Sacrifice Rules : क़ुर्बानी के सिर्फ तीन दिन क़ुरआन व हदीस़ से साबित : Part 3


Sacrifice Rules : (बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम) : क़ुर्बानी के सिर्फ तीन दिन है, क्या चौथे दिन क़ुर्बानी करना क़ुरआन व हदीस से साबित है?

सवाल: क्या चौथे दिन क़ुर्बानी करना क़ुरआन व हदीस से साबित है? मैंने कुछ उलेमा से सुना है कि चौथे दिन क़ुर्बानी करने वाली जो अहादीस हैं वो ज़ईफ है। और अब्दुल्ला बिन उमर रज़िअल्लाहु अन्हु से सहीह सनद के साथ साबित है कि वो फरमाते थे कि क़ुर्बानी तीन दिन है। इस सिलसिले में हफ्ता रोज़ा अहले हदीस में फज़ीलतुश शैख़ अब्दुल सत्तार हम्माद हफिज़हुल्लाह ने दलीलों से साबित किया है कि क़ुर्बानी चार दिन है उनकी दलीलें इस तरह हैं-

  • क़ुर्बानी ईद के बाद तीन दिन तक की जा सकती है। ईद 10वीं ज़ुल हिज्जा को होती है, इसके बाद तीन दिनों को अय्यामे तश्रीक़ कहते हैं। अय्यामे तश्रीक़ को ज़िबह के दिन क़रार दिया गया है चुनांचे हज़रत जुबैर बिन मुत्इम रज़िअल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि नबी सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया: तमाम अय्यामे तश्रीक़ ज़िबह के दिन हैं (मुसनद अहमद स0 82 जि0 4) 

    अगरचे इस रिवायत के मुतालिक़ कहा जाता है कि मुन्क़तेअ है लकिन इमाम इब्ने हिब्बान और इमाम बइहक़ी ने इसे मौसूल बयान किया है और अल्लामा अलबानी रहमतुल्लाह अलैह ने इसको सहीह क़रार दिया है। (सहीह अल-जामेउस्सग़ीर: 4537)

बअज़ फुक़हा ने ईद के बाद सिर्फ दो दिन तक क़ुर्बानी की इजाज़त दी है उनकी दलील इस तरह है-

  • क़ुर्बानी यऊमुल अज़्हा के बाद दो दिन है (बइहक़ी स0 297 जि0 9) 

    लेकिन ये हज़रत इब्ने उमर रज़िअल्लाहु अन्हु या हज़रत उमर रज़िअल्लाहु अन्हु का अपना क़ौल है, इस लिए रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम की मर्फूअ हदीस के मुक़ाबले में पेश नहीं किया जा सकता लिहाज़ा क़ाबिले हुज्जत नहीं। अल्लामा शौकानी ने इसके मुतालिक़ पाँच मज़ाहिब ज़िक्र किये हैं फिर अपना फैसला बायीं अल्फाज़ लिखा है। ‘‘तमाम अय्यामे तश्रीक़ ज़िबह के दिन हैं और वो यऊमुन नहर के बाद तीन दिन हैं। (नेलुल औतार स0 125 जि0 5)

वाज़ेह रहे पहले दिन क़ुर्बानी करना ज़्यादा फज़ीलत का बाइस है क्यों कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम इसी पर अमल पैरा रहे हैं लिहाज़ा बिला वजह क़ुर्बानी देर से न की जाये अगरचे बअज़ हज़रात का ख़्याल है कि ग़ुर्बा व मसाकीन को फायदा पहुँचाने के लिए देर करना अफज़ल है लेकिन ये महज़ एक ख़्याल है जिसकी कोई मनक़ूल दलील नहीं है। नीज़ अगर किसी ने तेरह (13) ज़ुल हिज्जा को क़ुर्बानी करना हो तो ग़ुरूबे आफताब से पहले पहले क़ुर्बानी कर दे क्योंकि ग़ुरूबे आफताब के बाद अलगा दिन शुरू हो जाता है।

    (हफ्त रोज़ा अहले हदीस जिल्द 38, 7 त 13 रबीउस्ससानी 1428 हि0 27 अप्रैल त 3 मई 2007 ई0)

    ये दलीलें हैं जिनको हाफिज़ अब्दुल सत्तार हम्माद हफिज़हुल्लाह ने बयान किया है। चुनांचे इन दलीलों के अलावा चौथे दिन क़ुर्बानी की जितनी दलीलें हैं उनको बयान करें और उनकी इस्नादी हैसियत को वाज़ेह करें और इस मसला-ए-क़ुर्बानी के बारे में सहीह तरीन तहक़ीक़ बयान फरमायें, अल्लाह तआला आपको जज़ा-ए-ख़ैर अता फरमाये। (आमीन)

(ख़ुर्रम इरशाद मुहम्मदी, दौलत नगर, गुजरात 29 अप्रैल 2007 ई0)

नोट: सुन्नत की मरदूद या ज़ईफ होने के लिहाज़ से 15 क़िस्में हैं जिनमें से एक क़िस्म ’’मुन्क़तेअ’’ और एक क़िस्म ‘‘मुर्सल’’ रिवायत भी होती है!

जवाब: मुसनद अहमद (4/82 ह-16752) वाली रिवायत वाक़ई मुन्क़तेअ है।

    सुलेमान बिन मूसा ने सय्यदना जुबैर बिन मुत्इम रज़िअल्लाहु अन्हु को नहीं पाया। इमाम बइहक़ी ने इस रिवायत के बारे में फरमायाः ‘‘मुर्सल’’ यानी ‘‘मुन्क़तेअ’’ है। (सुनन अल-कुब्रा जि0 5 स0 239, जि0 9 स0 295)

    इमाम तिर्मिज़ी की तरफ मन्सूब किताबुल इलल में इमाम बुख़ारी से रिवायत है कि उन्होंने फरमाया: ‘‘सुलेमान बिन मूसा ने नबी सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम के सहाबा में से किसी को भी नहीं पाया। (अल-इलल अल-कुब्रा 313)

    उसकी ताईद इससे भी होती है कि किसी सहीह दलील से ये साबित नहीं है कि सुलेमान बिन मूसा ने सय्यदना जुबैर रज़िअल्लाहु अन्हु को पाया है। आने वाली रिवायत नं0 2 से भी यही साबित होता है कि सुलेमान बिन मूसा ने सय्यदना जुबैर बिन मुत्इम रज़िअल्लाहु अन्हु से ये रिवायत नहीं सुनी। नीज़ देखिए नस्ब अल-रायह (3/61)

रिवायत नं0 2ः सहीह इब्ने हिब्बान (अल एहसान: 3843 दूसरा नुस्ख़ा 3854) व अल-कामिल लि-इब्ने अदी (3/1118, दूसरा नुस्ख़ा 4/260) व सुनन अल-कुब्रा लिल-बइहक़ी (9/295,296) और मुसनद अल-बज़ार (कश्फुल अस्तार 2/27 ह0 1126) वग़ैरह में ‘‘सुलेमान बिन मूसा अन अब्दुल रहमान बिन अबी हुसैन बिन जुबैर बिन मुत्इम’’ की सनद से मर्वी है कि ‘‘व फी कुल्लि अय्यामित तश्रीक़ ज़ब्हुन – और सारे अय्यामे तश्रीक़ में ज़िबह है। ये रिवायत दो वजह से ज़ईफ हैः 

    1. हाफिज़ अल-बज़ार ने कहा: और अब्दुल रहमान इब्ने अबी हुसैन की जुबैर बिन मुत्इम से मुलाक़ात नहीं हुई।

    2. अब्दुल रहमान बिन अबी हुसैन की तौसीक़ इब्ने हिब्बान के अलावा किसी और से साबित नहीं है लिहाज़ा ये रावी मजहूलुल हाल है।

रिवायत नं0 3: तबरानी (अल-मुज्अम अल-कबीर 2/138 ह0 1583) बज़ार (अल-बहर अल-ज़ख़ार 8/363 ह 3443) बइहक़ी (सुनन अल-कुब्रा 8/239, 9/292) और दाराक़ुत्नी (अल-सुनन 4/284 ह0 4711) वग़ैरहम ने ‘‘सुवेद बिन अब्दुल अज़ीज़ अन सईद बिन अब्दुल अज़ीज़ तनूख़ी अन सुलेमान बिन मूसा अन नाफे बिन जुबैर बिन मुत्इम अन अबीह’’ की सनद पर मर्फूअन नक़ल किया है कि ‘‘तमाम अय्यामे तश्रीक़ में जिबह है’’

इस रिवायत का बुनियादी रावी सुवेद बिन अब्दुल अज़ीज़ ज़ईफ है। (देखिए तक़रीब अल-तहज़ीबः 2692) हाफिज़ हेस्मी ने कहाः ‘‘और इसे जम्हूर इमामों ने ज़ईफ कहा है।’’ (मज्मा अल-ज़वाइद 3/147)

रिवायत नं0 4: एक रिवायत में आया है कि ‘‘अन सुलेमान बिन मूसा अन अम्र बिन दीनार हद्दसहू अन जुबैर बिन मुत्इम अन्नः रसूल अल्लाहि सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम क़ालः ‘‘कुल्लु अय्यामित तश्रीक़ि ज़ब्हुन’’

(सुनन दाराक़ुत्नी 4/284 ह 4713, व अल-सुनन अल-कुर्बा लिल बइहक़ी 9/296)

    ये रिवायत दो वजहों से मरदूद हैः

    1. इसका रावी अहमद बिन ईसा अल-ख़शाब सख़्त मजरूह है। देखिए (लिसान अल-मीज़ान जि0 1 स0 240, 241)

    2. अम्र बिन दीनार की जुबैर बिन मुत्इम रज़िअल्लाहु अन्हु से मुलाक़ात साबित नहीं। देखिए (अल-मौसूअतुल हदीसीयह जि0 27 स0 317)

तम्बियाः एक रिवायत में ‘‘अल-वलीद बिन मुस्लिम बिन हसन बिन ग़ीलान बिन सुलेमान बिन मूसा अन मुहम्मद बिन मुन्क़दिर अन जुबैर बिन मुत्इम’’ की सनद से आया है कि ‘‘अरफातिन मुअक़िफुन… अल-अख़’’ (मुसनद अल-सामईन 2/389 ह 1556, नस्ब अल-रअया 3/61 मुख़्तस्रन) 

    इस रिवायत की सनद वलीद बिन मुस्लिम की तदलीस की वजह से ज़ईफ है और इस में अय्यामे तश्रीक़ में ज़िबह का भी ज़िक्र नहीं है।

ख़ुलासा-ए-तहक़ीक़ः

    अय्यामे तश्रीक़ में ज़िबह वाली रिवायत अपनी तमाम सनदों के साथ ज़ईफ है लिहाज़ा इसे सहीह या हसन क़रार देना ग़लत है।

आसार-ए-सहबाः

    रिवायते मसऊला के ज़ईफ होने के बाद आसार-ए-सहाबा की तहक़ीक़ दर्ज ज़ेल हैः

    (1) सय्यदना अब्दुल्लाह बिन उमर रज़िअल्लाहु अन्हु ने फरमायाः ‘‘क़ुर्बानी वाले दिन के बाद (मज़ीद) दो दिन क़ुर्बानी होती है। 

(मुअत्ता इमाम मालिक जि0 2 स0 487 ह0 1071 व सनद सहीह, सुनन अल-कुब्रा लिल-बइहक़ी 9/297)

    (2) सय्यदना अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़िअल्लाहु अन्हु ने फरमायाः ‘‘क़ुर्बानी के दिन के बाद दो दिन क़ुर्बानी है और अफज़ल क़ुर्बानी नहर वाले (पहले) दिन है। 

(अहकामुल क़ुरआन लिल तहावी 2/205 ह 1571, सनद हसन)

    (3) सय्यदना अनस बिन मालिक रज़िअल्लाहु अन्हु ने फरमायाः ‘‘क़ुर्बानी वाले (अव्वल) दिन के बाद दो दिन क़ुर्बानी होती है। 

(अहकामुल क़ुरआन लिल तहावी 2/206 ह 1576, सहीह)

    (4) सय्यदना अली रज़िअल्लाहु अन्हु ने फरमायाः ‘‘क़ुर्बानी के तीन दिन हैं। (अहकामुल क़ुरआन लिल-तहावी 2/205 ह 569, हसन)

वल्लाहु अअलम!

इनके मुक़ाबले में चन्द आसार दर्ज ज़ेल हैंः

    (1) हसन बसरी ने कहाः ‘‘ईदुल अज़्हा के दिन के बाद तीन दिन क़ुर्बानी है। 

(अहकामुल क़ुरआन लिल-तहावी 2/206 ह 1577 व सनद सहीह, अल-सुनन अल-कुब्रा लिल-बइहक़ी 9/297 व सनद सहीह)

    (2) अता बिन अबी रबाह ने कहाः अय्यामे तश्रीक़ के आखि़र तक क़ुर्बानी है। (अहकामुल क़ुरआन 2/206 ह 1578 व सदन हसन, अल-सुनन अल-कुब्रा लिल-बइहक़ी 9/296 व सनद हसन)

    (3) उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ ने फरमायाः ‘‘क़ुर्बानी ईद के दिन और इसके बाद तीन दिन है। (अल-सुनन अल-कुब्रा लिल बइहक़ी 9/297 व सनद हसन)

    इमाम शाफई और आम अहले हदीस उलमा का यही फतवा है कि क़ुर्बानी के चार दिन हैं। बअज़ उलमा इस सिलसिले में सय्यदना जुबैर बिन मुत्इम रज़िअल्लाहु अन्हु की तरफ मंसूब रिवायत से भी इस्तिदलाल करते हैं लेकिन ये रिवायत ज़ईफ है जैसा कि ऊपर वज़ाहत के साथ साबित कर दिया गया है।

    (4) सय्यदना अबू उमामा बिन सहल बिन हनीफ रज़िअल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि मुलसमान अपनी क़ुर्बानियाँ ख़रीदते फिर उन्हेें खिला-खिलाकर मोटा करते फिर ईदुल अज़्हा के बाद आखि़री ज़ुलहिज्जा (तक) को ज़िबह करते। 

(अल-सुनन अल-कुब्रा लिल-बइहक़ी 9/297 व सनद सहीह)!!

    इन सब आसार में सय्यदना अली बिन अबी तालिब रज़िअल्लाहु अन्हु वग़ैरह का क़ौल राजेह है कि क़ुर्बानी तीन दिन हैःईदुल अज़्हा और दो दिन बाद।

    इब्ने हज़म ने इब्ने अबी शैबह से नक़ल किया है कि: ‘‘सय्यदना अबू हुरैरह रज़िअल्लाहु अन्हु ने फरमाया कि क़ुर्बानी तीन दिन है। 

(अल-महया जि0 7 स0 377 मसला: 982)

इस रिवायत की सनद हसन है लेकिन मुसन्निफ इब्ने अबी शैबह (मतबूअ) में ये रिवायत नहीं मिली। वल्लाहु अअलम!

फायदाः

    नबी करीम सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम ने इब्तिदा में तीन दिन से ज़्यादा क़ुर्बानी का गोश्त रखने से मना फरमाया था, बाद में ये हुक्म मनसूख़ हो गया। ये मुमानिअत इसकी दलील है कि ‘‘क़र्बानी तीन दिन है वाला क़ौल ही राजेह है।’’

    इस सारी तहक़ीक़ का ख़ुलासा ये है कि नबी सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम से सराहतन इस बाब में कुछ भी साबित नहीं है और आसार में इख़्तिलाफ है लेकिन सय्यदना अली रज़िअल्लाहु अन्हु और जमहूर सहाबा-ए-किराम का यही क़ौल है कि क़ुर्बानी के तीन दिन (ईदुल अज़्हा और दो दिन बाद) हैं, हमारी तहक़ीक़ में यही राजेह है और इमाम मालिक वग़ैरह ने भी इसे ही तरजीह दी है। वल्लाहु अअलम! 

(लेख -हाफिज़ ज़ुबैर अली ज़ई, अल-हदीस माहाना 02 मई 2007 ई0)

वस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाह व बरकातुहु

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