Sunehri Kirnen A Glance : मुस्लिम ख़्वातीन की आला इक़्तिदार के रोशन तज़किरे

Sunehri Kirnen : बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम; मुस्लिम ख़्वातीन की आला इक़्तिदार के रोशन तज़किरे; Sunehri Kirnen : मुस्लिम ख़्वातीन की आला इक़्तिदार के रोशन तज़किरे : A Glance; Sunehri Kirnen : मुस्लिम ख़्वातीन की आला इक़्तिदार के रोशन तज़किरे : A Glance

अल्हम्दु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन, अर्रहमानिर्रहीन, मालिकि यऊ मिद्दीन, इय्याकः नअबुदु व इय्याकः नस्तईन, इह्दिनस्सिरातल मुस्तक़ीम, वस्सलातु वस्सलामु अला रसूलिहिल अमीन वल आक़िबतु लिल मुत्तक़ीन, अम्मा बाद!

सब तारीफ अल्लाह के लिए है जो सारे जहानों का रब है और दुरूद व सलाम हों आखि़री पैग़म्बर जनाब मुहम्मद रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलईहि वसल्लम पर। (अल्लाहुम्मा सल्लि व सल्लिम व बारिक अलैह।)

इक नज़र…

जब मैंने इस्लामी तारीख़ की किताबों का मुतअला शुरू किया तो मुस्लिम ख़्वातीन की आला इक़्तिदार के रोशन तज़किरे पर ‘‘सुनहरी किरणें’’ के नाम से एक किताब मेरी नज़रों के सामने से गुज़री, इस किताब के लेखक जनाब अब्दुल मालिक मुजाहिद (रहिमाहुल्लाह) हैं। इस किताब में ख़्वातीन से मुताल्लिक़ तमाम वाक़ियात मैंने पढ़े तो मैंने महसूस किया कि इस्लाम ने ख़्वातीन को जो मुक़ाम अता किया है और उन्हें जो अहमियत दी है इसकी मिसाल दुनिया का कोई मज़हब देने से क़ासिर है।

चुनांचे फिर मैंने ये तय किया कि क्यों ना इन वाक़ियात को बतौर नसीहत तमाम लोगों तक पहुँचाया जाये जिससे गुज़रे ज़माने की नसीहत आमेज़ बातों से सभी हज़रात मुस्तफीद हों साथ ही हमारी माँ, बहिनें, बहू और बेटियों में दीने इस्लाम का जज़्बा पैदा हो सके। 

अज़ीज़ पाठकों, आप इस बात से अच्छी तरह से वाक़िफ हैं कि आज का ये दौर इलैक्ट्राॅनिक मीडिया का दौर चल रहा है आज हर एक चाहे बड़ा हो या छोटा सब के पास इलैक्ट्राॅनिक डिवाइस जैसे मोबाइल, टेबलेट, आई फोन, लैपटाॅप व कम्प्यूटर वग़ैरा हैं और ज़्यादातर तालीम (शिक्षा) इन्हीं डिवाइसेज़ के ज़रिए से हासिल की जा रही है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए मैंने ये तय किया है कि इन वाक़ियात को आडियो/वीडियो और हिन्दी लेख के ज़रिए आप लोगों तक पहुँचाने की भरपूर कोशिश कर रहा हूँ। इस ब्लाॅक के ज़रिए हिन्दी लेख पढ़ सकते हैं और हमारे यू-ट्यूब चैनल के ज़रिए वीडियो/आडियो को भी देख व सुन सकते हैं। इस चैनल पर विश्वस्तरीय उलमा-ए-किराम के बयानात आपको मिलेंगे। यू-ट्यूब चैनल का लिंक पोस्ट के नीचे दिया गया है।

इस्लाम ने ख़्वातीन को जो मुक़ाम अता किया है और उन्हें जो अहमियत दी है यक़ीनन दुनिया का कोई दूसरा मज़हब नहीं दे सकता है। भला और किस मज़हब में आपको मिलेगा कि माँ के क़दमों में जन्नत है, और किस मज़हब के रहनुमा आपको बताऐंगे कि हमारी खि़दमत और हुस्ने सुलूक की सबसे ज़्यादा हक़दार हमारी माँऐं हैं…

और हक़ीक़त यही है कि शुरू से ही हमारी नौज़ायदा नस्लें अपनी बालीदगी, तरबियत और नशोनुमा के लिए अपनी माँओं की मोहताज रहीं हैं। बच्चों की तरबियत और इनकी मुनासिब अंदाज़ में उठान इतना बड़ा काम है और इसके लिए इतनी तवज्जह, सब्र, मुहब्बत और मेहनत की ज़रूरत होती है कि जो मर्द के बस से बाहर की बात है। ये सिर्फ ख़्वातीन ही समझ सकती हैं कि इस अज़ीम काम में उन्हें कितनी परेशानी उठानी पड़ती है, किन-किन जज़्बाती कैफियतों से गुज़रना पड़ता है, किस तरह रातों को जागना पड़ता है और दिनों में तरबियत की मशक़्क़त बर्दाश्त करना पड़ती है। क़ौम की तामीर के इन मरहलों में औरत को ज़िहानत व दूर अंदेशी भी दरकार होती है, इंसानियत के आला उसूलों से वाक़्फियत भी और ज़िन्दगी की आला इक़्तिदारों से शनासाई भी, मज़हबी तालीमात से भी आश्ना होना पड़ता है अैर दुनिया के बदलते रूजहानात से भी… और फिर इस तरह अपने माज़ी, हाल और मुस्तक़्बिल से जुड़ी हमारी नई नस्ल अपनी ज़िम्मेदारियों को पूरा करने के लिए तैयार रहती है। इसी बिना पर एक औरत अपने हर रिश्ते के ऐतिबार से मुक़द्दस व मोहतरम होती है चाहे वह एक माँ, नानी, दादी, बहिन, बेटी, ख़ाला और फूफी के रूप में हो या सास, बहू और बीवी के रूप में।

औरत की शख़्सियत के ऐसे तमाम पहलू जिनमें उसकी ज़िहानत, शुजाअत, तक़वा, परहेज़गारी और बहादुरी ज़ाहिर होती हो, इस किताब की ज़ीनत हैं। पेशकर्दा तमाम वाक़ियात दिलचस्प और सच्चे हैं लेकिन मेरी दरखास्त है कि इनको जरह व तअदील के मेयार पर न रखा जाये बल्कि इनके पसपुर्दा मौजूद हिक्मतों और नसीहतों पर तवज्जा मर्कूज़ रखी जाये।

मैं इस काविश के लिए अपनी अहलिया का भी शुक्रगुज़ार हूँ कि उन्होंने मुझे हर क़िस्म की अड़चन से दूर रखा ताकि इस काविश पर पूरी तरह से ध्यान दे सकूँ। और मैं अपने माँ-बाप का भी शुक्रगुज़ार हूँ कि उन्होंने मुझे दीने इस्लाम की तालीम दिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी, और हमारी पढ़ाई लिखाई का भरपूर ध्यान रखा और हर वक़्त अपनी दुआओं में शामिल रखा, यक़ीनन ये उनकी कोशिश और दुआओं का नतीजा ही है। मैं भी अल्लाह तआला से उनके हक़ में दुआ करता हूँ हमारे माँ-बाप की मग़फिरत फरमाये और हमारे इल्म और अमल को उनके लिए सदक़ा-ए-जारिया बनाऐ, आमीन!

मुझे उम्मीद है कि इन वाक़ियात से तमाम ख़्वातीन और बच्चों में बेहतरी का एक नया वलवला और जज़्बा पैदा होगा और साथ ही मर्दों को भी इस बात का बख़ूबी अंदाज़ा हो जायेगा कि शुजाअत, ज़िहानत और सब्र व तहम्मुल की सिफात किस तरह भरपूर अंदाज़ में औरतों पर भी मौजूद रहती हैं।

यक़ीनन अल्लाह तआला ही सब कुछ करने वाला है वही जिसे चाहे हिदायत दे और जिसे चाहे गुमराह कर दे, जिसे चाहे तौफीक़ दे और जिसे चाहे महरूम रखे। ये अल्लाह तअला का मुझ पर बड़ा फज़ल व करम और उसकी मेहरबानी है कि उसने मुझे दीने शरीअत के इल्म से मालामाल किया और दीनी खि़दमत अंजाम देने की तौफीक़ अता फरमायी। 

अल्लाह तआला से दुआ है हम तमाम लोगों को दीने इस्लाम को समझने, और शरीअत-ए-इस्लामिया पर चलने और क़ुरआन व सुन्नत के मुताबिक़ अमल करने की तौफीक़ अता फरमाये, और जब तक ज़िन्दा रखे तो इस्लाम पर और ख़ातिमा ईमान पर करे। तक़ब्बलल्लाहु या रब्बुल आलमीन। आमीन!

वस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाह व बरकातुह।

शहाबुद्दीन बिन ज़ियाउद्दीन

(फाउण्डर/ट्रस्टी)

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