दोस्तों! आज की ये पोस्ट आपको रूला देगी, क्योंकि इसमें एक ऐसे परिवार के संबंध में क़िस्सा तहरीर किया गया है जो ग़रीबी की मार से जूझ रहा था, इस पोस्ट को आप पूरा ज़रूर पढ़ लीजिए, हो सकता है हमें इससे बड़ी सीख मिल जाए, तो चलिए अब शुरू करते हैंः
ये दिसम्बर 2011 की बात है आज मुझे अपनी ज़िंदगी की पहली कमाई मिलने वाली थी । तीन महीने की तनख्वाह एक साथ मिली और साथ मे छुट्टी भी मिल गई।
घर पहुंचा तो ईद का समां था। माँ- बाप,भाई,बहन, सब बहुत खुश थे। मैंने सारी रक़म वालिदा के हाथ पर रख दी। वालिदा ने रक़म का तीसरा हिस्सा अल्लाह की राह में खर्च करने की नीयत से अलग किया और कहा कि इस रक़म से एक बेवा औरत के घर राशन ख़रीदकर पहुंचा देना जो दूर एक मुहल्ले में रहती थीं।
मैं उसी वक़्त गया और राशन ख़रीद कर लाया । घर मे मेरे लिए पुरतकल्लुफ़ खाने का इंतेज़ाम किया गया था।
बहन,भाइयों के साथ मिलकर लज़ीज़ खानों के मज़े उड़ाए और सफर की थकावट दूर करने की गरज़ से रज़ाई में घुस गया।
आंखें नींद से बोझल हो रही थीं कि अचानक उस बेवा औरत और उसके यतीम बच्चों का ख़्याल आया। इरादा किया कि अभी जाऊं और सामान पहुंचा दूँ ,तबियत में सुस्ती थी सोचा कल पहुंचा दूंगा।
लेकिन बाद में ख़्याल आया मैं तो पुरतकल्लुफ़ खाने का मज़ा ले चुका कहीं वह बच्चे भूखे ना हों । उसी वक़्त लिहाफ से निकला एक चादर ओढ़ी ,थैला कन्धे पर रखा और उसके घर की तरफ निकल पड़ा।
शदीद सर्दी थी, धुंध भी ज़्यादा थी और भारी थैला उठाने में भी कुछ दिक़्क़त हो रही थी। एक दूर मुहल्ले में उस औरत का घर था।
उसका शौहर मज़दूरी करता था और चार बच्चे थे, एक हादसे में उसके शौहर की मौत हो गई और अब उसके यतीम बच्चों पर दस्त ए शफ़क़त रखने वाला कोई नहीं था।
क़िस्मत भी बहुत सितम ज़रीफ़ है। कभी ऐसे भी लोगों को लपेट में लेती है जिनका अल्लाह के सिवा कोई नहीं होता।
ख्यालात का इक समंदर लिए उस बेवा औरत के घर के बाहर पहुंचा।
घर क्या था बल्कि एक झोपड़ी सा था एक कमरा, छोटा सा सहन और एक टूटा सा चारदीवारी थी। दरवाज़ा खटखटाया तो एक 5 साला बच्ची बाहर आई।
जिसके चेहरे पर परेशानी,खौफ़ और भूक नुमाया थी। मैं उसके चेहरे को तके जा रहा था और दिल ही दिल मे दुआ कर रहा था कि अल्लाह किसी बच्चे पर ऐसा वक़्त ना लाए। आमीन
उस बच्ची ने एक पुराना जोड़ा पहना हुआ था और एक शदीद सर्दी में एक फ़टी हुईं पुरानी जर्सी पहनी हुई थी।
पांव खुले थे वह भी इस सर्दी में कि पैरों को जमाकर रख दे। मैंने कुछ कहे-सुने बग़ैर राशन वाला थैला ज़मीन पर रखा। थैले को देखते ही वह बोली। " क्या इसमें खाने का सामान है"?
ये सुनना था कि मैं हैरान हो गया । एक बार फिर उसने यही सवाल दुहराया। मैंने हाँ के अंदाज़ में सर हिलाया। वह बच्ची खुशी के मारे चीख़ती, चिल्लाती मां की तरफ भागी और ये कहे जा रही थी, अम्मी फरिश्ता आ गया😢, अम्मी फरिश्ता आ गया, अम्मी फरिश्ता आ गया, और फिर दो और छोटे -छोटे बच्चे खुशी के मारे दरवाज़े पर दौड़े चले आए।
कभी मुझे देखते,कभी उस थैले को ,और खुशी से लोट-पोट हुए जा रहे थे।
मेरी आँखों से आंसू रवाँ होने लगे,होंट कँपकँपा रहे थे और जिस्म में एक सर्द लहर सी दौड़ रही थी।
या अल्लाह ये क्या माज़रा है?
क्यों ये बच्चे मुझ गुनाहगार को फरिश्ता समझ बैठे हैं। इन्हीं सोचों में डूबा था कि एक ख़ातून जो उनकी माँ थी दरवाज़े पर आईं और दरवाज़े की आड़ में खड़ी होकर रोहांसी आवाज़ में ये कहने लगीं...
मेरे बच्चे दो दिन से भूखे थे ग़ैरत गवारा नहीं करती की किसी के आगे हाथ फैलाऊं। मेरे मरहूम शौहर भी मेहनत मज़दूरी करते थे मगर कभी किसी के आगे हाथ ना फैलाया था। उनके चले जाने के बाद इनकी देख-भाल करने वाला कोई नहीं।
रिश्तेदारों ने हाथ खींच लिए हैं और मुहल्ले वाले भी मदद नहीं करते। मगर कभी-कभी आप जैसे नेक दिल लोग मदद कर देते हैं। मैं दो दिन से बच्चों को ये कह कर बहला रही थी कि एक फ़रिश्ता आएगा और हमारे लिए खाना ले आएगा।
इसीलिए ये आपको फ़रिश्ता समझ बैठे हैं । उस औरत ने अल्लाह के हुज़ूर शुकराने के चंद कलिमात अदा किए, मुझे ढेर सारी दुआएं दीं और शुक्रिया अदा किया।
मैं वहां से वापस हो लिया आंसूं रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। ज़िन्दगी में कभी खुद को इतना पुरसुकून महसूस नहीं किया जितना आज कर रहा था।
और अंदाज़ा लगाया कि एक बेबस इंसान की मदद करने से जो रूहानी सुकून मिलता है वह किसी और काम मे नहीं।
हमारे इर्द-गिर्द ऐसे बहुत से गुरबा होते हैं जो मुस्तहिक़ होने के बावजूद किसीके आगे हाथ नहीं फैलाते। मगर मदद करने वाले हाथों के मुन्तज़िर ज़रूर रहते हैं।
दो वक़्त की रोटी ही उनका कुल जहां हुआ करती है। ऐसे लोगों की मदद करनी चाहिए , चाहे वह एक वक़्त ख़ाना ही क्यों ना हो।
घर आया तो मां ने पूछा " बेटा इतनी रात कहाँ चले गए थे बिना बताए?
मैं बेसाख़्ता बोला...
फ़रिश्ता बनने गया था! अम्मा के कहने पर...
अम्मा का चेहरा भी खुशी से तमतमा उठा...!
भूख के बदले, भूख खाकर,
सोते नहीं, पर सोते हैं,
बच्चे जो भूखे होते हैं ।
ये कहानी आपको कैसी लगी, कमेंट के ज़रिए हमें अपनी राय ज़रूर दें, धन्यवाद!
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