The Virtue of Zul Hajj : ज़ुल-हिज्जा के दस दिनों की फज़ीलत : Ten Days

The Virtue of Zul Hajj : इस लेख में ज़ुल-हिज्जा के दस दिनों की फज़ीलत (The virtue of the ten days of the Zul Hijjah) के सम्बंध में जानकारी दी गई है।

(बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम)

(3) وَالۡفَجۡرِ(1)  وَلَیَالٍ عَشۡرٍ(2) وَّ الشَّفۡعِ وَ الۡوَتۡرِ

वल फज्र। वलायालिन अश्र। वश शफ्यी वल वत्र

(सूरहः फज्र: 1-2-3)

‘‘क़सम है फज्र और दस रातों की और जुफ्त और ताक़ की।’’

    सूरहः फज्र की इन इब्तिदाई तीन आयात की तफसीर मुसनद अहमद में यूँ मज़कूर है, चुनांचेः हज़रत जाबिर बिन अब्दुल्लाह रज़िअल्लाहु अन्हु से रिवायत है, फरमाते हैंः 

    “दस” से मुराद ज़ुल-हिज्जा के पहले दस दिनों की रातें हैं, और “ताक़” से मुराद यौमे अरफा है, और “जुफ्त” से मुराद नहर और क़ुर्बानी का दिन है, क्योंकि ये अमल दसवां दिन अंजाम पाता है।’’

(मुसनद अहमद 3/327, मुस्तदरक लिल-हाकिम 4/320, तफसीर इब्ने जरीर 15/169)

और अल्लाह तआला ने फरमायाः 

وَ اذۡکُرُوا اللّٰہَ فِیۡۤ  اَیَّامٍ  مَّعۡدُوۡدٰتٍ

वज़ कुरूल्लाहः फी अय्यामिन मअदूदातिन 

(सूरहः बक़रा: 203)

‘‘यानी अल्लाह तआला की याद गिनती के चन्द दिनों तक करते रहो।’’

    तफसीर इब्ने कसीर में है कि ‘‘अय्यामिन मअदूदात’’ से मुराद अय्यामे तश्रीक़ और ‘‘अय्यामिन मअलूमात’’ से मुराद ज़ुल हिज्जा के दस दिन हैं, कि इन दिनों में अल्लाह तआला को कसरत से याद करते रहो।

    बुख़ारी शरीफ में है कि हज़रत इब्ने उमर रज़िअल्लाहु अन्हु मिना में चलते फिरते कभी कभी तकबीर कहते रहते। 

और नमाज़ों के बाद भी और नवीं तारीख़ से तेरहवीं तारीख़ तक नमाज़ों के बाद तकबीरें कहना सुन्नत है।

तकबीर इन अल्फाज़ से अदा करना चाहिएः

(1)

الله اكبر، الله اكبر، الله اكبركبيرا

‘‘अल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर कबीरा’’

(फत्हुल बारी शरह अल-बुख़ारी 2/462, सुनन अल-कुब्रा लिल-बइहक़ी: 3/316) सहीह

(2)

الله أكبر، الله أكبر، لا إله إلا الله، والله أكبر، الله أكبر ولله الحمد

‘‘अल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर, ला इलाहा इल्लल्लाहु, वल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर, व लिल्लाहिल हम्दु’’

(मुसन्निफ इब्ने अबी शैबा: 2/167, अवराउल ग़लील: 3/125 तहत रक़्मुल हदीस 654) सहीह

    इमाम इब्ने अबी शैबा रहमतुल्लाह अलैह ने अकरमा रहमतुल्लाह अलैह से रिवायत नक़ल की है कि उन्होंने अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़िअल्लाहु अन्हु के बारे में बयान किया है कि हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़िअल्लाहु अन्हु इस तरह तकबीरात पढ़ा करते थेः

(3)

الله أكبر كبيرا، الله أكبر كبيرا، الله اكبر و أجل، الله أكبر ولله الحمد

‘‘अल्लाहु अकबर कबीरा, अल्लाहु अकबर कबीरा, अल्लाहु अकबर व अजल्लु, अल्लाहु अकबर, व लिल्लाहिल हम्दु’’

(मुसन्नफ लि इब्ने अबी शैबा 2/168, व रवाहुल महली 2/143/1, अवराउल ग़लील 3/126, तहत रक़्मुल हदीस 654) सहीह

(4)

الله أكبر، الله أكبر، الله أكبر، لا إله إلا الله، وحده لا شريك له له الملك وله الحمد وهو على كل شيء قدير

‘‘अल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर, ला इलाहा इल्लल्लाहु वह्दहु ला शरीका लहु लहुल मुल्कु वलहुल हम्दु व हुवा अला कुल्लि शइ इन क़दीर’’

(अल-अवसत लि इब्नुल मुंज़िर 2170)

मज़कूरा इन तकबीरात को मैदान-ए-ईद और ईदगाह जाते और आते वक़्त पढ़ना चाहिए।

    अहादीसे शरीफा में भी इन दस दिनों की बहुत बड़ी फज़ीलत बयान की गई है। चुनांचे हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़िअल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम ने फरमायाः

‘‘अल्लाह तआला को नेक अमर जिस क़दर अशरह ज़ुल-हिज्जा में महबूब हैं उतना दूसरे दिनों में नहीं है, तो सहाबा-ए-किराम रज़िअल्लाहु अन्हुम ने अर्ज़ किया, ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम! जिहाद फी सबीलिल्ला भी नहीं है? तो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम ने फरमायाः हाँ, जिहाद फी सबील्लिाह भी नहीं है, मगर वो मुजाहिद जो जान व माल लेकर अल्लाह के रास्ते में निकला और शहीद हो गया वहां से कोई चीज़ वापस नहीं आयी वो मुजाहिद अल्बत्ता सबसे अफज़ल है।’’

(बुख़ारी 916,969, जामअ तिर्मिज़ी 688, सुनन अबी दाऊद 2082, सुनन इब्ने माजा 1717, मुसनद अहमद 1867, 2972, 3059, सुनन दार्मी 1708)

    अशरह ज़ुल-हिज्जा का चाँद हो जाने के बाद बालो और नाख़ूनों का तराशना मुस्तहब है। उम्मुल मुमिनीन हज़रत उम्मे सलमा रज़िअल्लाहु अन्हा से मर्वी है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम ने फरमायाः 

‘‘जब तुम ज़ुल-हिज्जा का चाँद देख लेने के बाद क़ुर्बानी करने का इरादा करते हो, तो अपने बाल और नाख़ून न तरशवाओ।

(सहीह मुस्लिम: 3653, 3654, 3655, 3656, जामेअ तिर्मिज़ी: 1443, सुनन निसाई: 4285, 4286, 4288, सुनन अबू दाऊद: 2409, सुनन इब्ने माजा: 3140, 3141, मुसनद अहमद: 2529, 25369, 25436)

    बल्कि नमाज़ पढ़ लेने और क़ुर्बानी के बाद बालों को कटवाले और नाख़ून तरशवाले और जो क़ुर्बानी नहीं कर सकता वो भी चाँद देखने के बाद बाल न कटवाऐ, नमाज़े ईद के बाद बालों को कटवाने और नाख़ून तराशने से उसे भी क़ुर्बानी का सवाब मिलेगा। (इंशा अल्लाह)

चुनांचे हज़रत अब्दुल्लाह बिन अम्र बिन आस रज़िअल्लाहु अन्हु रिवायत करते हैं कि एक आदमी ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम से अर्ज़ कियाः ‘‘या रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम! ये फरमाइये कि अगर मैं क़ुर्बानी का जानवर न पाऊँ, किसी शख़्स ने दूध पीने के लिए बकरी दे रखी है जिसको वापस करना पड़ेगा, तो मैं उसकी क़ुर्बानी कर डालूँ। आप सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम ने फरमायाः नहीं, बल्कि तुम नमाज़ के बाद अपने बालों और नाख़ूनों और मूझों को तरशवा लो, और ज़ेरेनाफ के बालों को साफ कर डालो, तुम्हें पूरी क़ुर्बानी का सवाब मिलेगा।’’

(सुनन अबू दाऊद: 2789, सुनन निसाई: 4289, 4371, इब्ने हिब्बान: 1043, सुनन दाराक़ुत्नी 4/282, मुस्तदरक लिल-हाकिम: 4/223, सुनन बइहक़ी: 9/263, मुसनद अहमद: 2/169(430,4371) हसन।

    बहर हाल इसी तरह से नवीं तारीख़ की बड़ी फज़ीलत है इस दिन रोज़ा रखने से दो साल के रोज़ों का सवाब मिलता है। चुनांचे हज़रत अबी क़तादा रज़िअल्लाहु अन्हु से मर्वी है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम से अरफा यानी नवीं तारीख़ के रोज़ों की बाबत पूछा गया, आप सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम ने फरमायाः 

يكفرا السنة الماضية والباقية

‘‘युकफ्फिरूस स‘न‘तल माज़ियतः वल बा़िकयतः’’

‘‘दो साल के गुनाह माफ हो जाते हैं, एक गुज़िश्ता साल के और एक आइंदा साल के।’’

(सहीह मुस्लिम: 1976, 1977, सुनन अबू दाऊद: 2071, मुसनद अहमद: 21572)

    मगर चूँकि एक रोज़ा रखना सुन्नत के खि़लाफ है इस लिए इसके साथ आठवीं तारीख़ का रोज़ा भी रख लेना चाहिए।

    बहर हाल ज़ुल-हिज्जा के दस दिनों को ग़नीमत समझकर नेकी के कामों में ज़्यादा से ज़्यादा हिस्सा लेना चाहिए, हमेशा ऐसे ख़ैर व बरकत के दिन नहीं मिला करते है। 

    अल्लाह तआला हम सभी को नेक आमाल की तौफीक़ अता फरमाऐ और हमारी नेकियों को क़ुबूल फरमाकर दोनों जहानों की सुखऱ्रूयी इनायत फरमा। (आमीन सुम्मा आमीन!)

    रब्बना तक़ब्बल मिन्नः इन्नका अन्तस समीउल अलीम, व आखि़रु दअवाना अनिल हम्दु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन, वस्सलातु वस्सलामु अला सय्यिदिल मुर्सलीन मुहम्मदिन व अला आलिही व अस्हाबिही अज-मईन।

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