Islamic Marriage Part 18 : आंखें शैतान की तीरों में से एक ज़हरीला तीर


प्रिय पाठकों, अस्सलामु अलइकुम वरहमतुल्लाहि वबरकातुहू! इस पोस्ट में मानव जीवन के तीसरे दौर में जिन्सी बुराइयों और गन्दिगी से पाक व साफ़ रखने के दस आदेशों में से आदेश नं0 5 और 6 का उल्लेख किया गया है जिसमें आप लोगों को इस बात से अवगत कराया जा रहा है कि समाज में मिली जुली महफ़िलें सजाना और मर्द व औरत का एक दूसरे से नज़रें मिलाना और चोरी छुपे मिलना जुलना ये सब शैतानी हथकंडे हैं इनसे और इन जैसे तमाम बुरे और फ़ह्श कामों से हम सभी को बचना चाहिए, ऐसे कामों से अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम ने सख़्ती से मना फरमाया है। अल्लाह तआला हम सभी को शैतानी हथकडों से बचने की तौफ़ीक़ अता फ़रमाये, आमीन! Let’s start Islamic Marriage Part 18– अब आपकी खि़दमत में पेश है-

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम

अलहम्दु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन वस्सलातु वस्सलामु अला सय्यिदिल मुर्सलीन वल आक़िबतु लिल मुत्तक़ीन, अम्मा बाद!

आदेश नं0 5: ग़स्से बसर (नज़रें मिलाना)

समाज को जिन्सी आवेश और बिखराव से पाक व साफ़ रखने के लिए पर्दा एक ज़ाहिरी तदबीर है जबकि ‘‘ग़स्से बसर’’ का हुक्म एक बातिनी तदबीर है जिस पर सारे मर्द व औरतें अपने-अपने ईमान और तक़वा के अनुसार अमल करते हैं। ग़स्से बसर का मतलब यह है कि मर्द औरतों से और औरतें मर्दों से आंखें मिलाएं न लड़ाएं। एक दूसरे को ताड़ें न ताकें न झांकें। कहा जाता है आंखें शैतान की तीरों में से एक ज़हरीला तीर है। इश्क़ व मुहब्बत की दास्तानों से निगाहों के मिलाप, निगाहों में इशारों और निगाहों ही निगाहों में प़ैगाम व सन्देशों और बोलचाल के स्वाद का अन्दाज़ा हर व्यस्क मर्द और औरत को हो सकता है। निगाहों के इसी मिलाप के स्वाद को अल्लाह के रसूल सल्ल0 ने आंख का ज़िना क़रार दिया है जिससे बचने के लिए मर्दों को यह हुक्म दिया गया है-

‘‘(ऐ मुहमम्द!) मुसलमान मर्दों से कहो कि अपनी निगाहें (औरतों को देखने से) बचा कर रखें, अपनी शर्मगाहों की रक्षा करें (अर्थात शर्मगाहों को नंगा न होने दें और ज़िना न करें) यही तरीक़ा पाकीज़गी वाला हैं।’’ (सूरह नूर-30)

औरतों को ग़स्से बसर का हुक्म इन शब्दों में दिया गया है-

‘‘ऐ नबी! मोमिन औरतों से कह दो कि वे अपनी निगाहें (मर्दों को देखने से) बचा कर रखें और अपनी शर्मगाहों की रक्षा करें।’’ (सूरह नूर-30)

स्पष्ट रहे कि अचानक ग़ैर इरादा तौर पर पड़ने वाली नज़र को शरीअत ने माफ़ रखा है। दोबारा इरादे से देखना मना फ़रमाया है। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम ने हज़रत अली रज़िअल्लाहु अन्हु को नसीहत फ़रमायी

‘ऐ अली! औरत पर पहली नज़र (अर्थात ग़ैर इरादा) के बाद दूसरी नज़र न डालना क्योंकि पहली माफ़ है दूसरी नहीं।’’ (अबू दाऊद)

आदेश नं0 6: मर्द व औरत के घुलने मिलने की मनाही

औरत और मर्दों का आपस में घुलना मिलना दोनों में सुन्दरता का प्रदर्शन और एक दूसरे के प्रति आकर्षक जैसी प्राकृतिक कमज़ोरियों को जगाने का बहुत बड़ा प्रेरक है मुख्य रूप से व्यस्क आयु में दाखि़ल होने के बाद मिली जुली महफ़िलों और कार्यक्रमों में आकर्षक चेहरे नज़रों ही नज़रों में कितना सफ़र तय कर लेते हैं और फिर इसके बाद चोरी छुपे सन्देशों का आदान प्रदान, ख़ुफ़िया मुलाक़ातें, प्यार करने के वादों का क्रम शुरू हो जाता है जो घर से भागने, अपहरण, मुक़दमा बाज़ी, कोर्टमैरिज से होता हुआ बदले और हत्या तक जा पहुंचता है। यह सारी ख़राबियां बेपर्दगी और मिली जुली महफ़िलों की पैदावार हैं अतः इस्लाम समाज में अश्लीलता और बेहयायी फ़ैलाने और सोसाइटी की सुखशान्ति अस्त व्यस्त करने वाले इस प्रेरक पर जीवन के हर विभाग में प्रतिबन्ध लगाता है।

मर्द व औरत को घुलना मिलना रोकने के लिए शरीअत ने औरतों के लिए कुछ इस्लामी आदेश तक बदल डाले हैं जैसे मर्दों के लिए जमाअत से नमाज़ पढ़ना वाजिब है औरतों से यह सब निकाल दिया गया है। मर्दों के लिए मस्जिद में नमाज़ पढ़ना सर्वश्रेष्ठ है जबकि औरतों के लिए घर में नमाज़ पढ़ना सर्वश्रेष्ठ है। मर्दों के लिए जुमा की नमाज़ वाजिब है जबकि औरतों पर नहीं, मर्दों पर जिहाद वाजिब है औरतों पर नहीं। जनाज़े की नमाज़ मर्दों के लिए फ़र्ज़ (किफ़ाया) है औरतों के लिए नहीं।

इस्लाम के इन अहकाम को सामने रखकर यह अन्दाज़ा लगाना मुश्किल नहीं कि जो शरीअत समाज को जिन्सी आवेश और जिन्सी बिखराव से बचाने के लिए मिली जुली इबादतों व इबादतगाहों की इजाज़त देने के लिए तैयार नहीं वह शरीअत समाज में मिली जुली महफ़िलों, मिले जुले ड्रामों, लड़कों लड़कियों के खेलों, शिक्षा, नौकरियों और राजनीति की इजाज़त कैसे दे सकती है? विडम्बना यह है कि हमारे यहां जीवन के समस्त स्थलों में जिस दुस्साहस के साथ सरकारी व असरकारी सतह पर शरीअत के इस आदेश की अवज्ञा की जा रही है वह सारी क़ौम को अल्लाह के अज़ाब का शिकार बना देने के लिए काफ़ी है। औरत मर्द के घुलने मिलने की बुराई समाज में इतनी फैल चुकी है कि बीमारी का इलाज करने वाले स्वयं इस बीमारी का शिकार हो चुके हैं। पतन और गिरावट के इस स्थान से क़ौम की वापसी का दूर तक कोई रास्ता नज़र नहीं आता।

इस्लाम चूँकि समाज को यथा संभव जिन्सी आवेश और जिन्सी बिखराव से पाक और साफ़ रखना चाहता है। अतः जहां शरीअत अश्लीलता और बेहयायी फैलाने वाली बड़ी-बड़ी बुराइयों का निवारण करती है वहां प्रत्यक्ष में छोटी-छोटी लेकिन अत्यन्त ख़तरनाक बुराइयों पर पाबन्दी लगा कर हर प्रकार के चोर दरवाज़ों को बन्द कर देती है। इन छोटे-छोटे चोर दरवाज़ों का उल्लेख हम इंशाअल्लाह अपनी अगली पोस्ट में ज़रूर करें।
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