Umar Bin Khattab (RA) : क़ुबूले इस्लाम और मुश्किलात बर्दाश्त : Part 06


बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम

اَلحَمدُ للہِ رَبِّ العٰلَمِینَ وَالصَّلَاۃُ وَالسَّلَامُ عَلٰی رَسُولِہِ الاَمِینِ وَالعَاقِبَۃُ لِلمُتَّقِینَ، اَمَّا بَعدُ

हम्दो सना सिर्फ अल्लाह तआला के लिए हैं जो सारे जहानों का रब है और दुरूद व सलाम नाज़िल हों उसके सारे अम्बिया अलईहिमुस्सलाम पर, बिल ख़ुसूस उसके आखि़री पैग़म्बर जनाब मुहम्मद रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलईहि वसल्लम पर और उनके आल व असहाब, उम्मुल मुमिनात और अज़वाजे मुतह्हरात पर और अल्लाह तआला रहमो करम फरमाऐ हम सब पर, आमीन!

“अल्लाहुम्मा सल्लि अला मुहम्मदिउं व अला आलि मुहम्मद कमा सल्लईता अला इब्राहीमः व अला आलि इब्राहीमः इन्नकः हमीदुम्मजीद अल्लाहुम्मः बारिक अला मुहम्मदिउं व अला आलि मुहम्मद कमा बारकता अला इब्राहीमः व अला आलि इब्राहीमः इन्नमा हमीदुम्मजीद”

(3)

जब ख़ब्बाब रज़िअल्लाहु अन्हु ने ये वाक़िया सुना तो घर से निकले। वो छुपे हुए थे। और कहाः ऐ उमर! ख़ुश हो जाओ, मुझे उम्मीद है कि आपके हक़ में बरोज़ दो शम्बा रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम की ये दुआ सबक़त कर चुकी है-

‘‘ऐ अल्लाह! अबू जहल बिन हिशाम या उमर बिन ख़त्ताब दोनों में से जो तेरे नज़दीक ज़्यादा बेहतर हो उसके ज़रिए इस्लाम को ग़ालिब कर दे।’’

आप (रज़िअल्लाहु अन्हु) ने फरमायाः मुझे रसूल अल्लाह (सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम) की जगह बताओ। जब उन्होंने बात की सच्चाई का ऐतिबार कर लिया तो कहाः आप (सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम) सफा पहाड़ी के नीचे हैं। उमर रज़िअल्लाहु अन्हु ने तलवार संभाली, गर्दन में लटका लिया, फिर रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम) और आप के सहाबा की तरफ चल निकले। वहाँ पहुँच कर दरवाज़ा खटखटाया, जब उन्होंने आप (रज़िअल्लाहु अन्हु) की आवाज़ सुनी तो ख़ौफज़दा हो गये और किसी ने भी दरवाज़ा खोलने की हिम्मत न की, क्यों कि उन्हें उनकी आप (सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम) से शिद्दत अदावत मालूम होती थी। जब हमज़ा रज़िअल्लाहु अन्हु ने देखा कि लोग ख़ौफज़दा हैं तो कहाः क्या बात है? उन्होंने कहाः उमर बिन ख़त्ताब हैं। आपने कहाः उमर बिन ख़त्ताब हैं? दरवाज़ा खोल दो। अगर अल्लाह ने उसके लिए भलाई चाहा तो वो इस्लाम ले आयेगा, और अगर इसके अलावा उसकी मशीयत है तो उसका क़त्ल करना हमारे लिए आसान हो जायेगा। उन्होंने दरवाज़ा खोल दिया, हमज़ा और दूसरे आदमी ने आप (उमर) के दोनों बाज़ुओं को पकड़ लिया, यहाँ तक कि उन्हें रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम) के पास लाऐ। आप (सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम) ने फरमायाः इसे छोड़ दो। आप (सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम) उनकी तरफ बढ़े और उन्ही की चादर से उनकी कमर को पकड़ लिया, फिर तेज़ी से ख़ींचा और कहाः

‘‘ऐ ख़त्ताब के बेटे! तुम्हारा कैसे आना हुआ? अल्लाह की क़सम मैं तुम को तुम्हारे इरादे से बाज़ आने वाला नहीं पाता यहाँ तक कि तुम पर अल्लाह तआला मुसीबत डाल दे।’’

उमर (रज़िअल्लाहु अन्हु) ने आप से अर्ज़ कियाः ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम! मैं आपके पास अल्लाह, उसके रसूल, और अल्लाह की तरफ से आप जो लेकर आऐ हैं उस पर ईमान लाने आया हूँ। रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम ने बुलन्द आवाज़ से अल्लाहु अकबर कहा, इस तरह आप (सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम) के सहाबा जो दारे अरक़म में मौजूद थे जान लिया कि उमर इस्लाम ले आये। फिर सहाबा इधर-उधर चले गये। हमज़ा बिन अब्दुल मुत्तलिब के साथ जब उमर भी इस्लाम ले आये तो उन्होंने काफी क़ुव्वत महसूस की, और उन्हें लगा कि अब ये दोनों रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम) को तकलीफ नहीं पहुँचने देंगे। और दीगर सहाबा भी उन दोनों के ज़रिए अपने दुश्मन से बदला ले लेंगे।

(4)


उमर रज़िअल्लाहु अन्हु मुकम्मल ख़ुलूस व लिल्लाहियत के साथ इस्लाम में दाखि़ल हो गये, और पूरी ताक़त के साथ इस्लाम के इस्तेहकाम के लिए काम किया। आप ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम से फरमायाः ऐ अल्लाह के रसूल! क्या ज़िदा या मुर्दा दोनों हालतों में हम हक़ पर नहीं है?

आप सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम ने फरमायाः

‘‘हाँ, क़सम है उस ज़ात की जिसके हाथ में मेरी जान है तुम हक़ पर हो ख़्वाह तुम वफ़ात पा जाओ तुम बा हयात रहोगे।’

आप रज़िअल्लाहु अन्हु ने कहाः फिर छुपना क्यों? क़सम है उस ज़ात की जिसने आपको हक़ के साथ मबऊस किया, आप ज़रूर ब ज़रूर खुलेआम निकलेंगे। ऐसा लगता है कि आप सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम को ये अहसास हो गया था कि ऐलानिया दावत का वक़्त आ गया, और इस्लामी दावत इतनी ताक़तवर हो चुकी है कि ख़ुद अपना दिफा कर सके। चुनांचे आप सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम को ऐलानिया दावत की इजाज़त मिल गई, और आप सहाबा की दो सफों के दर्मियान निकले। एक में उमर थे और दूसरे में हमज़ा। वो गर्द आलूद हो गये थे। आप सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम मस्जिद में दाखि़ल हुए। जब क़ुरैश ने (साथ में उमर और हमज़ा रज़िअल्लाहु अन्हुमा) को देखा तो उन्हें इतनी ज़्यादा तकलीफ हुई कि कभी नहीं हुई थी। उस दिन आप सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम ने उमर रज़िअल्लाहु अन्हु को ‘‘फारूक़’’ का लक़ब दिया।

अल्लाह तआला ने उमर रज़िअल्लाहु अन्हु के क़ुबूले इस्लाम के ज़रिए इस्लाम और मुसलमानों को क़ुव्वत बख़्शी, आप बहुत निडर आदमी थे, इस बात की बिल्कुल परवाह न करते थे कि मेरे पीछे क्या हो रहा है। आप और हमज़ा रज़िअल्लाहु अन्हुमा के ज़रिए दीगर असहाबे रसूल (सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम) महफूज़ रहे।

उमर बिन ख़त्ताब रज़िअल्लाहु अन्हु ने मुश्रिकीने क़ुरैश को चैलेंज किया, उनसे लड़ाई किया, यहाँ तक की काबा में ख़ुद और आपके साथ दूसरे मुसलमानों ने नमाज़ पढ़ी।

उमर बिन ख़त्ताब रज़िअल्लाहु अन्हु इस्लामी दावत के दुश्मानों को हर मुमकिन तकलीफ देने के ख़्वाहिशमंद थे, आप रज़िअल्लाहु अन्हु इस सिलसिले में अपना नज़रिया इस तरह बयान करते हैंः-

‘‘मैं किसी मुसलमान को देखना नहीं चाहता था, मैं अपने मामूं अबू जहल के पास गया। वो अपनी क़ौम में मुअज़्ज़ज़ आदमी थे। उनका दरवाज़ा खटखटाया, कहाः कौन है? मैंने कहाः ख़त्ताब का बेटा। वो मेरे पास आऐ, मैंने कहाः क्या आपको मालूम है कि मैं साबी (दीन बदल देने वाला) हो चुका हूँ। उन्होंने कहाः तुम ऐसा कर गुज़रे? मैंने कहाः हाँ। उन्होंने कहाः ऐसा न करो। मैंने कहाः क्यों नहीं। उन्होंने फिर कहाः ऐसा न करो और मुझे छोड़कर अन्दर से दरवाज़ा बन्द कर लिया। मैंने कहा ये तो कोई बात न हुई।

फिर क़ुरैश के सरदारों में से दूसरे आदमी के पास गया, उसका दरवाज़ा खटखटाया। पूछा गयाः कौन? मैंने कहाः ख़त्ताब का बेटा। वो मेरे पास आये मैंने कहाः क्या आपको मालूम है कि मैं साबी (दीन बदल देने वाला) हो चुका हूँ। उन्होंने कहाः तुम ऐसा कर गुज़रे? मैंने कहाः हाँ। उन्होंने कहाः ऐसा न करो, फिर वो घर में दाखि़ल हो गये और दरवाज़ा बन्द कर लिया। मैंने कहाः ये तो कोई बात न हुई।

फिर एक आदमी ने मुझसे कहाः क्या तुम अपना इस्लाम आम करना चाहते हो? मैंने कहाः हाँ। उसने कहाः जब लोग ‘‘हिजुर’’ में बैठें तो तुम जमील बिन मामर जमही के पास जाओ, और उसके बग़ल में बैठकर उस से कहो कि क्या तुम जानते हो कि मैं साबी हो गया हूँ? चुनांचे जब लोग हिजुर में बैठे तो मैंने ऐसा ही किया, वो उठ खड़ा हुआ और तेज़ आवाज़ से ऐलान किया। ख़त्ताब का बेटा साबी (बद दीन) हो गया है। लोग मुझ पर बिफर पड़े, वो मुझको मारते और मैं उनको मारता।’’

और अब्दुल्लाह बिन उमर की रिवायत में इस तरह है कि जब उमर इस्लाम लाऐ तो क़ुरैश आपके इस्लाम को नहीं जान सके। आप रज़िअल्लाहु अन्हु ने कहाः मक्का वालों में कौन ऐसा आदमी है तो बातों को ख़ूब फैलाता हो? आपको बताया गया कि जमील बिन मामर अल-जमही। आप उसके पास गऐ और मैं आपके साथ पीछे-पीछे चल रहा था और देख रहा था कि वो क्या करते हैं। मैं उस वक़्त छोटा लड़का था और जो कुछ देखता या सुनता था उसे समझता था। आप उसके पास गये और कहाः ऐ जमील मैं मुसलमान हो गया हूँ। अल्लाह की क़सम! आपने दूसरा कलमा कहा भी न था कि वो अपनी चादर घसीटते हुए भागा। उमर उसके पीछे थे और मैं अपने वालिद के पीछे, यहाँ तक कि जब वो मस्जिद के दरवाज़े पर खड़ा हुआ तो तेज़ आवाज़ से चीख़ाः ऐ क़ुरैश के लोगो!- और वो लोग काबा के इर्द गिर्द अपनी मजलिसों में बैठे थे। बेशक उमर बिन ख़त्ताब साबी (बे दीन) हो गया। और उमर उसके पीछे चलते थे और कहते थेः इसने झूठ कहा है, बल्कि मैं इस्लाम ले आया हूँ। और गवाही दिया है कि अल्लाह के अलावा कोई हक़ीक़ी माबूद नहीं है और मुहम्मद उसके बन्दे और रसूल हैं। लोग आपकी तरफ चढ़ दौड़े। उमर ने उतबा बिन रबीया पर छलांग लगाई उसको पटख़ दिया और मारने लगे। और अपनी दोनों उंगलियों को उसकी दोनों आँखों में धंसा दिया, उतबा चीख़ने लगा, लोग इससे दूर हट गये। फिर उमर खड़े हुए, जूँ ही उनमें से कोई आपके क़रीब आने की कोशिश करता उसको कोई बुज़ुर्ग जो क़रीब होता पकड़ लेता।

इस तरह आप (रज़िअल्लाहु अन्हु) से दूर हट गये। फिर आप उन मजलिसों में भी गये जहाँ कुफ्र की हालत में इकट्ठा होते थे। वहाँ आपने ईमान का ऐलान किया। आप बराबर उनसे लड़ते रहे यहाँ तक कि सूरज उनके सरों पर आ गया (यानी दौपहर का वक़्त हो गया) उमर रज़िअल्लाहु अन्हु थक गये और बैठ गऐ। वो सब आपके सर पर आ गऐ। आपने कहाः जो तुम्हारी समझ में आये कर लो, अल्लाह की क़सम! अगर हम तीन सौ आदमी होते तो तुम उसे हमारे लिए छोड़ देते या हम उसे तुम्हारे लिए छोड़ देते।

इसी दौरान ज़र्क़ बर्क़ रेशमी क़मीस में मलबूस एक आदमी आया और कहाः क्या बात है? उन्होंने कहाः ख़त्ताब का बेटा साबी हो गया है। उसने कहाः इसे छोड़ दो, उसने अपने लिए दीन इख़्तियार किया है। तुम क्या समझते हो कि बनू अदी तुमको तुम्हारा आदमी सौंप देंगे? (उनका हुजूम) एक कपड़े के मानिन्द था जो आपसे उतर गया। मैंने आपसे मदीना में कहाः ऐ अब्बा जान वो कौन आदमी था जिसने उस दिन आपसे लोगों को हटाया था? आपने फरमायाः ऐ मेरे बेटे! वे आस बिन वाइल अल-सहमी था।
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