Asli Ahle Sunnat Kaun? Part 08 : क्या इमाम अबू हनीफा रह0 इमामे आज़म नहीं?, असली अहले सुन्नत कौन?



Asli Ahle Sunnat Kaun Part 08 : मुहक़्क़िक़ Researcher के क़लम से ये एक हनफी और मुहम्मदी का बहुत ही दिलचस्प मुबाहिसा है इसमें Ahle Sunnat के विषय पर Interesting Discussion किया गया है और मज़हब के बारे में ऐसी बहुत सी बातों के जवाबात Ahle Sunnat के संबंध में ज़ेरे बहस आये हैं. आखि़रकार असली अहले (Ahle Sunnat) सुन्नत कौऩ है? ये सवालात अक्सर ज़ेहनों में पैदा होते रहते है। अतः हम आपको Ahle Sunnat पर आधारित सवालात के जवाबात इस पोस्ट के माध्यम से दे रहे हैंतो आइए अब जानते हैं कि असली अहले सुन्नत Ahle Sunnat कौन हैं?

(बिस्मिल्लिहिर्रहमानिर्रहमी)


इसमें ‘ह ’ से मुराद हनफी है और ‘म ’ से मुराद मुहम्मदी है।

ह – हम तो अपने इमामों को रब नहीं बनाते हम तो सिर्फ इमाम मानते हैं।

म – रब तो वो भी नहीं कहते थे लेकिन दर्जा उनको रब का देते थे। इसी लिए अल्लाह ने इसे रब बनाना क़रार दिया हे। नाम बदल देने से हक़ीक़त नहीं बदल जाती, हक़ीक़त ही रहती है नाम ख़्वाह कुछ भी रख दिया जाये, आखि़र आप इमाम क्यों बनाते हैं?

ह – दीन के मसाइल लेने के लिए।

म – यही बात तो यहूद व नसारा किया करते थे जैसा कि हज़रत अदी ने मुसलमान होकर तस्लीम किया। क्या ऐसी इमामत की इस्लाम में गुंज़ाइश है?

ह – क्या क़ुरआन मजीद में नहीं है ‘‘व ज अलना हुम अइम्मतन यहदूना बि अम रिना’’। (सूरह अम्बिया-21, आयत-73)

म – ये तो अम्बिया के बारे में है, नबी तो इमाम हो सकता है बल्कि इमाम होता है क्यों कि उसे अल्लाह ने इमाम बनाया है नबी के सिवा कोई इमाम नहीं हो सकता।

ह – आप कहते हैं नबी के सिवा इमाम नहीं हो सकता हालांकि इस्लाम में बहुत बड़े बड़े अइम्मा-ए-दीन गुज़रे हैं।

म – अइम्मा-ए-दीन से मुराद ये है कि वो दीनी उलूम के बड़े आलिम थे, न कि वो क़ाबिले इताअत थे जिन को दीन के मसाइल बनाने और दीनी पैरवी कराने का हक़ हो, कि उनके नाम पर तक़लीदी मज़हब चलाये जाऐं इस क़िस्म की इमामत का तसव्वुर इस्लाम में क़तई नहीं है सब से पहले ये अक़ीदा शीया ने गढ़ा, अहले सुन्नत ने ये अक़ीदा उनसे लिया शीया ने ये अक़ीदा अक़ीदा-ए-रिसालत को कमज़ोर करने के लिए गढ़ा था। उनके हां पैग़म्बर और इमाम में कोई फ़र्क़ नहीं दोनों एक ही चश्मे और एक ही डोल से पानी लेने वाले, जैसा कि नह्जुल बलाग़ा में है ‘‘मुक़ल्लिद ख़्वाह सुन्नी हो या शीया इमामत का तसव्वुर तक़रीबन बराबर है’’।

ह – शीया तो इमाम को मासूम कहते हैं, हम अपने इमाम को मासूम तो नहीं कहते।

म – ज़ुबान से बेशक न कहें लेकिन समझते मासूम ही हैं इसी लिए उनके नाम पर मज़हब बनाकर हनफी कहलाते है। इसी लिए हम कहते हैं कि इस्लाम में सिवाए पैग़म्बर के कोई इमाम नहीं हो सकता, चाहे किसी को इमामे आज़म बनाया जाऐ।

ह – क्या इमाम अबू हनीफा रह0 इमामे आज़म नहीं?

म – इमामे आज़म अगर कोई हो तो वो हुज़ूर ही हो सकते हैं और कोई कैसे हो सकता है?

ह – हम जो इमाम अबू हनीफा को इमामे आज़म कहते हैं तो वो और अइम्मा के ऐतिबार से न कि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम के मुक़ाबले में।

म – और अइम्मा के ऐतिबार से कैसे?

ह – वो बाक़ी इमामों में सबसे बड़े हैं।

म –  कैसे उम्र में बड़े हैं या इल्म में।

ह – इल्म में।

म – इल्म में कैसे? आप ने ये कैसे कह अंदाज़ा लगा लिया, किताब उनकी कोई नहीं, बाक़ी हर इमाम की किताब है सहः सित्ता में तक़रीबन रिवायत उन की कोई नहीं बाक़ी इअम्मा की रिवायात के अलावा मुस्तक़िल अपनी सनद से हदीस की किताबें हैं, शागिर्द भी बिला वास्ता इतने नहीं जितने और अइम्मा के हैं आखि़र आज़म किस ऐतिबार से।

ह – वो सबसे पहले इमाम हैं इस लिए इमामे आज़म हैं।

म – उन से पहले जो उनके उस्ताद और दीगर अइम्मा थे मसलन हज़रत अता, हज़रत इब्राहीम नख़ई, हज़रत हसन बसरी, हज़रत सईद बिन जुबैर, सईद बिन मुसैइब, इमाम ज़ोहरी, इमाम शाबी वग़ैरा फिर वो इमामे आज़म क्यों न हों। अगर तक़द्दुमे ताअख़्ख़ुर ही मैयार है तो फिर जो इमाम अबू हनीफा रहमतुल्लाह अलैह से पहले हैं उनको इमामे आज़म होना चाहिए।

ह – ये तो मुझे मालूम नहीं कि उनसे पहले कौन है, बहर कैफ अक्सरियत मुसलमानों की उन्हें ही इमामे आज़म कहती है।

म – यही तो हम कहते हैं कि मुक़ल्लिदों का हाल भेड़ियों जैसा है जहाँ एक गिरती है वहीं सारी गिर जाती हैं एक अगर गुमराही के गढ़े में गिरे तो सारे मुक़ल्लिद उसी गढ़े में जो गिरते हैं आँखें खोलकर कोई नहीं देखता अब आप अंदाज़ा करें मुक़ल्लिदों के इल्म व अक़्ल का। अव्वल तो इस्लाम में सिवाए नबी के इमाम होता नहीं जिसकी पैरवी हो और जिसके नाम पर मज़हब बने मुक़ल्लिदों ने शीया की रेस में अपना इमाम बना लिया फिर दूसरे मुक़ल्लिदों की ज़िद में अपने इमाम को इमामे आज़म बना लिया, हालांकि इमामे आज़म सिवाए रसूले मक़बूल के और कोई नहीं हो सकता।

ह – क्या इमाम अबू हनीफा रह0 को इमामे आज़म कहना ना जायज़ है?

म – बिल्कुल अक़्लन भी ना जायज़ क्योंकि वो औरों से किसी सूरत में भी आज़म नहीं, शरअन भी ना जायज़ क्योंकि इस क़िस्म के लफ़्ज़ अल्लाह को पसन्द नहीं चुनांचे बुख़ारी मुस्लिम कुतुबे अहादीस में है ‘‘ख़ब्बीस तरीन शख़्स जिस पर अल्लाह तआला क़यामत के दिन सख़्त नाराज़ होगा वो शख़्स है जो शहंशाह कहलाऐ’’ ज़ाहिर है कि जो भी दुनिया के बादशाहों के लिहाज़ से ही शहंशाह कहलाता है अल्लाह के मुक़ाबले में तो कोई भी शहंशाह नहीं बनता, लेकिन फिर भी अल्लाह इस नाम पर कितना नाराज़ है इसी पर इमामे आज़म को क़यास कर लें, अफसोस तो ये है कि जब आपने अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम) को इमाम बनाया है तो इमाम अबू हनीफा (रहमतुल्लाह अलैह) का क़िलादा (पट्टा) क्यों डालते हैं।  

वस्सलामु अलइकुम व रह म तुल्लाहि व ब र कातुहू!

Post Navi

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ