Islami Wasiyat Nama : अपनी औलाद को वसीयत कैसे लिखकर दें?



Islami Wasiyat Nama

(बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम) : अस्सलामु अलैकुम व रह मतुल्लाहि व ब रका तुहू! प्रिय पाठकों यह एक इस्लामी वसीयत नामा (Islami Wasiyat Nama) है जो लोग अपनी औलाद को इस तरह की वसीयत करना चाहते हैं इंशा अल्लाह उनके लिए ये Islami Wasiyat Nama बहुत फायदेमंद साबित होगा, और मेरी गुज़ारिश आप हज़रात से यही है कि इस तरह की वसीयत Islami Wasiyat Nama आप अपनी औलाद को अपनी मौत से पहले ज़रूर करें, जिससे दीने इस्लाम को बहुत फायदा पहुँच सकता है। इस Islami Wasiyat Nama इस्लामी वसीयत नामें में अगर ग़लती से कुछ छूट गया हो या कोई ग़लती हो गयी हो तो इससे हमें ज़रूर आगाह करने की मेहरबानी करें, ताकि इस Islami Wasiyat Nama को दुरूस्त किया जा सके। और Islami Wasiyat Nama के बारे में अपनी राय हमें ज़रूर दें साथ ही इस पोस्ट को लाइक, और शेयर करना न भूलें, ताकि इस Islami Wasiyat Nama के ज़रिए और लोग भी फायदा उठा सकें, और हमारे ब्लाॅग और नीचे दिये गये यू-ट्यूब चैनल को सब्स्क्राइब भी कर लें, ताकि हर नई अपडेट आप तक तुरंत पहुँच जाये। तो चलिए अब आगे बढ़ते हैं, और शुरू करते हैं- Islami Wasiyat Nama

अपनी औलाद को वसीयत कैसे लिखकर दें?


بِسمِ اللہ ِالرَّحمٰنِ الرَّحِیم
اَلحَمدُ للہِ رَبِّ العٰلَمِینَ وَالصَّلَاۃُ وَالسَّلَامُ عَلٰی رَسُولِہِ الاَمِینِ وَالعَاقِبَۃُ لِلمُتَّقِینَ، اَمَّا بَعدُ , أعوذ باللہ من الشیطان الرجیم، بسم اللہ الرحمٰن الرحیم
قُل ھُوَاللہُ اَحَد، اَللہُ الصَّمَد، لَم یَلِد وَ لَم یُولَد، وَلَم یَکُن لّہُ کُفوًا اَحَد۔

(बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम)
अल्हम्दु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन, वस्सलातु वस्सलामु अला रसूलिहिल अमीन, वल आक़िबतु लिल मुत्तक़ीन, अम्मा बाद! , अअूज़ु बिल्लाहि मिनश शईताॅनिर्रजीम बिस्मिल्लिाहिर्रहमानिर्रहीम
क़ुल हुवल्लाहु अहद, अल्लाहुस्समद लम-यलिद व लम-यूलद, व लम-य-कुल्लहु कुफुन अहद।

हम्दो सना सिर्फ अल्लाह तआला के लिए हैं जो सारे जहानों का रब है, सारी कायनात का ख़ालिक, मालिक व राज़िक है जिसने आसमानों और ज़मीनों को पैदा फरमाया और जहन्नम व जन्नत को पैदा किया, जो क़यामत के दिन का मालिक है और दुरूद व सलाम नाज़िल हों उसके सारे अम्बिया अलईहिमुस्सलाम पर, बिल ख़ुसूस उसके आखि़री पैग़म्बर जनाब मुहम्मद रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलईहि वसल्लम पर और उनके आल व असहाब, उम्मुल मुमिनात और अज़वाजे मुतह्हरात पर और अल्लाह तआला रहम व करम फरमाये हम सब पर, आमीन!

अल्लाहुम्मा सल्लि अला मुहम्मदिउं व अला आलि मुहम्मद कमा सल्लईता अला इब्राहीमः व अला आलि इब्राहीमः इन्नकः हमीदुम्मजीद अल्लाहुम्मः बारिक अला मुहम्मदिउं व अला आलि मुहम्मद कमा बारकता अला इब्राहीमः व अला आलि इब्राहीमः इन्नका हमीदुम्मजीद।

Islami Wasiyat Nama : सबसे पहले मैं गवाही देता हूँ कि ‘‘अल्लाह तआला के सिवा कोई बरहक़ (सच्चा) मअबूद नहीं और मैं गवाही देता हूँ कि जनाब मुहम्मद रसूलुल्लाह (ﷺ) उसके बंदे और उसके रसूल हैं।’’

और मैं इस बात से आप लोगों को आगाह करता हूँ कि इस्लाम की बुनियाद पाँच चीज़ों पर क़ायम है।

(1) इस बात की गवाही देना कि अल्लाह तआला के सिवा कोई बरहक़ (सच्चा) माबूद (इबादत के लायक) नहीं है और इस बात की गवाही देना कि मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलईहि वसल्लम) अल्लाह के बन्दे और उसके रसूल हैं।

(2) नमाज़ क़ायम करना।

(3) ज़कात अदा करना।

(4) रमज़ान के फर्ज रोज़े रखना।

(5) माली हालत अच्छी होने पर अल्लाह तआला के घर (बैतुल्लाह) का हज करना।

अब मैं (…यहाँ पर वसीयत कर्ता अपना पूरा नाम लिखे…) अपने पूरे होशो हवास में अपनी तमाम औलाद को इन बातों की वसीयत करता हूँ कि –

1. बाद माँ-बाप के मरने के उनकी तमाम नेक औलाद माँ-बाप के लिए सदक़ा-ए-जारिया बनती हैं चुनांचे मैं अपनी औलाद को ये वसीयत करता हूँ कि वो इस्लाम के उपरोक्त पाँचों अरकान को नेक नियती, तक़वा और इख़्लास के साथ अदा करें और बाद मेरे मरने के अपने इन नेक आमाल से मुझे ख़ुश रखें, मुझे आपकी दुनिया की ब-निस्बत क़ब्र में ज़्यादा ज़रूरत है।

2. मैं आप लोगों को हराम कमाई और हराम कामों से बचने और हलाल कमाई और हलाल कामों के करने की वसीयत करता हूँ, क्यों कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलईहि वसल्लम) का फरमान है कि जिसने हराम का एक लुक़मा खाया तो चालीस दिन तक उसकी नमाज़ क़ुबूल नहीं की जाती है।

3. मैं वसीयत (Islami Wasiyat) करता हूँ कि शरीअते इस्लामिया को पूरी तरह से सीखना, सिखाना और उस पर अमल करते रहना क्यों कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलईहि वसल्लम) का फरमान है कि हर मुसलमान पर दीने शरीअत का इल्म सीखना और सिखाना फर्ज़ है।

4. मैं वसीयत करता हूँ कि अल्लाह और उसके रसूल (सल्लल्लाहु अलईहि वसल्लम) के फरमान के मुताबिक़ अपनी मौत तक हमेशा

1-अल्लाह तआला पर ईमान,

2-उसके फरिश्तों पर ईमान,

3-उसके पैग़म्बरों पर ईमान,

4-उसकी किताबों पर ईमान,

5-तक़दीर के अच्छे और बुरे होने पर ईमान,

6-बरज़ख़ यानी क़ब्र की ज़िन्दगी पर ईमान,

7-मरने के बाद जी उठने पर ईमान,

8-आखि़रत के दिन पर ईमान,

9-हिसाब-किताब पर ईमान,

10-मीज़ान (नामा-ए-आमाल तौले जाने) पर ईमान,

11-फैसला (सज़ा और जज़ा) पर ईमान,

12-पुल सिरात पर ईमान,

13-जन्नत और दोज़ख़ पर ईमान बनाये रखना और हर मुसीबत व परेशानी की हालत में भी ईमान पर क़ायम व दायम रहना, ईमान के दामन को कभी भी ना छोड़ना, क्यों कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलईहि वसल्लम) का फरमान है कि जिस किसी की मौत ईमान पर वाक़े हो तो वो जन्नत का मुस्तहिक़ बनता है।

5. मैं आप लोगो को वसीयत करता हूँ कि अल्लाह तआला की रस्सी को मज़बूती से थामे रहना और हर तरह की बिदअत (चाहे वो बिदअते सईया हों या बिदअते हस्ना) और हर तरह के शिर्क (चाहे वो ज़ाहिरी हों या बातिनी) से बचते रहना क्यों कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलईहि वसल्लम) का फरमान है कि हर बिदअत गुमराही और हर गुमराही जहन्नम में ले जाने वाली है और सबसे बड़ा गुनाह अल्लाह के साथ किसी को भी शरीक ठहराना है जैसा कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलईहि वसल्लम) का फरमान है कि जिसकी मौत शिर्क पर वाक़े हुयी तो उसे अल्लाह तआला किसी भी हाल में माफ नहीं करेगा और वो जहन्नम का मुस्तहिक़ होगा।

6. मैं आप लोगों को नमाज़ों को क़ायम करने की वसीयत करता हूँ, पाँचों वक़्त की फर्ज़ नमाज़ों को नरीना औलाद यानी बेटे नमाज़ बा-जमाअत मस्जिदों में अदा करें या किसी मुसीबत, परेशानी या ऐसी बड़ी मजबूरी की हालत में जबकि मस्जिदों में जाना मुमकिन न हो तो उस वक़्त अपने घरों में ही मौजूद मर्द, औरतें और बच्चों के साथ जमाअत बनाकर अदा कर सकते हैं। चुनांचे हर मुमकिन, नमाज़ों का एहतिमाम करें, सुन्नतें व नवाफिल नमाज़ों को अपने घरों पर अदा करने का एहतिमाम करें और ख्वातीन भी घरों में पाँचों वक्त फर्ज़, सुन्नतें व नवाफिल नमाज़ों का एहतिमाम करें व अपनी औलाद को भी नमाज़ों का हुक्म करते रहें।

7. मैं आप लोगों को वसीयत (Islami Wasiyat) करता हूँ कि फर्ज़ और निफली रोज़ों को कसरत के साथ रखते रहें, क्योंकि अल्लाह तआला ने रोज़ों का बेशुमार अज्र रखा है चुनांचे कसरत के साथ फर्ज़ व निफली रोज़ों का एहतिमाम ज़रूर करते रहना।

8. मैं आप लोगों को सद्क़ा करने की वसीयत (Islami Wasiyat) करता हूँ कि अमीरी या ग़रीबी यानी हर हाल में अपने माल में से सदक़ा ज़रूर निकालते रहें क्योंकि सदक़ा करने से जहन्नम की आग से अल्लाह तआला महफूज़ रखता, जैसा कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलईहि वसल्लम) का फरमान है कि तुम अपने आपको जहन्नम की आग से बचा लो भले खजूर का एक टुकड़ा ही देकर।

9. मैं वसीयत करता हूँ कि अगर अल्लाह तआला ने आप लोगों को इतनी दौलत अता की हो कि उससे बैतुल्लाह का हज किया जा सके तो अपनी ज़िन्दगी में एक बार ज़रूर हज व उमरा कर लेना क्योंकि ये इबादत फर्ज़ है हर उस मुसलमान पर जिसको अल्लाह तआला ने दौलत से नवाज़ा हो, दौलत होने के बावजूद उसने अपनी मौत से पहले अगर हज नहीं किया तो क़यामत के दिन उसका यही माल गंजा सांप बनकर गले का तौक़ बन जायेगा।

10. मैं आप लोगों को वसीयत (Islami Wasiyat) करता हूँ कि अल्लाह तआला की किताब क़ुरआन करीम की कसरत के साथ तिलावत करते रहना अपने मकानों, अपनी दुकानों, और मस्जिदों में, और जहां कहीं भी मुनासिब जगह मिले, क़ुरआन पढ़ते रहना, क्यों कि इसकी तिलावत से ग़रीबी, मुफलिसी और बीमारियों से अल्लाह तआला महफूज़ रखता है और बहुत सारी नेकियों से नवाज़ता है जैसा कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलईहि वसल्लम) का फरमान है कि एक हर्फ के बदले अल्लाह तआला एक नेकी अता करता है जिसका अज्र दस गुना होता है।

11. मैं अपनी सभी औलाद को आपस में अख़लाक़ व मोहब्बत के साथ रहने की वसीयत करता हूँ कि कभी भी आपस में एक दूसरे से नाराज़ न रहें, कभी भी बोलचाल बंद न करें, कभी भी न इत्तिफाक़ी पैदा न करें, एक दूसरे के साथ हुस्ने सुलूकी के साथ पेश आते रहें।

12. मैं वसीयत करता हूँ कि आप अपने पड़ोसियों, मोहल्ले वालों, बस्ती और इलाक़े वालों के साथ हुस्ने सुलूकी के साथ पेश आते रहना, एक दूसरे पर एहसान करते रहना, सिला रहमी करते रहना, क़ता रहमी यानी रिश्ते नातों को तोड़ने से बचते रहना, अगर किसी वजह से कोई लडाई, झगड़ा नौक-झौंक हो जाये तो तीन दिन से ज़्यादा बोल-चाल बंद न रखें, तीन दिन के अंदर दुआ सलाम कर लें। और हर मामले में सब्र का मुज़ाहिरा ज़रूर करते रहना।

13. मैं वसीयत करता हूँ कि आप ‘‘अम्र बिल मारूफ और नही अनिल मुनकर’’ करते रहें मतलब लोगों को नेकी का हुक्म देते रहना और बुराइयों से रोकते रहना क्योंकि जो लोग ऐसा नहीं करते हैं तो अल्लाह तआला उन पर अपना अज़ाब नाज़िल कर देता है।

14. मैं आप लोगों को हर तरह की बुराई से बचने की वसीयत करता हूँ और ये भी वसीयत (Islami Wasiyat) करता हूँ कि मजदूर को उसकी मजदूरी उसके पसीने के सूखने से पहले दे दिया करना और उनका हक़ बिल्कुल नहीं मारना। हमेशा हक़ और इंसाफ की बात करना। झूठ कभी नहीं बोलना और मक्र व फरेब से बचते रहना। ग़ीबत और चुगलख़ोरी कभी मत करना। बग़ैर तहक़ीक़ के फैसला कभी मत करना। ग़रीबों, मिसकीनों, बेवाओं और बेसहारा लोगों की मदद करते रहना। न अपने आप पर ज़ुल्म करना, न होने देना, और किसी पर ज़ुल्म नहीं करना और न ही ज़ुल्म होने देना। अपनी बीवी और बच्चों पर कभी जु़ल्म नहीं करना। हर हाल में उनकी हिफाज़त करते रहना। अपनी बीवी और अपने बच्चों को दीनी तालीमात ज़रूर देना/दिलवाना यानी उनको दीन ज़रूर सिखाना।

15. मैं आप लोगों को वसीयत करता हूँ कि हमेशा ज़ाहिरी, बातिनी और जिस्मानी तौर पर पाक व साफ रहना क्योंकि अल्लाह तआला हर ऐब से पाक व साफ है और पाकी को पसन्द करता है।

16. मैं आप लोगों को वसीयत (Islami Wasiyat) करता हूँ कि ज़मीन व जायदाद में एक-दूसरे का चाहे वो भाई हों या बहनें या माँ-बाप, किसी का भी हक़ नहीं मारना, अल्लाह के क़ानून और उसके फरमान के मुताबिक़ फैसला और बंटवारा अपनी मौत से पहले ज़रूर कर देना और अगर मौत से पहले फैसला और बंटवारा नहीं कर सके तो वसीयत ज़रूर कर देना। ताकि बाद मरने के आपसी झगड़े और फसाद से बचा जा सके।

17. मेरे जीने, और बाद मेरे मरने और जीने के, मेरे लिए और अपनी वालिदा के लिए अल्लाह तआला से दुआ-ए-मग़फिरत करते रहना, क़ब्र के अज़ाब, मैदान-ए-महशर के अज़ाब, और जहन्नम के अज़ाब से बचने की दुआऐं ज़रूर बिल ज़रूर करते रहना, और मेरे लिए और अपनी वालिदा के लिए अल्लाह तआला से जन्नत तलब करते रहना। हो सकता है कि अल्लाह तआला आपकी दुआओं की बदौलत अपने फज़ल व करम और अपनी रहमत से हम दोनों के गुनाहों को माफ फरमा दे और मेरी और आपकी वालिदा की मग़फिरत फरमा दे और अपने अज़ाब से बचा ले और जन्नतुल फिरदौस में जगह अता फरमा दे।

18. यह कि उपरोक्त कालम नं0 17 में दी गयीं दुआऐं अपने वालिदेन के साथ-साथ अपने लिए भी और अपनी बीवी और बच्चों के लिए भी अल्लाह तआला से ज़रूर बिल ज़रूर करते रहना।

19. आप लोगों को मेरी आखि़री वसीयत (Islami Wasiyat) ये है कि बाद मेरे मरने के सुन्नत के मुताबिक़ मेरी नमाज़े जनाज़ा अदा करेंगे और सुन्नत के मुताबिक़ मेरी क़ब्र बनायेंगे और सुन्नत के मुताबिक़ मुझे दफनायेंगे।

अल्लाह तआला से दुआ है कि वो इन तमाम बातों पर हम सभी को तक़वा और इख़्लास के साथ अमल करने की तौफीक़ अता फरमाये, आमीन!

मैं आप लोगों से पूरी उम्मीद करता हूँ इंशा अल्लाह, कि आप सभी लोग मेरी उपरोक्त वसीयतों को ध्यानपूर्वक ज़रूर पढ़ेंगे और इनका ज़रूर पालन करेंगे।

वसीयत कर्ता

शहाबुद्दीन बिन ज़ियाउद्दीन

मकान नं0, मुहल्ले का नाम, शहर व ज़िला, स्टेट, व मुल्क का नाम।

लेखक: शहाबुद्दीन बिन ज़ियाउद्दीन (हफिज़हुल्लाह)
Post Navi

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ