Islamic Marriage Part 17 : बुराई का कैंसर फैलाने का सबसे बड़ा कारण "बेपर्दगी"


(बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम)

अलहम्दु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन वस्सलातु वस्सलामु अला सय्यिदिल मुर्सलीन वल आक़िबतु लिल मुत्तक़ीन, अम्मा बाद!

आदेश नं0 2: सातिर लिबास पहनने का हुक्म

घर के आम चैबीस घंटों के जीवन में इस्लाम ने मर्दों और औरतों को यह हुक्म दिया है कि वे ऐसा लिबास इस्तेमाल करें कि जिससे उनका सतर (शरीर का विशेष भाग) खुलने न पाए। स्पष्ट रहे कि मर्द का सतर नाड़ी से घुटनों तक हैं नबी सल्ल0 का इरशाद है-

‘‘मर्द का नाड़ी के नीचे और घुटने के ऊपर (का हिस्सा) सब छुपाने योग्य है जबकि औरतों का सतर हाथ पांव और चेहरे के अलावा सारा शरीर है। औरतों को नबी सल्ल0 ने यह हुक्म दिया है कि ‘‘जब औरत व्यस्क हो जाए तो उसके शरीर का कोई अंग नज़र नहीं आना चाहिए सिवाए चेहरे और कलाई के जोड़ तक।’’ (अबू दाऊद)

सातिर लबास में यह बात भी शामिल है कि लिबास इतना तंग और बारीक या छोटा न हो जिससे शरीर के अंग ज़ाहिर हो रहे हों। नबी सल्ल0 का इरशाद है कि ऐसी औरतें जो कपड़े पहनने के बावजूद नंगी रहती हैं जन्नत में दाखि़ल न होंगी, न ही जन्नत की ख़ुश्बू पाएंगी।’’ (मुस्लिम) याद रहे कि सातिर लिबास का यह हुक्म घर के अन्दर मेहरम रिश्तेदारों (दादा, बाप या भाई आदि) के लिए हैं। ग़ैर मेहरम रिश्तेदारों या अजनबियों से पर्दे का हुक्म दिया गया है जिसका उल्लेख इंशा अल्लाह आपको आदेश नं0 4 में पढ़ने को मिल जायेगा।

आदेश नं0 3: घर में इजाज़त लेकर दाखि़ल होने का हुक्म

व्यस्क होने के बाद घर के मर्दों (बाप या भाई या बेटे) को यह हुक्म भी दिया गया है कि जब वे अपने घर में दाखि़ल हों तो इजाज़त लेकर दाखि़ल हों (घर में दाखि़ल होने के लिए इजाज़त हासिल करने का तरीक़ा यह है कि दरवाज़े पर खड़े होकर ‘‘अस्सलामु अलइकुम’’ कहा जाए। अन्दर से वअलइकुमस्सलाम’’ की आवाज़ आ जाए तो आदमी अन्दर चला जाए वरना इन्तिज़ार करे।) ख़ामोशी के साथ अचानक दाखि़ल न हों। कहीं ऐसा न हो कि घर की औरतें (पत्नी के अलावा) ऐसी हालत में हों जिससे उन्हें देखने से मना किया गया है। अल्लाह का इरशाद है कि-

‘‘जब तुम्हारे लड़के बालिग़ हों जाएं तो उनको चाहिए कि घर में इसी तरह इजाज़त लेकर आएं जिस तरह उनसे पहले (घर के दूसरे बालिग़) लोग इजाज़त लेकर आते हैं।’’ (सूरह नूर: 159)

अपने ही घर से बाहर ग़ैर मेहरम औरतों और मर्दों का एक दूसरे के साथ खुले रूप से बातचीत और मुलाक़ात करने का स्वभाव ही न बनने पाए।

आदेश नं0 4: पर्दे का आदेश

घर के अन्दर औरतों को यह हुक्म है कि वे अपने सतर के हिस्सों (हाथ पावं और चेहरे के अलावा बाक़ी शरीर) को पूरी तरह छुपा कर रखें। घर से बाहर निकलते हुए मुसलमान औरतों को यह हुक्म दिया गया है कि वे अपने चेहरे को भी ढांप कर रखें। नबी करीम सल्ल0 के मुबारक ज़माने में सहाबियात इस पर सख़्ती से अमल करतीं थीं। हज़रत आईशा रज़िअल्लाहु अन्हा अपने हज का ज़िक्र करते हुए फ़रमाती हैं कि हज के दौरान क़ाफ़िले हमारे सामने से गुज़रते तो हम अपनी चादरें मुंह पर लटका लेतीं। जब वे आगे चले जाते तो चादरें मुंह से हटा लेतीं।’’ (अहमद, अबू दाऊद, इब्ने माजा)

याद रहे एहराम की हालत में औरतों को चेहरे का पर्दा न करने का हुक्म है जो कि अपने आप में स्वयं चेहरे के पर्दे का बड़ा स्पष्ट सबूत है। हज़रत आईशा रज़ि0 की रिवायत की गयी हदीस में नहनु (अर्थात हम सहाबियात रज़ि0) के शब्द इस बात पर गवाह हैं कि नबी सल्ल0 के ज़माने में चेहरे का पर्दा केवल पाक पत्नियों ही में नहीं बल्कि सारी सहाबियात में पूरी तरह प्रचलित हो चुका था।

पश्चिमी सभ्यता के मतवाले लोगों ने चेहरे के पर्दे से जान छुड़ाने के लिए क़ुरआनी आयतों और हदीसों पर बड़ी लम्बी बहसें ही हैं हमारे निकट असल मसला दलीलों का नहीं बल्कि ईमान का है अतः हम इल्मी बसह से हटकर जापानी नव मुस्लिम ‘‘खौला लुकाला’’ जो कि जापान में पैदा हुई फ्रांस में शिक्षा प्राप्त की और वहीं मुसलमान हुई। मिर्स, सऊदी अरब के दौरे ज्ञान प्राप्ती के लिए किए, उसके पर्दे के शीर्षक पर प्रकाशित उद्गारों के कुछ हिस्से उसी के शब्दों में यहां प्रस्तुत किए जा रहे हैं-

जापानी नव मुस्लिम ‘‘खौला लुकाला’’ का बयान

‘‘इस्लाम क़ुबूल करने से पहले चुस्त पैन्ट और मिनी स्कर्ट पहनती थी लेकिन जब मेरी लम्बी पोशाक ने मुझे प्रसन्न कर दिया। मुझे यूँ लगा जैसे मैं एक राजकुमारी हूँ। पहली बार मैंने पर्दे में रहने के बाद अपने आपको पाक साफ़ और सुरक्षित समझा। मुझे एहसास हुआ कि मैं अल्लाह से अधिक निकट हो गयी हूँ। मेरा पर्दा करना केवल अल्लाह की आज्ञा का पालन करना ही नहीं था बल्कि मेरे अक़ीदे का खुला प्रदर्शन भी था। पर्दा करने वाली मुसलमान औरत भीड़ भाड़ में भी पहचानी जाती हैं (कि वह मुसलमान हैं) जबकि ग़ैर मुस्लिम का अक़ीदा केवल शब्दों के द्वारा ही मालूम हो सकता है।

मिनी स्कर्ट का मतलब यह है कि यदि आपको मेरी ज़रूरत है तो मुझे ले जा सकते हैं। पर्दा साफ़ बताता है कि मैं आपके लिए प्रतिबन्ध हूँ।

गर्मी के मौसम में हर व्यक्ति गर्मी महसूस करता है लेकिन मैंने पर्दे को अपने सर पर गर्दन पर सीधी पड़ने वाली सूरज की किरणों से बचने का प्रभावी साधन पाया। पहले मुझे हैरत होती थी मुस्लिम बहने बुरक़े के अन्दर कैसे आसानी से सांस ले सकती हैं इसका दारोमदार आदत पर है जब औरत उसकी आदी हो जाती है तो कोई परेशानी नहीं रहती। पहली बार मैंने नक़ाब लगाया तो मुझे बड़ा अच्छा लगा बड़ा ही आश्चर्यजनक। ऐसा लगा कि मैं एक महत्वपूर्ण प्राणी हूँ। मुझे एक ऐसी दुनिया की मलिका होने का आभास हुआ जो अपनी छुपी ख़ुशियों से आनन्द उठाए। मेरे पास एक ख़ज़ाना था जिसके बारे में किसी को मालूम न था जिसे अजनबियों को देखने की इजाज़त न थी।

जब मैंने सर्दियों का बुरक़ा बनाया तो उसमें आंखों का बारीक नक़ाब भी लगाया। अब मेरा पर्दा पूर्ण हो गया तो इससे मुझे बड़ा आराम मिला अब मुझे भीड़ में कोई परेशानी न थी। मुझे महसूस हुआ कि मैं मर्दों के लिए अछूती सी हो गयी हूँ आंखों के पर्दे से पहले मुझे उस समय बड़ी परेशानी होती थी जब अचानक मेरी नज़र किसी मर्द की नज़रों से टकरा जाती थी। इस नए नक़ाब ने काली ऐनक की तरह मुझे अजनबियों की घूरती निगाहों से बचा दिया।’’

सम्मान योग्य जापानी नवमुस्लिम महिला के उपरोक्त विचारों में पश्चिमी सभ्यता का अनुसरण करने वालों की आपत्तियों का जवाब मौजूद है वहीं उन मुसलमान औरतों के लिए शिक्षा भी है नसीहत भी है जिन्हें दोपट्टे का बोझ उठाना भी किसी भारी बोझ से कम मालूम नहीं होता।

पायलेट शहनाज़ लुगारी का बयान

यहां हम एक पाकिस्तानी महिला शहनाज़ लुगारी का ज़िक्र करना चाहेंगे जो गुज़िश्ता सालों में पाकिस्तान में बुरक़ा पहनकर पायलेट और इन्सटरक्टर का काम करती रहीं हैं और ‘‘पाकिस्तान वीमेन्स पाइलेट एसोसिएशन’’ की चेयर पर्सन और ‘‘इन्टरनेशनल हिजाब तहरीक’’ की मुखिया भी हैं। उन्होंने एक दैनिक समाचार पत्र को इन्टरव्यू देते हुए बताया ‘‘जब मैं पांचवी कक्षा में थी तो मुझे मां-बाप ने पर्दा करना शुरू कराया। लड़कियां मेरा उपहास उड़ातीं पर मैंने पर्दे को नहीं छोड़ा। आज सारी दुनिया की लड़कियां मेरा हवाला देती हैं कि यदि शहनाज़ बुर्क़ा पहन कर जहाज़ उड़ा सकती है तो हम बुर्क़ा पहनकर कोई दूसरा काम क्यों नहीं कर सकतीं?

शहनाज़ ने आगे बताया कि उसे विभिन्न मुस्लिम देशों से बड़ी अच्छी आफ़र आ चुकी हैं कि मैं उन देशों में बुर्क़ा पहनकर हवाई जहाज़ उड़ाऊं। इस उदाहरण से यह आपत्ति भी ख़त्म हो जाती है कि पर्दा प्रगति की राह में रूकावट का कारण है।

हक़ीक़त तो यह है कि समाज में अश्लीलता, नग्नता और बुराई का कैंसर फैलाने, औरत के अन्दर जिन्सी आवेश उभारने और भावनाओं में आग लगाने का सबसे बड़ा कारण बेपर्दगी और नग्नता ही है जबकि पर्दा न केवल मुस्लिम समाज के कच्लर का महत्वपूर्ण अंश है बल्कि चोरी छुपे मुलाक़ातों से लेकर खुले आम प्रेम प्रसंगों तक हर फ़ित्ने का प्रभावी निवारण भी है लेकिन दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि समाज के आम आदमी से लेकर ख़ास लोगों में भी बेपर्दगी की बीमारी आम हो चुकी है कि पर्दादार औरतें अब ढूंडने से भी नहीं मिलतीं।
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