Asli Ahle Sunnat Kaun? Part 04 : असल अहले सुन्नत अहले हदीस़ ही होते हैं, असली अहले सुन्नत कौऩ? : Interesting Discussion



Asli Ahle Sunnat Kaun Part 04 : ये एक हनफी और मुहम्मदी का बहुत ही दिलचस्प मुबाहिसा है जिसे एक Researcherने लिखा है इसमें Ahle Sunnat के विषय पर Interesting Discussion किया गया है है और मज़हब के बारे में ऐसी बहुत सी बातों के जवाबात Ahle Sunnat के संबंध में ज़ेरे बहस आये हैं. आखि़रकार असली अहले (Ahle Sunnat) सुन्नत कौऩ है? ये सवालात अक्सर ज़ेहनों में पैदा होते रहते है। अतः हम आपको Ahle Sunnat पर आधारित सवालात के जवाबात इस पोस्ट के माध्यम से दे रहे हैं, तो आइए अब जानते हैं कि असली अहले सुन्नत Ahle Sunnat कौन हैं?

(बिस्मिल्लिहिर्रहमानिर्रहमी)


इसमें ‘ह ’ से मुराद हनफी है और ‘म ’ से मुराद मुहम्मदी है।

ह – क्या ये सच है कि फिक़ह हनफी इमाम साहब ने ख़ुद नहीं लिखी?

म – किसी हनफी आलिम से पूछ लें, अगर कोई साबित कर दे तो…

ह – मान लिया कि हदीस रसूल (सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम) की है लेकिन हदीस हर कोई समझ तो नहीं सकता।

म – क्या फिक़ह को हर कोई समझ लेता है?

ह – फिक़ह तो बहुत आसान है।

म – क्या बग़ैर पढ़े आ जाती है?

ह – नहीं पढ़नी तो पढ़ती है।

म – फिर क्या हदीस पढ़ने से नहीं आती?

ह – आ तो जाती है लेकिन उसका समझना तो बहुत मुश्किल है। क्यों कि हदीसों में इख़्तिलाफ बहुत है हदीसों का समझना तो इमाम की का काम है।

म – ये सब दुश्मनाने रसूल की उड़ाई हुई बातें हैं वरना हदीसों में इख़्तिलाफ कहाँ? इख़्तिलाफ तो फिक़ह में होता है जो नाम ही अक़्वाल व आरा का है जो है ही मज़िन्ना-ए-इख़्तिलाफ, हदीस तो रसूल (सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम) के क़ौल व फेल को कहते हैं। जिस में इख़्तिलाफ का सवाल ही पैदा नहीं होता क्योंकि दीन होने की वजस से अल्लाह इसका ज़िम्मेदार है।

ह – फिक़ह में भी इख़्तिलाफ है?

म – फिक़ह में तो इतना इख़्तिलाफ है जिसकी कोई हद नहीं, फिक़ह-ए-हनफी के तीन बड़े इमाम हैं- 

(1) इमाम अबू हनीफा रहमतुल्लाह अलैह, 

(2) इमाम अबू यूसुफ रहमतुल्लाह अलैह, और 

(3) इमाम मुहम्मद रहमतुल्लाह अलैह,  इन तीनों इमामों का फिक़ह के तक़रीबन दो तिहाई मसाइल में इख़्तिलाफ है। जैसा कि इमाम ग़ज़ाली रहमतुल्लाह अलैह ने अपनी किताब मनख़ूल में लिखा है। मिसाल के तौर पर –

(1) इमाम अबू हनीफा रहमतुल्लाह अलैह कहते हैं नमाज़ के सात फर्ज़ हैं। साहेबीने इमाम अबू यूसुफ रहमतुल्लाह अलैह और इमाम अबू मुहम्मद रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं कुल छैः फर्ज़ हैं। इमाम साहब फरमाते हैं अत्तहियात में अगर वुज़ू टूट जाये तो नमाज़ नहीं होती, क्योंकि सातवां फर्ज़ अभी बाक़ी है। साहेबीन कहते हैं हो जाती है क्योंकि छैः फर्ज़ पूरे हो चुके। 

(2) इमाम अबू हनीफा रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं- घोड़ा हलाल नहीं दूसरे इमाम फरमाते हैं घोड़ा मकरूह है घोड़ी का दूध सबके नज़दीक हलाल है। (मुलाहिज़ा हो हिदाया-425) 

(3) अगर बीवी का ख़ाविंद लापता हो जाये तो कोई इमाम कहता है औरत ख़ाविंद का 120 साल की उम्र तक इंतिज़ार करे। एक रिवायत के मुताबिक़ इमाम अबू हनीफा का यही फ़तवा है, हनफियों के ज़्यादा इमामों की राय है कि जब उसके ख़ाविंद की उम्र के तमाम आदमी मर जायें उस वक़्त तक इंतिज़ार करे, कुछ कहते हैं 90 साल इंतिज़ार करे, मुलाहिज़ा हो हिदाया-602, एक हनफ़ी बेचारी क्या करे किधर जाये? 

(4) इमाम अबू हनीफा रहमतुल्लाह अलैह साहब फरमाते हैं दो मिसल साया हो तो अस्र का वक़्त होता है, साहेबीन फरमाते हैं एक मिसल हो तो वक़्त होता है। हिदाया-46 

(5) इमाम साहब फरमाते हैं चार आमदी हों तो जुमा हो सकता है, साहेबीन फरमाते हैं तीन हों तो हो सकता है। हिदाया-149 

(6) इसके अलावा मुस्तमल पानी ही लें जिससे हर वक़्त वास्ता पड़ता है कोई पाक कहता है, कोई पलीद, फिर इसमें इख़्तिलाफ होता है। कि कम पानी है या ज़्यादा, ये तो आलिमों की राय का इख़्तिलाफ होगा। इमाम साहब का फैसला क्या है? इमाम साहब ही के क़ौल मुख़्तलिफ हैं। इमाम मुहम्मद रहमतुल्लाह अलैह कहते हैं कि इमाम अबू हनीफा रहमतुल्लाह अलैह का क़ौल है कि इस्तेमाल शुदा पानी ख़ुद पाक है दूसरी चीज़ को पाक नहीं कर सकता। इमाम अबू हनीफा का दूसरा क़ौल ये है कि मुस्तमल पानी पलीद है, इमाम हसन की रिवायत में नजासत ‘‘ग़लीजा’’ है और अबू यूसुफ की रिवायत में नजासत ‘‘ख़फीफा’’ है। हिदाया-22     

मिनीतुल मुसल्ला में घोड़े के जूठे के बारे में लिखा है कि अबू हनीफा से इस सिलसिले में चार रिवायतें हैं- एक रिवायत में ‘‘नजिस’’ एक रिवायत में ‘‘मशकूक’’ एक रिवायत में ‘‘मकरूह’’ और एक रिवायत में पाक। बताइये अब हनफी मुक़ल्लिद किधर जायें, किसको सहीह समझें।     

हनफी मौलवी हदीस से तो मुतनफ्फिर करते हैं इख़्तिलाफ की हवा दिखाकर और नहीं देखते कि फिक़ह में कितना इख़्तिलाफ है। इन लोगों की तो ये मिसाल है ‘‘फर्रा मिनल मतरि व क़ामः तह्तल मीज़ाब’’। बारिश से भागा और परनाले के नीचे खड़ा हो गया। हदीस को छोड़ा इस लिए कि इसमें इख़्तिलाफ है हालांकि हदीस में इख़्तिलाफ नहीं और फंस गये जाकर इख़्तिलाफ की दलदल यानी फिक़ह में।  

ह – आप लोग हमारी तरह किसी एक इमाम को नहीं पकड़ते कि उसकी तक़लीद करें?

म – नहीं, 

  • पहला इसलिए कि हुज़ूर (सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम) के बाद किसी को पकड़ने की ज़रूरत नहीं।     
  • दूसरा नबी (सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम) के बाद कोई ऐसा मासूम नहीं जिससे ग़लती न हो, अगर हम किसी एक को पकड़ेंगे और ग़लती में भी उसकी पैरवी करेंगे तो गुमराह हो जायेंगे, इमाम तो शायद अपनी इज्तिादी ग़लती की वजह से बख़्श दिये जायें लेकिन हम मारे जायेंगे।    
  • तीसरा हुज़ूर (सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम) के बाद कोई ऐसा कामिल नहीं कि जिसको पकड़ कर सारे काम चल जायें हनफी बनने के बाद पहले अक़ाइद के लिए मातरीदी बनना पड़ता है। फिर तसव्वुफ के लिए कभी क़ादरी, कभी चिश्ती, कभी सहरवर्दी, कभी नक़्शबंदी, हुज़ूर (सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम) के बाद कोई ऐसा नहीं कि एक को पकड़कर गुज़ारा हो जाये। दर-दर की ठोकरें खानी पड़ती हैं।    
  • चाौथा एक को पकड़ने से बाक़ी इमामों का इंकार लाज़िम आता है। एक को पकड़ने से फिरक़े पैदा होते हैं। दीन के टुकड़े होते हैं। एक दीन के चार टुकड़े ऐसे ही तो हो गये, क़ुरआन कहता है कि ‘‘वला तफर्रक़ू – फिर्क़े-फिर्क़े न बनो’’ ‘‘वला तकूनू मिनल मुश्रिकीन मिनल्लज़ीनः फर्रक़ू दीनहुम व कानू शियअन’’ क्योंकि जो फिर्क़े बना लेते हैं वो मुश्रिक हो जाते हैं, नबी (सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम) के बाद किसी एक को पकड़ना दीन को बर्बाद करने का मुतारादिफ है। अआज़नल्लाहु मिन्हू    

ह – आपका फिर्क़ा कब से बना?

म – हमारा फिर्क़ा बना नहीं, फिर्क़ा तो वो बनता है जो असल से कटता है और हुज़ूर (सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम) के बाद किसी को इमाम पकड़ कर अपना नाम उसके नाम पर रखता है फिर उसकी तक़लीद करता है। हम तो असल हैं यानी अहले हदीस और उसी वक़्त से हैं जब से हदीस है और हदीस उसी वक़्त से है जब से रसूले अकरम (सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम) हैं हम हुज़ूर के बाद किसी को नहीं पकड़ते कि उसकी तक़लीद करके फिर्क़ा बनें, हम फिर्क़ा नहीं हम असल हैं, जो हुज़ूर (सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम) के साथ हैं और उनकी हदीस पर अमल पैरा हैं।

ह – आप हमारी तरह अहले सुन्नत क्यों नहीं?

म – आप अहले सुन्नत कहाँ आप तो हनफी हैं, अहले सुन्नत तो हम हैं जो हनफी, शाफई कुछ नहीं सिर्फ अहले सुन्नत हैं।

ह – आप तो कहते हैं हम अहले हदीस हैं?

म – अहले हदीस और अहले सुन्नत में कुछ फर्क़ नहीं। असल अहले सुन्नत अहले हदीस ही होते हैं।  

वस्सलामु अलइकुम व रह म तुल्लाहि व ब र कातुहू!

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