Qurbani : क़ुर्बानी का मसनून तरीक़ा व दुआ एवं अय्यामे तशरीक़



Qurbani : बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम : अस्सलामु अलैकुम व रह मतुल्लाहि व ब रका तुहू! मेरे अज़ीज़ साथियों, इस पोस्ट में हम आपकी ख़िदमत में पेश कर रहे हैं “क़ुर्बानी (Qurbani) का मसनून तरीक़ा व दुआ एवं महीना ज़िल-हिज्जा, क़ुर्बानी और आमाल की फज़ीलत” पर आधारित Pumplate 02. इन शा अल्लाह! इसमें आप लोग क़ुर्बानी (Qurbani) के बारे में सम्पूर्ण जानकारी विस्तार से जानेंगे इसके साथ साथ महीना ज़ुल हिज्जा की फ़ज़ीलत, क़ुर्बीनी (Qurbani) और इस माह में किये जाने वाले आमाल की भी जानकारी आप लोगों को दी जा रही है। चुनांचे आप हज़रात से गुज़ारिश है कि क़ुर्बानी (Qurbani) के इस Pumplate को दूसरों तक भी पहुंचाने का ख़ैर काम ज़रूर करिए। ताकि और लोग भी कुर्बानी (Qurbani) का सुन्नत तरीक़ा माहे ज़िल हिज्जा और इसमें किये जाने वाले आमाल की फ़जीलत को जान जाएं, अल्लाह तआला हम सभी को अमल की तौफ़ीक़ अता फ़रमाऐ, आमीन!

महीना ज़िल-हिज्जा, क़ुर्बानी और आमाल की फज़ीलत

‘‘पस तू अपने रब के लिए नमाज़ पढ़ और क़ुर्बानी कर’’ (सूरह कौसर: 2)    

ज़िल-हिज्जा इस्लामी साल का आखि़री महीना है क़ुरआन और सहीह अहादीस में इसकी बड़ी फज़ीलतें बयान की गयी हैं- ये महीना हुरमत वाला महीना है। इस्लाम के एक फर्ज़ रूक्न हज़ के लिए इस महीने को अल्लाह तआला ने चुना है, 9 ज़िल-हिज्जा को हुज्जाजे किराम मैदाने अराफात में जमा होते हैं और हज करते हैं, इसी दिन को यौमे अरफा कहा जाता है। ग़ैर हाजीयों को यौमे अरफा 9 ज़िल-हिज्जा के दिन का नबी करीम मुहम्मद रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने रोज़ा रखने का हुक्म दिया और इस दिन के रोज़े की फज़ीलत के बारे में आप सल्ल0 ने फरमाया –

“मैं समझता हूँ कि अरफा के दिन रोज़ा रखने का सवाब अल्लाह तआला ये देगा कि अगले और पिछले एक साल के गुनाह बख्श देगा, यानी दो साल के गुनाह माफ हो जाते है।(सुनन इब्ने माजा – 1730)।

10 जिल-हिज्जा ईद-उल-अज़्हा का दिन होता है और ईद की नमाज़ अदा करने के लिए मुसलमान ईदगाह में जमा होते है, और ईद की नमाज़ के बाद क़ुर्बानी की जाती है इसे यौमुन-नहर भी कहते हैं। इस महीने की 11, 12, और 13 ज़िल-हिज्जा अय्यामे तशरीक़ के दिन होते हैं। ज़िल-हिज्जा के 10 दिन (1 तारीख़ से 10 तारीख़ तक) के आमाल और 11, 12 व 13 तारीख़ तक के आमाल की फज़ीलत के बारे में नबी करीम जनाब मुहम्मद रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया है कि-

इन दिनों के अमल से ज़्यादा किसी दिन के अमल में फज़ीलत नहीं, लोगों ने पूछा और जिहाद में भी नहीं, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि हाँ, जिहाद में भी नहीं, सिवाय उस शख़्स के जो अपनी जान व माल के साथ अल्लाह की राह में निकला और सब कुछ यानी अपनी जान व माल अल्लाह की राह में ख़र्च कर दिया। (सहीह बुख़ारी – 969)     

तकबीरात  को बुलन्द आवाज़ से पढ़ें

1 से 13 ज़िल-हिज्जा तक :  

तसबीह – सुबहान अल्लाह

तकबीर- अल्लाहु अकबर

तहलील- ला इलाहा इल्लल्लाह

तहमीद- अल-हम्दु लिल्लाहइन तकबीरात 

उपरोक्त तकबीरात का ज़्यादा से ज़्यादा एहतिमाम करें और बुलन्द आवाज़ से इन कलिमात को मस्जिदों में बाज़ारों में पढ़ें-   

अल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर, ला इलाहा इल्लल्लाहु वल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर व लिल्लाहिल हम्द!  

क़ुर्बानी का मक़सद

क़ुर्बानी अल्लाह का हुक्म और नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सुन्नत है। क़ुर्बानी का असल मक़सद ख़ून बहाना या गोश्त खाना नहीं, बल्कि ये तक़र्रूबे इलाही का एक अहम ज़रिया है लिहाज़ा क़ुर्बानी करने वाले क़ुर्बानी के ज़रिये अपने अन्दर तक़वा पैदा करने की कोशिश करें। सूरह हज की आयत 37 में अल्लाह ने इरशाद फरमाया है-  

لَنۡ یَّنَالَ اللّٰہَ  لُحُوۡمُہَا وَ لَا دِمَآؤُها وَ لٰکِنۡ یَّنَالُہُ التَّقۡوٰی مِنۡکُمۡ   

‘‘अल्लाह तआला को क़ुर्बानियों के गोश्त नहीं पहुँचते ना उनके ख़ून बल्कि उसे तो तुम्हारे दिल की परहेज़गारी पहुँचती है’’  

क़ुर्बानी का मसनून तरीक़ा   ज़िबाह:   नहर (ऊँट की क़ुर्बानी):   क़ुर्बानी की दुआ

  • अगर क़ुर्बानी सिर्फ अपनी तरफ से करना हो तो ये दुआ पढ़ेंः

َبِسْمِ اللّٰهِ وَاللّٰهُ أَكْبَر أَللّٰهُمَّ مِنْكَ وَ لَك أَللّٰهُمَّ تَقَبَّْل مِنِّي

‘बिस्मिल्लाहि वल्लाहु अकबुर अल्लाहुम्मा मिन्का व लका अल्लाहुम्मा तक़ब्बल मिन्नी’’  

  • अगर क़ुर्बानी अपने और अपने घर वालों की तरफ से करना हो तो ये दुआ पढ़ेंः

َبِسْمِ اللّٰهِ وَاللّٰهُ أَكْبَر أَللّٰهُمَّ مِنْكَ وَ لَك أَللّٰهُمَّ تَقَبَّل مِنِّي وَ أَهْلِ بَيْتِي

‘‘बिस्मिल्लाहि वल्लाहु अकबुर अल्लाहुम्मा मिन्का व लका अल्लाहुम्मा तक़ब्बल मिन्नी व अहली बइती’’  

  • और अगर क़ुर्बानी किसी दूसरे की तरफ से और उसके घर वालों की तरफ से करना हो तो ये दुआ पढ़ेंः

َبِسْمِ اللّٰهِ وَاللّٰهُ أَكْبَر أَللّٰهُمَّ مِنْكَ وَ لَک أَللّٰهُمَّ تَقَبَّلْ مِنْ………. بِسْمِ اللّٰهِ وَاللّٰه اَكْبَر

‘‘बिस्मिल्लाहि वल्लाहु अकबुर अल्लाहुम्मा मिन्का व लका अल्लाहुम्मा तक़ब्बल मिन…….’’ के बाद उसका नाम लें जिसकी तरफ से क़़ुर्बानी की जा रही है और “बिस्मिल्लाहि वल्लाहु अकबर” कह कर क़ुर्बानी करें। और अगर क़ुर्बानी उसके और उसके घर वालों की तरफ से भी क़ुर्बानी करनी हो तो उसके नाम के बाद “व मिन अहलिही” और “बिस्मिल्लाहि वल्लाहु अकबर” कह कर क़ुर्बानी करेंगे । (बुख़ारी व मुस्लिम)

वस्सलामु अलइकुम व रह म तुल्लाहि व ब र कातुहू!

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