Islamic Marriage Part 21 : निकाह के बाद पति-पत्नी के लिए इस्लामी शिक्षाऐं

(बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम)

प्रिय पाठकों,अस्सलामु अलइकुम वरहमतुल्लाहि वबरकातुहू! आज की इस पोस्ट में मानव जीवन के चैथे दौर ‘‘निकाह के बाद से अन्तिम समय तक’’ के सम्बन्ध में छः शिक्षाओं का उल्लेख किया गया है जिसमें आप लोगों को इस बात से अवगत कराया जा रहा है कि पत्नी को चाहिए कि वे अपने पति की जिन्सी भावनाओं का सम्मान करे ताकि पति अपने जिन्सी भावनाओं के प्रति बिगड़ने और भटकने से बच सके, और जिन्सी भेद खोलने की मनाही एवं रिश्तेदारों से पर्दा करने का उल्लेख भी किया गया है। अल्लाह तआला हम सभी को लिखने और पढ़ने से ज़्यादा अमल की तौफ़ीक़ अता फ़रमाये, आमीन!

चैथा दौर – निकाह के बाद से अन्तिम समय तक

निकाह के बाद जिन्सी दृष्टि से इन्सान के अन्दर सुकून, शान्ति और सन्तोष की स्थिति पैदा हो जानी चाहिए फिर भी इसका दारोमदार पति पत्नी के अपासी रवैयों पर है इसलिए इस अवसर पर भी इस्लाम दोनों पक्षों की जिन्सी भावनाओं को बिगड़ने व भटकने से बचाने के लिए पूरी-पूरी रहनुमाई करता है। निकाह के बाद पति-पत्नी के लिए इस्लामी शिक्षाऐं इस प्रकार हैं-

1. पति की जिन्सी भावनाओं का सम्मान
2. चार शादियों की इजाज़त
3. पति के सामने ग़ैर मेहरम औरतों का उल्लेख करने की मनाही
4. जिन्सी जीवन के भेद खोलने की मनाही
5. पति के रिश्तेदारों से पर्दे का हुक्म
6. अन्तिम रास्ता

अब आपकी खि़दमत में पेश है-

शिक्षा नं0 1: पति की जिन्सी भावनाओं का सम्मान

औरत को यह हुक्म दिया गया है कि वह अपने पति की जिन्सी भावनाओं का सम्भावित हद तक सम्मान करे और उसकी नफ़सानी इच्छा पूरी करे। अल्लाह के रसूल सल्ल0 का इदशाद है-

‘‘उस ज़ात की क़सम! जिसके हाथ में मेरी जान है जब पति पत्नी को अपने बिस्तर पर बुलाए और वह इन्कार कर दे तो वह ज़ात जो आसमानों में है नाराज़ रहती है यहां तक कि उसका पति उससे राज़ी हो जाए।’’ (मुस्लिम)

इस्लाम ने औरत को पति की जिन्सी भावनाओं का ख़्याल रखने की इस हद तक ताकीद की है कि यदि औरत निफ़ली रोज़ा रखना चाहे तो वह भी पति से इजाज़त लेकर रखे। (बुख़ारी)

शिक्षा नं0 2: चार शादियों की इजाज़त

इस्लाम चूँकि हर समय पर समाज से जिन्सी अराजकता और जिन्सी बिखराव रोकना चाहता है अतः उसने मर्दों को स्वेच्छा से एक से अधिक एक साथ चार शादियां करने की इजाज़त दी है। अल्लाह का इरशाद है-

‘‘यदि तुमको शंका हो कि यतीमों के साथ न्याय कर सकोगे तो जो औरतें तुमको पसन्द आएं उनमें से दो दो, तीन तीन या चार चार से निकाह कर लो लेकिन यदि तुम्हें शंका हो कि इन (विधवाओं) के बीच न्याय न कर सकोगे तो फिर एक ही करो।’’ (सूरह निसा 3)

अर्थात इस्लाम को यह तो पसन्द है कि न्याय को क़ायम रखते हुए कोई व्यक्ति दो या तीन यहां तक कि चार औरतों से निकाह करके आनन्दित हो जाए लेकिन यह कदापि पसन्द नहीं कि मर्द ग़ैर मेहरम औरतों से चोरी छुपे आंखे लड़ाते फिरें। ग़ैर मेहरम औरतों से दिल बहलाएं या उनसे आंखे लड़ाएं। न ही यह पसन्द है कि मर्द नाइट कल्बों, वैश्यालयों और वैश्याओं के डेरों को आबाद करें, न ही यह पसन्द है कि समाज में छोटी उम्र की बच्चियां जिन्सी हिंसा का शिकार हों। ज़िना की अधिकता हो और ऐसे हरामी बच्चे पैदा हों जिन्हें अपनी मां का पता हो न बाप का।

एक से अधिक शादियों के हवाले से हम यहां इस बात का ज़िक्र करना भी आवश्यक समझते हैं कि हिन्द व पाक के प्राचीन रस्म व रिवाज और सामाजिक व्यवस्था के अनुसार हमारे यहां आज भी दूसरे निकाह के बारे में सख़्त नफ़रत और घृणा की भावना पायी जाती है यहां तक कि कभी कभी उचित कारण (जैसे औरत की निरन्तर बीमारी या सन्तान न होना आदि) के बावजूद मर्द के दूसरे निकाह को निंदा योग्य और मलामत योग्य समझा जाता है। इसी रस्म व रिवाज को देखते हुए सरकार ने यह क़ानून लागू कर रखा है कि मर्द के लिए दूसरे निकाह से पहले पहली पत्नी से इजाज़त हासिल करना ज़रूरी है जो कि सरासर ग़ैर इस्लामी है। इस्लाम में दूसरी, तीसरी या चैथी शादी के लिए न्याय की शर्त के अलावा कोई दूसरी शर्त नहीं और इसकी मसलेहत व हिक्मत का ज़िक्र पिछली पंक्तियों में हो चुका है। यहां हम केवल इतना कहना चाहेंगे कि अल्लाह के उतारे गए आदेशों के बारे में दिल में कराहत या नापसन्दीदगी महसूस करते हुए सौ बार डरना चाहिए। कहीं इस वजह से उम्र भर की सारी मेहनत और कमाई बर्बाद न हो जाए। अल्लाह का इरशाद है-

‘‘चूँकि उन्होंने इस चीज़ को नापसन्द किया जिसे अल्लाह ने भेजा है अतः अल्लाह ने उनके सारे कर्मों को बर्बाद कर दिया है।’’ (सूरह मुहम्मद 9)

शिक्षा नं0 3: पति के सामने ग़ैर मेहरम औरतों का उल्लेख करने की मनाही

अल्लाह के रसूल सल्ल0 का इदशाद है- ‘‘कोई व्यक्ति किसी दूसरी औरत के साथ इस तरह (भेद भरी बातें करके) न रहे कि फिर (जाकर) अपने पति से उसका हाल यूँ बयान करे जैसे वह उसे देख रहा है।’’ (बुख़ारी)

शिक्षा नं0 4: जिन्सी जीवन के भेद खोलने की मनाही

नबी सल्ल0 का इदशाद है- ‘‘क़यामत के दिन अल्लाह के निकट सबसे बुरा व्यक्ति वह होगा जो अपनी पत्नी के पास जाए और पत्नी उसके पास आए और फिर वह अपनी पत्नी की राज़ की बातें दूसरों को बताए।’’ (मुस्लिम)

शिक्षा नं0 5: पति के रिश्तेदारों से पर्दे का हुक्म

एक बार नबी सल्ल0 ने सहाबा किराम (रज़ि0) को नसीहत की- ‘‘औरतों के पास एकान्त में न जाओ।’’ एक सहाबी ने कहा- ‘‘ऐ अल्लाह के रसूल सल्ल0! पति के रिश्तेदारों के बारे में क्या हुक्म है?’’ आपने इरशाद फ़रमाया- ‘‘वह तो मौत है।’’ (तिर्मिज़ी)

याद रहे कि पति के रिश्तेदारों से तात्पर्य उसके भाइयों के अलावा निकटतम रिश्तेदार भी है जैसे चचाज़ाद, फूफीज़ाद, ख़ालाज़ाद, मामूज़ाद। (तिर्मिज़ी)

शिक्षा नं0 6: अन्तिम रास्ता

जो व्यक्ति निकाह के बावजूद ज़िना जैसे घिनौने अपराध को करे उसके लिए शरीअत ने वास्तव में ऐसी कड़ी सज़ा रखी है कि वह दूसरों के लिए शिक्षा प्रद बन जाता है। देखने वाले ज़िना की कल्पना से ही कांपने लगते हैं। असल में शरीअत ने इतनी बड़ी सज़ा (संगसार) मुक़र्रर ही इसलिए की है कि एक आध अपराधी को सज़ा देकर पूरे समाज को इसकी गन्दगी और नापाकी से पूरी तरह और साफ़ कर दिया जाए।

सामाजिक जीवन के बारे में इस्लाम के वे आदेश जिनपर अमल करके समाज को न केवल जिन्सी आवेश और जिन्सी बिखराव से बचाया जा सकता है बल्कि औरत पर होने वाले ज़ुल्म व अत्याचार को ख़त्म करके सम्मान व इज़्ज़त का स्थान भी दिलाया जा सकता है। जब तक हम व्यक्तिगत और सामूहिक स्तर पर नेक नियती से किताब व सुन्नत के इन आदेशें पर अमल नहीं करते हमारा समाज जटिल समस्याओं की आग में निरन्तर जलता रहेगा। इस आग को ठंडा करने का केवल एक ही रास्ता है कि पूरी विनम्रता और विनय के साथ अल्लाह और उसके रसूल के आगे सर झुका दिया जाए।

प्रिय पाठक गण! विगत पोस्ट में हम पश्चिमी जीवन व्यवस्था और इस्लामी समाज का विस्तार से अवलोकन कर चुके हैं। एक नज़र में दोनों सभ्यताओं का तुल्नात्मक विवरण नीचे दिये गए चार्ट में देखा जा सकता है-
इस चार्ट को देखकर यह अन्दाज़ा करना मुश्किल नहीं कि दोनों सभ्यताएं एक दूसरे की विलोम हैं दोनों में पूरब पश्चिम का फ़र्क़ है। जो बात एक सभ्यता में अच्छी निगाह से देखी जाती है वही बात दूसरी सभ्यता में बुरी निगाह से देखी जाती है। जो चीज़ एक सभ्यता में रोशन ख़्याल मानी जाती है दूसरी सभ्यता में वह निरी जिहालत है।
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