Umar Bin Khattab (RA) : ज़माना-ए-जाहिलीयत की ज़िन्दगी 01 : Part 2


(बिस्मिल्लिहिर्रहमानिर्रहमी)

Umar Bin Khattab (RA) : उमर रज़िअल्लाहु अन्हु ने अपनी ज़िन्दगी का लम्बा अरसा ज़माना-ए-जाहिलियत  में गुज़ारा और क़ुरैश के अपने हम उम्रों के साथ पले बढ़े, आप इस ऐतिबार से उनसे मुमताज़ थे कि आप उन लोगों में से थे जिन्होंने पढ़ना सीख लिया था, और ऐसे लोग तादात में बहुत थोड़े थे।

आप ने बचपन ही से ज़िम्मेदारी का बोझ उठाया, और सखी व तंगी के माहौल में जवान हुए, ऐसी सख़्ती कि ऐशो इशरत और मालदारी की किसी अलामत को जाना ही नहीं, आप के बाप ख़त्ताब सख़्ती से आप को चरागाह की तरफ ऊँट चराने के लिए भेजते थे। बाप की इस सख़्ती ने आप रज़िअल्लाहु अन्हु की ज़ात पर बराबर अस़र छोड़ा, आप इसे अपनी ज़िन्दगी भर याद करते रहे। अब्दुर्रहमान बिन हातिब इसकी तफसील यूँ बयान करते हैंः

  ‘मैं ज़ॅजनान (जोकि मक्का से एक मंज़िल (तक़रीबन 12 मील) की दूरी पर एक पहाड़ है। और कहा गया कि 25 किलोमीटर की दूरी पर एक पहाड़ है) मैं उमर बिन ख़त्ताब रज़िअल्लाहु अन्हु के साथ था, आप ने मुझ से कहाः मैं ऐसी जगह ख़त्ताब के ऊँटों को चराता था, वो बहुत सख़्त थे, मैं कभी ऊँट चराता और कभी लकड़ियां चुन्ने चला जाता।’’ 

 चुँकि उमर रज़िअल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी में ये मरहला सख़्ती का था इस लिए आप अक्सर उसे ज़िक्र किया करते थे। सईद बिन मसइयब रहमतुल्लाह फरमाते हैंः उमर रज़िअल्लाहु अन्हु ने हज किया, जब ज़ॅजनान पहुँचे तो कहाः ला इलाहा इल्लल्लाहुल अलीयुल अज़ीम, जिसे जो चाहता है देता है, मैं इसी वादी में ऊनी क़मीज पहन कर ख़त्ताब के ऊँटों को चराया करता था, वह बहुत सख़ी थे, जब मैं काम करता मेरे पीछे लगे रहते, अगर कोताही करता तो मारते, मैं ऐसी हातल में हो गया कि मेरे और अल्लाह के दर्मियान कोई नहीं रहा। 

फिर आपने मिसाल बयान कीः

ला शईआ मिम्मा तरा तब्क़ा बशाशतुहू

यब-क़ल इलाहु व युर्दल मालु वल वलदु

‘‘जो कुछ तुम देख रहे हो किसी की भी रोनक़ बाक़ी रहने वाली नहीं है, सिर्फ अल्लाह बाक़ी रहेगा और माल व औलाद ख़त्म हो जायेंगे।’’

लम तुग़नि अन हुरमुज़िन यऊ-मन ख़ज़ाइनुहू

वल ख़ल्दु क़द हा-वलत आदुन फमा ख़लदू

‘‘उस (मौत के) दिन हुरमुज़ को उसके ख़ज़ानों ने कोई फायदा नहीं दिया, और क़ौमे आद ने हमेशा आबाद रहने की कोशिश की लेकिन हमेशा न रही।’’

वला सुलईमानु इज़ तजिररियाहु लहु

वल इन्सु वल जिन्नु फीमा बईनहा बर्दु

‘‘और न सुलेमान ज़िन्दा रहे जिनके लिए हवाऐं मुसख़्ख़र थीं, और इंसान व जिन्नात उनके ताबेअ थे।’’

अईनल मलूकल्लती कानत नव अहलुहा

मिन कुल्लि अऊबु इलईहा राकिबुन यफिदु

‘‘कहाँ गये वो बादशाह जिनके चश्मों से हर तरफ से आने वाला क़ाफिला सैराब होता था।’’

हऊज़न हुनालिकः मऊरूदुन बिलन कज़िब

ला बुद्दा मिन विर्दीहि यऊमन कमा वरदू

‘‘वो (मौत) ऐसा हौज़ है जिस पर यक़ीनन हर किसी को एक न एक दिन आना है, जैसे कि वो लोग उस पर पहुँचे।’’

आप रज़िअल्लाहु अन्हु सिर्फ अपने बाप के ऊँटों को नहीं चराते थे बल्कि बनी मख़ज़ूम से ताल्लुक़ रखने वाली अपनी ख़ालाओं के ऊँटों को भी चराते, इस बात का ज़िक्र उमर रज़िअल्लाहु अन्हु ने ख़ुद-ब-ख़ुद उस वक़्त किया जब कि अमीरूल मुअमिनीन होते हुए एक दिन आप को ख़्याल आया कि मैं अमीरूल मुअमिनीन बन गया हूँ, अब मुझ से अफज़ल कौन? तो एक दिन आप अपने नफ्स का ग़ुरूर तोड़ने के लिए मुसलमानों के दर्मियान खड़े हुए और ऐलान किया कि उमर बकरियों का एक चरवाहा था, बनी मख़ज़ूम से ताल्लुक़ रखने वाली अपनी ख़ालाओं के ऊँटों को चराता था।

मुहम्मद बिन उमर अल-मख़ज़ूमी अपने बाप से रिवायत करते हुए कहते हैंः उमर बिन ख़त्ताब रज़िअल्लाहु अन्हु ने ‘‘अस्सलातुल जामिया’’ की मुनादी करवाई, जब लोग जमा हो गए और सब ने ‘‘अल्लाहु अकबर’’ कहा, तो आप मिम्बर पर तश्रीफ ले गये अल्लाह की हम्द व सना बयान की, नबी करीम सल्लल्लाहु अलईहि वसल्लम पर दुरूद व सलाम भेजा, फिर बोलेः ऐ लोगों! मैंने ख़ुद को इस हालत में पाया है कि बनी मख़ज़ूम की अपनी ख़ालाओं के जानवरों को चराया है, वह मुझे मुट्ठी भर खजूर या किशमिश दे देती थीं और इसी पर अपना दिन गुज़ारता और वो दिन भी क्या था। फिर आप मिम्बर से नीचे उतर गये।

अब्दुर्रहमान बिन औफ रज़िअल्लाहु अन्हु ने आप से कहाः ऐ अमीरूल मुअमिनीन! आप ने ज़्यादा कुछ नहीं किया कि सिर्फ ख़ुद को ज़लील किया। आप ने फरमायाः ऐ इब्ने औफ! तेरा बुरा हो, सुन! मैं तन्हाई में था तो मेरे नफ्स ने मुझ को बड़ाई का एहसास दिलाया। कहा कि तू अमीरूल मुअमिनीन है, तुझसे अफज़ल कौन है? तो मैंने चाहा कि इस नफ्स को उसकी हैसियत समझा दूँ।

एक और रिवायत में हैः

‘‘मैंने अपने जी में कुछ (बड़ाई) महसूस किया तो मैंने चाहा कि इसे इसी से रौंद दूँ।’’?

बिला शुबा इस्लाम लाने से पहले मक्की ज़िन्दगी में उमर रज़िअल्लाहु अन्हु के उस पेशे (गल्ला बानी) से जुड़े रहने में उन को अच्छे सिफात मसलन क़ुव्वते तहम्मुल व बर्दाश्त, बहादुरी, और सख़्त गीरी का मालिक बना दिया। ज़माना-ए-जाहिलीयत  में आप की पूरी ज़िन्दगी ऐसी न थी कि सिर्फ बकरियां चराने में गुज़री हो बल्कि शुरू जवानी में मुख़्तलिफ जिस्मानी वर्जि़श में महारत हासिल की, कुश्ती लड़ने, घुड़सवारी करने और घुड़दौड़ में ख़ूब मश्क़ किया, शायरी मज़ाक़ व मिज़ाज बनाया और उसे सैराब किया।

आप अपनी क़ौम की तारीख़ और उन के हालात का अहतिमाम करते, अरब की बड़ी तिजारती मंडियों मसलन अकाज़ (एक मेला जो इस्लाम से पहले मक्का के क़रीब लगा करता था), मजना, और ज़िल मजाज़ के बाज़ारों में हाज़िर होने के हरीस होते, इससे आपने तिजारत, अरब की तारीख़ और क़बीलों में होने वाले झगड़ों, उनके तफाख़ुर (गुरूर) और मुनाफरत (नफरत) के वाक़ियात के बारे में बहुत कुछ जाना। इस लिए कि वो वाक़ियात व हवादिस अदबी मीरास के तौर पर तमाम क़बीलों और उनके सरदारों के दर्मियान पेश किये जाते थे, और बड़े-बड़े उदबा व नाक़िदीन उन्हें हिफ्ज़ व तहरीर में लाते थे।

इसी चीज़ ने अरबी तारीख़ का दायरा वसीअ और हमेशा के लिए इसे ज़िन्दा रखा, जिस पर कभी भूल का पर्दा न पड़े। बसा औक़ात हादसात की चिंगारियाँ उड़ीं और लड़ाई की शक्ल में ज़ाहिर हुईं। बज़ाते ख़ुद सिर्फ अकाज़ चार लड़ाईयों का बराहे रास्त सबब बना, जिन्हें ‘‘हुरूबुल फिजार’’ कहा जाता है।

उमर रज़िअल्लाहु अन्हु तिजारत में मशग़ूल हुए और उससे ख़ूब फायदा उठाया, उसी तिजारत ने उनको मक्का के मालदारों में से बना दिया। तिजारत की ग़रज़ से जिन शहरों की आपने ज़ियारत की वहां मुतअद्दद मालूमात हासिल कीं। मौसमे गर्मा में शाम और सरमा में यमन का सफर किया। और जाहिलियत की मक्की जि़न्दगी में अपना नुमायां मक़ाम बना लिया, और बड़े ज़ोरो शोर के साथ इसके वाक़ियात में खुलकर हिस्सा लिया। आपके बुज़ुर्ग अजदाद की तारीख़ ने आप की हिम्मत अफज़ाई की, आप के दादा नौफेल बिन अब्दुल उज़्जा क़ुरैश के उन लोगों में से थे जिनके पास लोग फैसले लेकर आते थे। जब कि आप के बड़े दादा कअब बिन लवी अरबों में बुलन्द मक़ाम व मर्तबा वाले और साहिबे हैसियत थे। मुअर्रिख़ीन ने आपकी तारीख़े वफात आमुल फील बतायी। उमर रज़िअल्लाहु अन्हु ने ये अहम मक़ाम अपने आबा व अजदाद से विरासत में पाई थी। इसी मक़ाम व मर्तबा ने इनको तजुर्बा, अक़्लमंदी, और अरबों की तारीख़ की मअरिफत से नवाज़ा। जब कि आपकी दानिशमंदी और ज़िहानत का कुछ कहना ही नहीं। अरब के लोग अपने झगड़ों को ख़त्म कराने की लिए आप ही के पास आते। इब्ने सअद फरमाते हैंः उमर रज़िअल्लाहु अन्हु इस्लाम लाने से पहले अरबों में उनके झगड़ों का फैसला करते थे।

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