सवाल: क्या सालगिरह मनाना जायज़ है?
जवाब: शादी या पैदाइश वगैरा की सालगिरह मनाना दीन-ए-इस्लाम में साबित नहीं है। रसूल-ए-करीम सल्ल0 की पैदाइश भी हुई और शादियां भी, इसी तरह आप सल्ल0 की बेटियों की शादियां भी हुईं लेकिन ये बात कहीं भी साबित नहीं कि आप सल्ल0 ने अपनी या अपनी औलाद की सालगिरह मनाई हो या अपने असहाब को सालगिरह मनाने का हुक्म दिया हो या किसी सहाबी ने सालगिरह मनाई हो और आप सल्ल0 ने ख़ामोश रह कर उसे बरक़रार रखा हो, चुनांचे ये काम इस्लामी नहीं है। अगर इस्लाम में इसकी कोई अहमियत होती तो ज़रूर इसका कहीं तज़किरा होता लेकिन ईसाइयों वग़ैरा की देखा देखी मुसलमानों ने भी इसे मनाना शुरू कर दिया है। रसूल-ए-करीम सल्ल0 ने इरशाद फ़रमाया हैः ‘‘जिसने कोई ऐसा अमल किया जिस पर हमारा हुक्म नहीं तो वो मरदूद है।’’ लिहाज़ा सालगिरह मनाना दुरूस्त नहीं है।
आडियो भी सुनेंः
0 टिप्पणियाँ
Please don't share spam link in this blog.