रबीउल अव्वल का महीना है, हर तरफ जश्न ए मिलाद की धूम है, हमारे बरेलवी भाई जिस जोश व खरोश के साथ यह जश्न मना रहे हैं हमारे सल्फी भाई उतनी ही शिद्दत से उनका रद कर रहे हैं, तंज कर रहे हैं, मजाक उड़ा रहे हैं, मेरा ख़्याल है उन बिदआत को ख़त्म करने का यह मुनासिब तरीक़ा नहीं।हमारे मिलादी भाई जो कुछ कर रहे हैं भले ही शरई एतिबार से वो सब ग़लत है, बिदअत है, मगर ज़रा इस पर ग़ौर करें कि उन सब के पीछे जज़््बा क्या है? उन सब के पीछे उन का जो जज़्बा है वो मोहब्बत ए रसूल का है उसी जज़्बे को बिदअती उलमा केश करते हैं और अपनी अवाम से जो चाहें करा लेते हैं।मैं कभी-कभी महसूस करता हूँ कि मुहब्बत ए रसूल का जो जज़्बा हमारे बरेलवी भाइयों के यहां है उस की मिसाल बहुत कम कहीं मिलती है, हमें अपने उन भाइयों का मज़ाक उड़ाने के बजाए उन के उस जज़्बे को (बरोए कार, सही इस्तेमाल ) में लाने की तदबीर सोचनी चाहिए,ईद मिलादुन्नबी के नाम पर जो कुछ हो रहा है सिर्फ उसका रद कर देना काफी नहीं, तंज़ और मज़ाक का काम करना तो बिल्कुल भी सही नहीं है,हमारी असल ज़िम्मेदारी यह है कि हम अपने उन भाइयों को मुहब्बत ए रसूल का असल मतलब समझाएं, उन के दिमाग़ से यह ग़लतफहमी दूर करें कि अहले हदीस गुस्ताख़ ए रसूल होते हैं, उन्हें ये एहसास दिलाएं कि असल मोहब्बत ए रसूल इत्तेबा ए सुन्नत में है रसूल की बात मानने में है न कि बिदआत और ख़ुराफ़ात में।उम्म्त के अंदर आज भी मुहब्बत ए रसूल का जज़्बा लोगों के अंदर मौजूद है, बस उस जज़्बे के इज़हार के तरीक़े ग़लत आम हो गये है, उस जज़्बे को अगर सही रुख दे दिया जाए तो आज भी बहुत बड़े बड़े कारनामे अंजाम दिए जा सकते हैं।अल्लाह हमें तौफीक दे।✍🏻 ख्अब्दुल गफ्फार सल्फी,
Isi topic par Shaikh M.A. As'ad Salafi Etawi (Hafizahullah) ki video zaroor sune;
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