दुरूद शरीफ़ की फ़जी़लत



"बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम"

हज़रत अबू हुरैरा (रजि़यल्लाहु अन्हु) से रिवायत है कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया: "जो कोई मुझ पर एक बार दुरूद भेजे अल्लाह तआला उस पर दस बार रहमत (नाजि़ल फ़रमाता) भेजता है।" (सहीह मुस्लिम : 912)

फ़ायदे:- सलात और सलाम अल्लाह तआला के सामने पेश की जाने वाली उच्च स्तरीय दुआ है। जो अल्लाह के रसल (सल्ल०) की हस्ती से अपनी ईमानी प्रतिबद्धता और मुहब्बत के इज़हार के लिए आपके हक़ में की जाती है, और यह आदेश पवित्र कुरान में एक बहुत ही प्रभावी तरीके से अल्लाह सर्वशक्तिमान द्वारा हम बन्दों को दिया गया, अल्लाह तआला फरमान है: "निस्संदेह अल्लाह और उसके फ़रिश्ते नबी पर दुरूद भेजते हैं, ऐ लोगो जो ईमान लाए हो, तुम भी उनपर दुरूद और सलाम भेजो।" (सूरह अहजा़ब 33 आयत नं० 56)

इस आयत से स्पष्ट है कि यह कृत्य (अमल) अल्लाह तआला को अत्यंत प्रिय है। इस आयत के आधार पर न्यायविद (फु़क़हा) इस बात से सहमत हैं कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर सलात व सलाम भेजना मुसलमानों पर जीवन में एक बार फ़र्ज़ है। और हदीस़ में नबी (सल्ल०) का मुबारक नाम आने के बाद दुरूद ना भेजने वाले को शक्की और कंजूस लोगों में माना जाता है, और इस संबंध में आपकी बातें इतनी सख्त हैं कि उनका बचाव कठिन है? और क्यों न हो?! आपके एहसानात उम्मत पर इससे कहीं अधिक हैं कि भाषण और लेख उनकी गिनती कर सके।

इससे यह निष्कर्ष भी निकलता है कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के बारे में एक मुसलमान से उससे कहीं अधिक की आवश्यकता है, जिसे केवल का़नून और व्यवस्था का मामला कहा जाता है, और जो केवल बाहरी आज्ञाकारिता से ही पूरा हो जाता है, बल्कि इसके अलावा, सम्मान, प्रेम, कृतज्ञता और विश्वास की भावना का होना भी आवश्यक है, जिसके फव्वारे दिल की गहराई से निकलते हैं, और जो रग रग में उतर गया हो। फिर दुरूद शरीफ़ के फ़जा़इल इतने महान हैं कि उनका अभाव ही अपना दुख है। भगवान की दया को आकर्षित करना, स्वर्गदूतों की प्रार्थना, पापों की क्षमा, दर्जों का बुलंद होना, शफाअत का अनिवार्य होना, हृदय की जंग की शुद्धि, और ईश्वर से निकटता; ये वो गुण हैं जो हदीसों में दुरूद शरीफ़ की बहुतायत के बारे में आए हैं।

Abu Huraira reported: The Messenger of Allah ( ‌صلی ‌اللہ ‌علیہ ‌وسلم ‌ ) said: He who blesses me once, Allah would bless him ten times. (Sahih Muslim : 912)



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