Against Islam 360 Application: इस्लाम 360 का उपयोग अहले हदीस के लिए घातक
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम - प्यारे दोस्तों! इस्लाम 360 एप के बारे में आपने ज़रूर सुना होगा। ये एप एक इस्लामिक एप है जिसके माध्यम से मुस्लिम और ग़ैर मुस्लिम दीने इस्लाम को जानने और समझने की कोशिश कर रहे हैं। इस एप के अंदर क़ुरआन और इसका तर्जुमा उर्दू, हिन्दी और अंग्रेज़ी आदि में दिया गया है और इसके साथ क़ुरआन की तफ़सीर भी मौजूद है। और इस एप के अंदर तमाम हदीसें सनद के साथ आपको मिल जाएंगी। गूगल प्ले स्टोर पर इसके 10 मिलियन से अभी ज़्यादा डाउनलोड हैं। परन्तु ये एप एक फ़िरक़ा वाराना एप है जिसमें कुछ सही तर्जुमा व तफ़सीर शामिल नहीं की गईं है। इसी की बुनियाद पर आज ये एप चर्चा का विषय बन गया है। अब हम इस विषय पर विस्तार से बात कर रहे हैं-
दोस्तों! आज कल आम तौर पर लोग अपनी दावत वग़ैरा की शुरूआत किताब (क़ुरआन मजीद) व सुन्नत (अहादीसे मुबारका) से करते हैं। शुरूआत में ख़ालिस सलफियत और अहले हदीसियत के नाम पर अपना प्रचार व प्रसार करते हैं, अहले हदीस़ के बड़े उलमा-ए-किराम का तक़र्रूब हासिल करते हैं। अपने काम को आलमी और वल्र्ड लेवल का बता कर उन उलमा का ऐतिमाद और भरोसा हासिल करते हैं। अहले हदीस लोग अपले उलेमा-ए-किराम की नसीहत पर चलते हुए ऐसे लोगों की दावत या एप्लीकेशन पर ऐतिमाद व भरोसा कर लेते हैं और उससे फ़ायदा उठाने लग जाते हैं। परन्तु ऐसे लोग बहुत ज़्यादा देर सलफी मनहज पर क़ायम नहीं रह पाते, क्योंकि सलफियत नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के मनहज पर ग़लत को ग़लत बोलना और उससे दूर रहना और सही को सही बोलना और उसका साथ देने का नाम है, अपनी ख़्वाहिश के खि़लाफ़ चलने का नाम है, लेकिन इस तरह के लोगों को जब उलमा-ए-अहले हदीस़ के तज़किये की बुनियाद पर शोहरत और पज़ीराई मिल जाती है तो ये देवबंदी, बरेलवी, जमाअते इस्लामी, मुनकरीने हदीस़ वग़ैरा से इत्तिहाद के नाम पर हाथ मिला लेते हैं, फिर सलफियत के नाम पर बरेलवी, मुनकरीने हदीस़, देवबंदी और जमाअते इस्लामी के अफ़कार व नज़रियत को अहले हदीस़ अवाम के दरमियान फ़ैलाने लगते हैं, जब उन्हें टोंका जाता है तोे कहते हैं हमारा काम हर आलिम की बात को अवाम व लोगों के सामने रख देना है लोग ख़ुद ही ग़लत और सही की पहचान कर लेंगे।
ये तो वही बात हुई कि एक शख़्स ने सोने की दुकान खोल रखी है जिसमें असली सोना, नकली सोना, और थोड़े से पीतल का कारोबार चलाते हैं, बस मुश्किल ये है कि वो दोनों तरह के सोना और पीतल को एक साथ मिलाकर लोगों के सामने रख देते हैं। अब लोग उसे सोना ही समझकर उसका भाव करते हैं, जब कोई उन पर ऐतिराज़ करता है कि भाई ऐसा लग रहा है कि इसमें मिलावट है। तो इस तरह के दुकानदार कहते हैं कि भाई जो असली सोना है वो ले लो और जो नकली सोना या पीतल है उसे छोड़ दो, अब बेचारा ख़रीददार इस कश्मोकश में मुबतला है कि मुझे जब असली सोने की परख नहीं तो मैं नकली सोना और पीतल की पहचान कैसे करूं?
इसी तरह का नारा लगाकर सलफियों को अहले बिदअत की किताब पढ़ने और उनको तक़रीरें सुनने की तरग़ीब देना बिल्कुल वैसे ही है जैसे कोई शहद में ज़हर मिलाकर दे और कहे कि अल्लाह रब्बुल आलमीन ने शहद में शिफ़ा रखी है, तुमको शहद से मतलब होना चाहिए ज़हर से नहीं...
इस्लाम 360 नामी एप्लीकेशन वालों ने भी अपनी एप्लीकेशन की शुरूआत अहले हदीसियत के नाम पर की, उलमा-ए-अहले हदीस से अपनी एप्लीकेशन के लिए तज़किया इकट्ठा करके अहले हदीस़ अवाम को समझाने में कामयाब हो गये कि उलमा-ए-अहले हदीस़ ने हम पर ऐतिमाद व भरोसा कर लिया है इस लिए आप लोगों को भी भरोसा कर लेना चाहिए। जब अहले हदीस़ अवाम इस एप्लीकेशन से फ़ायदा उठाने लगी तो इस एप्लीकेशन की इंतिज़ामिया ने एप का पूरा फार्मेट ही बदल कर रख दिया। धीरे-धीरे उलमा-ए-अहले हदीस़ की तफ़सीर को निकालना शुरू किया और उनकी जगह ‘‘सहाबा-ए-किराम को गाली देने वाला मुनकिरे सुन्नत इंजीनियर मुहम्मद अली मिर्ज़ा जहलमी राफ़्ज़ी की तफ़सीर को रख दिया’’, ‘‘शिर्क व क़ब्रपरस्ती को बढ़ावा देने वाले ताहिरूल क़ादरी का तर्जुमा-ए-क़ुरआन भी इस एप्लीकेशन में मौजूद है।’’, देवबंदी उलमा नीज़ ‘‘मौलाना मोदूदी, मौलाना वहीदुद्दीन खान, मौलाना अमीन अहसन इस्लाही, नौमान अली खान, और इन जैसे दीगर अहले बिदअत और मुनकरीने सुन्नत की तफ़ासीर’’ को इस एप में जगह दे दी गई है, यानी अहले हदीसि़यत के नाम पर राफ़ज़ियत, ख़ारजियत, ऐतिज़ाल, अशअरियत, वहदतुल वुजूद, इंकारे सुन्नत, क़ब्रपरस्ती और शिर्क व बिदअत को खुलेआम फ़रोग़ दिया जा रहा है, बल्कि इसक तरह के अहले बिदअत से अहले हदीस़ अवाम का राबता जोड़ा जा रहा है।
हिन्द व पाक के बड़े अहले हदीस़ उलमा-ए-किराम से मोअद्दिबाना गुज़ारिश है कि इस फ़ितने की ख़बर लें, क्योंकि रोज़ाना इस एप्लीकेशन पर पांच लाख लोग जाते हैं, यानी इतनी बड़ी तादाद को रोज़ाना के हिसाब से शिर्क व बिदआत और रफज़ व इंकारे सुन्न्त का ज़हर धीरे-धीरे दिया जाता है। इतने बड़े पैमाने पर ज़लालत व गुमराही का कारोबार चल रहा है। अगर वक़्त रहते इस फ़ितने को नहीं रोका गया तो ख़तरा है कि अहले हदीस़ अवाम उनके फ़ितने में मुबतला हो जाए।
प्यारे पाठकों! मुफ़ज़ल बिन मुहल्लहल फ़रमाते हैं कि ‘‘अगर किसी बिदअती की मजलिस में बैठोगे तो वह शुरू से ही अपनी बिदअत को बयान नहीं करेगा, क्योंकि अगर वो बिदअत से ही मजलिस की शुरूआत करेगा तो तुम उनकी मजलिस से उठकर चले जाओगे, इस लिए वो मजलिस की शुरूआत उन अहादीस से करता है जो अज़मते सुन्नत पर दलालत करती हों, फिर इसके बाद दौराने गुफ्तगू अपनी बिदआत को क़दरे चालाकी से पेश करेगा, अगर वो बिदअत सुन्नत के नाम पर तुम्हारे दिल में जगह बना ले तो फिर कैसे बाहर निकलेगा? (हवाला अल-इबाना लिइब्ने बता सफ़ा 140, रक़मु अस़र 394)।
मिस़ाल के तौर पर मौलाना मोदूदी की किताब ‘‘खि़लाफ़त व मलूकियत’’ को ले लें, शुरू के पन्ने क़ुरआनी आयात और उसके तर्जुमे ये मुज़य्यन हैं, अहादीस़ का अंबार है, लेकिन बाद में जाकर उन्होंने जो गुल खिलाया है वो किसी साहिबे अक़्ल व खुर्द पर पोशीदा नहीं है, ख़ास तौर से जिन्होंने उनकी इस किताब का मुतालआ किया है।
शैख़ इब्ने उस़ैमीन रह0 फ़रमाते हैं किः अहले बिदअत की किताबों से दूर रहना चाहिए, कहीं ऐसा ना हो कि उस किताब के मुतालआ की वजह से फ़ितने में मुबतता हो जाओ, और बिदतियों की किताबों की लोगों के दरमियान तरवीज व इशाअत भी न की जाए, उन किताबों में गुमराही होती है और गुमराही की जगहों से दूर रहना वाजिब है जैसाकि नबी करीम सल्ल0 ने दज्जाल के बारे में बताते हुए फ़रमायाः ‘‘जो दज्जाल के आने की ख़बर सुने वो उससे दूर रहे, उसके क़रीब ना जाए, अल्लाह की क़सम एक आदमी अपने आपको मोमिन समझेगा और उसके पास मुक़ाबला करने के लिए जाएगा, लेकिन दज्जाल उसको अपने शुब्हात में ऐसा उलझाएगा कि वो उसका पैरोकार बनकर रह जाएगा।’’ (हवाला - मजमूआ फ़तावा व रसाइल फ़ज़ीलतुश शैख़ मुहम्मद बिन साॅलेहुल उसैमीन रहिमहुल्लाह 5/89)
इस लिए जिन किताबों में बिदअत व ज़लालत है उससे दूर रहना चाहिए, कहीं ऐसा न हो कि कोई अपने आपको बड़ा दक़ाक़ समझकर उन किताबों का मुतालआ करना शुरू करे और कहे कि मैं तो ‘‘ख़ुज़ मा सफ़ा वदअ मा कदर - ‘‘यानी जो साफ है उसे ले लो और जो बुरा है से छोड़ दो’’ पर अमल करूंगा, और बाद में पता चले कि वो इस फिक्र से ऐसा मुतासिर हुआ कि ख़ुद उसको भी पता नहीं चला।’’
ख़ुलासा-ए-कलाम ये है कि ‘‘इस्लाम 360 नामी एप्लीकेशन ज़लालत व गुमराही का मजमूआ है, अपने ईमान व अक़ीदे की हिफ़ाज़त के लिए इससे दूरी इख़्तियार करें, अपने-अपने इलाक़े के अहले हदीस़ उलमा-ए-किराम से राब्तें में रहें, किसी एप्लीकेशन या साइट की बात पर उस वक़्त तक यक़ीन व अमल न करें जब तक अहले हदीस़ उलमा से उसके बारे में पूछताछ कर मुतमइन न हो जाएं, ये आपके दीन व ईमान और अक़ीदे व मनहज का मसला है, इसकी हिफ़ाज़त के लिए पहरा देना आपका काम है, आपकी थोड़ी सी ग़फलत आपके अक़ीदे व ईमान के फ़साद का सबब हो सकती है, इस लिए ख़द भी इससे बचें और अपने अज़ीज़ व अक़ारिब को भी इससे बचाने की कोशिश करें। (व अल्लाहु आलम बिस सवााब)
लेखक: अबू अहमद कलीमुद्दीन यूसुफ जामिया इस्लामिया मदीना मुनव्वरह
फिलहाल मैं आपको ऐसे एप का लिंक दे रहा हूँ जिसे डाउनलोड करके आप क़ुरआन व हदीस का इल्म हासिल कर सकते हैं-
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