Bid'at : बिदअत की तारीफ (परिभाषा) और मज़म्मत



बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम

भाईयों और बहिनों! सबसे पहले ये समझना ज़रूरी है कि बिदअत क्या है? इसकी तारीफ़ रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने खुद ही फ़रमायी है, इरशादे मुबारक है “कुल्लु मुह द स तिन बिदअह” यानी दीन में हर नई बात बिदअत है। (निसाई), एक दूसरी हदीस में इरशादे मुबारक है “मन अह द स फ़ी अमरिना हाज़ा मा लइसा फीहि फहुवा रदुन” जिसने दीन में कोई ऐसा काम किया कि जिसकी बुनियाद शरीयत में नहीं वो मरदूद है। (बुखारी व मुस्लिम)।

हदीसों से जो बात वाजेह हो रही है वो ये है कि हर वो को जो रसूल अकरम सल्ल0 ने अपनी मुबारक ज़िन्दगी में ना खुद किया ना उसका हुक्म दिया और ना ही किसी सहाबी को करते देखकर ख़ामोशी इख्तियार की हो (यानी उसे इजाजत दी हो) वो काम बिदअत है।

मसलन रसूलुल्लाह सल्ल0 ने सहाबा-ए-किराम रजिअल्लाहु अन्हुम को अज़ान देने का तरीका खुद सिखलाया जो अल्लाहु अकबर से शुरू होती है। अगर कोई शख़्स अल्लाहु अकबर से पहले दुरूद शरीफ़ का इज़ाफा करता है तो वो दीन में नई चीज़ है, लिहाजा वो बिदअत कहलायेगी। इसी तरह मय्यत के ईसाले सवाब के लिए कुछ काम सुन्नत से साबित हैं, जैसे – सदक़ा, कुर्बानी, हज और इस्तिगफार। ये चारों काम सुन्नते रसूल सल्ल0 से साबित हैं, लिहाज़ा ये बिदअत नहीं, लेकिन कुरआन ख्वानी, सोयम, दसवां, चालीसवां सुन्नत से साबित नहीं हैं और ना ही रसूले अकरम सल्ल0 ने इसका हुक्म दिया, ना खुद इस पर अमल किया ना सहाबा-ए-किराम रजिअल्लाहु अन्हुम में से किसी ने ऐसा किया जिसकी आप सल्ल0 ने इजाजत दी हो, लिहाजा से सारे काम बिदअत कहलाएंगे।

बात याद रहे कि नई चीज़ से मुराद दीन में सवाब समझ कर की जाने वाली नई चीज़ है इससे मुराद दुनिया में नई चीजें या ईजादात नहीं – रेलगाड़ी, कार, जहाज़ वगैरा रसूलुल्लाह सल्ल0 के ज़मान-ए-मुबारक में नहीं थे। यकीनन ये बाद की चीजें हैं लेकिन इनका गुनाह और सवाब से कोई सम्बन्ध नहीं । अगर एक आदमी उम्र भर जहाज़ पर सफर नहीं करता तो उस पर कोई गुनाह नहीं और अगर कोई शख्स रोज़ाना जहाज़ पर सवारी करता है तो उसके लिए कोई सवाब नहीं, चुनांचे दुनियावी ईजादात बिदअत की तारीफ में नहीं आते।
बिदअत की मज़म्मत

बिदअत की मज़म्मत में अगर कोई हदीस ना भी होती तो सिर्फ हौज़-ए-कौसर से महरूमी की हदीस ही बिदअत की संगीनी को जाहिर करने के लिए काफी थी, लेकिन बिदअत चूंकि मुसलानों के लिए बहुत ही हलाकत खेज़ अमल है, इस लिए रसूलुल्लाह सल्ल0 ने बार-बार इस उम्मत को ख़बरदार फरमाया है, चन्द अहादीस पढ़ लीजिए;

1. हर बिदअत गुमराही है और हर गुमराही आग में है। (निसाई)
2. बिदअती की तौबा उस वक़्त तक कबूल नहीं होती जब तक वो बिदअत तर्क ना करे। (तबरानी)
3. हलाकत है, हलाकत है उनके लिए जिन्होंने मेरे बाद दीन को बदल डाला। (बुखारी व मुस्लिम)
4. बिदअती की हिमायत करने वाले पर अल्लाह की लानत है। (मुस्लिम)
5. मदीना में बिदअत राइज करने वाले अल्लह की, फरिश्तों की और सारे लोगों की लानत है। (बुखारी व मुस्लिम)

बिदअत की सख़्त मज़म्मत जान लेने के बाद कोई मुसलमान ऐसा नहीं हो सकता जो जान-बूझकर बिदअत पर अमल करे और दुनिया व आखिरत में अपने आपको अल्लाह, उसके रसूल सल्ल0 और सारी मखलूक की लानतों का मुस्तहिक बनाए और आखिरत में अपनी हलाकत और बर्बादी का खतरा मोल ले। अल्लाह तआला हम सभी को बिदअतों से बचने की तौफीक अता फरमाए, आमीन! अस्सलामु अलैकुम व रह मतुल्लाहि व ब रकातुहू!


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