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सितारे फ़लक़ के बुझे जा रहे हैं

हमारे अक़ाबिर उठे जा रहे हैं

कुछ इस तरह टूटा है तस्बीह का धागा 

के सारे ही मोती गिरे जा रहे हैं

मदारिस हमारे हुए बंद ऐसे

के ज़ी इल्म रूठे हुए जा रहे हैं

ये नबियों के वारिस, ज़मीं का ये सब्ज़ा

ये धरती को वीरां किये जा रहे हैं

वो जिनसे थीं रौशन फ़िज़ाएं वतन की

दिये रफ्ता रफ्ता बुझे जा रहे हैं

उफुक़ पार क्या इल्मी महफ़िल है कोई?

सभी अहले दानिश चले जा रहे हैं

सितारे फ़लक़ के बुझे जा रहे हैं

हमारे अक़ाबिर उठे जा रहे हैं

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