Islamic Marriage Part 02 : सामाजिक व्यवस्था को बदलने की कोशिश


Islamic Marriage Part 02 : Nikah Ke Masail Part 02: अस्सलामु अलइकुम वरहमतुल्लाहि वबरकातुहू! इस पोस्ट में आप पढ़ेंगे इस्लामी सामाजिक व्यवस्था को बदलने का नामाक कोशिश (Trying to change the Islamic Social System). ये पोस्ट आपके लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं क्यों कि इसमें सोशल सिस्टम (Social System) के बारे में बताया गया है वैसे तो आप अच्छी तरह से सोशल सिस्टम (Social System) के बारे में जानते ही होंगे परन्तु फिर भी हम आपको इस सोशल सिस्टम (Social System) से आगाह कर रहे हैं क्यों ये सोशल सिस्टम इस्लामिक सोशल सिस्टम (Islamic Social System) है। जब तक आप इस इस्लामिक सोशल सिस्टम (Islamic Social system) को नहीं समझेंगे तब तक आप निकाह के मसाइल (Issues of Marriage) को भी नहीं सकझ पायेंगे। इंशा अल्लाह आपको इसमें बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होगी। आप हज़रात से गुज़ारिश है कि इस पोस्ट को दूसरों तक पहुँचाने में हमारी सहायता ज़रूर करें ताकि और लोग भी इससे लाभ उठा सकें। अल्लाह तआला हम सभी को सही शिक्षा प्राप्त करने और उन पर अमल करने की तौफ़ीक़ अता फ़रमाए, आमीन! Now let’s start Islamic Marriage Part 02 : Trying to change the social system


बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम

अलहम्दु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन वस्सलातु वस्सलामु अला सय्यिदिल मुर्सलीन वल आक़िबतु लिल मुत्तक़ीन, अम्मा बाद!

कुछ वर्षो पहले सुप्रीम कोर्ट के एक जज की अगुवाई में स्थापित किए गए महिलाओं के अधिकारों से संबंधित कमीशन ने सरकार को जो प्रस्ताव प्रस्तुत किए हैं वह इस तथ्य का स्पष्ट सबूत हैं। उन्हें देखिए-

1.    पत्नी की मर्ज़ी के बिना पति पत्नी के संबंध को अपराध ठहराया जाए और इसकी सज़ा आजीवन कारावास रखी जाए।
2. 120 दिन में गर्भ को गिराने के लिए महिला को क़ानूनी सुरक्षा उपलब्ध की जाए।
3. पति की मर्ज़ी के बिना पत्नी को नसबन्दी का आपरेशन कराने की अनुमति दी जाए।
4. कम आयु पत्नी से उसकी मर्ज़ी के बिना दाम्पत्य संबंध स्थापित करने को ज़िना ठहराया जाए।


हमें ये स्वकीरने में कदापि कोई संकोच नहीं कि चादर और चारदीवारी के अन्दर सम्पूर्ण रूप से औरत बहुत ही मज़्लूम है। उसकी बात सुनी जानी चाहिए। समाज में उसे सम्मानित और प्रतिष्ठित स्थान मिलना चाहिए लेकिन विचारणीय बात यह है कि उपरोक्त प्रस्ताव में से कौन से प्रस्ताव ऐसे है। जिनसे किसी मुसलमान औरत की इज़्ज़त व मान वृद्धि हो सकती है या उसकी मज़्लूमियत की क्षतिपूर्ति हो सकती है? उारोक्त प्रस्ताव वास्तव में इस्लामी सामाजिक व्यवस्था को सम्पूर्ण रूप से पश्चिमी सामाजिक व्यवस्था में बदलने की एक नाकाम सी कोशिश है।

शासकों के इस इस्लाम दुश्मन रवैए के साथ-साथ आजकल हमारी अदालतें जिस प्रकार ज़ोर देकर घरों से अपने यारों के साथ भागने वाली लड़कियों के बारे में ‘‘संरक्षक की अनुमति के बिना निकाह जायज़ है।’’ के फ़तवे दे रही है। इससे पश्चिमी सभ्यता के प्रेमियों के हौलसे और भी बढ़े हुए हैं और रही सही कसर पश्चिमी सामाजिक व्यवस्थ की प्रेमी महिलाओं ने ‘‘महिला आन्दोलन’’ और ‘‘महिला स्वतंत्रता संगठन’’ ‘‘वीमेन्ज़ फ़ोरम, हीयूमेन राइट फ़ाउंडेशन’’ और ‘‘वीमेन एक्शन फ़ोरम’’ जैसे संगठन बनाकर पूरी कर दी है।

दुख की बात यह है कि हमारे शिक्षा संस्थान विगत आधी सदी से निरंतर अंग्रेज़ी सांचे में ढली हुई नस्लें तैयार करते आ रहे हैं वही लोग आज महत्वपूर्ण पदों पर बैठे पश्चिम के ग़ुलाम सरकारी वकीलों का किरदार अदा कर रहे हैं। सवाल ये है कि औरत को सम्मान और प्रतिष्ठा पश्चिमी समाज में प्राप्त है या इस्लामी समाज में? औरत पर होने वाले ज़ुल्म व अत्याचार का अन्त पश्चिमी सामाजिक व्यवस्था में संभव है या इस्लामी सामाजिक व्यवस्था में? इन सवालों का जवाब तलाश करने से पहले हम ज़रूरी समझते हैं कि पश्चिमी सामाजिक व्यवस्था पर एक उचटती सी निगाह डाली जाए ताकि यह मालूम हो सके कि पश्चिमी जीवन व्यवस्था है क्या? चुनांचे इस पश्चिमी जीवन व्यवस्था पर आर्टिकल हमारी अगली पोस्ट भाग-3 में आप पढ़ सकते हैं।

(1) याद रहे पश्चिमी सामाजिक व्यवस्था में पत्नी की मर्ज़ी के बिना पति पत्नी के संबंध क़ायम करना अपराध है जिसकी सज़ा क़ैद है। लंद मे एक औरत ने अपने पति के विरूद्ध मुक़दमा कर दिया कि उसने मेरी मर्ज़ी के बिना मुझसे जिन्सी संबंध स्थापित किया है जिस पर जज ने फ़ैसले मे लिखा कि औरत पत्नी होने से साथ साथ एक ब्रिटेन नागरिक भी है। शहरी होने की हैसियत से उसे आज़ादी का हक़ हासिल है जिसमें पति हस्तक्षेप नहीं कर सकता अतः पति को बलात्कार का अपराधी ठहराकर एक महीने की क़ैद की सज़ा सुना दी गयी। (अल बिलाग़, मुम्बई, अक्टूबर 1995)

(2) दूसरा और तीसरा प्रस्ताव असल में इसी प्रोग्राम पर अमल करने का एक हिस्सा है जो संयुक्त राष्ट्र संघ के तत्वाधान में क़ाहिरा सम्मेलन (आयोजित 1994) और बेजिंग सम्मेलन (आयोजित 1995) मे तैय किया गया। अन्तर्राष्ट्रीय शक्तियों का यह कार्यक्रम शक्तियों का यह कार्यक्रम असल में ‘‘आबादी व प्रगति’’ और महिला के अधिकारों’’ जैसे दिल मोह लेने वाले नारों के पर्दे में पूरी दुनिया में अश्लीलता और नग्नता फैलाने और पश्चिमी सभ्यता को मुस्लिम देशों में ज़बरदस्ती थोपने का प्रोग्राम है। इनका सार यह है-

1. गर्भपात को औरतों का हक़ माना जाए और उसे क़ानूनी सुरक्षा मिले।
2. निकाह के बिना जिन्सी मिलाप को आसान बनाया जाए।
3. शादी के लिए उम्र निर्धारित की जाए और उससे पहले शादी करने को दंड योग्य समझा जाए।
4. समलैंगिक की अनुमति दी जाए।
5. गर्भपात की दवाइयों को आम किया जाए।
6. स्कूलों और कालेजों में मिली जुली शिक्षा की व्यवस्था की जाए (लड़के लड़की एक साथ रहें)।
7. प्राइमरी स्कूलों से जिन्सी शिक्षा की व्यवस्था की जाए।

(3) देखिए समाचार 23 फ़रवरी 1997 और नवाए वक़्त 11 मार्च 1997 ई0।

(4) इस प्रकार के संगठन औरतों पर होने वाले अत्याचारों को रोकने के लिए किस प्रकार की कोशिशें कर रही हैं इसका पता निम्न दो समाचारों से लगाया जा सकता है।
1994 ई0 में अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर पाकिस्तान में विभिन्न महिला संगठनों ने सरकार से निम्न मांगे कीं-

1. एक से अधिक शादी पर रोक लगायी जाए और इसे दंडनीय अपराध ठहराया जाए।
2. हुदूद आर्डिनेन्स, क़ानून शहादत, क़िसास और दैत आर्डिनेन्स निरस्त किया जाए।
3. औरतों व मर्दों को समस्त कार्यों में समान अधिकार दिए जाएं।
Post Navi

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ