Asli Ahle Sunnat Kaun? Part 10 : शाह अब्दुल क़ादिर जीलानी रह0 का बयाने हक़, असली अहले सुन्नत कौन?


Asli Ahle Sunnat Kaun Part 10 : मुहक़्क़िक़ Researcher के क़लम से ये एक हनफी और मुहम्मदी का बहुत ही दिलचस्प मुबाहिसा है इसमें Ahle Sunnat के विषय पर Interesting Discussion किया गया है और मज़हब के बारे में ऐसी बहुत सी बातों के जवाबात Ahle Sunnat के संबंध में ज़ेरे बहस आये हैं. आखि़रकार असली अहले (Ahle Sunnat) सुन्नत कौऩ है? ये सवालात अक्सर ज़ेहनों में पैदा होते रहते है। अतः हम आपको Ahle Sunnat पर आधारित सवालात के जवाबात इस पोस्ट के माध्यम से दे रहे हैंतो आइए अब जानते हैं कि असली अहले सुन्नत Ahle Sunnat कौन हैं?

(बिस्मिल्लिहिर्रहमानिर्रहमी)

 शाह अब्दुल क़ादिर जीलानी रह0 का बयाने हक़


इसमें ‘ह ’ से मुराद हनफी है और ‘म ’ से मुराद मुहम्मदी है।

ह – आप तक़लीद किसी की भी नहीं करते?

म – जब तक़लीद है ही जानवरों के लिए इंसानों का ये फेल ही नहीं तो हम तक़लीद किसी की भी क्यों करें?

ह – सुना है कि तक़लीद के बग़ैर तो गुज़ारा ही नहीं, तक़लीद तो हर कोई करता है तक़लीद तो आप भी करते हैं, माँ-बाप की भी और उस्ताद की भी।

म – अगर इसी का नाम तक़लीद है और हम भी करते हैं तो आप हमें ग़ैर मुक़ल्लिद क्यों कहते हैं? अगर माँ-बाप या उस्ताद की बात मानना भी तक़लीद है तो आप अपने इमाम को मुक़ल्लिद क्यों नहीं कहते, आप क्यों कहते हैं कि मुजतहिद मुक़ल्लिद नहीं होता, क्या उसके माँ-बाप नहीं होते या वो अपने माँ-बाप का फरमां बरदार नहीं होता, ये सब मुक़ल्लिदीन के मौलवियों की तल्बीसे इब्लीस है, वरना तक़लीद जो मा बिहन्निज़ाअ है ये नहीं।

ह – आप लोग अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम) की भी तक़लीद नहीं करते?

म – जब अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम) ने तक़लीद के लिए कहा ही नहीं तो रसूल (सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम) की तक़लीद कैसे हो सकती है वैसे भी तक़लीद उस आदमी की बात मानने को कहते हैं जिसकी बात पर शरई दलील न हो, जब रसूल (सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम) का हर क़ौल व फेल शरीअत है तो रसूल (सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम) की तक़लीद नहीं होती रसूल की तो अल्लाह के हुक्म से इताअत और पैरवी होती है। मेरे भाई! तक़लीद बहुत बड़ी लानत है। इससे बड़ी ज़िल्लत और क्या हो सकती है कि आदमी अपने गले में किसी ऐसे का रस्सा डाले जिससे कोई तआरूफ न हो और न वो किसी काम आए, न पकड़ाने में न छुड़ाने में।

ह – हम अपने इमाम को नहीं जानते?

म – आपको किसने बताया है कि ये आपका इमाम है इसे पकड़ लो इसका रस्सा अपने गले में डाल लो ये आपको पार लगाऐगा, यही पकड़ाऐगा, यही छुड़ाऐगा। अल्लाह का रसूल (सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम) जिस को अल्लाह ने इमाम मुक़र्रर किया है, जिसका कलमा पढ़वाया है, जिसकी सुन्नत को अपना क़ानून ठहराया है और क़ानून भी ऐसा कि वही पकड़ाऐगा, वही छुड़ाऐगा, उसकी तो तक़लीद न हो और अपने घर के बनाऐ हुए इमाम की तक़लीद जो क़यामत को न जाने न पहचाने कि कौन मेरा कौन ग़ैर।

ह – जब आप किसी की तक़लीद बिल्कुल नहीं करते तो फिर आपको वहाबी क्यों कहते हैं?

म – यही बात तो हमारी समझ में नहीं आती कि हनफी लोग हैं एक तरफ तो ग़ैर मुक़ल्लिद कहते हैं और एक तरफ वहाबी, हालांकि अगर कोई ग़ैर मुक़ल्लिद हो तो वहाबी कैसा? हक़ीक़त ये है कि जितने अहले बिदअत हैं वो अहले हदीस से बहुत बुग़्ज़ व हसद रखते हैं इसी हसद में वो उनके तरह-तरह के नाम रखते हैं, ख़्वाह इन नामों से उनकी अपनी हिमाक़त ही ज़ाहिर होती हो, यही हाल मुख़ालिफीन का हुज़ूर (सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम) के साथ था वो भी उनके मुख़्तलिफ नाम रखते थे, कभी साहिर कहते, कभी शायर, कभी काहिन, कभी मजनूं, कभी सादिक़ व अमीन कहते, कभी कज़्ज़ाब व मुफ्तरी, जैसा कि क़ुरआन मजीद की सूरह बनी इस्राईल-17 आयत नं0-48 में अल्लाह तआला का फरमान कि ‘‘उन हासिदों को देखो ये कैसे आपके उलटे-सीधे नाम रखते हैं बुग़्ज़ व हसद में ऐसे कोरबातिन हो रहे हैं कि उनको सहीह बात सूझती ही नहीं’’ अब आप शाह अब्दुल क़ादिर जीलानी रह0 का बयाने हक़ भी सुनें जो हमारे हक़ में ज़बर्दस्त शहादत है वो अपनी किताब ग़ुन्नियतुत तालिबीन (स 294) पर फरमाते हैं ‘‘बिदतियों की बहुत सी अलामतें हैं जिनसे वो पहचाने जाते हैं। बड़ी अलामत ये है कि वो अहले हदीस को बुरा भला और सख़्त सुस्त कहते हैं और ये सब उस अस्बीयत और बुग़्ज़ की वजह से है जो उनको असल अहले सुन्नत से होता है। अहले सुन्नत का सिर्फ एक ही नाम है और वो अहले हदीस है’’। शाह जीलानी के इस बयान से वाज़ेह हो गया कि जो अहले हदीस को बुरा भला कहते हैं वो बिदअती हैं और जो बिदअती हों वो अहले सुन्नत नहीं हो सकते, नतीजा ये निकला-

1. अहले हदीस को बुरा-भला कहने वाले अहले सुन्नत नहीं हो सकते।

2. जो अहले हदीस के लिए उल्टे-सीधे नाम रखते हैं, कभी वहाबी कहते हैं, कभी ग़ैर मुक़ल्लिद, वो सब बिदअती हैं और बिदअती अहले सुन्नत नहीं हो सकते।

3. असल अहले सुन्नत सिर्फ अहले हदीस हैं बाक़ी ज़बर्दस्ती के दावेदार हैं।

4. जब शाह जीलानी रह0 नाजी जमाअत सिर्फ अहले सुन्नत को क़रार देते हैं और वज़ाहत फरमाते हैं कि अहले सुन्नत सिर्फ अहले हदीस होते हैं। तो साबित हुआ कि वो ख़ुद भी अहले हदीस थे।

5. जब शाह जीलानी रह0 अहले हदीस थे और थे भी “पीर कामिल मुअल्लिम इन्दल कुल” तो मालूम हुआ कि अहले हदीसों में बड़े-बड़े वली गुज़रे हैं।

6. जाहिल उलमा का ये कहना ग़लत है कि कोई अहले हदीस वली नहीं हुआ।

7. जब नाजी फिर्क़ा अहले सुन्नत है और असली अहले सुन्नत सिर्फ अहले हदीस ही हो सकता है और वली का नाजी होना बहुत ज़रूरी है। तो साबित हुआ कि वली सिर्फ अहले हदीस ही हो सकता है।

8. जब वली सिर्फ अहले हदीस ही हो सकता है तो साबित हुआ कि जितने वली गुज़रे हैं वो सब अहले हदीस थे।

9. जो अहले हदीस नहीं था वो वली भी नहीं ख़्वाह जोहला ने उसे वली मशहूर कर रखा हो।

10. निजात के लिए भी और वली बनने के लिए भी अहले हदीस होना ज़रूरी है जो अहले हदीस न हो वली बनना तो दरकिनार उसकी निजात का मसला भी ख़तरे में है।

ह – आपने तो मुझे डरा ही दिया।

म – आप ख़ुश क़िस्मत हैं जो डर गए वरना कितने लोग हैं जिनको अपनी निजात की फिक्र नहीं वो सिर्फ फिर्क़ा परस्ती में बदमस्त हैं और अपने फिर्क़े के हिमायत को ही दीन की खि़दमत समझते हैं हालांकि ईमान वाले को चाहिए कि पहले हक़ को पहचाने फिर उस पर पक्का हो।

ह – हक़ का पता कैसे लगे हर एक ही अपने आपको हक़ पर समझता है।

म – हक़ तो नबी (सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम) की सुन्नत है और नबी की सुन्नत पर चलने वाला ही हक़ पर है।

ह – कहता तो हर एक यही है कि मैं नबी की सुन्नत पर चलता हूँ।

म – जो सुन्नत पर चलता है वो किसी की तक़लीद नहीं करता न उसे तक़लीद की ज़रूरत है जो सुन्नत हदीस से साबित होगी वो उस पर अमल करेगा, जो सुन्नत पर चलता है वो दीन में मिलावट नहीं करता, क्योंकि वो दीने रसूल (सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम) की सुन्नत को समझता है, मिलावट को वो बिदअत ख़्याल करता है इस लिए जो तक़लीद करे या दीन में मिलावट करे वो हक़ पर नहीं, इस उसूल से आप हर एक को जाँच सकते हैं। दुनिया में हर फिर्क़े ने नबी के बाद अपने आपको किसी न किसी से मनसूब कर रखा है और ये उसके मज़हब की मिलावटी होने की दलील है। अहले हदीस ही ऐसे हैं जो सिवाए नबी के किसी की तरफ मनसूब नहीं होते ख़ालिस नबी की सुन्नत पर ही अमल करते हैं इस लिए हम कहते हैं कि असल अहले सुन्नत सिर्फ अहले हदीस हैं।

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