निकाह: नये जोड़े को दुआ और तोहफा देना

नये जोड़े को दुआ देना

*हजरत अबू हुरैरह रज़ि कहते हैं कि जब नबी ﷺ किसी शख्स को शादी की मुबारकबाद देते तो आप कहते,अल्लाह तआला तुम्हें बरकत दे और इस बरकत को कायम रखे और तुम दोनों (मियाँ-बीवी) को खैर और भलाई में इकठ्ठा कर दे।"*

*[अबू दाऊद- 2130]*

जब हजरत अब्दुर्रहमान बिन औफ़ रज़ि ने अपने निकाह की खबर नबी ﷺ. को दी तो आपने फरमाया:

‎"بَارَكَ اللَّهُ لَكَ"

तर्जुमा: "अल्लाह तआला तुम्हें (इस निकाह में) बरकत दे।" 

*[सहीह बुखारी 5155, 6386; सहीह मुस्लिम  3490]*

Note:
अब यहां बयान की गई हदीस से पता चलता है कि निकाह के बाद नए जोड़े को बरकत की दुआ सुन्नत ए नबी है।

दौर ए जहलियत का जमाना ऐसा था की लोग अंधेरे में भटक रहे थे लोग जब नए जोड़े को दुआ देते तो कहते, "तुम दोनों में मेल मिलाप हो, और बेटे पैदा हों" इसकी वजह ये थी कि न केवल अरब में बल्कि दुनियां के तमाम मुल्कों में लोग बेटियों को बोझ समझते थे उन से नफ़रत करते थे। ऐसे माहौल में नबी करीम ﷺ बेटियों को जीने का हक़ दिलाया और नए जोड़े को दुआ देने के अल्फाज़ सिखाए जिसमें दीन और दुनियां दोनों में खैर और भलाई हासिल करने की दुआ दी जाती है।

दूसरी हदीस पर गौर करें कि हजरत अब्दुर्रहमान बिन औफ़ रज़ि ने जब निकाह कर लिया उसके बाद नबी ﷺ ने उन्हें बरकत की दुआ दी।

नसीहत:
हमारे लिए यहां ये नसीहत है कि अगर हम में से किसी का दोस्त या रिश्तेदार अगर किसी वजह से हमें निकाह में न बुला पाये तो हमें उसकी भलाई के लिये दुआ करनी चाहिए न कि उस से नाराज़ हो जाय लान तान करना शुरू कर दें।

नये जोड़े को तोहफे देना

*अनस रज़ि फरमातें हैं कि जब नबी ए रहमत ﷺ का निकाह सैय्यदा जैनब रज़ि से हुआ तो अनस रज़ि की माँ उम्मे सुलैम रज़ि ने पनीर, खजूर और घी से बना ‘हैस’ (हलवा) आप ﷺ के पास तोहफे के तौर पर भेजा।*

*[सहीह बुखारी - 5163; तिर्मिज़ी - 3218]*

*अम्मी आयशा रज़ि फरमाती है कि, "रसूलल्लाह ﷺ तोहफे कबूल करते थे और बदले में तोहफे भी देते थे।"*

*[सहीह बुखारी - 2585]*

वजाहत:
उपर्युक्त अहादिस से पता चला कि नये जोड़े को तोहफे देना नबी ﷺ के दौर से साबित है और ये बहुत अच्छा अमल है। इससे दिलों में मुहब्ब्त बढ़ती है और रिश्ते और मजबूत होते हैं*।

जैसा कि आज कल हमारे समाज में निकाह के नाम पर नई नई रस्में पांव पसार रही है जिसकी दीन इस्लाम में कोई जगह नहीं।

लोग रियाकारी और शोहरत हासिल करने के लिए एक दूसरे से आगे निकल जाना चाहते हैं वलीमे और तोहफ़े के नाम पर लोग फिजूलखर्ची कर रहे हैं ऐसे खुराफाती अमल से बचना चाहिए जो रस्म बन जाय।

निकाह की फजीलत की अगली कड़ी में कुछ ख़ास बिंदु पर बात होगी "इंशा अल्लाह" तब तक दुआओं में याद रखें। अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त बातों को लिखने पढ़ने से ज्यादा अमल की तौफीक अता फरमाए। आमीन!
Post Navi

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ