अस्सलामु अलैकुम दोस्तों! आज की ये पोस्ट आपके लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होने वाली है क्योंकि हम बात करने जा रहे हैं एक ऐसे गुनाह के सम्बंध में जिसे लो बहुत ही हल्का समझते हैं बल्कि गुनाह ही नहीं समझते, चुनांचे इसे आप ध्यानपूर्वक पढ़ें।
हज़रत अबू हुरैरा रज़ि0 से रिवायत है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमायाः ‘‘बदगुमानी से बचो क्यों कि बदगुमानी सबसे बड़ा झूठ है।’’
बदगुमानी एक तरह का झूठ है जो शख़्स इस बीमारी में फंसा हो उसका हाल ये होता है कि जिस किसी से इसका थोड़ा सा भी इख़्तिलाफ़ हो उसके हर काम में इसको बदनियती ही मालूम होती है, फ़िर केवल इसी वहम और बदगुमानी की वजह से वह उसकी तरफ बहुत सी फर्जी बातें जोड़ने लगता है, फिर उसकी क़ुदरती तौर पर ज़ाहिरी बर्ताव पर भी असर पड़ता है, और उस दूसरे इंसान की तरफ से भी इसका ग़लत बर्ताव होता है, इस तरह दिल फट जाते हैं और संबंध ख़राब हो जाते हैं।
अल्लाह के रसूल सल्ल0 ने उपरोक्त हदीस में बदगुमानी को ‘‘अक्ज़बुल हदीस़’’ फरमाया है। बज़ाहिर इसका मतलब ये है कि किसी के खि़लाफ़ ज़ुबान से अगर झूठी बात कही जाए तो उसका सख़्त गुनाह होना हर मुसलमान जानता है, लेकिन किसी के बारे में बदगुमानी को इतना बुरा नहीं समझा जाता! जबकि आप सल्ल0 ने ख़बरदार करते हुए फ़रमाया है कि बदगुमानी भी बहुत बड़ा बल्कि सबसे बड़ा झूठ है, और दिल का ये गुनाह ज़ुबान वाले झूठ से कम नहीं कि इससे दिलों में झूठ व दुश्मनी का बीज पड़ता है, और ईमानी संबंध जिस मुहब्बत और हमदर्दी और जिस भाईचारे को चाहता है फिर वो भी बाक़ी नहीं रहता।
आम तौर पर बदगुमानी के नतीजे में कीना कपट भी पैदा हो जाता है और दिल साफ नहीं रह जाता, जबकि नबी सल्ल0 ने एक मर्तबा हज़रत अनस रज़ियल्लाहु अन्हु को खि़ताब करके फ़रमाया था ‘‘ऐ बेटे! अगर तुम कर सको कि सुबह व शाम इस हाल में करो कि तुम्हारे दिल में किसी के लिए मैल ना हो तो ऐसा कर लो इस लिए कि ये मेरी सुन्नत है और जो मेरी सुन्नत को पसन्द करता है वो मुझसे मुहब्बत करता है और जिसने मुझसे मुहब्बत की वो जन्नत में मेरे साथ होगा।’’
कितनी बड़ी ख़ुशख़बरी है उन लोगों के लिए जो हर तरह की बदगुमानी और कीना व कपट से अपने दिलों को पाक व साफ रखते हैं।
ग़ीबत के नतीजे में भी बदगुमानियां पैदा होती हैं इस लिए ग़ीबत करना भी गुनाह है और ग़ीबत सुनना भी गुनाह है। आख़री दर्जे की बात है कि एक मर्तबा किसी ने हुज़ूर सल्ल0 के सामने किसी की बुराई बयान की तो आप सल्ल0 ने मना फ़रमाया और फ़रमाया कि मैं अल्लाह से इस हाल में मिलना चाहता हूँ कि मेरे दिल में किसी के बारे में कोई गुबार न हो।
नोट - इस पोस्ट से आपको क्या सीख मिलती है कमेंट के ज़रिए आप हमें अपनी राय दे सकते हैं। अल्लाह हाफ़िज़!
1 टिप्पणियाँ
ये आर्टिकल बहुत अच्छा है और सारी बातें नसीहतों से भरी हैं, मुझे आपकी ये पोस्ट बहुत पसन्द आई है।
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