Sacrifice Rules and Issues: क़ुर्बानी के बाज़ अहकाम व मसाइल : Zubair Ali Zai


Sacrifice Rules & Issues : बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम! ईदुल अज़्हा के मौक़े पर जो क़ुर्बानी की जाती है, उसके बाज़ अहकाम व मसाइल खि़दमते पेश हैं।

الحمد رب العالمین والصلٰوۃ والسلام علٰی رسولہ الأمین، أما بعد

नम्बर 01

सय्यदा उम्मे सलमा रज़िअल्लाहु अन्हा से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम ने फरमाया

((إذا رأیتم ھلال ذی الحجۃ و أراد أحدکم أن یضحّی فلیمسک عن شعرہ و أظفارہ))

जब तुम ज़ुल-हिज्जा का चाँद देखो और तुम में से कोई शख़्स क़ुर्बानी करने का इरादा करे तो उसे बाल और नाख़ून तराशने से रूक जाना चाहिए।

(सहीह मुस्लिम: 1977 तरक़ीम दारूस्सलाम: 5119)

  • इस हदीस में ‘‘इरादा करे’’ से ज़ाहिर है कि क़ुर्बानी करना वाजिब नहीं बल्कि सुन्न्त है। देखिए अल-महल्ली लिइब्ने हज्म 7/355 मसला: 973)
  • इस हदीस से ये भी साबित हुआ कि क़ुर्बानी का इरादा रखने वाले के लिए नाख़ून तराशना और बाल मूंढना/मुंढवाना, तराशना जायज़ नहीं।

सय्यदना अबू सरीहा रज़िअल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि सय्यदना अबू बकर सिद्दीक़ और सय्यदना उमर रज़िअल्लाहु अन्हुमा दोनों मेरे पड़ौसी थे और दोनों क़ुर्बानी नहीं करते थे। (मालिफतुल सुनन वल आसार लिल-बइहक़ी 7/198 ह 5633 व सनद हसन, व हसनुहु अल-नूवी फिल मजमूआ शरह अल-महज़ब 8/383 व क़ाल इब्ने कसीर फी मुसनद अल-फारूक़ 1/332 व सनद सहीह)

  • इमाम मालिक रहमतुल्लाह अलैह ने फरमायाः क़ुर्बानी सुन्नत है, वाजिब नहीं और जो शख़्स इसकी इस्तिताअत रखे तो मैं पसन्द नहीं करता कि वो इसे तर्क कर दे। (अल-मुअत्ता 2/487 तहत ह 1073)
  • इमाम शाफई रहमतुल्लाह अलैह ने फरमायाः क़ुर्बानी करना सुन्न्त है, मैं इसे तर्क करना पसन्द नहीं करता। (किताबुल उम्म ज 1 स 221) (नीज़ देखिए अल-मुग़नी लिइब्ने क़ुदामा 9/345 मसला: 7851)  (इमाम बुख़ारी ने फरमायाः बाब सुन्नतुल अज़्हीया’’ सहीह बुख़ारी क़ब्ल ह 5545)

नम्बर 02ः

सय्यदना अबू हुरैरह रज़िअल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अहइहि वसल्लम ने फरमायाः

जिस आदमी के पास ताक़त हो और वो क़ुर्बानी न करे तो हमारी ईदगाह के क़रीब भी न आये। 

(सुनन इब्ने माजा: 3132 व सनद हसन, व सहीहुल हाकिम 4/232 व वाफिका अल-ज़हबी व रवाहु अहमद 2/321)

  • इस रिवायत में अब्दुल्लाह बिन अय्याश अल-मिस्री मुख़्तलिफ फी रावी हैं जिन पर कुबार उलमा वग़ैरहम ने जरह की और जमहूर ने तौसीक़ की, तक़रीबन पाँच और छैः का मुक़ाबला है।
  • रिवायते मज़कूरा का मतलब ये है कि जो शख़्स क़ुर्बानी का इस्तिख़्फाफ व तौहीन करते हुए इस्तिताअत के बावजूद क़ुर्बानी न करे तो उसे मुसलमानों की ईदगा से दूर रहना चाहिए यानी ये रिवायत क़ुर्बानी के इस्तेहबाब व सुन्नत पर महमूल और मुनकरीने हसीद का रद् है।

नम्बर 3ः

सय्यदना अब्दुल्लाह बिन अम्र बिन आस रज़िअल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि एक शख़्स ने नबी सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम से कहाः आप का क्या ख़्याल है, अगर मुझे सिर्फ मादा क़ुर्बानी (दूध देने वाला जानवर) मिले तो क्या मैं उसकी क़ुर्बानी कर दूँ? आपने फरमायाः नहीं, लेकिन तुम नाख़ून और बाल काट लो, मूझें तराशो और शर्मगाह के बाल मूंढ लो तो अल्लाह के हां तुम्हारी ये पूरी क़ुर्बानी है।

(सुनन अबी दाऊद: 2789 व सनद हसन, व सहीह इब्ने हिब्बान, अल-मवारिद: 1043, वल हाकिम 4/23 व ज़हबी)

  • इस हदीस के रावी ईसा बिन हिलाल अल-सद्फी सदूक़ हैं। देखिए तक़रीब अल-तहज़ीब 5337 
  • इन्हें याक़ूब बिन सुफियान अल-फारसी (अल-मअरिफः वल तारीख़ 2/515 487) और इब्ने हिब्बान वग़ैरहुमा ने सिक़्क़ा क़रार दिया है। ऐसे रावी की रिवायत हसन के दर्जे से कभी नहीं गिरती।
  • अय्याश बिन अब्बास अल-क़ुत्बानी सिक़ा थे, देखिए, अल-तक़रीब 5269) बाक़ी सनद सहीह है।

इस हदीस से मालूम हुआ कि जो शख़्स क़ुर्बानी करने की इस्तिताअत न रखता हो, वो अगर ज़ुल-हिज्जा के चाँद से लेकर नमाज-ए-ईद से फारिग़ होने तक बाल न कटवाऐ और नाख़ून न तराशे तो उसे क़ुर्बानी का सवाब मिलता है।

नम्बर 4:

सय्यदना जाबिर रज़िअल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम ने फरमायाः 

((لا تذبحوا إلا مسنۃ إلا أن یعسر علیکم فتذبحوا جذعۃ من الضأن))

दो दातों वाले जानवर के अलावा ज़िबह न करो मगर ये कि तुम पर तंगी हो जाये तो दुम्बे का जज़्आ ज़िबह कर दो। 

(सहीह मुस्लिम: 1963, तरक़ीम दारूस्सलाम: 5082)

  • बकरी या भेड़ के बकरे को जज़्आ कहते हैं जो आठ या नौ माह का हो गया हो। देखिए अल-क़ामूस अल-वाहिद स 243)
  • हाफिज़ इब्ने हजर ने फरमाया: जमहूर के नज़दीक भेड़ (दुम्बे) जज़्आ उसे कहते हैं जिसने एक साल पूरा कर लिया हो। (फत्हुल बारी 10/5 तहत ह 5547)
  • बेहतर यही है कि एक साल का जज़्आ भेड़ में से हो, वरना आठ नौ माह का भी जायज़ है। वल्लाहु आलम!

तम्बिया-ए-बलीग़: सहीह मुस्लिम की इस हदीस पर अस्रे हाज़िर के शैख़ अलबानी रहबमतुल्लाह अलैह की जरह (देखिए अल-ज़ईफा: 65, औराउल ग़लील: 1145) मरदूद है। 

मुस्तदरक अल-हाकिम (4/226 ह 7538 व सनद सहीह) की हदीस से भी यही ज़ाहिर होता है कि मुसन्ना न होने की हालत में जज़्आ की क़ुर्बानी काभी है।

हदीस 5ः

सय्यदना बरा बिन आज़िब रज़िअल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम ने फरमाया:

أربع لا تجوز فی الأضاحي: العوراء بیّن عورھا والمریضۃ بیّن مرضھا والعرجاء بیّن ظلعھا والکسیر التي لا تنقي))

चार जानवरों की क़ुर्बानी जायज़ नहीं है। ऐसा काना जिसका कानापन वाज़ेह हो, ऐसा बीमार जिसकी बीमारी वाज़ेह हो, लंगड़ा जिसका लंगड़ापन वाज़ेह हो और बहुत ज़्यादा कमज़ोर जानवर जो कि हड्डियों का ढांचा हो।

  • इस हदीस के रावी उबैद बिन फिरोज़ ताबई ने कहा: मुझे ऐसा जानवर भी नापसंद है जिसके दांत में नुक़्स हो? तो सय्यदना बरा रज़िअल्लाहु अन्हु ने फरमाया: तुम्हें जो चीज़ बुरी लगे उसे छोड़ दो और दूसरों पर उसे हराम न करो। (सुनन अबू दाऊद: 2802)

इस हदीस की सनद सहीह है और इसे तिर्मिज़ी (1497) इब्ने ख़ुज़ैमा (2912) इब्ने हिब्बान (1046, 1047) इब्नुल जारूद (481, 907) हाकिम (1/467,468) और ज़हबी ने सहीह कहा क़रार दिया है।

  • मालूम हुआ कि जिस चीज़ के बारे में दिल में शुबा हो और इसी तरह मशकूक चीज़ों से बचना जायज़ है।
  • सय्यदना अली बिन अबी तालिब रज़िअल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम ने सींग कटे जानवर की क़ुर्बानी से मना फरमाया।
  • मशहूर ताबई माम सईद बिन बुसय्यब रहमतुल्लाह अलैह ने फरमाया: ऐसा जानवर जिसका आधा सींग या उससे ज़्यादा टूटा हुआ हो। (सुनन नसाई 7/217, 218 ह0 4382 व सनद हसन व सहीह अल-तिर्मिज़ी: 1504)
  • सय्यदना अली रज़िअल्लाहु अन्हु से एक और रिवायत में आया है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलइहि वसल्ल्म ने हमें हुक्म दिया कि (क़ुर्बानी के जानवर में) आँख और कान देखें। सुनन नसाई 7/217 ह 4381 व सनद हसन व सहीह अल-तिर्मिज़ी: 1503, व इब्ने ख़ुज़ैमा: 2914 व इब्ने हिब्बानुल एहसान: 5890 व हाकिम 4/225 व ज़हबी।

इन अहादीस का ख़ुलासा ये है कि काने, लंगड़े, वाज़ेह बीमार, बहुत ज़्यादा कमज़ोर, सींग टूटे या कटे और कान कटे जानवरों की क़ुर्बानी जायज़ नहीं है।

  • अल्लामा ख़त्ताबी (मुतवफ्फा 388 हि0) ने फरमाया इस (सय्यदना बरा बिन आज़िब रज़िअल्लाहु अन्हु की बयान करदा) हदीस में दलील है कि क़ुर्बानी में मामूली नु़क़्स माफ है। अल-अख़ (मआलिम अल-सुनन 2/199 तहत ह0 683)
  • मालूम हुआ कि अगर सींग में मामूली नुक़्स हो या थोड़ा सा कटा या टूटा हुआ हो तो उस जानवर की क़ुर्बानी जायज़ है।
  • नोवी ने कहा इस पर इजमा है कि अंधे जानवर की क़ुर्बानी जायज़ नहीं है। (अल-मजमू शरह अल-महज़ब 8/404)

नम्बर 6ः

रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम ने अली रज़िअल्लाहु अन्हु को हुक्म दिया कि क़ुर्बानी का गोश्त खा लें और झूलें लोगों में तक़सीम कर दें और क़स्साब को उस में से बतौर उजरत कुछ भी न दें।  देखिए सहीह बुख़ारी 1717 व सहीह मुस्लिम 1317 और यही मज़मून फिक्ऱा नं 27)

इस हदीस में मालूम हुआ कि जो जानवर अल्लाह के तकर्रूब के लिए ज़िबह किया जाये (मसलन क़ुर्बानी और अक़ीक़ा) उसके बेचना जायज़ नहीं है। देखिए शरहुल सुन्नह लिल-बग़वी (7/188 ह 1951)

नम्बर 7:

सय्यदना अनस बिन मालिक रज़िअल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम दो सफैद व सियाह (चितकबरे) और सींगों वाले मैंढों की क़ुर्बानी किया करते थे, और नबी करीम सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम अपना पांव उनकी गर्दनों के ऊपर रखते, और उन्हें अपने हाथ से ज़िबह करते। और (सहीह मुस्लिम: 1966) तस्मीया व तकबीर – बिस्मिल्लाहि वल्लाहु अकबर, कही।

आप सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम ने सय्यदा आईशा रज़िअल्लाहु अन्हा को हुक्म दिया कि छुरी को पत्थर से तेज़ करो। फिर आप ने मैंढे को लिटाकर ज़िबह किया और फरमाया: बिस्मिल्लाह, ऐ मेरे अल्लाह! मुहम्मद, आल-ए-मुहम्मद और उम्मते मुहम्मद सल0 की तरफ से क़ुबूल फरमा। (सहीह मुस्लिम: 1967, दारूस्सलाम: 5091)

नम्बर 8ः

हम रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम के साथ हुदैबिया वाले साल सात आदमियों के तरफ से एक ऊँट और सात की तरफ से एक गाय ज़िबह की। (सहीह मुस्लिम: 1318, तरक़ीम दारूस्सलाम: 3185)

सय्यदना इब्ने अब्बास रज़िअल्लाहु अन्हु ने फरमाया हम रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम के साथ एक सफर में थे कि अज़्हा (ईदे क़ुर्बानी) आ गयी तो हमने एक गाय सात आदमी और एक ऊँट में दस आदमी शरीक कियो। (सुनन तिर्मिज़ीः 1501, हसन ग़रीब व सनद हसन)

  • इस अहादीसे शरीफा से साबित हुआ कि ऊँट में सात या दस आदमी शरीक हो सकते हैं और गाय में सिर्फ सात हिस्सेदार होते हैं। बकरी और मैंढे में इत्तिफाक़ है कि सिर्फ एक आदमी की तरफ से ही काफी है।
  • इब्ने अब्बास रज़िअल्लाहु अन्हु की हदीस से ये भी साबित हुआ कि सफर में क़ुर्बानी करना जायज़ है।

नम्बर 9ः

नमाज़-ए-ईद के बाद क़ुर्बानी करनी चाहिए। देखिए सहीह बुख़ारी: 5545 व सहीह मुस्लिम: 1961) 

ईद की नमाज़ से पहले क़ुर्बानी जायज़ नहीं है। नीज़ देखिए फिक़रा नं0 24

नम्बर 10ः

सय्यदना अबू उमामा बिन सहल बिन हनीफ रज़िअल्लाहु अन्हु फरमाते थे

मुसलमानों में से कोई (मदीना में) अपनी क़ुर्बानी ख़रीदता तो उसे खिला पिला कर मोटा करता फिर अज़्हा के बाद आखि़री ज़ुल-हिज्जा में उसे ज़िबह करता था। (अल-मुस्तख़रज लि अबी नईम बहवाला तग़लीक़ अल तालीक़ 5/6 व सनद सहीह, व क़ाल अहमदः ‘‘हाज़ल हदीस अजब’’ सहीह अल-बुख़ारी क़ब्ल ह 5553 तालीक़न)

तम्बीया: ‘‘मदीना में’’ वाले अल्फाज़ सहीह बुखारी में हैं।

नम्बर 11ः

मय्यत की तरफ से क़ुर्बानी का ज़िक्र जिस हदीस में आया है वो शरीकुल क़ाज़ी और हकम बिन उतइबा दो मुदल्लिसीन की तदलीस (अन से रिवायत करने) और अबुल हसना मजहूल की जहालत की वजह से ज़ईफ है देखिए सुनन अबी दाऊद: 2790, सुनन तिर्मिज़: 495 और अज़बाउल मसाबीह: 1462)

  • ताहम सद्क़े के तौर पर मय्यत की तरफ से क़ुर्बानी करना जायज़ है लिहाज़ा इस क़ुर्बानी का सारा गोश्त और खाल वग़ैरह मिस्कीन या मसाकीन को सद्क़े में देना ज़रूरी है।

तम्बीया: आम क़ुर्बानी (जो सदक़ा न हो) की खाल ख़ुद इस्तेमाल में लाऐं या किसी दोस्त को तोहफा दे दें, या किसी मिस्कीन को सद्क़ा कर दें लेकिन याद रहे कि ज़कात की आठ अक़्साम में क़ुर्बानी की खाल तक़सीम करने का कोई सबूत नहीं है।

नम्बर 12ः

सय्यदना अबू अय्यूब अंसारी रज़िअल्लाहु अन्हु से पूछा गया कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम के ज़माने में क़ुर्बानी कैसे होती थी? उन्होंने कहा: एक आदमी अपनी और अपने घर वालों की तरफ से एक बकरी क़र्बानी करता था, वो लोग ख़ुद खाते और दूसरों को खिलाते थे यहां तक कि लोग (कसरते क़ुर्बानी पर) फख़्र करने लगे, और अब ये सूरते हाल हो गयी जो देख रहे हो। 

मुअत्ता इमाम मालिक ज 2 स 486 ह 1069 व सनद सहीह, सुनन तिर्मिज़ी: 1505 हसन सहीह, सुनन इब्ने माजा 3147)

  • सुनन इब्ने माजा वग़ैरह में इस बात की सराहत है कि सय्यदना अबू अय्यूब अंसारी रज़िअल्लाहु अन्हु और सहाबा का ये अमल रसूलुल्लाहु सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम के ज़माने में होता था। व सनद हसन
  • मालूम हुआ कि अगर घर का सरबराह या कोई आदमी एक क़ुर्बानी कर दे तो वो सारे घर वालों की तरफ से काफी है।

नम्बर 13:

ईदगाह में क़ुर्बानी करना जायज़ है और ईदगाह के बाहर अपने घर वग़ैरह में क़ुर्बानी करना भी जायज़ है। देखिए (सहीह बुख़ारी : 5552, 5551)

नम्बर 14ः

क़ुर्बानी का जानवर ख़ुद ज़िबह करना सुन्नत है और दूसरे से ज़िबह करवाना भी जायज़ है। देखिए अल-मुअत्ता (रिवायत इब्नुल क़ासिम: 145, तहक़ीक़ व सनद सहीह, अल-सुनन अल-सुग़रा लिल-नसाई 7/231 ह 4424, मुसनद अहमद 3/388)

नम्बर 15

रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम ने अपनी बीवीयों की तरफ से गायें ज़िबह की थीं। (सहीह बुख़ारी: 5559, सहीह मुस्लिम: 1211)

तम्बीया: जिन रिवायात में आया हे कि गाय के गोश्त में बीमारी है उनमें से एक भी सहीह साबित नहीं है।

नम्बर 16ः

सय्यदना अली रज़िअल्लाहु अन्हु ने फरमाया बनू तग़लिब वालों ईसाइयों के ज़बीहे न खाओ क्योंकि वो अपने दीन में से सिवाए शराब नोशी के किसी पर भी क़ायम नहीं है। (सुनन अल-कुब्रा लिल-बइहक़ी 9/284 व सनद सहीह)

मालूम हुआ कि मुर्तद्दीन (दीन से फिरे हुए) और मुल्हिदीन (काफिर व फासिक) का ज़बीहा हलाल नहीं है। 

नम्बर 17ः

क़ुर्बानी का गोश्त ख़ुद खाना ज़रूरी नहीं बल्कि मुस्तहब है। नीज़ देखिए फिक़रा 19

नम्बर 18ः

एक दफा सय्यदना अब्दुल्लाह बिन उमर रज़िअल्लाहु अन्हु ने मदीना तैय्यबा में क़ुर्बानी की और सर मुंढवाया, आप फरमाते थे। जो शख़्स हज न करे और क़ुर्बानी करे तो उस पर सर मुंढवाना वाजिब नहीं है।

(सुनन अल-कुब्रा लिल-बइहक़ी 9/288 व सनद सहीह, अल-मुअत्ता 2/482 ह 1062)

नम्बर 19ः

क़ुर्बानी का गोश्त ख़ुद खाना, दोस्तों रिश्तेदारों को खिलाना और ग़रीबों को तोहफतन देना तीनों तरह जायज़ है। मसलन देखिए सूरत हज आयत 28,36 और फतावा इब्ने तैमिया 26/309 वग़ैरह।

नम्बर 20ः

सय्यदना अब्दुल्लाह बिन उमर रज़िअल्लाहु अन्हु फरमाते थे जो शख़्स क़ुर्बानी के जानवर बैतुल्लाह की तरफ रवाना करे फिर वो गुम हो जाये, अगर नज़र थी तो उसे दोबारा भेजने पड़ेंगे और अगर निफली क़ुर्बानी थी तो उसे मर्ज़ी है दोबारा क़ुर्बानी करे या न करे। 

(सुनन अल-कुब्रा 9/289 व सनद सहीह स 12, 13 52)

नम्बर 21ः

सय्यदना अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर रज़िअल्लाहु अन्हु ने क़ुर्बानी के जानवरों में एक कानी ऊँटनी देखी तो फरमायाः अगर ये ख़रीदने के बाद कानी हुयी है तो उसकी क़ुर्बानी कर लो और अगर ख़रीदने से पहले ये कानी थी तो उसे बदल कर दूसरी ऊँटनी की क़ुर्बानी करो। (सुनन अल-कुब्रा 9/289 व सनद सहीह)

नम्बर 22ः

क़ुर्बानी के जानवर को ज़िबह करते वक़्त उसका चेहरा क़िबला रूख़ होना चाहिए। सय्यदना इब्ने उमर रज़िअल्लाहु अन्हु उस ज़बीहे का गोश्त खाना मकरूह समझते थे जिसे क़िबला-ए-रूख़ किये बग़ैर ज़िबह किया जाता था। (मुसन्नफ अब्दुल रज़्ज़ाक़ 4/489 ह 8585 व सनद सहीह)

नम्बर 23ः

मुन्करीने हदीस क़ुर्बानी की सुन्नत के मुन्किर हैं हालांकि मुतावातिर अहादीस व आसार से क़ुर्बानी का सुन्नत होना साबित है और एक हदीस में आया है कि हर जानदार में सवाब है। देखिए सहीह बुख़ारी 2363 व सहीह मुस्लिम 2244) 

नम्बर 24ः

अगर क़ुर्बानी का इरादा रखने वाला कोई कटवा दे और फिर क़ुर्बानी करे तो उसकी क़ुर्बानी हो जायेगी लेकिन व गुनाहगार होगा। (अल-शरह अल-मुमती अला ज़ादुल मुस्तक़नी लि इब्ने उस्मैन 3/430)

नम्बर 25ः

क़ुर्बानी ज़िबह करने वाला और शिरकत करने वाले हिस्सेदार सब सहीहुल अक़ीदा होने चाहिए।

नम्बर 26ः

अगर किसी की तरफ से क़ुर्बानी की जाये तो ज़िबह के वक़्त उसका नाम लेते हुए ये कहना चाहिए कि ये क़ुर्बानी उस (फुलां) की तरफ से है।

नम्बर 27ः

स 6 त 11 44ः क़ौले राजेह में क़ुर्बानी के तीन दिन हैं। देखिए अल-हदीस

क़ुर्बानी के बारे में इजमाई मसाइलः

आखि़र में क़ुर्बानी के बारे में इमाम अल-मुंज़िर अल-नीसाबुरी की मशहूर किताब अल-इज्मा से इज्मायी मसाइल पेशे खि़दमत हैंः

01- इज्मा है कि क़ुर्बानी के दिन तुलू-ए-फज्र (सुबह सादिक़) से पहले क़ुर्बानी जायज़ नहीं है।

02-इज्मा है कि क़ुर्बानी का गोश्त मुसलमान फक़ीरों को खिलाना मुबाह (जायज़) है।

03- इज्मा है कि अगर जायज़ आला से क़ुर्बानी करे, बिस्मिल्लाह पढ़े, हलक़ और दोनों रगें काट दे।

04- इज्मा है कि गूँगे का ज़बीहा जायज़ है।

05- इज्मा है कि ज़बीहा के पेट से बच्चा मुर्दा बरामद हो तो उसकी माँ की क़ुर्बानी उसके लिए काफी होगी।

06-इज्मा है कि औरतों और बच्चों का ज़बीहा (जायज़) मुबाह है अगर सहीह तरीक़े से ज़िबह कर सकें।

07- इज्मा है कि अहले किताब का ज़बीहा हमारे लिए हलाल है अगर बिस्मिल्लाह पढ़ कर ज़िबह करें।

08- इज्मा है कि दारूल हरब में मुक़ीम (अहले किताब) का ज़बीहा हलाल है।

09- इज्मा है कि मजूस का ज़बीहा हराम है, खाया नहीं जायेगा।

10- इज्मा है कि अहले किताब की औरतों और बच्चों का ज़बीहा हलाल है (बिस्मिल्लाह की शर्त के साथ)।

 ताबुल इज्मा स 52, 53 मुतर्जिम अबुल क़ासिम अब्दुल अज़ीम)

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