Halal and Haram : बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम : शिर्के अकबर की बुरी और रिवाज पा गई मिसालों में से एक अल्लाह की हराम कर्दा चीज़ों को हलाल (Halal) और हलाल को हराम (Haram) करना है। इसी तरह यह यक़ीन रखना कि ह़लाल और हराम (Halal and Haram) का ह़क़ अल्लाह के सिवा और भी कोई रखता है। Halal and Haram,
इसी तरह अपनी राज़ी व मरज़ी से गैर शरई अदालतों में अपने मुक़द्दिमे ले जाते हैं और उन जाहिलाना क़ानूनों से अपने अपने मसाइल हल कराने को जाइज़ समझना कुफ्र अकबर है जैसा कि फ़रमाने इलाही है:
اتخذوا أحبارهم ورهبانهم أربابا من دون الله
तरजमा- उन्होंने अल्लाह तआला को छोड़ कर अपने उलमा और बुजुर्गों को अपना रब बना लिया है। (सूरह तौबा- 31/10)
अदी बिन हातिम रज़ी अल्लाहु अन्हु ने जब नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को यह आयत तिलावत फ़रमाते हुए सुना तो अर्ज़ किया वह उनकी इबादत तो नहीं करते थे, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया, क्या ऐसा नहीं था कि वह अल्लाह की ह़लाल की हुई चीज़ों को उनके कहने पर ह़राम और अल्लाह की ह़राम की गई चीज़ों को उनके कहने पर हलाल समझते थे? मैंने कहा हां, फरमाया यही तो उनकी इबादत है। (बयहकी- 112/10, तिर्मिज़ी- 3095, हसनहुल अल्बानी, गायतुलमुराम- पेज 19)
और अल्लाह तआला ने मुश्रिकीन का तरीका ब्यान करते हुए फ़रमायाः
ولا يحرمون ما حرم الله و رسوله ولا يدينون دين الحق
तरजुमा- और वह अल्लाह और उसके रसूल की हराम की गई चीज़ को हराम नहीं जानते न दीने हक़ को कुबूल करते हैं। (सूरह तौबा-69/10) और फ़रमायाः .
قل ارايتم ما انزل الله لكم من رزق فجعلتم منه حراما و حلالا قل الله أذن لكم أم على الله تفترون
तरजुमा- आप कहिये कि यह तो बताओ कि अल्लाह ने तुम्हारे लिये जो कुछ रिज्क भेजा फिर तुमने उसका कुछ हिस्सा हराम और कुछ हिस्सा हलाल करार दे लिया, आप पूछिये क्या तुम को अल्लाह ने (इसका) हुक्म दिया था या तुम अल्लाह ही पर झूट बान्धते हो? (सूरह यूनुस-59/11)
जादू कहानत,गै़ब जानने का दावा करनाः
समाज में शिर्क की किस्मों में से जादू, कहानत और गै़ब की बातें जानने का दावा करना है। इनमें से एक जादू है जो कुफ्र भी है और हलाकत में डालने वाले गुनाहे कबीरा (बड़े गुनाह) में से है और जो फ़ायदे के बजाये नुक़सान ही पंहुचाता है। जो लोग जादू (टोने-टोटके) सीखते हैं उनके बारे में अल्लाह तआला ने फ़रमायाः
ويتعلمون ما يضرهم ولا ينفعهم
तरजुमा- यह लोग वह सीखते हैं जो उन्हें नुक़सान पंहुचाये और फ़ायदा ना पंहुचा सके। (सूरह बक़रा-102/1)
और फ़रमायाः
ولا يفلح الساحر حيث أتی
तरजुमा- और जादूगर कहीं से भी आये कामयाब नहीं होता। (सूरह ताहा- 69/1s)
और जादू करने वाला काफ़िर है। फ़रमाने इलाही है:
وما كفر سليمان و لكن الشياطين كفروا يعلمون الناس السحر وما انزل على الملكين ببابل هاروت و ماروت وما يعلمان من أحد حتى يقولا إنما نحن فتنة فلا تکفر
तरजुमा- सुलैमान (अलैहिस्सलाम) ने तो कुफ्र नहीं किया था बल्कि शैतानों ने कुफ्र किया वह लोगों को जादू सिखाया करते थे और बाबिल में हारूतं व मारूत दो फ़रिश्तों पर जो उतारा गया था वह दोनों भी किसी शख़्स को उस वक़्त तक नहीं सिखाया करते थे जब तक कि यह न कह दें कि हम तो एक आज़माइश में हैं तुम कुफ्र न करो। (सूरह बक़रा- 102/1)
और जादूगर की सज़ा उसका क़त्ल है और उसकी कमाई नापाक व ह़राम है।
कुछ जाहिल व ज़ालिम और कमज़ोर ईमान के लोग दूसरे लोगों पर जुल्म व ज़्यादती और बदले की ग़रज़ से जादू टोना, सिफ़ली आमाल कराने जादूगरों के पास जाते हैं
और जो लोग जादू का असर ख़त्म कराने जादूगर के पास जाते हैं वह भी ह़राम के कुसूरवार होते हैं। ऐसी सूरत में उन पर वाजिब तो यह है कि वह अल्लाह तआला की तरफ़ लोटें और उसके कलाम की आख़री दो सूरतें (यानि सूरह फ़लक़ और सूरह नास) पढ़कर दम वगैरह करके शिफ़ा मांगें।
जहांतक काहिन और नजूमी (ज्योतिषी) का मामला है तो यह दोनों भी अगर गै़ब (भविष्य) जानने का दावा करें तो काफ़िर हैं इस लिये कि गै़ब का हाल अल्लाह के सिवा कोई नहीं जानता।
इनमें से बहुत से सीधे साधे लोगों की नादानी से फायदा उठाते और उनके माल हड़प कर जाते हैं। और अलग-अलग तरह के बहुत सारे ढोंग इसके लिये इस्तेमाल करते हैं, जैसे रेत में उलटी सीधी लाइनें और लकीरें खींचना, कोड़ी बजाना, हथेली की लकीरें देख कर क़िस्मत का हाल बताना, पानी से भरे कांच के ग्लासों में जादू मंतर पढ़कर दम मारना है। यह एक बात सच बोलते हैं तो उनकी 99 बातें झूटी होती हैं, लेकिन नादान लोग इसी एक बात को याद रखते हैं जो उन्होंने सच कही होती है बाक़ी की तरफ़ ध्यान नहीं करते और अपना मुस्तक़बिल (भविष्य), तिजारत (कारोबार), शादी ब्याह में बद शगूनी नेक शगुनी और खोई हुई चीज़ों का पता लगाने और बहुत से मामले मालूम करने भागे चले जाते हैं।
हालांकि ऐसा शख़्स जो उनके पास जाये अगर उनकी बातों पर यक़ीन करे और सच जाने तो सरासर काफ़िर और मिल्लते इस्लामिया से ख़ारिज है, इसकी दलील रसूल अल्लाह सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम का यह फ़रमान है:
من أتی کاهنا أو عرافا فصدقه بما يقول فقد كفر بما أنزل على محمد
तरजुमा- जिस शख़्स ने किसी काहिन व नजूमी (ज्योतिषी) के पास जाकर उसकी कही हुई बात को सच जाना उसने उस दीन के साथ कुफ्र किया जो मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर उतारा गया है। (मुस्नद अहमद 429/2, सहीहुल जामअ 5939, अल्अरबा वलहाकिम)
और अगर उनके पास जाने वाला शख़्स उनके आलिमे गै़ब (छुपी हुई बातें जानने वाला) होने का यक़ीन न करे और वैसे ही आज़माने के तौर पर ही उनके पास जाये तो काफ़िर तो नहीं होगा लेकिन चालीस दिन तक उसकी नमाज़ कुबूल न होगी जैसा कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का फरमान है:
من أتی عرافا فساله عن شئی لم تقبل له صلاة أربعين
तरजुमा- जिस शख्स ने किसी ख़बरें बताने वाले नजूमी (ज्योतिषी) के पास जाकर कुछ पूछा तो चालीस दिन तक उसकी नमाज़ क़ुबूल न होगी मगर उस पर नमाज़ पढ़ना और तौबा व इस्तिग़फ़ार करना वाजिब है। (सहीह मुस्लिम-1751/4)
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