Tauheed : तौहीद की तीन अहम क़िस्में उलूहिय्यत रबूबिय्यत और सिफ़ात : Pumplate 01


Tauheed : बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम : अस्सलामु अलैकुम व रह मतुल्लाहि व ब रका तुहू! मेरे अज़ीज़ साथियों, इस पोस्ट में हम आपकी ख़िदमत में पेश कर रहे हैं Three important types of Tauheed तौहीद की तीन अहम क़िस्मों पर आधारित Pumplate 01. इन शा अल्लाह! इसमें आप लोग तौहीदे रबूबिय्यत Tauheed e Rabubiyyat, तौहीदे उलूहिय्यत Tauheed e Uloohiyyat और तौहीदे सिफ़ात Tauheed e Sifaat के बारे में जानकारी हासिल करेंगे, और तौहीद Tauheed की जानकारी से मालामाल होंगे। लिहाज़ा आप हज़रात से गुज़ारिश है कि तौहीद Tauheed के इस Pumplate को दूसरों तक भी पहुंचाने का ख़ैर काम ज़रूर करिए। अल्लाह आपके इस अमल को सदक़ा ए जारिया बनाए, आमीन!

तौहीद की तीन अहम क़िस्में (Tree Important types of Tauheed)

(1) तौहीदे रबूबिय्यत: 

तौहीदे रबूबिय्यत का मतलब है कि इस कायनात का ख़ालिक़, मालिक, राज़िक़ और मुदब्बिर सिर्फ अल्लाह तआला है। इस तौहीद को मलाहिदा व ज़नादिक़ा के अलावा तमाम लोग मानते हैं यहां तक कि मुश्रिकीन भी इसके क़ायल रहे हैं और हैं, जैसा कि क़ुरआन करीम ने मुश्रिकीने मक्का का ऐतिराफ नक़ल किया है। मसलन फरमायाः ‘‘ऐ पैग़म्बर उनसे पूछें कि तुम को आसमान व ज़मीन में रिज़्क़ कौन देता है, या तुम्हारे कानों और आँखों का मालिक कौन है और बे जान से जानदार और जानदार से बेजान कौन पैदा करता है और दुनिया के कामों का इंतिज़ाम कौन करता है? झट कह देंगे कि ‘‘अल्लाह‘‘ यानी ये सब काम करने वाला अल्लाह है।’’ (सूरहः यूनुस: 31) दूसरे मक़ाम पर फरमायाः अगर आप उनसे पूछें कि आसमान व ज़मीन का ख़ालिक़ कौन है? तो यक़ीनन यही कहेंगे कि ‘‘अल्लाह’’। (सूरहः ज़ुमुर: 38) एक और मक़ाम पर फरमायाः ‘‘अगर आप उन से पूछें कि ज़मीन और ज़मीन में जो कुछ है ‘ये सब किस की मिल्कीयत है? सातों आसमान और अर्शे अज़ीम का मालिक कौन है? हर चीज़ की बादशाही किस के हाथ में है? और वो सब को पनाह देता है, और उसके मुक़ाबिल कोई पनाह देने वाला नहीं। इन सबके जवाब में ये यही कहेंगे कि अल्लाह। यानी ये सारे काम अल्लाह ही के हैं। (सूरहः मुअमिनून: 84-89)

(2) तौहीदे उलूहिय्यत:

तौहीदे उलूहिय्यत का मतलब है कि इबादत की तमाम अक़साम का मुस्तहिक़ सिर्फ अल्लाह तआला है और इबादत हर वो काम है जो किसी मख़सूस हस्ती की रज़ा, या उसकी नाराज़गी के ख़ौफ से किया जाये, इस लिए नमाज़, रोज़ा, हज और ज़कात सिर्फ यही इबादत नहीं है। बल्कि किसी मख़सूस हस्ती से दुआ व इल्तिजा करना, उस के नाम की नज़्रो नियाज़ देना, उसके सामने दस्त बस्ता खड़ा होना, उसका तवाफ करना, उस से तमअ (चाह, ख़्वाहिश, हिर्स) और ख़ौफ रखना वगै़रा भी इबादत हैं। तौहीदे उलूहिय्यत ये है कि ये तमाम काम सिर्फ अल्लाह तआला के लिए किये जायें। (ता-हम ज़ाहिरी असबाब के मुताबिक़ ज़िन्दा इंसानों से तमअ या ख़ौफ, तौहीद के मुनाफी नहीं है।) क़ब्र परस्ती के मर्ज़ में मुबतला अवाम व ख़वास इस तौहीदे उलूहिय्यत में शिर्क का इर्तिकाब करते हैं और ऊपर दी गईं तमाम इबादात की बहुत सी क़िस्में वो क़ब्रों में मदफून अफराद और फौत शुदा बुज़ुर्गों के लिए भी करते हैं।

(3) तौहीदे सिफ़ात:

तौहीदे सिफ़ात का मतलब है कि अल्लाह तअला की जो सिफात क़ुरआन व हदीस में बयान हुयी हैं, उन को बग़ैर किसी तावील और तहरीफ के तस्लीम करें और वह सिफात इस अंदाज़ में किसी और के अंदर न मानें। मसलन जिस तरह उस की सिफत इल्मे ग़ैब है, या दूर और नज़दीक से हर एक की फरियाद सुनने पर वह क़ादिर है, कायनात में हर तरह का तसर्रूफ करने का उसे इख़्तियार हासिल है, ये या इस क़िस्म की और सिफाते इलाहिया इनमें से कोई सिफत किसी-किसी नबी, वली या किसी भी शख़्स के अंदर तस्लीम न की जायें। अगर तस्लीम की जायेंगीं तो ये शिर्क होगा। अफसोस है कि क़ब्रों के पुजारियों में शिर्क की ये क़िस्म भी आम है और उन्होंने अल्लाह की सिफात में बहुत से बंदों को भी शरीक कर रखा है। अआज़नल्लाहु मिन्हु!

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