Namaz : अज़ीज़ मुसलमान भाईयों और बहिनों, मर्द व औरत की नमाज़ में कोई फ़र्क़ नहीं हैं जिस तरह मर्द नमाज़ पढ़ते हैं ठीक उसी तरह औरत भी नमाज़ अदा करेगी, जैसा कि रसूलुल्लाह सल्ल0 ने इरशाद फरमाया कि ‘‘उसी तरह नमाज़ पढ़ना जैसा कि तुमने मुझे पढ़ते हुए देखा है’’ (सही बुख़ारी: 631), इस हदीस में दोनों (मर्द व औरत) के लिए एक समान हुक्म दिया गया है।
जैसा कि कुछ मर्द व औरतें ये समझते/समझतीं हैं कि मर्द और औरत की नमाज़ का तरीक़ा अलग-अलग है तो ऐसा हरगिज़ नहीं है बल्कि रसूलुल्लाह सल्ल0 से या किसी सहाबी या सहाबिया से ऐसा कोई भी सबूत नहीं मिलता है कि मर्द और औरत की नमाज़ का तरीक़ा अलग-अलग हो।
ज़रा सोचिए, अगर मर्द व औरत की नमाज़ का तरीक़ा अलग-अलग होता तो रसूलुल्लाह सल्ल0 हमें ज़रूर बताते, बल्कि आप सल्ल0 ने कभी नहीं कहा कि मर्द तुम नमाज़ ऐसे पढ़ो और औरतें तुम नमाज़ ऐसे पढ़ो। बल्कि नीचे दी गयीं हदीस की रोशनी में चन्द हिदायात से आप समझ सकते/सकतीं हैं कि हमें नमाज़ कैसे पढ़ना चाहिए-रफउल यदैन – यानी दोनों हाथों को कंधों तक उठाना नमाज़ में चार जगह साबित हैः
(1) शुरू नमाज़ में, तकबीर-ए-तहरीमा के वक़्त, फिर अपने सीने पर हाथ बांधना
(2) रूकूअ में जाने से पहले
(3) रूकूअ से उठने के बाद और
(4) तीसरी रकअत के शुरू में।
क़ोमा:
रूकूअ से सर उठाते हुए रफउल यदैन करते हुए सीधे खड़े हो जाऐं, अगर आप इमाम या अकेले हैं तो रूकूअ से क़ोमे के लिए खड़े होते हुए दुआ पढ़ें।
सजदा:
जब तुम में से कोई सजदा करे तो ऊँट की तरह न बैठे बल्कि आप दोनों हाथ घुटनों से पहले रखें।
(1) सजदे में पेशानी और नाक ज़मीन पर टिकाएं।
(2)दोनों हाथ कंधों या कानों के बराबर रखें।
(3) सजदे में दोनों हथेलियां और दोनों घुटने ज़मीन पर ख़ूब टिकाएं।
(4) पावं की उंगलियों के सिरे क़िबले की तरफ मुड़े हुए रखें और दोनों क़दम भी खड़े रखें।
(5) एड़ियों को मिला लें।
(6) सजदे में सीना, पेट और रानें ज़मीन से ऊँची रखें, पेट को रानों से और रानों को पिंडलियों से जुदा रखें और दोनों रानें भी एक दूसरे से अलग-अलग रखें।
(7) सजदे में कोहनियां ना तो ज़मीन पर टिकाएं और ना पहलुओं से मिलाएं (बल्कि ज़मीन से ऊँची, पहलुओं से अलग, कुशादा रखें)।
हर मुसलमान भाई बहिन के लिए ज़रूरी है कि वो सजदे में सात हड्डियों पर अच्छी तरह सजदा करे।
औरतें बाज़ू ना बिछाएं :
बहुत सी औरतें सजदे में बाज़ू बिछा लेती हैं और पेट को रानों से मिलाकर रखती हैं और दोनों क़दम भी ज़मीन पर खड़े नहीं करतीं। याद रखिए कि ये तरीक़ा रसूलुल्लाह सल्ल0 के फ़रमान और सुन्नत-ए-पाक के खि़लाफ़ है। सुनिए, रसूलुल्लाह सल्ल0 फ़रमाते हैंः ‘‘तुम में से कोई (मर्द या औरत) अपने बाज़ू सजदे में इस तरह ना बिछाए जिस तरह कुत्ता बिछाता है।’’ (सहीह मुस्लिम: 822)
नबी अकरम सल्ल0 के इस फ़रमान के साफ मालूम होता है कि नमाज़ी (मर्द या औरत) को अपने दोनों हाथ ज़मीन पर रखकर दोनों कोहनियां ज़मीन से उठाकर रखनी चाहिए, और पेट भी रानों से जुदा रहे और सीना भी ज़मीन से ऊँचा हो।
मेरे प्यारे मुसलमान भाईयों और बहिनों! अपने प्यारे रसूले अकरम सल्ल0 के इदशाद के मुताबिक़ नमाज़ पढ़ो। क्योंकि आप सल्ल0 ने मुसलमान मर्दों और औरतों को एक ही तरीक़े पर नमाज़ पढ़ने का हुक्म इरशाद फ़रमाया है। अल्लाह तआला हम सभी को सुन्नत के मुताबिक़ नमाज़ पढ़ने की तौफ़ीक़ अता फ़रमाए, आमीन!
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