Umar Bin Khattab (RA) : सल्ल0 को क़त्ल का इरादा और बहन फातिमा : Part 5

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
उमर बिन ख़त्ताब रज़िअल्लाहु अन्हु (भाग – 05)
اَلحَمدُ للہِ رَبِّ العٰلَمِینَ وَالصَّلَاۃُ وَالسَّلَامُ عَلٰی رَسُولِہِ الاَمِینِ وَالعَاقِبَۃُ لِلمُتَّقِینَ، اَمَّا بَعدُ
हम्दो सना सिर्फ अल्लाह तआला के लिए हैं जो सारे जहानों का रब है और दुरूद व सलाम नाज़िल हों उसके सारे अम्बिया अलईहिमुस्सलाम पर, बिल ख़ुसूस उसके आखि़री पैग़म्बर जनाब मुहम्मद रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलईहि वसल्लम पर और उनके आल व असहाब, उम्मुल मुमिनात और अज़वाजे मुतह्हरात पर और अल्लाह तआला रहमो करम फरमाऐ हम सब पर, आमीन!
“अल्लाहुम्मा सल्लि अला मुहम्मदिउं व अला आलि मुहम्मद कमा सल्लईता अला इब्राहीमः व अला आलि इब्राहीमः इन्नकः हमीदुम्मजीद अल्लाहुम्मः बारिक अला मुहम्मदिउं व अला आलि मुहम्मद कमा बारकता अला इब्राहीमः व अला आलि इब्राहीमः इन्नमा हमीदुम्मजीद”

मेरे अज़ीज़ साथियों, अस्सलामु अलइकुम वरहमतुल्लाह वबरकातुहू!

आपकी खि़दमत में पेश है 
 (1)
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम को क़त्ल करने का इरादा 
 
क़ुरैश के लोग इकट्ठा हुए और नबी सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम के मामले में मशवरा किया, उन्होंने कहा: मुहम्मद को कौन क़त्ल करेगा?
उमर बिन ख़त्ताब ने कहा: इस काम के लिए मैं हूँ, उन्होंने कहा: ऐ उमर! तुम्हें इसके लिए मोज़ूं (मुबारक) हो।
वो सख़्त गर्मी के दिन में, ठीक दोपहर के वक़्त गर्दन में तलवार लटकाए हुए नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम  और आप के कुछ साथियों को क़त्ल करने के लिए निकले, आप (सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम) के साथियों में अबू बकर, अली और हम्ज़ा रजिअल्लाहु अन्हुम और दीगर हज़रात थे, जो आप (सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम) के साथ मक्का में रह गये थे और हब्शा हिजरत नहीं किया था। क़ुरैश के लोगों ने उमर को बताया था कि मुहम्म (सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम) और उनके साथी सफा पहाड़ी के नीचे दारे अरक़म में जमा हैं। रास्ते में नुऐम बिन अब्दुल्लाह अल-नह्हाम से मुलाक़ात हो गई, तो उन्होंने कहाः ऐ उमर कहाँ का इरादा है? मैं उस साबी (बद मज़हब) को चाहता हूँ जिसने क़ुरैश के मामले को टुकड़ों में बाँट दिया है, सके दीदावरों को बेवक़ूफ कहा, सके दीन में ऐब लगाया, और उनके माबूदों को गाली दिया, ताकि उसे क़त्ल कर दूँ।
नुऐम ने कहाः ऐ उमर! तुम कितना ग़लत रास्ता चले हो, अल्लाह की क़सम तुम को ख़ुद तुम्हारी ज़ात ने धोका दिया है, तुम इन्तिहा पसन्दी के शिकार हो गये हो और बनू अदी को बर्बाद करना चाहते हो। तुम्हारा क्या ख़्याल है कि तुम मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम) को क़त्ल कर दोगे और बनू अब्दे मनाफ तुम को ज़मीन पर आज़ाद छोड़ देंगे? इस तरह दोनों आपस में बहस करते रहे यहाँ तक कि उनकी आवाज़ें बुलन्द हो गयीं।
उमर ने कहाः मेरा गुमान है कि तू भी साबी (बद मज़हब) हो गया है। अगर ये सच है तो तुझ ही से शुरू करूँगा।
जब नुऐम ने देखा कि वो बाज़ नहीं आने वाला तो कहाः मैं तुम को ख़बर देता हूँ कि तुम्हारे ख़ानदान और तुम्हारे बहनोई के घर वाले भी मुसलमान हो चुके हैं और जिस गुमराही पर तुम हो उनको उन्होंने छोड़ दिया है।
उमर ने जब ये बात सुनी तो पूछा कि वो कौन-कौन हैं? उन्होंने कहाः तुम्हारे बहनोई व चचेरे भाई और तुम्हारी बहन।
 (2)
अपनी बहन फातिमा बिन्त ख़त्ताब के घर पहुँचना और भाई के सामने उनका साबित क़दम रहना
उमर बिन ख़त्ताब ने जब सुना कि उनकी बहन और बहनोई इस्लाम ला चुके हैं तो आप को सख़्त ग़ुस्सा आया और उनके पास पहुँचे। जब घर का दरवाज़ा खटखटाया तो उन्होंने पूछाः कौन? आप ने कहाः इब्ने ख़त्ताब! वो लोग अपने हाथों में लिए क़ुरआन पढ़ रहे थे। जब उमर के आने का अहसास हुआ तो जल्दी से उठ खड़े हुए और क़ुरआन को उसी हालत में भूल का छुपने लगे। अब आप दाखि़ल हुए और उनकी बहन ने उनको देखा तो चेहरे से बुराई को भाँप लिया, जल्दी से सहीफे को अपनी रान के नीचे छुपा लिया। आप ने कहाः अभी मुबहम और पस्त आवाज़ जो मैंने तुम्हारे पास सुनी ये कौन सी बात थी। 
दर हक़ीक़त वो लोग ‘‘सूरह ताहा’’ की तिलावत कर रहे थे। उन्होंने कहा हमारी आपसी बात के अलावा कोई चीज़ न थी। 
आप ने कहाः शायद कि तुम दोनों साबी (मद मज़हब) हो गये हो। उनके बहनोई ने कहाः तुम्हारी क्या राय है अगर हक़ तुम्हारे दीन के अलावा दूसरी जगह हो इतने में उमर (रज़िअल्लाहु अन्हु) अपने बहनोई सईद पर चढ़ दौड़े और उनकी दाढ़ी को पकड़ लिया, फिर दोनों ने उठा पटक किया। उमर रज़िअल्लाहु अन्हु सख़्त ताक़तवर थे। आप ने सईद को ज़मीन पर पटख़ दिया, और ख़ूब रौंदा, फिर उनके सीने पर बैठ गये। इतने में आपकी बहन आ गयीं और आपको अपने शौहर से दूर करने लगीं। आप ने उनको झापड़ रसीद किया जिस से उनका चेहरा ख़ून आलूद हो गया। बहन ने ग़ुस्से की हालत में कहाः क्या तू मुझे इस लिए मार रहा है कि मैं अल्लाह की वहदानियत का इक़रार करती हूँ? आपने कहाः हाँ। उन्होंने कहाः जो तुझे करना हो कर ले।
أشهد أن لا إله إلا الله وأن محمدًا رسول الله
‘‘अश हदु अन लाइलाहा इल्लल्लाह व अन्नः मुहम्मदन रसूलुल्लाह’’
‘‘मैं गवाही देती हूँ कि अल्लाह के अलावा कोई हक़ीक़ी माबूद नहीं, और मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम) अल्लाह के रसूल हैं’’
तेरी मर्ज़ी के खि़लाफ हम इस्लाम ला चुके हैं। 
जब उमर ने उनसे ये बातें सुनीं तो शर्मिंदा हुए और उनके शौहर के सीने से उतर गये और बैठ गये फिर कहाः तुम्हारे पास जो सहीफा है मुझे दो, मैं इसे पढ़ूँगा। आप की बहन ने कहाः मैं ये नहीं करूँगी, आप ने कहाः तुम्हारी बर्बादी हो! तुम्हारी बात ने मेरे दिल को मुतासिर किया है। मुझे सहीफा दो, मैं इसे देख तो लूँ, मैं तुझे यक़ीन दिलाता हूँ कि इसमें ख़्यानत नहीं करूँगा। तू इसे जहाँ चाहेगी महफ़ूज़ रख लेगी। उन्होंने कहाः तुम नापाक हो और –
لَّا  یَمَسُّہٗۤ  اِلَّا الۡمُطَہَّرُوۡنَ
‘‘इसे सिर्फ पाक लोग की छूते हैं’’ 
(सूरह वाक़िया-56, आयत नं0: 79) 
जाओ ग़ुस्ल करो या वुज़ू कर लो।
आप ग़ुस्ल करने गये, फिर अपनी बहन के पास लौट आये। उन्होंने आप को सहीफा दिया। जिस में ‘‘ताहा‘’’ और दूसरी सूरतें थीं। आप ने इसमें देखा: بِسۡمِ اللّٰہِ الرَّحۡمٰنِ الرَّحِیۡمِ ‘‘बिस्मिल्लाह हिर्रहमान निर्रहीम’’ जब अर्रहमान अर्रहीम पर पहुँचे तो काँप उठे, सहीफा हाथ से गिर गया, फिर ख़ुद को संभाला, और इसमें पढ़ा- (सूरह ताहा-20, आयत नं0: 01-08)
طٰہٰ ۚ﴿1﴾  مَاۤ   اَنۡزَلۡنَا عَلَیۡکَ  الۡقُرۡاٰنَ  لِتَشۡقٰۤی ۙ﴿2﴾ اِلَّا  تَذۡکِرَۃً   لِّمَنۡ  یَّخۡشٰی  ۙ﴿3﴾ تَنۡزِیۡلًا مِّمَّنۡ خَلَقَ الۡاَرۡضَ وَ السَّمٰوٰتِ الۡعُلٰی  ؕ﴿4﴾  اَلرَّحۡمٰنُ  عَلَی الۡعَرۡشِ  اسۡتَوٰی  ﴿5﴾ لَہٗ مَا فِی السَّمٰوٰتِ  وَ مَا فِی الۡاَرۡضِ وَ مَا بَیۡنَہُمَا وَ مَا  تَحۡتَ الثَّرٰی  ﴿6﴾ وَ اِنۡ تَجۡہَرۡ بِالۡقَوۡلِ فَاِنَّہٗ یَعۡلَمُ السِّرَّ وَ اَخۡفٰی  ﴿7﴾ اَللّٰہُ  لَاۤ  اِلٰہَ  اِلَّا ہُوَ ؕ لَہُ  الۡاَسۡمَآءُ الۡحُسۡنٰی ﴿8
‘‘ताहा! हम ने ये क़ुरआन तुझ पर इ लिए नहीं उतारा कि तू मशक़्क़त में पड़ जाये, बल्कि उसकी नसीहत के लिए जो अल्लाह से डरता है। इसका उतरना उसकी तरफ से है जिसने ज़मीन को और बुलन्द आसमान को पैदा किया। जो रहमान है अर्श पर क़ायम है। जिसकी मिलकीयत आसमानों और ज़मीन और इन दोनों के दर्मियान और (कुर्रा-ए-खाक) के नीचे हर एक चीज़ पर है। अगर तू ऊँची बात कहे तो वो तो हर एक पोशीदा बल्कि पोशीदा से पोशीदा तर चीज़ को भी बख़ूबी जानता है। वही अल्लाह है जिसके सिवा कोई माबूद नहीं। बहतरीन नाम उसी के हैं।’’ 
ये आयतें आपके सीने पर बहुत अस़र अंदाज़ हुईं। आपने कहाः क्या क़ुरैश इसी से भागते है? फिर जब अल्लाह के इस फरमान तक पहुँचे- (सूरह ताहा-20, आयत नं0: 14-16)
اِنَّنِیۡۤ  اَنَا اللّٰہُ  لَاۤ  اِلٰہَ   اِلَّاۤ   اَنَا  فَاعۡبُدۡنِیۡ ۙ وَ  اَقِمِ  الصَّلٰوۃَ   لِذِکۡرِیۡ ﴿14﴾ اِنَّ السَّاعَۃَ  اٰتِیَۃٌ  اَکَادُ اُخۡفِیۡہَا لِتُجۡزٰی کُلُّ  نَفۡسٍ ۢ  بِمَا  تَسۡعٰی ﴿15﴾ فَلَا یَصُدَّنَّکَ عَنۡہَا مَنۡ لَّا یُؤۡمِنُ بِہَا وَ اتَّبَعَ  ہَوٰىہُ  فَتَرۡدٰی ﴿16
‘‘बेशक मैं ही अल्लाह हूँ, मेरे सिवा इबादत के लायक़ और कोई नहीं। पस तू मेरी ही इबादत कर और मेरी फरियाद के लिए नमाज़ क़ायम रख। क़यामत यक़ीनन आने वाली है जिसे मैं पोशीदा रखना चाहता हूँ ताकि हर शख़्स को वो बदला दिया जाये जो उसने कोशिश की हो। पस अब इसके यक़ीन से तुझे कोई ऐसा शख़्स रोक न दे जो इस पर ईमान न रखता हो, और अपनी ख़्वाहिश के पीछे पड़ा हो, वरना तू हलाक हो जायेगा।’’ 
इसके बाद आपने कहाः जो ऐसी बात कर रहा हो उसके लिए यही मुनासिब है कि उसके साथ किसी दूसरे की इबादत न की जाये। मुझे बताओ मुहम्मद कहाँ हैं?

(शेष भाग – 06 में…)

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