Sacrifice Rules : दो दांते से कमतर की क़ुर्बानी के सम्बंध में : Part 4

Sacrifice Rules : बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम! दो दांते से कम तर की क़ुर्बानी जायज़ नहीं है, सम्बंध में सम्पूर्ण जानकारी के लिए इस लेख को पूरा पढ़ेें.

सवाल: क्या दो दांते जानवर से कम उम्र की क़ुर्बानी करना जायज़ नहीं, जबकि नबी सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम ने एक सहाबी को बकरी का बच्चा ज़िबह करने की इजाज़त दी थी?

जवाब: क़ुर्बानी के जानवर के लिए जो शरायत शरीअते मुतहृहरा ने बयान की हैं उनमें से एक शर्त ये है कि क़ुर्बानी वाला जानवर दो दांता हो और अगर ये मिलना मुश्किल हो या उसे ख़रीदने की हिम्मत न हो तो भेड़ का खैरा क़ुर्बान करना जायज़ व दुरूस्त है। जाबिर बिन अब्दुल्लाह रज़िअल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम ने फरमायाः

لَا تَذْبَحُوا إِلَّا مُسِنَّةً، ‏‏‏‏‏‏إِلَّا أَنْ يَعْسُرَ عَلَيْكُمْ، ‏‏‏‏‏‏فَتَذْبَحُوا جَذَعَةً مِنَ الضَّأْنِ

‘‘ला तज़्बहू इल्ला मुसिन्नतन इल्ला अइंयअसुरः अलइकुम फ-तज़्बहू जज़्अतम मिनज़्ज़अनि’’

तुम (मसिन्ना) दो दांते के सिवा ज़िबह न करो लेकिन अगर तुम्हारे ऊपर तंगी हो तो (जज़आ) भेड़ का खैरा ज़िबह कर लो।

(मुस्लिम: 1962, अबूदाऊद: 2797, इब्ने माजा: 3141, निसाई: 4383, इब्ने ख़ुज़ैमा: 2918, मुसनद अबी यअला: 2323, बइहक़ी 9/269, मुसनद अहमद 3/312, मुसनद अबी अवाना 5/228, इब्न अल-जारूद: 904)

नोट:- मुसिन्ना वो जानवर जिस के दूध के दांत टूट चुके हों, ये ऊँट में उमूमन उस वक़्त होता है जब वो पाँच बरस पूरे करके छटे में दाखि़ल हो गया हो, गाय बैल और भैंस जब वो दो बरस पूरे करके तीसरे में दाखि़ल हो जायें, बकरी और भेड़ में जब एक बरस पूरा करके दूसरे में दाखि़ल हो जायें, जज़आ उस दुम्बा ये भेड़ को कहते हैं जो साल भर का हो चुका हो, अहले लुग़त और शारिहीन में मुहक़्क़क़ीन का यही क़ौल सहीह है।

बअज़ लोग दो दांते की जगह मुत्लक़न भेड़ के खैरे की क़ुर्बानी दुरूस्त क़रार देते हैं और इसकी दलील ये पेश करते हैं कि कुलैब बयान करते हैंः

‘कुन्ना फी सफरिन फ-ह’ज’रल अज़्हा फ-ज’अ’लर रजुलु मिन्ना यश्तरिल मुसिन्नतः बिल जज़्अतइनि व सलासति फ-क़ालः लना रजुलुन मिन मुज़इनतः कुन्ना मअ रसूलिल्लाहि सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लमः फी स’फ’रिन फ-ह’ज़’र हाज़ल यउमा फ-ज’अ’लर रजुलु यत्लुबुल मुसिन्नतः वस्सलासति फक़ालः रसूलुल्लाहि सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लमः इन्नल जज़्अः यूफी मिम्मा यूफी मिन्हुस सनिय्यु’’ 

‘‘हम सफर में थे कि क़ुर्बानी वाली ईद का वक़्त आ गया, हम में से हर कोई दो या तीन कम उम्र जानवरों के बदले दो दांता ख़रीदने लगे। मुज़इना क़बीले के एक आदमी ने हम से बयान किया कि हम रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम के साथ सफर में थे कि ये दिन आ गया तो हर शख़्स दो या तीन कम उम्र जानवरों के बदले दो दांता तलब करने लगे तो रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलइहि वसल्ल्म ने फरमायाः ‘‘बिला शुबा खैरा उस काम पर पूरा उतरता है जिस काम में दो दांता पूरा है।

(मुसनद अहमद 3/204, मुसतदरक हाकिम 4/226, बइहक़ी 9/271, इब्ने अबी शइब 14/210)

एक और रिवायत में ये अल्फाज़ हैंः

كُنَّا مَعَ رَجُلٍ مِنْ أَصْحَابِ رَسُولِ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ يُقَالُ لَهُ:‏‏‏‏ مُجَاشِعٌ مِنْ بَنِي سُلَيْمٍ، ‏‏‏‏‏‏فَعَزَّتِ الْغَنَمُ فَأَمَرَ مُنَادِيًا، ‏‏‏‏‏‏فَنَادَى أَنَّ رَسُولَ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ كَانَ يَقُولُ:‏‏‏‏ إِنَّ الْجَذَعَ يُوفِي مِمَّا تُوفِي مِنْهُ الثَّنِيَّةُ

‘‘कुन्नः मअ रजुलिन अस्हाबि रसूलिल्लाहि सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लमः युक़ालु लहु मुजाशिउ मिन बनी सुलइमिन फ-अज़्ज़तिल ग़नमु फ-अ’म’रः मुनादियन फनादा अन्नः रसूलल्लाहि सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लमः कानः यक़ूलु अन्नल ज’ज़’अ युवफ्फी मिम्मः तुवफ्फी मिन्हुस सनिय्यतु’’

हम रसुल्लुल्लाह सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम के सहाबा में से एक आदमी के साथ थे जिसे मजाशेअ कहा जाता हे, वो बनू सुलैम में से था, बकरियाँ कम पड़ गयीं तो आप सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम ने एक मुनादी करने वाले को हुक्म दिया, उसने मुनादी की कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम फरमा रहे हैंः ‘‘बिला शुबा भेड़ का कम उम्र बच्चा उस चीज़ से पूरा पूरा किफायत करता है जिस से दो दांता काम आता है।’’

(अबू दाऊद 2799, इब्ने माजा: 3140, तबरानी कबीर 20/7641, मुस्तद्रक हाकिम: 4/226, बइहक़ी 9/270)

इस हदीस ने इस बात की तौज़ीह कर दी कि ये हुक्म दो दांता जानवर कम होने की सूरत में था। उसमें और जाबिर रज़िअल्लाहु अन्हु की हदीस में कोई तआरूज़ नहीं। वो भी उस्रत व तंगी और दो दांते की क़िल्लत की सूरत में भेड़ का कम उम्र बच्चा क़ुर्बानी करने पर दलालत करती है और इस रिवायत का सियाक़ भी इसी बात पर दलालत करता है। इसी तरह अबू किबाश की एक रिवायत पेश की जाती है कि वो कहते हैंः ‘‘मैं अबू हुरैरह रज़िअल्लाहु अन्हु से मिला और उनसे सवाल किया तो उन्होंने कहाः ‘‘मैंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम को कहते हुए सुना हैः 

نِعْمَ أَوْ نِعْمَتِ الْأُضْحِيَّةُ الْجَذَعُ مِنَ الضَّأْنِ 

‘‘निअमः अउ निअमतिल उजि़्हयतुल जज़उ मिनज़्ज़अनि’’ 

बेहतरीन क़ुर्बानी भेड़ का खैरा है। लेकिन इसकी सनद किदाम बिन अब्दिर्रहमान और अबू किबाश की जहालत की वजह से ज़ईफ है।

(मुसनद अहमद 15/461, मुसनद इस्हाक़ बिन राहवीयह 407, बइहक़ी 9/271, तिर्मिज़ी 1499)

अबू हुरैरह रज़िअल्लाहु अन्हु से मरफूअन ये भी मर्वी हैः 

‘‘अल ज’ज़’उ मिनज़ ज़अनि ख़इरूम मिनस सइईदि मिनल मअज़ि’’ 

भेड़ का कम उम्र बच्चा बकरी के दो दांते से बेहतर है। 

इसकी सनद में अबू सिफाल अल-मरी सुमामा बिन वाइल ज़ईफ है।

(मुसनद अहमद 2/402, मुस्तद्रक हाकिम 4/227)

इस मसले के मुतालिक़ एक रिवायत हिलाल रहमतुल्लाह अलैह से मर्वी हैः

يَجُوزُ الْجَذَعُ مِنَ الضَّأْنِ أُضْحِيَّةً 

‘‘यजूज़ुल ज’ज़’उ मिनज़ ज़अनि उजि़्हय्यतन’’

भेड़ का कम उम्र बच्चा क़ुर्बानी के लिए जायज़ है।’’

(इब्दे माजा: 3139, मुसनद अहमद: 6/368, बइहक़ी 9/271, शरह मुश्किल अल-असर 5723)

ये रिवायत भी ज़ईफ है। इसकी सनद में उम्मे मुहम्मद बिन अबी यहया अल-अस्लमी मज्हूल है और उम्मे बिलाल बिन्त हिलाल भी इस रिवायत के सिवा कहीं मअरूफ नहीं।

अब रही उक़्बा बिन आमिर जहमी रज़िअल्लाहु अन्हु की हदीस जिसमें मज़कूर है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम ने उन्हें बकरियाँ दीं और उन्होंने अपने साथियों पर तक़सीम कर दीं तो बकरी का एक साला बच्चा बाक़ी रह गया, उन्होंने रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम से ज़िक्र किया तो आप सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम ने फरमायाः 

ضَحِّ بِهِ أَنْتَ

‘‘ज़ह्हि बिहि अन्तः’’ 

तू इसकी क़ुर्बानी कर।

(इब्ने माजा: 3138, बुख़ारी: 5555, मुस्लिम 1965, मुसनद तियालसी: 1002, मुसनद अहमद: 28/538, सुनन निसाई: 7/218, इब्ने हिब्बान: 5898, बइहक़ी: 9/269, शरह अल-सुन्नह: 1116, मुसनद अबी अवाना: 5/211, इब्ने ख़ुजैमा: 2916)

ये हदीस आम नहीं है कि हर किसी को इजाज़त हो कि वो बकरी का एक साला बच्चा ज़िबह कर ले बल्कि ये उक़्बा बिन आमिर रज़िअल्लाहु अन्हु के साथ ख़ास है। इसकी तहक़ीक़ की दलील ये है कि सुनन बइहक़ी की रिवायत में ये अल्फाज़ मौजूद हैंः

‘‘ज़ह्हि बिहा अन्तः वला अर ख़सुहु लि-अ’ह’दिन फीहा बअदु’’ 

तू उसे क़ुर्बान कर ले, इसमें किसी और के लिए मैं रूख़्सत नहीं देता।

(सुनन अल-कुब्रा लिल-बइहक़ी 9/269)


इमाम बइहक़ी रहमतुल्लाह अलैह ने सुनन बइहक़ी में यूँ बाब क़ायम किया हैः

‘‘बाबु ला युज ज़िउ इल्ला मिनज़ ज़अनि वहदहा व युज ज़िउस सनिय्यु मिनल मअज़ि वल इबिलि वल ब’क़रि’’

कम उम्र खैरा सिर्फ भेड़ का किफायत करता है बकरी, ऊँट, और गाय में सिर्फ दो दांता किफायत करता है।’’

लिहाज़ा कबरी का खैरा सिर्फ चन्द सहाबा-ए-किराम रज़िअल्लाहु अन्हुम के लिए ख़ास था, जिनमें से उक़्बा बिन आमिर और अबू हुरैरह रज़िअल्लाहु अन्हु हैं और ज़ैद बिन ख़ालिद अल-जहमी रज़िअल्लाहु अन्हु को भी आप सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम ने बकरी का खैरा क़ुर्बान करने के लिए दिया था। 

(मुसनद अहमद 36/20, इब्ने हिब्बान 5899, मुसनद बज़ार 3776, अबू दाऊद 2798, तबरानी कबीर 5/242, बइहक़ी 9/270)

ये मुआमलात इब्तिदाई मालूम होते हैं, बाद में शरअ में इस बात का तक़र्रूर हो गया कि बकरी का खैरा क़ुर्बानी के लिए किफायत नहीं करता। हाफिज़ इब्ने हजर अस्क़लानी रहमतुल्लाह अलैह अबू बुर्दाह रज़िअल्लाहु अन्हु की हदीस की शरह में रक़मतराज़ हैंः

‘‘व फिल हदीसि अन्नल ज’ज़’अ मिनल मअज़ि ला युज्ज़िउ व हुवा क़उलुल जमहूरि’’

इस हदीस में दलील है कि बकरी का खैरा क़ुर्बानी के लिए किफायत नहीं करता और यही जमहूर उलमा का क़ौल है।

(फत्हुल बारी 10/15)

Post Navi

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ