अतः अब आपकी ख़िदमत में पेश है :
ऐसे गुनाह जिनको लोगों ने मामूली समझ रखा है भाग : 03
अल्लाह के साथ शिर्क करना पूरी तरह से बहुत बड़ा गुनाह और हराम किये गये कामों में से है।
अबू बकरह रज़िअल्लाहु अन्हु की हदीस में है रसूल अल्लाह सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने तीन बार फ़रमायाः ।
الا أنبئكم بأكبر الكبائر (ثلاثا) قلنا بلى يا رسول الله، بالله قال: الإشراك بالله
तरजुमा- क्या मैं तुम्हें सबसे बड़े गुनाहों के बारे में ना बतलाऊं? अर्ज़ किया ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम हमें ज़रूर बतलाइये, तो आप सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम ने फरमायाः सबसे बड़ा और अज़ीम तरीन गुनाह अल्लाह के साथ शिर्क करना है। (फ़तहुलबारी-4511, यह मुत्तफ़क अलैह हदीस है)
शिर्क के अलावा हर गुनाह मुमकिन है अल्लाह तआला उसे माफ़ फ़रमा दे, इस लिये इस गुनाह के होजाने पर खास तौर पर तौबा व इस्तिग़फ़ार (माफ़ी) ज़रूरी है। फ़रमाने इलाही है:
ان الله لا يغفر أن يشرك به و يغفر مادون ذلك لمن يشاء
तरजुमा- यक़ीनन अल्लाह तआला अपने साथ शरीक किये जाने को कभी माफ़ नहीं करता इसके सिवा जिसको चाहे माफ़ कर देता है। (सूरह निसा-4815)
शिर्क की दो किस्में हैं:
- शिर्क अकबर (बड़ा शिर्क)
- शिर्क अस्गर (छोटा शिर्क)
शिर्क अकबर (बड़ा शिर्क)
शिर्क अकबर का करने वाला मिल्लते इस्लामिया से खारिज हो जाता है, और अगर इसी हालत में मर गया तो हमेशा हमेशा जहन्नम में रहेगा।
शिर्क अकबर के बहुत सारे नमूने इस्लामी मुल्कों में रिवाज – पा गये हैं उनमें से कुछ का ज़िक्र किया जाता है।
(1) कब्रों की इबादत व पूजाः
यह अक़ीदा (यक़ीन) रखना कि मरे हुए (बुजुर्ग) हमारी ज़रूरतों को पूरा करते और मुश्किलों को दूर करते हैं और फिर उनसे फरयाद करना और मदद मांगना, शिर्क की किस्मों में से है। हालांकि अल्लाह तआला ने फ़रमाया है:
وقضى ربك ألا تعبدوا إلا إياه
तरजुमा- तुम्हारे रब का हुक्म है कि उसके अलावा किसी की इबादत न करो। (सूरह इसरा-23/15)
इसी तरह गुज़रे हुए नबियों और दीगर नेक लोगों को शफाअत और मुसीबतों से छुटकारे के लिये पुकारना शिर्क है, अल्लाह तआला फ़रमाता है:
امن يجيب المضطر اذا دعاه ويكشف السوء ويجعلكم خلفاء الأرض أإله مع الله
तरजुमा- बेकस की पुकार को जब वह पुकारे कौन कु़बूल करके सख़्ती को दूर करता है, और तुम्हें ज़मीन का ख़लीफा बनाता है ? क्या अल्लाह तआला के साथ और कोई माबूद (इबादत के लायक़) है ? (सूरह नमल-62/20) .
इन हज़रात में से तो कुछ ने तो उठते बैठते (गिरते) लड़खड़ाते हर हाल में अपने शैख़ या वली को पुकारना उनका जिक्र करना अपनी आदत व तरीका बना लिया है।
और इनमें से कोई जब भी किसी मुसीबत व परेशानी में गिरफ्तार होता है तो कोई मुहम्मद (सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम) को पुकारता है तो कोई अली व हुसैन का नारा लगाता है कोई कहता है या शैख़ जीलानी तो कोई शाह वली या रफ़ाई को याद करता है कोई अब्द रूस को पुकारता है तो कोई सैयदा जैनब को तो कोई इब्ने अल्वान को।
हालांकि फ़रमाने इलाही है:
ان الله الذين تدعون من دون الله عباد أمثالكم
तरजुमा- तुम अल्लाह के अलावा जिनको पुकारते हो बेशक वह भी तुम्हारी ही तरह के बन्दे हैं। (सूरह आराफ़-19418)
और कुछ कब्रों के पुजारी तो कब्रों का तवाफ़ करते, उसकी दीवारों को छूते, चौखटों को चूमते चाटते हैं, उन कब्रों की राख व मिट्टी को अपने चेहरे पर मलते हैं और उन पर सजदा तक कर डालते हैं।
वह कब्रों के सामने बड़े गिड़गिड़ा कर और बहुत ही आजिज़ी व इन्किसारी अदब व एहतिराम से खड़े होते और बीमार की सेहत व तन्दरूस्ती, औलाद की चाह, मुश्किल कुशाई जैसी चाहतें और ज़रूरतें गिड़गिड़ा कर मांगते हैं और कोई कोई तो कहता है कि ऐ मेरे आक़ा में बड़ी दूर से आया हूँ मुझे मायूस न करना, और नाकाम न लोटाना।
हालांकि फ़रमाने इलाही तो यूं है:
ومن أضل ممن يدعو من دون الله من لا يستجيب له إلى يوم القيامة وهم عن دعائهم غافلون
तरजुमा- और उससे बढ़कर गुमराह (रास्ता भटका हुआ) कौन होगा जो अल्लाह के सिवा ऐसों को पुकारता है जो कयामत तक उसकी दुआ कु़बूल न कर सकेंगे बल्कि उनके पुकारने से बिलकुल बेख़बर हैं। (सूरह अहकाफ़-5/26) :
तरजुमा- जो शख़्स शिर्क करते हुए मरा वह जहन्नम में जायेगा। (बुख़ारी व मुस्लिम)
और उनमें से कुछ लोग तो कब्रों पर बाल भी मुन्डवाते हैं। और उनमें से कुछ लोगों के पास आस्तानों के आदाब या औलिया की कब्रों की ज़्यारत करने का तरीका जैसे “मनासिके हज्जुलमशाहिद’ उनवान की किताबें होती हैं जिनमें ‘मशाहिद’ का मतलब वह कळे व औलिया के मज़ार लेते हैं। उन लोगों का अकीदा है कि औलिया इस कायनात में दखल रखते हैं और फ़ायदा व नुकसान पंहुचा सकते हैं। हालांकि अल्लाह तआला फ़रमाता है:
واين يمسك الله بضر فلا كاشف له إلا هو وان يردک بخير فلا راد لفضله
तरजुमा- और अगर तुमको अल्लाह कोई तकलीफ़ पंहुचाये तो सिबाये उसके और कोई उसको दूर करने वाला नहीं और अगर वह तुम्हारे साथ भलाई करना चाहे तो उसके फ़ज़ल को रोकने वाला कोई नहीं। (सूरह यूनुस- 10/11)
गै़र अल्लाह से नज़र व नियाज माननाः
अल्लाह को छोड़ कर किसी और से नज़र मानना शिर्क है। जिस तरह कि कुछ लोग कब्रों पर मोम बत्ती, दिये और रोशनी की मन्नत और नज़र मानते हैं।
गैर अल्लाह के नाम पर ज़िबह करनाः
शिर्क अक्बर में से गै़र अल्लाह के लिये क़ुरबानी करना भी है। अल्लाह तआला फ़रमाता है:
فصل لربک وانحر
तरजुमा- अपने रब के लिये नमाज़ पढ़ो और क़ुरबानी करो। (सूरह कौसर- 2/30)
यानि अल्लाह के नाम पर सिर्फ उसी के लिये ज़िबह और क़ुरबानी करो। और नबी करीम सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फ़रमायाः
لعن الله من ذبح لغير الله
तरजुमा- जो शख़्स अल्लाह के अलावा किसी के लिये कुरबानी करे अल्लाह उस पर लानत करे। (मुस्लिम- 1978)
और इस तरह से ज़िबह करना दो वजहों से ह़राम है। क्योंकि यह गै़र अल्लाह के नाम पर ज़िबह किया गया है और गै़र अल्लाह के लिये है। इस लिये दोनों वजहों से ज़िबह किया गया खाना नाजाइज़ और ह़राम है।
ज़माना जाहिलियत में जो कु़रबानियां पेश की जाती थीं उसमें से एक क़िस्म जिन्नात के लिये क़ुरबानी करना है जो हमारे इस जमाने में भी राइज है। दौरे जाहिलियत में जब वह लोग कोई घर ख़रीदते या नया घर बनाते, या कुआं खोदते तो जिन्नों के डर से उसकी चौखट पर क़ुरबानी देते थे। (तैसरूल अज़ीज़ अलहमीदः पेज 158)
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