Sacrifice Rules : भैंस की क़ुर्बानी क्या हुक्म है जाानिए : Part 2


Sacrifice Rules : (बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम); ख़ास अपीलः मुसलमानों के सिर्फ दो ही त्यौहार हैं जो ईदुल फित्र और ईदुल अज़्हा के नामों से जाने जाते हैं इसमें से एक त्यौहार तक़रीबन 2 माह पहले गुज़र चुका है और दूसरा त्यौहार ईदुल अज़्हा जोकि आम तौर पर ‘‘बक़रा ईद का त्यौहार’’ के नाम से मशहूर कर दिया गया है, अब ये त्यौहार बिल्कुल क़रीब है। इस त्यौहार को दुनिया के सारे मुसलमान हज़रात बहुत ख़ुशी के साथ मनाते हैं और अल्लाह तआला का हुक्म बजा लाते हुए सुन्नत को अदा करते हैं और कुछ जानवरों की क़ुर्बानी देते हैं।

अल्लाह तआला ने चार क़िस्म के जानवरों की क़ुर्बानी का हुक्म दिया है जिसमें से एक गाय भी है। परन्तु भारतीय क़ानून के हिसाब से भेड़, बकरी एवं अन्य पशुओं की क़ुर्बानी जायज़ है। विशेष ध्यान रहे कि हिन्दु धर्म में गाय सम्मानित है और उसकी पूजा की जाती है, चुनांचे देश के तमाम मुस्लिम भाई गाय की क़ुर्बानी देने से परहेज़ करें, इसके अलावा वे अन्य जानवरों की क़ुर्बानी दे सकते हैं।

भैंस की क़ुर्बानी

सवाल: क्या भैंस की क़ुर्बानी क़ुरआन व सुन्नत से साबित है?

जवाब: क़ुर्बानी के बारे में इरशादे बारी तआला हैः

وَ لِکُلِّ اُمَّۃٍ جَعَلۡنَا مَنۡسَکًا لِّیَذۡکُرُوا اسۡمَ اللّٰہِ عَلٰی مَا رَزَقَہُمۡ مِّنۡ بَہِیۡمَۃِ الۡاَنۡعَامِ

वलिकुल्लि उम्मतिन जअलना मन्सकल लियज़ कुरूस्मल्लाहि अला मा रज़क़हुम मिन बहीमतिल अन् आमि… (सूरह हज: 34)

‘‘और हर उम्मत के लिए हम नें क़ुर्बानी के तरीक़े मुक़र्रर फरमाये हैं ताकि वो उन चैपाओं जानवरों पर अल्लाह का नाम लें जो अल्लाह ने उन्हें दे रखे हैं।’’

इस आयते करीमा में क़ुर्बानी के जानवरों के लिए ‘‘बहीमतिल अन्आम’’ के अल्फाज़ ज़िक्र किये हैं और ‘‘अन्आम’’ से मुराद यहाँ ऊँट, बक़र (गाय), और भेड़ बकरी हैं जिन की तशरीह क़ुरआने पाक की दूसरी आयते करीमा से होती है।

इरशादे बारी तआला हैः

وَ مِنَ الۡاَنۡعَامِ حَمُوۡلَۃً وَّ فَرۡشًا ؕ کُلُوۡا مِمَّا رَزَقَکُمُ اللّٰہُ وَ لَا تَتَّبِعُوۡا خُطُوٰتِ الشَّیۡطٰنِ ؕ اِنَّہٗ لَکُمۡ عَدُوٌّ مُّبِیۡنٌ ثَمٰنِیَۃَ اَزۡوَاجٍ ۚ مِنَ الضَّاۡنِ اثۡنَیۡنِ وَ مِنَ الۡمَعۡزِ اثۡنَیۡنِ ؕ قُلۡ ءٰٓالذَّکَرَیۡنِ حَرَّمَ اَمِ الۡاُنۡثَیَیۡنِ اَمَّا اشۡتَمَلَتۡ عَلَیۡہِ اَرۡحَامُ الۡاُنۡثَیَیۡنِ ؕ نَبِّئُوۡنِیۡ بِعِلۡمٍ اِنۡ کُنۡتُمۡ صٰدِقِیۡنَ وَ مِنَ الۡاِبِلِ اثۡنَیۡنِ وَ مِنَ الۡبَقَرِ اثۡنَیۡنِ ؕ قُلۡ ءٰٓالذَّکَرَیۡنِ حَرَّمَ اَمِ الۡاُنۡثَیَیۡنِ اَمَّا اشۡتَمَلَتۡ عَلَیۡہِ اَرۡحَامُ الۡاُنۡثَیَیۡنِ ؕ اَمۡ کُنۡتُمۡ شُہَدَآءَ اِذۡ وَصّٰکُمُ اللّٰہُ بِہٰذَا ۚ فَمَنۡ اَظۡلَمُ مِمَّنِ افۡتَرٰی عَلَی اللّٰہِ کَذِبًا لِّیُضِلَّ النَّاسَ بِغَیۡرِ عِلۡمٍ ؕ اِنَّ اللّٰہَ لَا یَہۡدِی الۡقَوۡمَ الظّٰلِمِیۡنَ

‘‘व मिनल अन्आमि हमूलतऊँ व फर्शन कुलु मिम्मा रज़क़कुमुल्लाहु वला तत्तबिऊ ख़ुतुबातिश शईतानि इन्नहु लकुम अदुव्वुम मुबीनुन समानियतः अज़्वाजिन मिनज़्ज़अनिस्नइनि व मिनल मअज़िस्नइनि क़ुल आज़्ज़करइनि हर्रमः अमिल उन्सयइन अम्मश तमलत अलइहि अरहामुल उन्सयइनि नब्बिऊनि बिइल्मिन इन कुन्तुम स्वादिक़ीनः व मिनल इबिलिस्नइनि व मिनल बक़रिस्नइनि क़ुल आज़्ज़करइनि हर्रमः अमिल उन्सयइनि अम्मश तमलत अरहामुल उन्सयइनि अम कुन्तुम शुहादाअ इज़ वस्साकुमुल्लाहु बिहाज़ा फमन अज़्लमु मिम्मनिफ्तरा अलल्लाहि कज़िबल लियुज़िल्लन नासि बिग़इरि इल्मिन इन्नल्लाहः ला यहदिल क़उमज़ ज़ाॅलिमीनः’’ (सूरह अन्आम: 142-144)

‘‘और उसने चैपाओं में से बारबर्दारी वाले (यानी बड़े बड़े, बोझ उठाने वाले) पैदा किये और ज़मीन से लगे हुए (यानी छोटे छोटे) चैपाये भी पैदा किये जो कुछ अल्लाह तआला ने तुम्हें अता किया उसमें से खाओ और शैतान के नक़्शे क़दम की पैरवी न करो यक़ीनन वो तुम्हारा खुला दुश्मन है। ये चौपाये आठ क़िस्म के हैं, भेड़ में से दो और बकरी में से दो। कह दीजिए क्या अल्लाह तआला ने दोनों नर हराम किये या दोनों मादा को या उसको जिसको दोनों मादा पेट में लिए हुए हैं? तुम मुझे किसी दलील से बताओ अगर तुम सच्चे हो और ऊँट में से दो और गाय में से दो।’’

इस आयते करीमा से मालूम हुआ कि अन्आम का इतलाक़ ऊँट, बक़र और भेड़ बकरी पर होता है। इमाम क़र्तुबी रहमतुल्लाह अलैह ‘‘मिन बहीमतुल अन्आम’’ की तशरीह में रक़म तराज़ हैंः

والانعام هنا الابل والبقر والغنم بهيمة الانعام هي الانعام فهو كقولك صلاة الأولى ومسجد الجامع 

वल अन्आमु हिनन इबिलु वल-बक़रू वल-ग़नमु व बहीमतुल अन्आमि हियल अन्आमु फहुवः क-क़ऊलिकः सलातुल ऊला व मस्जिदुल जामियि – 

(तफसीर क़ुर्तुबी: 12/30)

‘‘अल-अन्आम से मुराद यहां ऊँट, बक़र और भेड़ बकरी है और ‘‘बहीमतिल अन्आम’’ से मुराद अन्आम ही है, ये इसी तरह है जैसे आप कहते हैं सलातुल ऊला और मस्जिदुल जामियि।’’

नवाब सिद्दीक़ हसन खान रक़म तराज़ हैंः

‘‘अन्आम’’ की क़ैद इस लिए लगायी गई कि क़ुर्बानी अन्आम के सिवा और किसी जानवर की दुरूस्त नहीं अगरचे उसका खाना हलाल ही हो।’’ – (तर्जुमानुल क़ुरआन: 741)

मज़ीद फरमाते हैंः

‘‘बहीमतिल अन्आम’’ से मुराद ऊँट, बक़र और बकरी मुराद हैं। चुनाचे अल्लाह तआला ने सूरतुल अन्आम में मुफस्सिल बयान फरमाया।’’ – (तर्जुमानुल क़ुरआन: 727)

मज़कूरह आयत की तफसीर में क़ाज़ी शौकानी रहमुतल्लाह अलैह फरमाते हैंः

و فيه اشارة الي ان القربان لا يكون الا من الانعام دون غيرها 

‘‘व फिल इशारतुन इला अन्नल क़ुर्बानः ला यकूनु इल्ला मिनल अन्आमि दूना ग़इरिहा’’ (फत्हुल क़दीर 3/452)

‘‘इसमें इशारा है कि अन्आम के अलावा दूसरे जानवरों की क़ुर्बानी नहीं होती है।’’

और फिर अन्आम की तशरीह में फरमाते हैंः

وهي الإبل والبقر والغنم

‘‘व हियल इबिलु वल बक़रू वल ग़नमु’’(फत्हुल क़दीर 3/451)

‘‘और वो ऊँट, बक़र और भेड़ बकरी हैं।’’

मज़कूरा आयते करीमा की तफसीर से मालूम हुआ कि ‘‘बहीमतिल अन्आम’’ से मुराद ऊँट, बक़र और भेड़ बकरी हैं और इन्हीं की क़ुर्बानी करनी चाहिए। भैंस इन चार क़िस्म के चौपायों में से नहीं। अल्लामा सय्यद साबिक़ रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैंः

ولاتكون الا من الإبل والبقر والغنم ولا يجزى من غير هذه الثلاثة يقول اللّٰه سبحانه “ليذ كروااسم اللّٰه على ما رزقهم من بهيمة الانعام”

वला तकूनु इल्ला मिनल इबिलि वल बक़रि वल ग़नमि वला युज्ज़ी मिन ग़इरि हाज़िहिस सलासति यक़ूलुल्लाहु सुब्हानहू ‘‘लियज़ कुरूस्मल्लाहि अला मा रज़क़हुम मिन बहीमतिल अन् आमि’’ (फिक़्हुस सुन्नह 3/264)

‘‘क़ुर्बानी ऊँट, बक़र और भेड़ बकरी के अलावा जायज़ नहीं। अल्लाह तआला फरमाता हैः ‘‘वो याद करें अल्लाह तआला का नाम उस जानवर पर जो अल्लाह तआला ने उन्हें मवेशी चौपायों में से अता किया।’’

यही मोक़िफ हाफिज़ अब्दुल्लाह मुहद्दिस रूपड़ी रहमतुल्लाह अलैह ने फतावा अहले हदीस (2/426) में इख़्तियार किया है, फरमाते हैंः ‘‘बाज़ ने जो ये लिखा हैः 

الجاموس نوع من البقر

‘‘अल जामूसु नौउन मिनल बक़रि’’

कि भैंस बक़र की क़िस्म से है’’ ये भी इसी ज़कात के लिहाज़ से सहीह हो सकता है वरना ज़ाहिर है कि भैंस दूसरी जिन्स है।’’ अहनाफ के हां भैंस की क़ुर्बानी की जा सकती है और ये बक़र में दाखि़ल है। हिदाया में हैः

ويدخل قي البقر الجاموس لانه من جنسه 

‘‘व यद ख़ुलु फिल बक़रिल जामूसु लिअन्नहु मिन जिन्सिही’’ (अल-हिदाया, किताबुल अज़हिया – 4/359)

‘‘बक़र में भैंस दाखि़ल है इस लिए कि ये बक़र की जिन्स से है।’’ 

फतावा सनाइया में लिखा हैः

‘‘हिजाज (यानी अरब का वो हिस्सा जिसमें मक्का, मदीना और ताइफ शामिल हैं) में भैंस का वुजूद ही न था पस इसकी क़ुर्बानी न सुन्नते रसूल से साबित है न सहाबा रज़िअल्लाहु अन्हुम से, हाँ अगर इसकी जिन्स बक़र से माना जाये जैसा कि हनफिया का क़यास है ये उमूम बहीमतिल अन्आम पर नज़र डाली जाये तो हुक्म जवाज़े क़ुर्बानी के लिए ये इल्लत काफी है। (अज़ मौलाना अबुल उला नज़र अहमद किसवानी)।’’ (फतावा सनाइया – 1/810)

अइम्मा-ए-इस्लाम के हां जामूस (भैंस) का जिन्स बक़र से होना मुख़्तलिफ फियह है। मबनी पर अहतियात और राजेह यही मोक़िफ है कि भैंस की क़ुर्बानी न की जाये बल्कि मसनून क़र्बानी ऊँट, बक़र, भेड़, बकरी से की जाये, जबकि ये जानवर मौजूद हैं तो इनके होते हुए मुशतबा उमूर से इज्तिनाब ही करना चाहिए और दीगर बहस व मुबाहसा से बचना ही ऊला और बेहतर है।

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