Economics Rights of Women : महिलाओं के आर्थिक अधिकार (मुआशी हुकूक)




Economics Rights of Women : अस्सलामु अलैकुम व रह मतुल्लाहि व ब रकातुहू! जैसा कि आप लोगों को पहले बताया जा चुका है कि दीन-ए-इस्लाम ने औरतों को कई अधिकारों (हुकूक) से नवाज़ा है। इससे पहले भी हम आप लोगों को कुछ हुकूक के बारे में बता चुके हैं, अब एक और अहम हक के बारे में समझाने की कोशिश कर रहे हैं जिसको जानना दोनों (मर्द व औरत) के लिए बहुत ज़रूरी है ताकि इस्लामी शरीअत के मुताबिक़ हम तमाम हुकूक को ज़िम्मेदारी से अदा कर सकें, अल्लाह तआला हम सभी को एक दूसरे के हुकूक अदा करने की तौफ़ीक़ अता फरमाए, आमीन!

• सबसे पहले हम ये जान लें कि निकाह में तय किया गया मेहर का अधिकार औरत की सम्पत्ति है जिसे अदा करना शौहर पर फर्ज़ है जैसा कि सूरह निसा की आयत नं0 4 में अल्लाह तआला ने इरशाद फ़रमाया है-

“और औरतों को उनके मेहर (फ़र्ज़ समझ कर) खुशी-खुशी से अदा करो।”

हां, अगर औरत अपनी खुशी व मर्जी से मेहर माफ करना चाहे तो कर सकती है जैसा कि इसी आयत में आगे अल्लाह तआला का इदशाद है कि

“अगर औरतें अपनी खुशी से खुद मेहर का हिस्सा माफ़ कर दें तो उसे खुशी से खाओ।”

और औरत अपने निजी माल में से खुद सदका व खैरात भी कर सकती है।

• जिस तरह निकाह से पहले औरत को भरण पोषण उपलब्ध कराना उसके बाप पर फ़र्ज़ है जैसा कि सूरह बनी इसराईल की आयत नं0 31 में अल्लाह तआला का इरशाद है कि

“और अपनी औलाद को भूख के डर से कत्ल न करो उनको और तुमको हम ही रोज़ी देते हैं यकीनन उनका क़त्ल करना बड़ा गुनाह है।”

ठीक इसी तरह निकाह के बाद औरत का तमाम भरण पोषण अदा करना मर्द पर फ़र्ज़ है चाहे औरत मर्द की तुलना में ज्यादा में मालदार ही क्यों न हो, जैसा कि सूरह निसा की आयत नं0 34 में अल्लाह तआला का इरशाद है कि

“मर्द औरतों पर निगरां व ज़िम्मेदार हैं इस बिना पर कि अल्लाह तआला ने उनमें से एक को दूसरे पर फजीलत दी है और इस बिना पर कि मर्द अपना माल खर्च करते हैं।”

ये बात भी आपके लिए जानना निहायत ज़रूरी है कि मां बाप और दूसरे रिश्तेदारों की छोड़ी हुई मीरास (चल हो या अचल जायदाद) में मर्दो की तरह औरतों का भी हिस्सा तय है जैसा कि सूरह निसा की आयत नं0 7 में अल्लाह तआला ने इरशाद फ़रमाया है कि-

“मां बाप और रिश्तेदार जो कुछ (मौत के बाद) छोड़ दें उसमें मर्दो का हिस्सा है और औरतों का भी हिस्सा है जो मां बाप और रिश्तेदारों ने छोड़ा हो चाहे कम हिस्सा हो या ज्यादा और यह हिस्सा अल्लाह तआला की तरफ से तय है।”

लेकिन बड़े ही अफ़सोस के साथ ये बात कहना पड़ रही है कि मीरास के ताल्लुक से हम बहुत लापरवाह हैं, अपनी औरतों, बेटियों और बहिनों का हक़ मार लेते हैं और अल्लाह तआला की नाफरमानी करते रहते हैं जब कि खुद अल्लाह तआला ने उनका हिस्सा तय किया है। इंशा अल्लाह इसके बाद वाले लेख में मीरास की पूरी वज़ाहत करने की कोशिश करेंगे। अल्लाह तआला हम सभी को एक दूसरों के हुकूक अदा करने और ज़्यादा से ज़्यादा नेक आमाल करने की तौफीक अता फ़रमाए, आमीन! मिनजानिब – अल-इस्लाम फाउण्डेशन (इस्लामिक स्ट), जमाअत अहले हदीस, इटावा.


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