Asli Ahle Sunnat Kaun? Part 11 : निजात का दुरूस्त रास्ता सुन्नते रसूल या हनफियत? : असली अहले सुन्नत कौन?

Asli Ahle Sunnat Kaun Part 11 : मुहक़्क़िक़ Researcher के क़लम से ये एक हनफी और मुहम्मदी का बहुत ही दिलचस्प मुबाहिसा है इसमें Ahle Sunnat के विषय पर Interesting Discussion किया गया है और मज़हब के बारे में ऐसी बहुत सी बातों के जवाबात Ahle Sunnat के संबंध में ज़ेरे बहस आये हैं. आखि़रकार असली अहले (Ahle Sunnat) सुन्नत कौऩ है? ये सवालात अक्सर ज़ेहनों में पैदा होते रहते है। अतः हम आपको Ahle Sunnat पर आधारित सवालात के जवाबात इस पोस्ट के माध्यम से दे रहे हैंतो आइए अब जानते हैं कि असली अहले सुन्नत Ahle Sunnat कौन हैं?



(बिस्मिल्लिहिर्रहमानिर्रहमी)

अज़ीज़ पाठकों! अस्सलामु अलइकुम वरहमतुल्लाह वबरकातुहू! 

लेख पढ़ने के लिए मैं आप हज़रात का शुक्रिया अदा करता हूँ और उम्मीद करता हूँ कि आपको हमारे लेख ज़रूर पसन्द आ रहे होंगे। 

अल-हम्दु लिल्लाह! हज़रात आर्टिकल ‘‘असली अहले सुन्नत कौन?’’ के दस भाग आपकी खि़दमत में पेश किये जा चुके हैं और अब ये ग्यारहवां और आखि़री भाग आपकी खि़दमत में पेश किया जा रहा है, इस भाग को पढ़ने के बाद आप ख़ुद तय करें कि निजात मतलब मरने के बाद कामयाबी किस में है। हमें अपनी राय ज़रूर दें, और इस पोस्ट को शेयर ज़रूर करें। अल्लाह तआला से दुआ है कि हम सभी को सहीह इल्म हासिल करने, क़ुरआन और सुन्नत को समझने और उस पर अमल करने की तौफ़ीक़ अता फरमाऐ, आमीन!

इसमें ‘ह ’ से मुराद हनफी है और ‘म ’ से मुराद मुहम्मदी है।

ह – सुन्नत का क्या मतलब है?

म – जो राह रसूल-ए-करीम (सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम) ने उम्मत के लिए डाली हो, उसे सुन्नत कहते हैं और उस पर चलने वाले को अहले हदीस।

ह – सुन्नते रसूल का पता कैसे और कहाँ से लगता है।

म – हदीस पढ़ने से और हदीस के आलिमों से पूछने से।

ह – हदीस के तो सब ही आलिम होंगे, क्या हनफी क्या अहले हदीस?

म – हदीस के आलिम तो असल में अहले हदीस ही होते हैं, औरों को अव्वल तो हदीस आती नहीं अगर आ जाऐ तो उनके पास चलती नहीं, ‘‘वो इस लिए कि – हदीस व सुन्नत के बारे में कुछ दर्याफ्त करें, हनफी फिक़ह की कोई बात पूछना हो तो हनफी आलिमों से पूछें, चीज़ ऐजेंसी से ही अच्छी मिलती है।

म – अब आप देख लें, आपको सुन्नते रसूल चाहिए या सुन्नते इमाम, अगर सुन्नते रसूल चाहिए तो वो हदीसे रसूल (सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम) से मिलेगी, और हदीसे रसूल चाहिए तो अहले हदीस से मिलेगी। अगर सुन्नते इमाम चाहिए तो वो फिक़ह हनफी से मिलेगी, और फिक़ह हनफी हनफियों से मिलेगी।

ह – सुन्नत रसूल की होती है या इमाम की।

म – अगर इमाम की सुन्नत न हो तो आप हनफी क्यों बनें, आखि़र हनफी किसे कहते हैं?

ह – हनफी वो होता है जो फिक़ह हनफी पर चले।

म – फिक़ह हनफी किसे कहते हैं?

ह – इमाम अबू हनीफा (रहमतुल्लाह अलैह) के मसलक को।

म – मसलक से क्या मुराद है?

ह – मसलक तरीक़े को कहते हैं।

म – सुन्नत भी तो तरीक़े को ही कहते हैं जब हम कहते हैं ये आंहज़रत (सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम) की सुन्नत है तो इसका मतलब ये होता है कि ये उनका तरीक़ा है इस तरीक़े से उन्होंने ये काम किया था या करने को कहा था। लिहाज़ा जिसके तरीक़े पर आप चलते हैं गोया उसकी सुन्नत पर अमल करते हैं, कहिए ये ठीक है या नहीं?

ह – ये बिल्कुल ठीक है, ये बात मेरी समझ में आ गई।

म – इसी लिए तो हम कहते हैं कि हनफी इमाम अबू हनीफा (रहमतुल्लाह अलैह) के तरीक़े पर चलता है और असली अहले सुन्नत यानी अहले हदीस रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम) के तरीक़े पर।

ह – लेकिन इमाम अबू हनीफा (रहमतुल्लाह अलैह) का तरीक़ा कोई अलेहदा तो नहीं उनका तरीक़ा तो वही है जो रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम) का है।

म – तरीक़ा वही हो या मुख़्तलिफ़। हनफी के पेशे नज़र तो तरीक़ा हनफी ही होता है वो तो हनफी तरीक़े पर ही चलता है सुन्नते रसूल (सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम) के मुवाफ़िक़ हो या मुख़ालिफ़, अगर मुख़ालिफ़ हो तो उसे डर नहीं कि सुन्नते रसूल (सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम) की मुख़ालिफत होती है अगर मुवाफिक़ हो तो उसे ख़ुशी नहीं कि मैंने सुन्नते रसूल (सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम) पर अमल किया है, हनफी अगर नमाज़े शुरू की रफअ यदैन करता है तो इस लिए नहीं कि ये सुन्नते रसूल (सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम) है, वो इस लिए करता है कि हनफी तरीक़ा-ए-नमाज़ यही है वो रकूअ को जाते और उठते रफअ यदैन नहीं करता तो इस लिए नहीं कि ये सुन्नते रसूल (सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम) नहीं, बल्कि इस लिए कि हनफी नमाज़ में ये रफअ यदैन नहीं, जो रफअ यदैन हनफी मज़हब में नहीं ख़्वाह वो सुन्नते रसूल ही हो वो उसे घोड़े की दुम मारने से तश्बिया देता है या मक्खी मारने से ताबीर करता है, जो उसके मज़हब में है ख़्वाह वो सुन्नते रसूल न हो वो उस पर जान देता है, जैसे क़ुनूत की रफअ यदैन।

ह – हक़ीक़त-ए-हाल यही है कि हमें बिल्कुल ये ख़्याल नहीं होता कि हमारा ये मसला सुन्नते रसूल (सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम) के मुताबिक़ है या मुख़ालिफ, हमें तो ये याद होता है कि हम हनफी हैं और हमें अपनी फिक़ह पर चलना है, हमंे कोई सहीह से सहीह हदीस भी दिखाये अगर चे हम उस हदीस का इंकार नहीं करते लेकिन हम उस हदीस पर अमल भी नहीं करते। हमारे दिल में ये होता है कि या ये हदीस ठीक नहीं या इसका मतलब वो नहीं जो ज़ाहिर अल्फाज़ से निकलता है या ये मंसूख़ है या कोई और बात है, बहरे कैफ जब हमारे इमाम ने इस हदीस पर अमल नहीं किया तो हम क्यों करें, हम तो अपने इमाम के मज़हब पर चलेंगे।

म – जब ही तो हम कहते हैं कि हनफी का मुहम्मद रसूल अल्लाह पढ़ना और अहले सुन्नत का दावा करना ठीक नहीं, जब वो सुन्नते रसूल (सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम) पर चलता नहीं अपने इमाम की सुन्नत पर चलता है तो उसे ज़ेब नहीं देता कि वो मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह भी साथ पढ़े और अहले सुन्नत होने का दावा करे। अल्लाह की क़सम! जिस पाबंदी के साथ आज एक हनफी अपने इमाम की तक़लीद करता है अगर वो इसी पाबंदी के साथ इत्तिबा-ए-रसूल (सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम) करे तो उसकी निजात हो जाऐ, लेकिन वो इस हाल में निजात की क्या उम्मीद कर सकता है।

‘‘आप तो इमाम अबू हनीफा (रहमतुल्लाह अलैह) की तक़लीद करते हैं, अगर आप मूसा (अलइहिस्सलाम) की तक़लीद भी करें तो भी निजात नहीं, रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम) का फरमान है कि ‘‘अगर मूसा आज आ जाऐं और तुम उनके पीछे लग जाओ तो गुमराह हो जाओगे’’ आप अब सोच लें कहाँ मूसा (अलइहिस्सलाम) और कहाँ अबू हनीफा (रहमतुल्लाह अलैह), जब हुज़ूर (सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम) की बअसत के बाद मूसा (अलइहिस्सलाम) की पैरवी में निजात नहीं तो इमाम अबू हनीफा (रहमतुल्लाह अलैह) की तक़लीद में कैसे निजात हो सकती है। हमें इमाम अबू हनीफा (रहमतुल्लाह अलैह) से कोई तकलीफ़ नहीं हमें उनसे कोई हसद नहीं, हमारा कोई इमाम नहीं कि हम आपको इमाम अबू हनीफा (रहमतुल्लाह अलैह) से तोड़कर किसी और से जोड़ रहे हों। हम तो आपको रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम) की दावत दे रहे हैं जिनका आप कलमा पढ़ते हैं जिनकी पैरवी में निजात है और उससे बाहर निजात नहीं, सोच लें मामला निजात का है, अगर इसी हनफियत पर आपका ख़ात्मा हो गया तो मामला बड़ा ख़तरनाक है।’’

اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ، وَعَلَى آلِ مُحَمَّدٍ، كَمَا صَلَّيْتَ عَلَى إِبْرَاهِيمَ، وَعَلَى آلِ إِبْرَاهِيمَ، إِنَّكَ حَمِيدٌ مَجِيدٌ، اللَّهُمَّ بَارِكْ عَلَى مُحَمَّدٍ، وَعَلَى آلِ مُحَمَّدٍ، كَمَا بَارَكْتَ عَلَى إِبْرَاهِيمَ، وَعَلَى آلِ إِبْرَاهِيمَ إِنَّكَ حَمِيدٌ مَجِيدٌواخر دعوانا ان الحمدلله رب العالمين

Post Navi

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ