Special Tips : क़ुर्बानी के बारे में बहुत ख़ास नसीहतें : About Qurbani



Special Tips : मोहतरम हज़रात, अस्सलामु अलइकुम वरहमतुल्लाह व ब रकातुहू! इस मुख़्तसर व जामे मज़मून में क़ुर्बानी के चन्द़ अहम अहकाम व मसाइल दलीलों से साथ आपकी खि़दमत में पेश कर रहा हूँ। क़ुर्बानी से पहले इन बातों Special Tips का जानना आपके लिए और सभी मुसलमानों के लिए निहायत ही ज़रूरी है। इसे Special Tips को आप ध्यानपूर्वक पढ़ें और इस Special Tips पोस्ट को शेयर करके दूसरों को भी बताऐं ताकि उनको भी क़ुर्बानी के अहकाम व मसाइल की सही जानकारी हो सके। अल्लाह तआला हम सभी के इस अमल को सद्क़ा-ए-जारिया बनाये। आमीन! अब पेश हैै – Special Tips : क़ुर्बानी के बारे में बहुत ख़ास नसीहतें : About Qurbani – Very special tips about Qurbani

(बिस्मिल्लिाहिर्रहमानिर्रहीम)

क़ुर्बानी के बारे में बहुत ख़ास नसीहतें इनका जानना आपके लिए निहायत ज़रूरी है:

क़ुर्बानी के अहकाम व मसाइल बा दलील (लेख: मुहद्दिुल अस्र हाफिज़ ज़ुबैर अली ज़ई रहमतुल्लाह)

क़ुर्बानी सुन्नते मुअक्कदा है

रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम ने फरमाया : आज ईदुल अज़्हा के दिन हम सबसे पहले नमाज़ पढ़ेंगे, फिर वापस आकर क़ुर्बानी करेंगे। (इंशा अल्लाह) जिसने ऐसा किया तो हमारी सुन्नत को पा लिया और जिसने (नमाज़ से) पहले ज़िबह कर लिया तो उसकी क़ुर्बानी नहीं है। (सहीह बुख़ारी: 5545) बाज़ उलमा के नज़दीक क़ुर्बानी वाजिब है, लेकिन इस पर उनके पास कोई सरीह दलील नहीं, जबकि सहीह मुस्लिम की हदीस:1977, तरक़ीम दारूस्सलाम: 5119 से क़ुर्बानी का अद्मे वुजूब साबित होता है, नीज़ सय्यदना अबू बकर व सय्यदना उमर रज़िअल्लाहु अन्हुमा दोनों के नज़दीक क़ुर्बानी वाजिब नहीं है। देखिए (मारिफतुल सुनन वल आसार 7/198 व सनद हसन)

  1. इमाम मालिक रहमतुल्लाह अलैह ने फरमाया:

क़ुर्बानी सुन्नत है वाजिब नहीं है और जो शख़्स इसकी ताक़त रखे तो मुझे पसन्द नहीं है कि वो उसे तर्क कर दे। (मुअत्ता इमाम मालिक 2/487)

  1. इमाम शाफई रहमतुल्ला अलैह ने फरमाया:

क़ुर्बानी करना सुन्न्त है और मैं इसे तर्क करना पसन्द नहीं करता।(किताबुल उम ज 1 स 221) सबित हुआ कि ईदुल अज़्हा के मौक़े पर नमाज़े ईद के बाद क़ुर्बानी करना सुन्नते मुअक्कदा है और शरई उज़्र के बग़ैर क़ुर्बानी न करना नापसन्दीदा है।  बाज़ मुन्करीने हदीस ने बहुत से अक़ायद व मसाइले ज़रूीरिया के इन्कार के साथ क़ुर्बानी के सुन्नत  होने का भी इन्कार कर दिया है, हालांकि क़ुर्बानी का सबूत अहादीसे सहीहा मतावतिरा बल्कि क़ुरआने मजीद में भी मौजूद है। (मसलन देखिए सूरह साफ्फात: 107, सूरह हज: 34, सूरह अन्आम: 162)  

क़ुर्बानी का इस्तिलाही मफहूम

ईदुल अज़्हा की नमाज़ के बाद पहले दिन या क़ुर्बानी के दिनों में बहीमतिल अन्आम (मसलन बकरी, भेड़, गाय और ऊँट) में से किसी जानवर को शरई तरीक़े पर बतौरे क़ुर्बानी व तक़र्रूबे इलाही ज़िबह करना क़ुर्बानी कहलाता है। तम्बीया: शहर हो या गांव हो, नमाज़े ईद से पहले क़ुर्बानी करना जायज़ नहीं है।

क़ुर्बानी करने वाले के लिए अहम शरायत

(1) क़ुर्बानी करने वाले का सहीहुल अक़ीदा मुसलमान व मुत्तबे किताब व सुन्नत होना, शिर्क, कुफ्र व बिदअत से पाक होना ज़रूरी है और जिसका अक़ीदा ख़राब हो, उस का कोई अमल क़ाबिले क़ुबूल नहीं है। क़ुरआन, हदीस और इज्मा को मद्दे नज़र रखते हुए हर वक़्त अपने ईमान व अमल का ख़ास ख़्याल रखें।   (2) रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम ने फरमाया: जब तुम ज़ुल-हिज्जा का चाँद देखो और तुम में से कोई शख़्स क़ुर्बानी का इरादा करे तो उसे अपने बाल और नाख़ून तराशने से रूक जाना चाहिए। (सहीह मुस्लिम: 1977) इस हदीस से साबित हुआ कि क़ुर्बानी करने वाले शख़्स को यकुम ज़ुल-हिज्जा से लेकर क़ुर्बानी करने तक अपने बाल नहीं काटने चाहिए और नाख़ून नहीं तराशने चाहिए। अगर किसी का नाख़ून टूट जाये या ऐसी ख़राबी हो जाये कि नाख़ून तराशना ज़रूरी हो तो फिर ऐसा करना जायज़ है जैसा कि इज्मा से साबित है।   (3) एक हदीस में आया है कि एक शख़्स ने नबी करीम सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम से पूछाः अगर मुझे सिर्फ मादा जानवर (दूध देने वाला) क़ुर्बानी के लिए मिले तो क्या मैं उसकी क़ुर्बानी कर लूँ? आप सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम ने फरमायाः नहीं तुम नाख़ून और बाल काट लो, मूँझेें तराश लो और शर्मगाह के बाल मूँढ लो तो अल्लाह तआला के हां ये तुम्हारी पूरी क़ुर्बानी है। (सुनन अबी दाऊद: 2789 व सनद हसन) इस हदीस से मालूम हुआ कि जो शख़्स क़ुर्बानी करने की ताक़त न रखता हो, वो अगर यकुम ज़ुल-हिज्जा से लेकर नमाज़े ईद तक बाल न कटवाये और नाख़ून न तराशे तो उसे पूरी क़ुर्बानी का सवाब मिलता है। सुब्हान अल्लाह!

क़ुर्बानी का मक़सद

क़ुर्बानी का मक़सद अल्लाह तआला को राज़ी करना और सुन्न्ते रसूल सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम की सुन्न्ते मुबारक-ए-मुतह्हरा पर ख़ुलूसे नियम से अमल करना है और इंशा अल्लाह इसका बहुत बड़ा सवाब मिलेगा।

क़ुर्बानी के जानवर के शरायत

किस क़िस्म के जानवर की क़ुर्बानी करनी चाहिए और उसकी क्या शरायत हैं? मुख़्तलिफ फिक्ऱों और नम्बरों की सूरत में इसकी तफसील पेशे खि़दमत हैः   (1) क़ुर्बानी सिर्फ मुसन्ना यानी दोंदे जानवर की ही जायज़ है और अगर तंगी की वजह से दोंदा न मिल सके तो फिर भेड़ (दुम्बा) का जज़्आ (एक साल के दुम्बे) की क़ुर्बानी जायज़ है। देखिए (सहीह मुस्लिम: 1963)  तंगी से मुराद सिर्फ ये है कि मार्केट और मंडी में पूरी कोशिश और तलाश के बावजूद दोंदा जानवर न मिल सके।    (2) हदीस से साबित है कि चार जानवरों के क़ुर्बानी जायज़ नहीं है।  

  1. : वाज़ेह तौर पर काना जानवर
  2. : वाज़ेह तौर पर बीमार 
  3. : वाजेह तौर पर लंगड़ा
  4. : और बहुत ज़्यादा कमज़ोर जो कि हड्डियों का ढांचा हो

देखिए (सुनन अबी दाऊद: 2802 व सनद सहीह   (3) सय्यदना अली रज़िअल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम ने सींग कटे जानवर की क़ुर्बानी से मना फरमाया है।

  • इमाम सईद बिन अल-मुसय्यब रहमतुल्लाह अलैह ने फरमाया: ऐसा जानवर जिसका आधा सींग या इससे ज़्यादा टूटा हुआ हो। (सुनन तिर्मिज़ी: 1504 व कहाः हसन सहीह)
  • सय्यदना अली रज़िअल्लाहु अन्हु ही से दूसरी रिवायत में आया है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम ने हमें हुक्म दियाः क़ुर्बानी के जानवर में आँख और कान देखें। (सुनन तिर्मिज़ी: 1503 व कहाः हसन सहीह)
  • इस पर इज्मा है कि अंधे जानवर की क़ुर्बानी जायज़ नहीं है। (अल-मजमूअ शरह अल-मुहज़्ज़ब 8/404)
  • इमाम ख़त्ताबी रहमतुल्लाह अलैह (मुतवफ्फा 388 हि0) ने फरमाया: इस हदीस (जो फिक्ऱा नं0 2 में गुज़र चुकी है) में ये दलील है कि क़ुर्बानी वाले जानवर में मामूली नुक़्स माफ है। (मआलिम अल-सुनन 2/199)
  • उबैद बिन फीरोज़ (ताबई) ने सय्यदना बरा बिन आज़िब रज़िअल्लाहु अन्हु (सहाबी) से कहा: मुझे ऐसा जानवर भी नापसन्द है जिसके दांत में नुक़्स हो। उन्होंने फरमाया: तुम्हें जो चीज़ बुरी लगे उसे छोड़ दो और दूसरों पर उसे हराम न करो। (सुनन अबी दाऊद: 2803 व सनद सहीह)

तम्बीया: अगर किसी जानवर के सींग पर मामूल रगड़ हो या उसके ऊपर वाली टोपी टूट गयी हो तो इमाम सईद बिन अल-मुसैइब रहमतुल्लाह अलैह की मज़कूरा रिवायत की रू से उसकी क़ुर्बानी जायज़ है। (नीज़ देखिए मुतफर्रिक़ मसाइल फिक्ऱा नं0 8)  

क़ुर्बानी की खालें

– क़ुर्बानी की खालें मिस्कीन लोगों में तक़सीम कर दें, जैसा कि सय्यदना अली रज़िअल्लाहु अन्हु वाली हदीस से साबित है। देखिए (सहीह मुस्लिम: 1317)   – ज़िबह करने वाले या क़स्साब को उजरत में क़ुर्बानी की खालें देना जायज़ नहीं है और इसी तरह उजरत में क़ुर्बानी का गोश्त देना भी जायज़ नहीं है बल्कि हराम है।

गोश्त की तक़सीम

क़ुर्बानी का सारा गोश्त ख़ुद खाना या ज़ख़ीरा कर लेना जायज़ है और इसके तीन हिस्से करके एक हिस्सा अपने लिए, एक ग़रीब मिस्कीन लोगों के लिए और एक रिश्तेदारों दोस्तों के लिए मख़सूस करना भी जायज़ है, बल्कि ये बेहतर है। (नीज़ देखिए सूरत अल-हज की आयत नं0 28, 36)   

क़ुर्बानी के हिस्से और शराकत

बकरी और दुम्बे भेड़ का सिर्फ एक हिस्सा होता है, लेकिन गाय, बैल और ऊँट, ऊँटनी में सात हिस्से सहीह सदीस से साबित हैं और एक हसन रिवायत से ऊँट, ऊँटनी में दस हिस्सों का भी सबूत मिलता है। (दलील के लिए देखिए सहीह मुस्लिम: 1318, सुनन तिर्मिज़ी: 1501 व कहाः हसन ग़रीब) तम्बीयाः सिर्फ सहीहुल अक़ीदा मुसलमानों के साथ मिलकर सात या दस हिस्सों में शिराकत हो सकती है और अहले बिदअत, गुमराह व भटके हुए लोगों के साथ मिलकर कभी क़ुर्बानी नहीं करनी चाहिए और न ऐसे गुमराहों के किसी अमल का कोई वज़न है, बल्कि ऐसे लोगों के तमाम आमाल धूल बना कर हवा में उड़ा दिये जायेंगे। इंशा अल्लाह!

मुतफर्रिक़ मसाइल

आखि़र में क़ुर्बानी के बारे में कई मुतफर्रिक़ मसाइल फिक़रात की सूरत में पेशे खि़दमत हैंः  

(1) जानवर को ज़िबह करते वक़्त तस्मीया व तकबीर (बिस्मिल्लाह वल्लाहु अकबर) कहना सुन्नत से साबित है। (देखिए सहीह मुसिलम: 1966, सहीह बुख़ारी: 5564)  (सिर्फ बिस्मिल्लाह पढ़ना भी साबित है। देखिए सहीह मुस्लिम: 1967)  

(2) पूरे घर की तरफ से एक क़ुर्बानी भी काफी है। (सुनन अल-तिर्मिज़ी: 1505, हसन सहीह) और घर के दूसरे अफराद भी क़ुर्बानी कर सकते हैं।  

(3) मय्यत की तरफ से क़ुर्बानी करना साबित नहीं है और इस बारे में जो रिवायात आयी है, उसकी सनद शरीक क़ाज़ी व हकम बिन उतैबा मुदल्लिसीन की अन से रिवायत और अबुल हसन के मजहूल होने की वजह से ज़ईफ है, लेकिन मय्यत की तरफ से सद्क़ा करना जायज़ है, लिहाज़ा अगर कोई शख़्स रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम या किसी मय्यत की तरफ से क़ुर्बानी करे तो उसका सारा गोश्त और खाल वगै़रह सद्क़ा कर दे।  

(4) क़ुर्बानी का जानवर पहले से ख़रीद कर उसे खिला पिला कर मोटा करना जायज़ है। (देखिए तग़लीक़ अल-तालीक़ 5/6 व सनद सहीह)  

(5) ईदगाह में क़ुर्बानी करना भी जायज़ है और ईदगाह के बाहर मसलन अपने घर में या घर से बाहर वग़ैरह में क़ुर्बानी करना भी जायज़ है। देखिए (सहीह बुख़ारी: 5552, 5551)  

(6) क़ुर्बानी का जानवर ख़ुद ज़िबह करना सुन्नत है और दूसरे से ज़िबह करवाना भी जायज़ है। देखिए (मुअत्ता इमाम मालिक, रिवायत इब्नुल क़ासिम बतहक़ीक़ी: 145)  

(7) अगर मसनून या निफली क़ुर्बानी का जानवर गुम हो जाये तो जानवर के मालिक की मर्ज़ी है कि दूसरा जानवर लेकर क़ुर्बानी करे या क़ुर्बानी न करे। देखिए (सुनन अल-कुब्रा 9/289 व सनद सहीह)  

(8) सय्यदना अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर रज़िअल्लाहु अन्हु ने क़ुर्बानी के जानवरों में एक कानी ऊँटनी देखी तो फरमायाः अगर ये ख़रीदने के बाद कानी हुई है तो इसकी क़ुर्बानी कर लो और आगर ख़रीदने से पहले ये कानी थी तो इसे बदल कर दूसरी ऊँटनी की क़ुर्बानी करो। (सुनन अल-कुब्रा लिल-बइहक़ी 9/289 व सनद सहीह) सबित हुआ कि अगर क़ुर्बानी का जानवर ख़रीद लिया जाये और उसके बाद उस में कोई नुक़्स वाक़ै हो जाये तो ऐसे जानवर की क़ुर्बानी जायज़ है।  

(9) अगर क़ुर्बानी का इरादा रखने वाला कोई शख़्स नाख़ून या बाल कटवा दे और फिर क़ुर्बानी करे तो उसकी क़ुर्बानी हो जायेगी, लेकिन ये शख़्स गुनाहगार होगा। (अल-शरह अल-मुम्ती 3/430)  

(10) अगर किसी दूसरे की तरफ से क़ुर्बानी की जाये तो ज़िबह करते वक़्त उस आदमी का नाम लेते हुए ये पढ़ना चाहिए कि ये क़ुर्बानी उसकी तरफ से है। तम्बीया: इस सिलसिले में तफसीली दलाइल व मसाइल के लिए देखिए किताब: तहक़ीक़ी मक़ालात  

(11) ख़स्सी जानवर की क़ुर्बानी जायज़ है और इसके नाजायज़ होने की कोई सहीह दलील नहीं है।  

(12) अगर किसी आदमी को अल्लाह ने माल व दौलत अता किया हुआ हो तो वो कई क़ुर्बानियां कर सकता है और ज़ाहिर है कि उसके इस अमल से ग़ुरबा व मसाकीन और आम मुसलमानों को फायदा होगा।

(13) गाय का गोश्त खाना बिल्कुल हलाल है और किसी क़िस्म की कोई बीमारी का कोई ख़तरा नहीं मगर ये कि कोई शख़्स बज़ाते ख़ुद ही बीमार हो। जिस रिवायत में आया है कि गाय के गोश्त में बीमारी है, वो रिवायत ज़ईफ है और उसे सहीह क़रार देना ग़लत है।  

(14) ऊँट का गोश्त खाने से वुज़ू टूट जाता है, जैसा कि (सहीह मुस्लिम: 360, दारूस्सलाम: 802) की हदीस से साबित है और दूसरा गोश्त मसलन बकरी, भेड़ का गोश्त खाने से वुज़ू नहीं टूटता है।  

(15) क़ुर्बानी का असल मक़सद ये है कि तक़वा हालिस हो, लिहाज़ा हर वक़्त अल्लाह से डरते रहना चाहिए। देखिए (सूरह अल-हज: 37)  

(16) क़ुर्बानी के बड़े जानवर में अक़ीक़े के हिस्से शामिल कर देना जायज़ नहीं और याद रहे कि अक़ीक़े में सिर्फ बकरा बकरी या भेड़ दुम्बा ज़िबह करना ही सुन्नत से साबित है, लड़के की तरफ से दो और लड़की की तरफ से एकं अक़ीक़ा अलेहदा करना चाहिए।

झूठ बोलने, ग़ीबत करने, चुग़ली खाने और हर क़िस्म के कबीरा गुनाहों से अपने आपको हमेशा बचाऐं और दुआ करें कि अल्लाह तआला आपके और हमारे आमाल अपने दरबार में क़ुबूल फरमाऐ। आमीन!

वस्सलामु अलइकुम व रह म तुल्लाहि व ब र कातुहू!

Post Navi

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ