After Death : बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम, अस्सलामु अलैकुम व रह मतुल्लाहि व ब रकातुहू! प्रिय पाठकगण, मनुष्य की मृत्यु से पहले के हालात से तो आप भलिभांति परिचित हैं परन्तु मरने के पश्चात After Death का केवल उतना ही ज्ञान है जितना ईश्वर और उसके पैगंबर मुहम्मद रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हमें बता गये हैं। इस पोस्ट में हम मरने से पहले Before Death और मरने के बाद क्या? What After Death के विषय पर चर्चा कर रहे हैं। After Death क्या होगा इसका ज्ञान हम सभी को होना अत्यंत आवश्यक है और मरने के बाद After Death पर हमारा ईमान होना चाहिए, कि वास्तविक जीवन मरने के बाद After Death ही मिलने वाला है। और वही जीवन हमेशा का है मरने के बाद After Death फिर से ज़िंदगी मिलने वाली है फिर कभी इंसान नहीं मरेगा। मतलब मौत के बाद After Death ही असल जिंदगी की है। तो चलिए अब शुरू करते हैं : Before Death and What After Death, Before Death and What After Death.
जहाँ मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है वहाँ एक स्वार्थी प्राणी भी है। वह समाज का निर्माण करता है, उसके अनुशासन और अनुबन्धन में रहता है अपने स्वार्थ हितों की पूर्ति के लिये। बच्चा माँ से स्नेह करता है इसलिये कि उसे माँ से जीवनरस मिलता है। पत्नी अपने पति के चरणों में सर्वसमर्पण करती है कि उसे वहाँ मान, सम्मान, प्रेम और जीवन-यापन के समस्त साधन प्राप्त होते हैं। माँ बेटे से, बेटा-बाप से, भाई-बहिन से, मित्र-मित्र से प्रेम करता है। कहने को इन समस्त सम्बन्धों के पीछे प्रत्यक्ष में कोई स्वार्थ नहीं दिखाई देता किन्तु परोक्ष में इन सम्बन्धों के पीछे हमारे ऐसे-ऐसे स्वार्थ नीहित होते हैं जो हमें इनके अतिरिक्त और कहीं नहीं मिल पाते।
मनुष्य इस संसार में अपने इन्हीं सम्बन्धों में खोया, इन्हीं में लिप्त परस्पर एक दूसरे के स्वार्थों की पूर्ति करता जीवन व्यतीत करता है और अन्ततः इस संसार से विदा ले लेता है। सारे जीवन में अच्छे बुरे कार्य, सुख-दुःख, प्रेम-ईष्या तथा इसी प्रकार के अन्य आडम्बरों में वह फंसा रहता है। उसके हृदय अपनी सुख सुविधा के लिए अच्छे से अच्छा साधन जुटाने की प्रबल इच्छा होती है। इसके लिये वह कड़े से कड़ा और अधिक परिश्रम करता है। और अन्त में एक दिन उसे मिलती है पारितोषिक के रूप में मृत्यु। तात्पर्य यह कि इस जीवन का परिणाम मृत्यु ही है। इस तथ्य से हम सभी भली-भाँति परिचित हैं।
हम यह जानते हैं कि इस जीवन में हमें यह शरीर एक बार मिल चुका है, अब पुनः इस जीवन में कोई और शरीर नहीं मिलने वाला है, अब तो मृत्यु को गले लगाना ही पड़ेगा। कुछ लोग मृत्यु की इस भावी कल्पना मात्र से भयभीत हो उठते हैं। और कुछ लोगों का एक-एक अंग इस कल्पना से पुलंकित हो उठता है। प्रथम प्रकार के लोगों के लिए मृत्यु एक अभिशाप है और दूसरे प्रकार के लोगों की दृष्टि में मृत्यु एक आर्शीवाद, अनुग्रह और एक बड़े स्वार्थ की पूर्ति है उनके लिये मृत्यु ही जीवन का सबसे बड़ा स्वार्थ और लक्ष्य है।
इन दो वर्गों के अतिरिक्त कुछ ऐसे लोग भी हैं जिनको जीवन मृत्यु का कोई भय नहीं। पहली प्रकार और दूसरी प्रकार के लोगों को एक दूसरे के सम्मुख रख कर यदि विचार किया जाये तो एक ऐसा अन्तर दिखाई पड़ता है कि मनुष्य की विचार शक्ति लड़खड़ाने लगती है । जो व्यक्ति मृत्यु की आशंका से भयभीत है उसके अंतःमन में एक चाह है कि वह सदा-सदा जीवित रहे।
हालांकि जो व्यक्ति ऐसी इच्छा करते हैं वे प्रतिदिन मरते हुए लोगों को देख रहे हैं फिर भी उनकी सदा-सदा जीवित रहने की इच्छा समाप्त नहीं होती। और जिस व्यक्ति को मृत्यु का नहीं उसकी कल्पना शक्ति में जीवन और मृत्यु का क्या महत्तव है इसका अनुमान लगाना कोई कठिन कार्य नहीं। या तो वह यह समझता है कि मैं कभी मरूँगा ही नहीं। जो कि सर्वथा असम्भव ही है। या फिर मृत्यु के पश्चात की स्थिति से वह सर्वथा अनभिज्ञ है। इसके अतिरिक्त वह व्यक्ति जो मृत्यु की कल्पना मात्र से प्रसन्न हो उठता है वह मृत्यु को मृत्यु समझता ही नहीं और वास्तव में मृत्यु जिसे हम साधारण भाषा में मरना कहते हैं या समाप्ति कहते हैं वह तो सत्य से कहीं परे है। वास्तविकता तो यह है कि मनुष्य कभी नहीं मरता बल्कि उसका तो स्थानान्तर हो जाता है।
अब यदि ध्यान से देखा जाये तो तीनों प्रकार के मनुष्यों में एक ही कल्पना है-सदा-सदा जीवित रहने की। आख़िर इन तीनों प्रकार के भिन्न-भिन्न प्रकृति के लोगों में एक ही प्रकार की भावना और इच्छा क्यों पल रही है ! क्या उनकी यह इच्छा कभी पूरी होगी? और यदि होगी तो वह किस प्रकार ? इस जीवन में तो उन्हें एक बार मरना ही होगा। तो क्या उनकी यह इच्छा मृत्यु के पश्चात पूरी होगी? यदि हाँ तो क्या इन तीनों को सदा-सदा जीवित रखने वाला जीवन एक ही प्रकार होगा। क्या मृत्यु के पश्चात कोई अनन्त जीवन है? हो सकता है उनकी अवचेतना में कोई ऐसी कल्पना हो जो सत्य ही हो।
मृत्यु के पश्चात कोई स्थायी जीवन मिलेगा या नहीं और यदि मिलेगा तो वह क्या और कैसा होगा? इन प्रश्नों का उत्तर ज्ञात करने से पूर्व हमें एक प्रश्न पर विचार करना पड़ता है कि यदि मृत्यु के पश्चात फिर कोई जीवन प्राप्त होगा तो फिर यह जीवन हमें क्यों मिला? और यदि जीवन मिला है तो मृत्यु क्यों आई? जब एक जीवन के पश्चात दूसरा जीवन मिलना ही है तो फिर यह जीवन और फिर इस जीवन के पश्चात मृत्यु क्यों? सीधा हमें वह स्थायी जीवन क्यों प्राप्त नहीं हुआ जो इस जीवन के पश्चात मिलने वाला है।
इन तमाम प्रश्नों का उत्तर ढूँढने के लिये मन आप ही व्याकुल हो उठता है। इसके लिये यदि हम ऐसे तीन विद्यार्थियों को सामने रखें जो एक साथ पहली कक्षा में प्रवेश लेते हैं और दस वर्ष एक साथ पढ़ते हैं। उनमें से एक विद्यार्थी दिन रात कड़ी मेहनत करता है, पढ़ाई में अपने सुख-दुःख को भूल जाता है। दूसरा विद्यार्थी पढ़ाई को भूल कर खेल में लगा रहता है और परीक्षा में फेल होने के भय से सदा चिन्तित रहता है।
और तीसरे व्यक्ति को परीक्षा की चिंता ही नहीं वह दिन रात अपने में रहता है और इसी प्रकार परीक्षा का समय आ जाता है। तो क्या तीनों विद्यार्थी उत्तीर्ण हो जायेंगे। यदि तीनों उत्तीर्ण हो भी जायेंगे तो क्या तीनों के अंक एक से आयेंगे। स्पष्ट है कि आराम और खेल में लगा रहने वाला विद्यार्थी पहले तो उत्तीर्ण ही नहीं होगा और यदि उत्तीर्ण हो भी गया तो उसके अंक उस विद्यार्थी की तुलना में बहुत कम होंगे जिसने कड़ी मेहनत से दस वर्ष तक पढ़ाई की और इस अवधि में वह अपने सुख और आराम को भूल कर तैयारी में लगा रहा। तीसरा विद्यार्थी जिसको परीक्षा की चिन्ता ही नहीं उसका क्या परिणाम होगा यह आप भली-भाँति जान सकते हैं।
अब परीक्षा के पश्चात के विषय में अनुमान लगाईये-कड़ी मेहनत करने वाले विद्यार्थी का सारा जीवन सुख सुविधा से व्यतीत होगा। खेल और आराम में लगे रहने वाले तथा उस विद्यार्थी का जीवन जिसे परीक्षा की चिन्ता ही नहीं थी विद्या और ज्ञान के अभाव में कितना दुःखमय और कष्टप्रद होगा।
विचारणीय विषय ये हैं यदि इन तीनों विद्यार्थियों की परीक्षा न ली जाती और तीनों को एक ही श्रेणी में रख कर उन्हें समान जीवन स्तर प्रदान कर दिया जाता तो क्या यह अन्याय न होता।
बिलकुल ऐसी ही बात हमारे जीवन और मृत्यु के पश्चात के जीवन के विषय में भी है। यह जीवन एक परीक्षा भवन है। यहां रह कर हम कर्म करते हैं। कुछ व्यक्ति साधुतापूर्ण जीवन बिताते हैं और कुछ व्यक्ति दुष्टतापूर्ण जीवन व्यतीत करते हैं। साधु व्यक्ति यहां जीवन पर्यन्त साधुता के कारण बड़ा ही अभावपूर्ण जीवन व्यतीत करता है और मर जाता है। उधर दुष्ट व्यक्ति अपनी चालाकी और दुष्टता से बड़ा ही वैभवपूर्ण जीवन व्यतीत करता है। तो साधु व्यक्ति को उसकी साधुता का पुरस्कार और दुष्ट व्यक्ति को उसकी दुष्टता का दण्ड नहीं मिलना चाहिये क्या उनके कार्मों का मूल्यांकन नहीं होना चाहिये। सीधी से बात है कि अवश्य होना चाहिये।
अब प्रश्न है मूल्यांकन का मापदण्ड क्या हो। इस संसार में किसी व्यक्ति ने आज कोई दुष्कार्य किया। मान लीजिए उसने किसी ऐसे व्यक्ति की हत्या की जिसके छोटे-छोटे पांच सात बच्चे हों। तो क्या हत्यारे को यदि प्राण दण्ड दे दिया जाये तो उसके अपराध का दण्ड पूरा हो जायेगा! कदाचित नहीं मृत व्यक्ति के बच्चों और उसकी पत्नी के अभाव पूर्ण जीवन का अनुमान लगाईये। हो सकता है अभाव पूर्ण जीवन के कारण उसके बच्चे विवश हो कर दुष्कार्य करने लगे और सीधी राह से भटक जाएँ और यह संभव भी है, तो सोचिए जितने दुष्कार्य व करेंगे उनके तक पापों का भागी कौन होगा? और इस प्रकार पाप कम होने के स्थान पर बढ़ते ही चले जायेंगे। और हज़ारों वर्ष उसके किये हुए दुष्कार्य (हत्या) का कुप्रभाव समाज पर पड़ता रहेगा। बड़ी स्वाभाविक सी बात है कि हत्यारे को ऐसी यातना दी जानी चाहिए जो मृत्यु से भी अधिक भयंकर हो और वह उसे अपने किये हुए पाप के बदले में हजारों वर्ष तक भुगतता रहे। तो स्पष्ट है कि ऐसी यातना किसी भी व्यक्ति को यहाँ इस जीवन में तो दी नहीं जा सकती। इसके लिए तो आवश्यक है कि उसे कोई ऐसा स्थाई जीवन मिले जिसमें वह सदा सदा अपने पापों का दण्ड भोगता रहे।
इसी प्रकार साधु व्यक्ति इस जीवन में ऐसे ऐसे शुभ कार्य कर जाते हैं जो हज़ारों लाखों वर्षों तक आने वाली सन्तति के लिए कल्याण कारी हो जाते हैं। तो ऐसे महा पुरुषों के शुभ कर्मों का पुस्कार भी उन्हें इस जीवन में नहीं दिया जा सकता । न्याय की बात तो यह होगी कि उन्हें भी ऐसे शुभ कार्यों के बदले में एक ऐसा स्थायी जीवन प्राप्त हो जहां वे सदा सदा सुख सुविधा और वैभव पूर्ण जीवन व्यतीत करें इन सब बातों से सिद्ध यह होता है कि अच्छे या बुरे कर्मों का फल मनुष्य को इस जीवन में कदापि नहीं दिया जा सकता। कर्म का फल तो उसके प्रभाव की व्यापकता पर निर्भर करता है।
अब प्रश्न है कि कर्मों का मूल्यांकन कौन करे? कौन है ऐसी हस्ती जो पक्षपात रहित निर्णय कर सके? तो ऐसी हस्ती वही हो सकती है जो सर्वशक्ति मान और सर्वग्ज्ञ हो। सौर वह ईश्वर के अतिरिक्त कोई नहीं हो सकता। ईश्वर के पास ही वह शक्ति है जो सबके साथ न्याय कर सकता है।
तो बन्धु जनों ईश्वर ने इस संसार को एक परीक्षा भवन के रूप में बनाया है और हम सब विद्यार्थियों के रूप में जीवन व्यतीत करने यहां आये हैं । इस जीवन में जो जो व्यक्ति जैसे-जैसे कार्य करेगा। वह उस उस व्यक्ति के हिसाब में लिखा जाता रहेगा और तब तक लिखा जाता रहेगा जब तक यह संसार रहेगा और उसके कर्मों का प्रभाव इस संसार पर पड़ता रहेगा। फिर एक दिन ईश्वर इस संसार को नष्ट कर देगा। दूसरे शब्दों में प्रलय कर देगा। फिर तमाम इन्सानों को ईश्वर के समक्ष प्रस्तुत होना होगा और ईश्वर उन तमाम लोगों के कर्मो और उनके प्रभावों के अनुसार उनका मूल्यांकन करके उन्हें पाप और पुण्य प्रदान करेगा। पाप और पुण्य के अनुसार ही ईश्वर मनुष्यों की सदा जीवित रहने की इच्छा पूरी करेगा। और उन्हें उनके कर्मानुसार सदा-सदा रहने वाला स्थायी जीवन प्रदान करेगा।
इस प्रकार इस जीवन के पश्चात कर्मानुसार शुभाशुभ और स्थायी जीवन की कल्पना को समक्ष रख कर जो व्यक्ति काम करता है, स्पष्ट है कि वह कोई कार्य ऐसा नहीं करेगा जिससे उसके उस स्थायी प्राप्त होने वाले जीवन पर कोई कुप्रभाव पड़े और इस प्रकार वह व्यक्ति मृत्यु की कल्पना से भयभीत होने के स्थान पर प्रसन्न होगा। क्योंकि उसने अपने इस जीवन में उस परीक्षा की पूरी तैयारी कर ली होगी जिसमें से होकर उसे मृत्यु के पश्चात गुज़रना है। दूसरा व्यक्ति जो मृत्यु की कल्पना से भयभीत रहता है उसका मन इस बात से चिन्तित रहता है कि जो सुख साधन उसने यहां जुटाये हैं और वैध अवैध, पाप पुण्य तथा अच्छे बुरे कर्मों का तनिक भी विचार नही किया है। उसके सब सुख वैभव यहीं छूट जायेंगे और फिर इसके पश्चात उसे एक महान दुख-मय जीवन प्राप्त होगा। ऐसा व्यक्ति यदि चिन्तित और भयभीत होने के स्थान पर यह संकल्प करले कि, “मैं अपने शेष जीवन में अपना प्रत्येक कार्य ईश्वर की प्रसन्नता और उससे उस सुखमय तथा स्थायी जीवन को पुरस्कार स्वरुप प्राप्त करने के लिए करूंगा तो निस्संदेह उसके हृदय से मृत्यु का भय समाप्त हो जायेगा और फिर उसकी आत्मा को स्वतः ही आत्म-सन्तोष प्राप्त होगा। उसका संपूर्ण जीवन अध्यात्म एवं ईशभक्ति से परिपूर्ण हो कर उसकी सफलता और कल्याण का कारण बनेगा।
अब प्रश्न है उन लोगों का जो यह समझते हैं कि वे जो कुछ करलें ठीक हैं, उनके कर्मों का कभी मूल्याँकन होगा ही नहीं और वे मदमस्त निर्द्वन्द हो कर जीवन व्यतीत करते हैं | उन्हें कभी ख्याल भी नहीं आता कि मृत्यु के पश्चात् उन्हें भी एक दूसरा स्थायी जीवन मिलने वाला है। तो वे यदि अपनी इसी मस्ती और निर्द्वन्दता की स्थिति में कत्ल, व्यभिचार एवं अत्याचार करते हुए मृत्यु को प्राप्त कर गये तो फिर उन्हें कभी भी संभलने का अवसर नही मिलेगा और उसकी सदा जीवित रहने की कामना भी ईश्वर अवश्य पूर्ण करेगा, किन्तु वह उनका वह स्थायी जीवन कैसा और क्या होगा उसका अनुमान हम उस विद्यार्थी के जीवन से लगा सकते हैं जो अपने सारे जीवन में तनिक भी विद्या प्राप्त न कर सका और कभी भी उसने अपने माता पिता, गुरुजन का मान सम्मान न किया। कितना कष्ट मय और अभावपूर्ण होगा उसका जीवन। माँ-बाप और गुरुजन को भी उससे कोई सहानुभूति नहीं होगी। यही हालत उसकी उस स्थायी जीवन में होगी। ईश्वर भी उससे कोई सहानुभूति और दया नहीं करेगा। उसे कठोर से कठोर तथा दुःखदायी जीवन प्रदान करेगा। इसमें हुई ग़लतियों का दण्ड भुगतना पड़ेगा। वह यह कहे कभी नहीं कह पायेगा कि अज्ञानवश और मस्ती में वह ईश्वर को भूल गया था, यदि उसे याद रहता तो वह ज़रूर इस भक्ति और उसकी प्रसन्नता के कार्य करता। ऐसे लोगों को चाहिए की वे समय रहते ही उस दिन की तैयारी करलें जिस दिन सत्य सत्य हो जायेगा और झूट झूठ हो कर सामने आ जाएगा। पानी का पानी और दूध का दूध अलग कर रख दिये जायेंगे। उसदिन उनकी कोई धांधली और चालाकी काम न आ सकेगी।
अब प्रश्न है कि ऐसा कोई लोक है भी या नही जहां समस्त मानव जाति के कर्मों का मूल्यांकन होगा और उन्हें स्थायी जीवन प्राप्त होगा। प्रश्न तो ठीक है। परन्तु इसके साथ ही दूसरा प्रश्न भी उसी क्षण मास्तिष्क में उठता है कि इसका भी क्या प्रमाण है कि ऐसा लोक नहीं हैं। तो उसका निर्णय हम तर्क बुद्धि नहीं कर सकते। और फिर यह सर्वथा परोक्ष का विषय है जिसे हम इन नेत्रे से नहीं देख सकते। इस के लिए हमें शास्त्र और ईश्वरीय पुस्तकों का सहारा लेना चाहिए और उन पर विश्वास करके ही हम किसी निर्णय पर पहुंच सकते हैं। विश्वास एवं आस्था ही कर सकते हैं। जब हम यह कह सकते हैं कि ऐसा कोई लोक नहीं है तभी आस्था और विश्वास के आधार पर हम यह भी कह सकते हैं कि ऐसा लोक है और अवश्य है। इसका विश्वास करना या न करना अपनी बुद्धि की क्षमता पर निर्भर है। हृदय कि शुद्धता एवं विशालता पर निर्भर है।
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