Asli Ahle Sunnat Kaun? Part 09 : क्या हमारे इमाम दोज़ख़ में जायेंगे? असली अहले सुन्नत कौन?


Asli Ahle Sunnat Kaun Part 09 : ये मुहक़्क़िक़ Researcher के क़लम से Ahle Sunnat पर आधारित एक हनफी और मुहम्मदी का बहुत ही दिलचस्प मुबाहिसा है इसमें Ahle Sunnat के विषय पर Interesting Discussion किया गया है और मज़हब के बारे में ऐसी बहुत सी बातों के जवाबात Ahle Sunnat के संबंध में ज़ेरे बहस आये हैं. आखि़रकार असली अहले सुन्नत (Ahle Sunnat) कौऩ है? ये सवालात अक्सर ज़ेहनों में पैदा होते रहते है। अतः हम आपको Ahle Sunnat पर आधारित सवालात के जवाबात इस पोस्ट के माध्यम से दे रहे हैंतो आइए अब जानते हैं कि असली अहले सुन्नत Ahle Sunnat कौन हैं?

(बिस्मिल्लिहिर्रहमानिर्रहमी)


इसमें ‘ह ’ से मुराद हनफी है और ‘म ’ से मुराद मुहम्मदी है।

ह – इमाम का क़िलादा तो हम ने इस लिए डाला है कि क़यामत के रोज़ बुलाया ही इमामों के नाम पर जायेगा जैसा कि सूरह बनी इस्राईल-17 की आयत नं0-71 मैं है कि ‘‘जिस दिन हम हर जमाअत को उसके पेशवा समीत बुलाऐंगे’’।

म – इस आयत में इमाम से मुराद आमाल हैं आपके बनाऐ हुए इमाम नहीं, चुनांचे आगे वज़ाहत मौजूद है, ‘‘हम तमाम लोगों को उनके नामा-ए-आमाल के साथ बुलाऐंगे फिर जिनका भी आमाल नामा दायीं हाथ में दे दिया गया वो तो शौक़ से अपना नामा-ए-आमाल पढ़ने लगेंगे (और ख़ुश होंगे) और धागे के बराबर (ज़र्रा बराबर) भी ज़ुल्म न किये जाऐंगे’’ लेकिन इमाम से मुराद इमाम ही लिया जाये तो वो इमाम मुराद नहीं हैं जो आपने बना रखे हैं बल्कि इमाम से मुराद वो इमाम हैं जिनको अल्लाह ने इमाम बनाया है यानी अम्बिया, क़यामत के रोज़ उम्मतों को उनके अम्बिया के नाम पर बुलाया जायेगा ‘ऐ फुलां नबी की उम्मत आओ’ जैसा कि क़ब्र में (मन नबिय्युका) से अपने नबी के बारे में सवाल होता है, फिर ख़ुश क़िस्मत होंगे वो लोग जिन्होंने ने अपने इमाम बनाकर उनकी तक़लीद नहीं की, बल्कि नबियों की पैरवी की, वो अपने नबियों के साथ जन्नत में चले जायेंगे चुनांचे तफ्सीर इब्ने कस़ीर में है ‘‘अहले हदीस के लिए ये बहुत ही बड़ा शर्फ है कि उनके इमाम सिर्फ नबी (सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम) हैं वो उनके साथ जन्नत में चले जायेंगे, और इमामों के मुक़ल्लिदीन खड़े रह जायेंगे फिर वो अपने बनाऐ हुए इमामों के साथ दोज़ख़ में चले जायेंगे।’’

ह – क्या हमारे इमाम दोज़ख़ में जायेंगे?

म – आपके इमाम कौन हैं?

ह – हमारे इमाम, इमाम अबू हनीफा हैं।

म – वो आपके इमाम कैसे? क्या अल्लाह ने उनको इमाम बनाया है?

ह – अल्लाह ने तो नहीं बनाया।

म – फिर क्या ख़ुद उन्होंने कहा था मैं तुम्हारा इमाम हूँ मेरी तक़लीद करना?

ह – उन्होंने तो नहीं कहा।

म – फिर वो आप लोगों के इमाम कैसे बन गये?

ह – हम जो उनको मानते हैं और अपना इमाम समझते हैं।

म – आपके समझने और कहने से क्या होता है जब तक इमाम की इक़्तिदा की नियत न करे वो इमाम कैसे बन जायेगा। अगर ऐसे इमाम बनने लगें तो आपका क्या ख़्याल है इमाम अबू हनीफा रह0 जिनको देवबंदी और बरेलवी दोनों इमाम मानते हैं देवबंदियों और बरेलवियों में से किसी को लेकर जन्नत में जायेंगे। देवबंदी और बरेलवी दोनों तो जन्नत में जा नहीं सकते क्योंकि वो एक दूसरे को काफिर कहते हैं, अगर बरेलवी जन्नत में गये तो देवबंदी दोज़ख़ में जायेंगे और अगर देवबंदी जन्नत में गये तो बरेलवी दोज़ख़ में जायेंगे। इमाम अबू हनीफा रहमतुल्लाह अलैह किस के साथ होंगे जब कि वो दोनों के इमाम हैं। ऐसे ही अगर शीया अपने इमामों के साथ जन्नत में चले गये तो सुन्नी कहाँ जायेंगे? अगर सुन्नी अपने इमामों के साथ जन्नत में चले गये तो शीया कहाँ जायेंगे? जन्नत में तो दोनों जा नहीं सकते क्यों कि उनमें ‘‘बुअ-दल मुश्रिक़ीन’’ है। अब आप ही बताऐं आपके उसूल पर शीया इमाम दोज़ख़ में जायेंगे या सुन्नी, हालांकि इमाम दोनों फिर्कों के नेक और स्वालेह थे और वो इंशा अल्लाह ज़रूर जन्नत में जायेंगे।

ह – बात तो आपकी ठीक है ये इमामों का मसला है तो यक़ीनन बहुत बड़ा चक्कर।

म –  ऐसे ही चक्कर वो है जिसको हमारे मुक़ल्लिदीन हदीस ‘‘अल मरऊ मअ उन अहब्बा’’ पढ़कर दिया करते हैं कि हम अपने इमामों और औलिया के साथ होंगे क्योंकि हमें उनसे मुहब्बत है और अहले हदीस चूंकि किसी को मानते नहीं इस लिए उनको किसी का भी साथ नसीब नहीं होगा। इम उनसे पूछते हैं अगर मुहब्बत का मैयार यही है जो आपने समझा है तो क्या मौजूदा ईसाई जो ईसा अलइहिस्सलाम की मुहब्बत के दावेदार हैं ईसा अलइहिस्सलाम के साथ जन्नत में जायेंगे, अगर नहीं और यक़ीनन नहीं क्योंकि उनकी मुहब्बत ग़लत है तो तबर्रायी शीया हज़रात हुसैन को और ग्यारहवीं देने वाले हज़रत जीलानी रह0 को वहाँ कैसे मिल जायेंगे। इस लिए उनकी मुहब्बत ग़लत है और फिर मुहब्बत भी वो फायदा देती है जो दोनों तरफ से हो, हज़रत ईसा अलइहिस्सलाम कभी किसी ऐसे से मुहब्बत नहीं रखेंगे जो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम के आ जाने के बाद उनकी इत्तिबा न करे, बल्कि शिर्क और बिदअत करे और अपनी तरफ से इमाम बनाकर उनकी तक़लीद करे वो सब जानते हैं कि इताअत सिर्फ अल्लाह के हुक्म की है इस लिए वो अपनी पैरवी कैसे करवा सकते हैं

क़ुरआन मजीद की सूरह आराफ-7 की आयत नं0-03 में है कि ‘‘उसके पीछे चलो जो अल्लाह ने तुम्हारी तरफ उतारा है उसका हुक्म मानो उसके हुक्म को छोड़कर औलिया के पीछे न जाओ’’ औलिया से मुराद यहाँ वो हस्तियाँ हैं जिनको लोग ख़ुद तजवीज़ करते हैं और अपने लिए ज़रिया-ए-निजात समझ कर सहारा बनाते हैं। हालांकि सिवाए पैग़म्बर की पैरवी के और कोई ज़रिया-ए-निजात नहीं दुनिया में जितने शिर्क व बिदअत करने वाले हैं, हक़ीक़त में उनका इमाम और उनका वली सिर्फ शैतान है, वो नाम अल्लाह वालों का लेते हैं इबादत व पैरवी शैतान की करते हैं इसी लिए क़ुरआन शैतान की इबादत व पैरवी से बार-बार मना करता है।

चुनांचे क़ुरआन मजीद की सूरह यासीन-36 आयत नं0-60 में है कि ‘‘शैतान की इबादत न करो’’ और सूरह नूर-24 आयत नं0-21 में है ‘‘शैतान की पैरवी न करो’’। दुनिया में कौन ऐसा है जो शैतान की पैरवी व इबादत करता हो, ज़ाहिर बात है कि इससे मुराद ख़ुद्साख़्ता अइम्मा व औलिया ही हैं जिनके नाम का धोका देकर शैतान अपना काम करता है क़यामत के रोज़ जब अल्लाह तआला दोज़खि़यों को दोज़ख़ में डालने के लिए अलेहदा करेगा तो फरमाऐगा, सूरह यासीन-36 आयत नं0- 60,61,62 ‘‘ऐ इंसानों! क्या मैं तुम्हें नहीं बताया था कि शैतान की इबादत न करो वो तुम्हारा बड़ा दुश्मन है, इबादत मेरी करना यही सीधा रास्ता है लेकिन तुमने परवाह न की उसने तुम में से कितनी भारी तादाद को गुमराह कर लिया है क्या तुम बे अक़्ल थे जो तुम्हें पता नहीं लगा’’ और ये होता यूँ है कि जब शैतान किसी को नबी की पैरवी में ज़रा नरम देखता है तो फौरन उसके शिकार की कोशिश करता है। अपने बड़े-बड़े इंसानी चेलों के ज़रिए नबी की जगह पैरवी के लिए इन बुज़ुर्गों के नाम तजवीज़ करता है जिनकी दुनिया में मक़्बूलियत और शोहरत होती है। इनके नाम पर शिर्क व बिदअत के बड़े-बड़े सिलसिले जारी करता है। तसव्वुर इन बुज़ुर्गाें के पेश करता है और पूजा-पाट अपनी करवाता है। जाहिल इन बुज़ुर्गों के नामों की वजह से उसके धोके में आ जाते हैं और उसकी पैरवी करने लग जाते हैं और नहीं समझते कि हम किस उल्टी राह पर लग गये हैं, बल्कि इस उल्टी राह को ही राहे रास्त समझते हैं

अल्लाह ने क़ुरआन मजीद  की सूरह कहफ-18 आयत नं0-104 में फरमाया है कि ‘‘शैतान के गुमराह करदा लोग काम ग़लत करते हैं लेकिन जिहालत की वजह से समझते हैं कि हम बहुत अच्छा कर रहे हैं’’। और ये कितना बड़ा धोका है, इसी लिए अल्लाह तआला ने शैतान का नाम ही ग़ुरूर यानी धोका देने वाला रखा है, और लोगों को उसके धोके से बार-बार ख़बरदार किया है, चुनांचे सूरह फातिर-35 आयत नं0-5,5 में फरमान है कि ‘‘होशियार रहना धोकाबाज़ तुमको धोका देकर अल्लाह से दूर न कर दे, ये धोकाबाज़ शैताना तुम्हारा दुश्मन है उसे दुश्म ही समझना वो अपनी पार्टी को इसलिए बातिल की दावत देता है कि उनको दोज़ख़ी बनाकर दुश्मनी निकाले’’। और इसकी सूरत यही होती है कि अइम्मा और औलिया के नाम ले लेकर उनके ज़हनों में ऐसा तसव्वुर पैदा करता है कि वो उनकी इबादत शुरू कर देते हैं, यही उनके इमाम और औलिया हैं जिनका तसव्वुर इनके ज़हन में पैदा होता है। ख़ारिज में बजुज़ शैतान के उनका वुजूद नहीं होता, रह गये असली बुज़ुर्ग जिनके नाम लेकर शैतान अपनी इबादत करवाता है, उनको पता तक नहीं होता कि उनके मानने वाले कौन हैं और वो क्या करते हैं वो इनकी तरफ से बिल्कुल बे ख़बर होते हैं,

चुनांचे सूरह यूनुस-10 आयत नं0-28,29 में है कि ‘‘जिनको तुम पुकारते हो, जिनकी तुम इबादत करते हो वो तुम्हारी इन हरकतों से बिल्कुल बे ख़बर हैं क़यामत के दिन वो तुम्हारे मुख़ालिफ होंगे।’’ चुनांचे सूरह मायदा-5 आयत-116 में है कि ईसा अलइहिस्सलाम से अल्लाह तआला पूछेगा ‘‘ऐ ईसा, ईसाई जो तेरी और तेरी माँ की इबादत करते रहे हैं तो क्या तूने उनसे कहा था कि ऐसा करना, वो साफ इंकार कर देंगे’’। ऐसा ही इमाम अबू हनीफा रह0 और दीगर औलिया साफ इंकार कर देंगे कि हमने इनसे नहीं कहा था कि हमारी तक़लीद करना, ये सब कुछ अपनी मर्ज़ी से करते रहे हैं, लिहाज़ा गुमराह होने वालों के इमाम और औलिया ये नहीं जिनका ज़िक्र किताबों में है बल्कि वो शयातीन हैं जो इनके ज़हनों में हैं, जो इनसे ये काम करवाते हैं वही इनके साथ दोज़ख़ में जायेंगे। इस लिए तक़लीद का सिलसिला सरासर गुमराही का सिलसिला है इससे बिल्कुल बचना चाहिए।  

वस्सलामु अलइकुम व रह म तुल्लाहि व ब र कातुहू!  

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