Sacrifice Rules : क़ुर्बानी के अहकाम व मसाइल : Part 1

Sacrifice Orders and Issues : क़ुर्बानी के अहकाम व मसाइल

(1) ग्यारहवीं की नियत सुन्नत या बिदअत?

सवाल: कुछ लोग क़ुर्बानी में भी ग्यारहवीं की नियत कर लेते हैं क्या ऐसा करना दुरूस्त है?

जवाब: यक़ीक़न क़ुर्बानी के जानवर को सिर्फ रज़ा-ए-इलाही के लिए ज़िबह करना चाहिए क्योंकि जानवरों को ग़ैरूल्लाह के तक़र्रूब के लिए ज़िबह करना, ग़ैरूल्लाह के नाम पर छोड़ देना, ऐसी जगह ज़िबह करना जहांँ ग़ैरूल्लाह की इबादत और शिर्क होता हो, सब हराम है। सय्यदना अली रज़िअल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम ने फरमाया:

لَعَنَ اللّٰہُ مَن لَعَنَ وَالِدَہُ وَ لَعَنَ اللّٰہُ مَن ذَبَحَ لِغَیرِاللّٰہِ وَلَعَنَ اللّٰہُ مَن اٰوٰی مُحدِثاً وَلَعَنَ اللّٰہُ مَن غَیَّرَ مَنَارَالاَرضِ 
مسلم: کتاب الاضاحی: باب تحریم الذبح لغیراللّٰہ تعالٰی و لعن فاعلہ : 1978

ल-अनल्लाहु मन ल-अनः वालिदहु व ल-अनल्लाहु मन ज़बहः लि-ग़इरिल्लाहि व ल-अनल्लाहु मन आवा मुहदिसन व ल-अनल्लाहु मन ग़इ यरः मनारल अर्ज़ि (मुस्लिम: 1978)

“अल्लाह तआला उस आदमी पर लानत करे जो अपने वालिद पर लानत करे, अल्लाह तआला उस आदमी पर लानत करे जो ग़ैरूल्लाह के लिए ज़िबह करे। अल्लाह तआला उस आदमी पर लानत करे जो किसी बिदअती को पनाह दे और अल्लाह तआला उस आदमी पर लानत करे जो ज़मीन की अलामात को बदले।’’

बाज़ ना समझ लोग क़ुर्बानी जैसी अज़ीम नेमत में ग्यारहवीं की नियत कर लेते हैं और अपने अमल को ज़ाये कर लेते हैं। ऐसे लोगों को अल्लाह तआला से डरना चाहिए और बुज़ुर्गों की मुहब्बत में आकर अपने रब की नाराज़ी मोल नहीं लेना चाहिए और उसकी अज़मत और बड़ाई और किब्रियाई को नहीं भूलना चाहिए।

(2) जिन जानवरों की कुर्बानी जायज़ नहीं

सवाल: बराहे करम क़ुरआन और हदीस की रोशनी में आगाह फरमा दें कि किन जानवरों की क़ुर्बानी करना जायज़ नहीं?

जवाब (i) : सय्यदना अली रज़िअल्लाहु अन्हु से रिवायत है: 

أَمَرَنَا رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ أَنْ نَسْتَشْرِفَ الْعَيْنَ وَالأُذُنَ 

ابوداؤد: کتاب الضحایا: باب ما یکرہ من الضحایا : 2804

अ-म-रना रसूलुल्लाहि सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लमा अन तस्तश्रिफल अइना वल उज़ुनः (सुनन अबू दाऊद: 2804)

‘‘रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम ने हमें हुक्म दिया कि हम आँख और कान अच्छी तरह देख लें।’’

पूरी हदीस इस तरह से है-

حَدَّثَنَا عَبْدُ اللَّهِ بْنُ مُحَمَّدٍ النُّفَيْلِيُّ، ‏‏‏‏‏‏حَدَّثَنَا زُهَيْرٌ، ‏‏‏‏‏‏حَدَّثَنَا أَبُو إِسْحَاق، ‏‏‏‏‏‏عَنْ شُرَيْحِ بْنِ النُّعْمَانِ، ‏‏‏‏‏‏وَكَانَ رَجُلَ صِدْقٍ عَنْعَلِيٍّ، ‏‏‏‏‏‏قَالَ:‏‏‏‏ أَمَرَنَا رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ أَنْ نَسْتَشْرِفَ الْعَيْنَ وَالأُذُنَيْنِ، ‏‏‏‏‏‏وَلَا نُضَحِّي بِعَوْرَاءَ وَلَا مُقَابَلَةٍ وَلَا مُدَابَرَةٍ وَلَا خَرْقَاءَ وَلَا شَرْقَاءَ، ‏‏‏‏‏‏قَالَ زُهَيْرٌ:‏‏‏‏ فَقُلْتُ لِأَبِي إِسْحَاق:‏‏‏‏ أَذَكَرَ عَضْبَاءَ، ‏‏‏‏‏‏قَالَ، ‏‏‏‏‏‏لَا قُلْتُ:‏‏‏‏ فَمَا الْمُقَابَلَةُ ؟ قَال:‏‏‏‏ يُقْطَعُ طَرَفُ الأُذُنِ، ‏‏‏‏‏‏قُلْتُ:‏‏‏‏ فَمَا الْمُدَابَرَةُ ؟ قَالَ:‏‏‏‏ يُقْطَعُ مِنْ مُؤَخَّرِ الأُذُنِ، ‏‏‏‏‏‏قُلْتُ:‏‏‏‏ فَمَا الشَّرْقَاءُ ؟ قَالَ:‏‏‏‏ تُشَقُّ الأُذُنُ، ‏‏‏‏‏‏قُلْتُ:‏‏‏‏ فَمَا الْخَرْقَاءُ ؟ قَالَ:‏‏‏‏ تُخْرَقُ أُذُنُهَا لِلسِّمَةِ

अली रज़िअल्लाहु अन्हु कहते हैं कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम ने हम को हुक्म दिया कि क़ुर्बानी के जानवर की आँख और कान ख़ूब देख लें (कि उस में ऐसा नुक़्स न हो जिसकी वजह से क़ुर्बानी दुरूस्त न हो) और काने जानवर की क़ुर्बानी न करें, और न ‘मुक़ाबलह’ की, न ‘मुदाबरह’ की, न ‘ख़र्क़अ’ की और न ‘शर्क़अ’ की। ज़ुहेर कहते हैं: मैंने अबू इस्हाक़ से पूछा: क्या ‘अज़्बअ’ का भी ज़िक्र किया? तो उन्होंने कहा: नहीं (‘अज़्बअ’ उस बकरी को कहते हैं जिसके कान कटे हों और सींग टूटे हों)। मैंने पूछा ‘मुक़ाबअ’ के क्या मायने हैं? कहा: जिसका कान अगली तरफ से कटा हो, फिर मैंने कहा: ‘मुदाबरह’ के क्या मायने हैं? कहा: जिसके कान पिछली तरफ से कटे हों, मैंने कहा ‘ख़र्क़अ’ के क्या मायने हैं? कहा: जिसके कान फटे हों (गोलाई में) मैंने कहाः ‘शर्क़अ’ क्या है? कहा: जिस बकरी के कान लम्बाई में चिरे हुए हों (निशान के लिए)। (सुनन अबू दाऊद: 2804)

जवाब (ii) : सय्यदना बराअ बिन आज़िब रज़िअल्लाहु अन्हु से मर्वी है: 

اَنَّ رَسُولَ اللّٰہِ صَلَّی اللّٰہُ عَلَیہِ وَسَلَّمَ سُیِلَ عَنہُ مَاذَا یُتَّقَی مِنَ الضَّحَایَا فَاَشَارَ بِیَدِہِ فَقَالَ اَربَعاً اَلعَرجَاءُ البَیّنُ ظُلعُھَا وَالعَورَاءُ البَیِّنُ عَوَرُھَا وَالمَرِیضَۃُ البَیِّنُ مَرَضُھَا وَالعَجفَاءُ الَّتِی لَا تُنقِی

 مسند احمد 301/4

अन्नः रसूलल्लाहि सल्लल्लाहु अलइहि वसल्ल्मः सुइल: अन्हु मा ज़ा युत्तक़ा मिनज़्ज़हाया फ-अशारः बियदिही फ-क़ालः अर्बअन अल-अरजाउल बइयिनु ज़ुल-उहा वल अऊराउल-बइयिनु अ-व-रूहा वल मरीज़तुल बइयिनु म-र-ज़ुहा वल अजफाउल-लती ला तुनक़ी (मुसनद अहमद 301/4)

रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम से पूछा गयाः ‘‘किस जानवर की क़ुर्बानी से बचना चाहिए?’’ आप सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम ने हाथ से इशारा करके फरमायाः ‘‘चार क़िस्म के जानवरों से बचना चाहिए, लंगड़ा जिसका लंगड़ापन ज़ाहिर हो, भैंगा जिसका भैंगापन ज़ाहिर हो, बीमार जिसकी बीमारी वाजेह हो और कमज़ोर व लाग़र जिसकी हड्डियों में गूदा न हो।’’

(3) हामला जानवर की क़ुर्बानी

सवाल: क्या हामला जानवर की क़ुर्बानी दुरूस्त है? और उसके पेट के बच्चे का क्या हुक्म है, उसे खाना दुरूस्त है या नहीं?

जवाब: हामला जानवर की क़ुर्बानी करना दुरूस्त है और उसके पेट का बच्चा हलाल है, अबू सईद ख़ुदरी रज़िअल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि हमने अर्ज़ कियाः

نَنْحَرُالنَّاقَۃَوَ نَذْبَحُ البَقَرَۃَ وَالشَّاۃَ فَنَجِدُ فِی بَطْنِھَا الجَنِینَ اَنُلْقِیہِ اَمْ نَاکُلُہُ؟ قَالَ: کُلُوہُ اِنْ شِئْتُمْ فَاِنَّ ذَکَاۃُ اُمِّہِ 

ابوداؤد، کتاب الضحایا: باب ما جاء فی ذکاۃ الجنین ۲۷۸۲

नन-हरून-नाक़तः व नज़्बहुल बक़ःरतः वश्शातः फ-नजिदु फी बत्निहल जनीनः अ-नुल क़ीहि अम नअ कुलुहु? क़ालः कुलूहु इन शिअतुम फ-इन्नः ज़कातहु ज़कातु उम्मिही (अबू दाऊद: 2872)

‘‘ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम! हम ऊँटनी और बकरी वग़ैरह को ज़िबह करते हैं तो उसके पेट में बच्चा पाते हैं, क्या हम उसे फैंक दें या खा लें?’’ आप ने फरमायाः ‘‘अगर चाहो तो उसे खा लो बेशक उसका ज़िबह करना उसकी माँ का ज़िबह करना है।

इस सहीह हदीस से मालूम हुआ कि हामला ऊँटनी और बकरी वग़ैरह की क़ुर्बानी दुरूस्त है और उसके पेट का बच्चा भी हलाल है। इमाम ख़त्ताबी रहमतुल्लाह अलैह इसकी शरह में फरमाते हैं कि इस हदीस में माँ को ज़िबह करने के बाद उसके पेट का बच्चा ज़िबह किये बग़ैर खाने का जवाज़ है, बाज़ लोगों ने इस हदीस की तावील की है जो पेट के बच्चे को खाना जायज़ नहीं समझते, तावील ये है कि इससे मुराद ये है कि बच्चे को उसी तरह ज़िबह किया जाये जैसा कि उसकी माँ को ज़िबह किया जाता है लेकिन ये वाक़िया इस तावील का मुकम्मल तौर पर अब्ताल करता है क्योंकि आप सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम ने अपने इरशाद में फरमाया हैः ‘‘पस यक़ीनन उसका बच्चा ज़िबह करना उसकी माँ का ज़िबह करना है।’’ आपने ज़िबह किये बग़ैर बच्चे के हलाल होने की इल्लत ज़िक्र की है।

(4) रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम कैसा जानवर ज़िबह करते थे?

सवाल: रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम कैसा जानवर ज़िबह करते थे क्या हदीस से इसकी रहनुमाई मयस्सर आ सकती है?

जवाब: अबू सईद ख़ुदरी रज़िअल्लाहु अन्हु बयान करते हैंः 

كَانَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ يُضَحِّي بِكَبْشٍ أَقْرَنَ فَحِيلٍ يَنْظُرُ فِي سَوَادٍ، ‏‏‏‏‏‏وَيَأْكُلُ فِي سَوَادٍ، ‏‏‏‏‏‏وَيَمْشِي فِي سَوَادٍ

कानः रसूलुल्लाहि सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम युज़ह्ही बिकबुशिन अक़्रनः फ-हीलिन यन-ज़ुरू फी सवादिन व यअकुलु फी सवादिन व यम्शी फी सवादिन (अबू दाऊद: 2796)

रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम ऐसा मैंढा ज़िबह करते जो मोटा ताज़ा सींगों वाला होता था। जिसकी आँखें, मुंह और टांगें स्याह होतीं।’’

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