Sunehri Kirnen Story 28 : पैकर तस्लीम व रज़ा ख़ातून : Ibrahim Sarah Hajra

Sunehri Kirnen Story 28 : मेरे अज़ीज़ पाठकों: (अस्सलामु अलइकुम व रहमतुल्लाह वबरकातुह): इस वीडियो और लेख में हज़रत हब्राहीम अलइहिस्सलाम और आपकी की परहेज़गार और पाकदामन बीवी और मासून लख़्ते जिगर हज़रत इस्माईल अलइहिस्सलाम का मुख़्तसर वाक़िया बयान किया गया है, इस वाक़िये से हमको इस बात का बख़ूबी अंदाज़ा हो जायेगा कि आपकी रफीक़ा-ए-हयात हज़रत सारह और हज़रत हाजरह अलइहिमुस्सलाम, किस क़दर पैकर तस्लीम व रज़ा ख़ातून थीं यानी मुसीबत के वक़्त अपने आपको अल्लाह के हवाले कर दिया और अल्लाह की रज़ा पर राज़ी हो गयीं।

(बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम) 

क़िस्सा हज़रत इब्राहीम, सारह व हाजरा अलै0 और ज़मज़म पानी

इस दुनिया में सबसे ज़्यादा ज़ुल्म व सितम का तख़्ता-ए-मश्क़ बनने वाले वही लोग होते हैं जो बन्दों को बंदों की इबादत से निकाल कर बंदों के ख़ालिक़ व मालिक की तरफ बुलाते हैं। शिर्क व ज़लालत की ज़ुल्मत से निजात दिलाकर तौहीद व सुन्नत की रोशनी की तरफ लाते हैं। हज़रत इब्राहीम अलइहिस्सलाम ने जब तौहीद की आवाज़ बुलन्द की और बातिल माबूदों की इबादत तर्क करके अपनी क़ौम को सिर्फ अल्लाह की इबादत की तरफ बुलाया तो क़ौम दरपै आज़ार हो गयी और वो अपने ख़ानदान वालों ही के नहीं बल्कि पूरी क़ौम की आँखों में एक कांटा बन कर चुभने लगे।

नमरूद ने जब देखा कि हज़रत इब्राहीम अलइहिस्सलाम दावते तौहीद लेकर उठ खड़े हुए हैं तो तौहीद की ये सदा उसके दिल पर बिजली बन की गिरी। अगर वो इस दावते हक़ पर लब्बैक कहता तो उसे ख़ुदाई के रूत्बे से उतर कर बंदा बनना पड़ता और अल्लाह वहदहू ला शरीक के आगे सर झुकाना पड़ता। इस दावत को क़ुबूल करना उसके लिए मुमकिन न था। ये दावत उसके लिए थूहर का निवाला बन गयी कि न निगलते बने न उगलते बने। चुनांचे वह इब्राहीम अलइहिस्सलाम का जानी दुश्मन बन गया। चूँकि हज़रत इब्राहीम अलइहिस्सलाम का ख़ानदान बादशाह के मंज़ूरे नज़र था इस लिए बादशाह के मुआनदानह रवय्ये से मुतासिर होकर उनका बाप भी अपने लख़्ते जिगर से बरहम हो गया। हुकूमते वक़्त, क़ौम और ख़ानदान की नाक़ाबिले बर्दाश्त मुख़ालिफत व मुआनदत से तंग आकर हज़रत इब्राहीम अलइहिस्सलाम ने अपने उस वतने अज़ीज़ से हिजरत करने का इरादा कर लिया जहाँ उनकी परवरिश व परदाख़्त हुई थी। जिस मिट्टी में वो बचपन से खेल-कूद कर जवान हुए थे वही मिट्टी अब उन्हें क़ुबूल करने को तैयार न थी। सारी ज़मीन अपनी वुसअत व कुशादगी के बावजूद उनके लिए तंग कर दी गयी। बिलआखि़र वो इराक़ से हिजरत करके हर्रान और शाम से होते हुए मिस्र तश्रीफ ले गये ताकि वहाँ खुली फिज़ा में अल्लाह तआला की इबादत कर सकें। आपके साथ आपकी शरीके हयात सय्यदा सारह ने भी जो आपकी चचाज़ाद बहन भी थीं, हिजरत की। वहाँ मिस्र के बादशाह को इत्तिला दी गयी कि एक नोवारिद आदमी यहाँ आया है और उसके साथ उसकी बीवी भी है जो बहुत ही हसीन व जीमल है। बादशाह ने सारह को बुलाया और ग़लत नियत से अपना हाथ उनकी तरफ बढ़ाया, मगर उसका हाथ अल्लाह तआला ने आगे बढ़ने से रोक लिया। ये हरकत उसने तीन चार बार की मगर हर मर्तबा पहले से कहीं सख़्त गिरत हुई। चुनांचे वो घबरा सा गया और हज़रत सारह की करामत का अंदाज़ा कर लिया। फिर उसने अपने दरबारियों से कहाः 

((मा अरसल्तुम इलइया इल्ला शइतानतन, अरजिऊहा इला इब्राहीमा व अअतूहा हाजरा))

‘‘तुम लोगों ने मेरी खि़दमत में किसी जिनिया को पेश किया है, इसको इब्राहीम के पास ले जाओ और इसकी खि़दमत के लिए हाजरह को भी दे दो।’’

सय्यदा सारह, हाजरा के साथ हज़रत इब्राहीम अलइहिस्सलाम की खि़दमत में वापस आयीं और आपको सारे वाक़ियात से आगाह किया। 

(सहीह बुख़ारी: 3358, अबू दाऊद: 2212)

यही वो हाजरह हैं जो फिलिस्तीन में आकर हज़रत इब्राहीम अलइहिस्सलाम की ज़ौजियत में शामिल हो गयीं और जिस के बतन से अल्लाह तआला ने इस्माईल को अता फरमाया। हज़रत इस्माईल अलइहिस्सलाम ने जब इस रंग व बू में आँख खोली तो चरख़े नीली फाम उस वक़्त 2074 क़ाफ मीम का नक़्क़ारा बजा रहा था। वो हज़रत हब्राहीम की बरसों की दुआओं के बाद मर्हमत हुए थे। अभी इस्माईल शीर ख़्वार्गी ही में थे कि अल्लाह अज़्ज़ व जल ने आपको अपने चहेते लख़्ते जिगर और प्यारी रफीक़ा-ए-हयात को मक्का मुकर्रमा के सुनसान बियाबान में ले जाने का हुक्म दिया।

हज़रत इब्राहीम अलइहिस्सलाम अपनी मूनिस व ग़मगिसार ज़ौजा मुकर्रमा, शर्म व हया जिसका नक़ाब और वफादारी जिसकी औढ़नी थी, और मासूम व शीर ख़्वार बच्चा जो पैहम दुआओं और बर्सों की इल्तिजा के बाद नसीब हुआ था, के जलऊ में इस तारीख़ी सफर का आगाज़ फरमाते हैं और चलते चलते एक ऐसे खि़त्ता-ए-ज़मीन पर पहुँचते हैं जो ख़ारदार झाड़ियों से घिरा हुआ था और हर सो ख़ुश्क व बे आबो गयाह घाटियाँ जलवा नुमा थीं। वहाँ आपने अपनी रफीक़ा-ए-हयात और फर्ज़न्दार-ए-जमदन को ज़म ज़म वाली जगह पर एक दरख़्त के नीचे बैठाकर आराम करने की तलक़ीन फरमायी और वापस चल पड़े। उन दिनों वहाँ न तो कोई आवादी थी न कहीं पानी का नाम व निशान था और न ज़िन्दगी की बक़ा का कोई ज़ाहरी वसीला नज़र आता था। अलबत्ता अतराफ व अकनाफ में क़बीला जुरहुम आबाद था जिसके साथ आगे चलकर हज़रत इस्माईल अलइहिस्सलाम रिश्ता-ए-अज़्दवाज में मुन्सलिक हो गये।

हज़रत इब्राहीम अलइहिस्सलाम अपनी रफीक़ा-ए-हयात और लख़्ते जिगर के गुज़र बसर के लिए एक थैली में कुछ खजूरें और एक मुशकीज़े में थोड़ा सा पानी छोड़कर अलविदाई सलाम करते हुए वतन को वापस होने लगे तो सरापा सब्र व इस्तिक़ामत, पैकर शर्म व हया बीवी दामन थाम कर अर्ज़ करने लगींः

((अइना तज़ हबु ततरूकुना बिहाज़ल वादिल लज़ी लइसा बिहि अनीसुन वला शइउन?))

‘‘आप हमें इस लक़ व दक़ सेहरा और चटयल मैदान में अकेले छोड़कर कहां तश्रीफ ले जा रहे हैं? यहाँ न तो कोई मूनिस व ग़मगिसार है और न ही हयाते मुस्तआर को सहारा देने वाली कोई चीज़ मौजूद है?’’

मगर सय्युदना इब्राहीम अलइहिस्सलाम ने बीवी को कोई जवाब न दिया, रूख़े अनवर फेरकर उनकी तरफ देखा तक भी नहीं सुनी-अनसुनी कर दी और चुप्पी साधे चलते रहे। इतमें हज़रत हाजरह की आवाज़ फिर बुलन्द हुई: इन ख़ुश्क पहाड़ों और गर्म रेगज़ारों में हमें किसके सुपुर्द किये जा रहे हैं? फिर अचानक ख़्याल आया, शायद यही मशीय्यते ऐज़्दी है, चुनांचे दरयाफत फरमायाः

((अल्लाहु अम:रका बिहाज़ा?))

‘‘क्या अल्लाह तआला ने आपको हुक्म दिया है कि हमें यहीं छोड़ जायें?’’

हज़रत इब्राहीम अलइहिस्सलाम ने इशारा फरमायाः ‘‘हाँ, यही अल्लाह अज़्ज़ व जल का हुक्म है।’’ 

जवाब सुनकर हज़रत हाजरह निहायत सुकून व इत्मिनान और पुर ऐतिमाद लहजे में कहती हैंः ((इज़न ला युज़य्यीउना))‘‘तब वो हमें ज़ाये नहीं करेगा’’।

हज़रत इब्राहीम चलते चलते जब सनीया नामी टीले के क़रीब पहुँचे जो इन दिनों शुबैका मुहल्ले की जानिब वाक़े है, और उन्हें यक़ीन हो गया कि हाजरह उनकी निगाहों से ओझल हो चुकी हैं तो बैतुल्लाह की तरफ रूख़ करके इन्तिहाई इज्ज़ व इन्किसार से ये दुआ मांगने लगेः

((रब्बना इन्नी अस्कन्तु मिन ज़ुर्रियती बिवादिन ग़इरी ज़ी ज़र-इन इन्दः बइतिकल मुहर्रमि रब्बना लियूक़ीमुस्सलातः फजअल अफ’इ’दतम मिनन्नासि तहवी इलइहिम वर-ज़ुक़्हुम मिनस्समाराति लअल्लहुम यश-कुरूनः))

ऐ हमारे परवरदिगार! मैंने अपनी औलाद को तेरे मोहतरम घर के क़रीब एक ग़ैर ज़रई चटयल मैदान में ला बसाया है। ऐ हमारी रब! ये इस लिए कि वो नमाज़ क़ायम करें, पस तू लोगों के दिलों को उनकी तरफ माइल कर दे, और उन्हें फलों का रिज़्क़ इनायत फरमा ताकि ये शुक्रगज़ारी करें।

अब हज़रत इब्राहीम अलइहिस्सलाम अल्लाह तआला के हुक्म की तामीम पर शादां व फरहां मक्का की सर ज़मीन से अपने वतन को वापस होते हैं और अपने मासूम बच्चे और इफत शिआर बीवी को सिर्फ और सिर्फ अल्लाह के सहारे वहाँ छोड़ जाते हैं। हज़रत इब्राहीम अलइहिस्सलाम ने खजूरों और पानी की शक्ल में जो कुछ तोशा-ए-ज़िन्दगानी छोड़ा था बहुत जल्द ख़त्म हो गया। अब पेट की आग बुझाने के लिए न तो खजूर का एक दाना है और न प्यास ख़त्म करने के लिए एक घूँट पानी। हज़रत हाजरह ख़ुद भी भूक और प्यास से बेहाल हो गयीं और इधर मासूम बच्चे का गुलाब से चेहरा भी मुरझा गया, क्योंकि माँ के दूध की शक्ल में मिलने वाली उसकी ग़िज़ा अब बन्द हो चुकी थी। बच्चा भूक और प्यास की शिद्दस से बिलबिलाने लगा।

ऐसे मौक़े पर एक माँ की कैफियत क्या हो सकती है इसका अंदाज़ा कोई मर्द नहीं बल्कि एक मेहरबान माँ ही कर सकती है। हज़रत हाजरह की मामता भरी मुर्बयाना आँखें अपने दिल के टुकड़े की हालते ज़ार कब तक बर्दाश्त कर सकती थीं, क़रीब ही वाके़ सफा पहाड़ी पर चढ़कर मुज़तरिबाना अंदाज़ में तजस्सुस आमीज़ निगाहें दौड़ाने लगीें कि शायद कोई भूला भटका आदमी नज़र आ जाये या कहीं चन्द घूंट पानी मिल जाये ताकि वो अपनी और अपने लख़्ते जिगर की प्यास बुझा सकें, मगर मायूसी और महरूमी के सिवा कुछ नज़र न आया। सफा से उतरीं और तेज़ क़दमों से चलते हुए वादी को उबूर करके मर्वा पहाड़ी पर चढ़ गयीं। यहाँ भी चारों तरफ निगाहें दौड़ा कर जायज़ा लिया, मगर मायूसी व महरूमी से ही पाला पड़ा, चुनांचे दोबारा सफा की तरफ चल पड़ीं। सफा और मर्वा के दर्मियान सात मर्तबा आती जाती रहीं और हर चक्कर के दौरान में अपने लख़्ते जिगर को भी आकर देख जातीं। बच्चे की हालते ज़ार देखकर आपके ग़म व अन्दवा में इज़ाफा होता जा रहा था।

सय्यदा हाजरह का ये अमल अल्लाह तआला को इतना पसन्द आया कि उसने ता क़यामत हुज्जाज-ए-किराम के लिए सफा और मर्वा के इस दर्मियानी हिस्से में चलना हज और उमरा का रूक्न क़रार दिया। इस सरापा तस्लीम व रज़ा ख़ातून के इस अमल की याद हमेशा के लिए मनासिके हज का हिस्सा हो गयी जो एक पैग़म्बर की बीवी और दूसरे पैग़म्बर की वालिदा हैं। नबी करीम सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम ने फरमायाः 

((फज़ालिका सअयुन्नासि बइनाहुमा))।

‘‘हज़रत हाजरह के इस अमल की के सबब लोगों पर सफा व मर्वा के दर्मियान सई करना वाजिब किया गया।’’

सातवीं मर्तबा जब हज़रत हाजरह अलइहिस्सलाम निगाहें दौड़ाती हुयीं मर्वा पर पहुँची तो इस बार उन्हें एक आवाज़ सुनाई दी। वो आवाज़ की तरफ हमातन गोश हो गयीं। इतने में दोबारा आवाज़ सुनाई दी। वो आवाज़ की तरफ फिरीं और कहने लगींः

((क़द अस मीअता इन कानः इन्दकः ग़ुवासुन))

‘‘तुम्हारी आवाज़ मुझ तक पहुँच चुकी है। अगर तुम मेरी कोई मदद कर सकते हो तो करो।’’

यकायक उनकी नज़र सामने पड़ी, एक फरिश्ता उनके लख़्ते जिगर के क़रीब खड़ा था। वो जिब्राईल अलइहिस्सलाम थे, उन्होंने अपनी ऐड़ी ज़मीन पर रगड़ी, बाज़ रिवायात से मुताबिक़ उंगली से इशारा किया या पर मारा, तो अल्लाह की क़ुदरत से पानी का चश्मा उबलने लगा। सय्यदा हाजरह अपना मुशकीज़ा भरने लगीें। पानी मुसलसल उबल रहा था, ख़ुद भी नोश किया और लख़्ते जिगर की बेचैनी का दरमां भी किया। जब मुशकीज़ा भर गया तो ख़्याल आया कि कहीं ये पानी इधर-उधर बह कर ज़ाऐ न हो जाये, चुनांचे वो जल्दी जल्दी चश्मे के इर्द गिर्द बंद बांधने लगीं और ज़ुबान से ((ज़म ज़म)) कहने लगीं जिसके मायने होते हैंः ‘‘ठहर जा ठहर जा’’। फिर यही इसका नाम पड़ गया।

नबी करीम सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम फरमाते हैंः

((यर हमुल्लाहु उम्मः इस्माईला लउ तरःकत – अऊ क़ालः लउ लम तग़रिफ मिनल मायी – लकानत ज़मज़मु अइनन मईना))।

‘‘अल्लाह तआला हज़रत इस्माईल अलइहिस्सलाम की वालिदा पर रहम करे, अगर वो पानी यूँ ही छोड़ देतीं और रोक न लगातीं तो ज़मज़म एक जारी नहर की शक्ल इख़्तियार कर लेता।’’ 

(ये वाक़िया सहीह बुख़ारी ही हदीस नं0 3364 और अबू दाऊद, मुसनद अहमद वग़ैरह में मिल जायेगा)।

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