोहबत इख्तियार करो, जो सुबह व शाम अपने रब को पुकारते हैं और उसकी रज़ामंदी (सम्मति) चाहते हैं, उनको छोड़कर अपनी आँखों को दुनिया की ज़ीनत (सौन्दर्य) की तरफ़ मत लगाओ और न उन लोगों की पैरवी (अनुकरण) करो, जिनके दिल यादे इलाही से ग़ाफ़िल (दुर्बल) हों और जो अपने नफ़्स (मन) की ख्वाहिशात (इच्छाओं) के पीछे लगकर हद से गुज़र जाने वाले हों।
(9) यह बात मोमिनों को जे़ब (मनोहर) नहीं देती, कि वह अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के मुख़ालिफ़ों (विरोधियों) से दोस्ती करें, ख़्वाह उनके बाप हो, बेटे हों या रिश्तेदार हों।
(10) क़यामत (मृत्यु से उत्थान) के दिन अल्लाह फ़रमाएगा, वह लोग कहाँ हैं जो सिर्फ मेरे लिए लोगों से दोस्ती और मुहब्बत किया करते थे। आज मैं उनको अपने साये में जगह दूंगा।
(11) आपस में अल्लाह के लिए मुहब्बत रखो।
(12) बस तुम ऐसे लोगों से दोस्ती मत करो जिन पर अल्लाह का ग़ज़ब हुआ और जो क़ियामत और रिसालत (दूत-कर्म) के मुनकिर हुए (अस्वीकार गए)।
(13) यहूदो-निसारा, कुफ़्फ़ार (नास्तिक), मुनाफ़िक़ीन, फ़ासिकों और फ़ाजिरों से भी दोस्ती न रखो।
(14) क़यामत में हर शख़्स उस आदमी के साथ होगा, जिससे दुनिया में मुहब्बत रखता था।
(15) हुजूर नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का इर्शाद (उपदेश) है :
“अगर तुम लौहार के पास बैठोगे तो एक दिन कपड़े जलाकर उठोगे, मगर अत्तार (इत्र बेचने वाला) के पास बैठने से हर वक़्त खुशबू आएगी।”
ग़र्ज़ (अभिप्राय) अच्छे दोस्त आपके लिए दुनिया और आकेबत (अन्त) में बेहतरी का बाइस होते हैं और बुरे दोस्त दोनों जहान में तबाही (विनाश) का सबब (कारण) होते हैं हुजूर नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया
(1) मुसलमान मुसलमान का भाई है। वह उससे ख़यानत (विश्वासघात) नहीं करता, उससे झूठ नहीं बोलता और न वक़्त पड़ने पर उससे किनारा करता है, हर मुसलमान पर दूसरे की आबरू व माल (यश, धन) और खून हराम (निषेध) है।
(2) तुममें से कोई आदमी उस वक़्त तक कामिल (पूर्ण) नहीं हो सकता जब तक कि वह अपने (मुसलमान) भाई के लिए भी वह (भलाई) न चाहे, जो अपने लिए चाहता है।
(3) अल्लाह तआला के सामने अपने मुसलमान भाई (दोस्त) के लिए दुआ करो, क्योंकि इसमें खु़लूस (सदाचार) होता है और ऐसी दुआ बहुत जल्द क़ुबूल (स्वीकार) होती है।
(4) अपने दोस्त में कोई ऐब (दोष) नज़र आए तो उसे निहायत मुहब्बत और अहतियात (सावधानी) से आगाह (अवगत) कर दो, ताकि वह उस ऐब को दूर करे और किसी दोस्त के लिए यह उचित नहीं है कि जब उसे उसका ऐब बताया जाए तो वह इसका बुरा माने, क्योंकि यह उसके लिए भले की बात है।
(5) दोस्तों से बहस-मुबाहिसा (तर्क-वितर्क) करते वक़्त यह बात ख़ासतौर पर ध्यान में रखनी चाहिए कि उससे कहीं दिलों में रंजिश न पैदा हो जाए। अगर बहस को जीतकर दोस्त को खो दिया तो यह बड़ा घाटे का सौदा है।
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