Islamic Marriage Part 01 : बेटा औरत का ग़ुलाम और बहु फूहड़


Islamic Marriage Part 01 : प्रिय पाठकों, अस्सलामु अलइकुम वरहमतुल्लाहि वबरकातुहू!अल-हम्दु लिल्लाह! जैसा कि आप सभी प्रिय पाठकों को मालूम है कि ‘‘अल-इस्लाम फाउण्डेशन – एआईएफ ट्रस्ट’’ एक इस्लामिक ट्रस्ट है। इस ट्रस्ट के माध्यम से AIF TRUST नामक आनलाइन इस्लामिक ब्लाॅग और iTrust TV नाकम आनलाइन चैनल का संचालन किया जा रहा है, इनके माध्यम से अल्लाह की तौफ़ीक़ से दीनी कामों को अंजाम दिया जा रहा है। इन दोनों आनलाइन सेवाओं के माध्यम से क़ुरआन व सुन्नत की “सच्ची बातें अनमोल बातें” और इस्लामिक इतिहास हम आप तक पहुँचा रहे हैं आप हज़रात से गुज़ारिश है कि दीने हक़ की ख़ातिर आप हमारा तआवुन करें, और दीने इस्लाम की बातें दूसरों तक पहुँचाने में हमारा साथ ज़रूर दें। दीने शरीअत का इल्म दूसरों तक पहुँचाना बहुत बड़ी नेकी और अज्र व सवाब का काम है और ये सदक़ा-ए-जारिया है। आप हज़रात इस ब्लाॅग और चैनल को ख़ुद सब्स्क्राइब, करें और इसके बारे में दूसरों को भी बताऐं ताकि वो भी इस्लामी जानकारी से मालामाल हो सकें। चलिए, अब आपकी खि़दमत में पेश है – Islamic Marriage Part 01 : बेटा औरत का ग़ुलाम और बहु फूहड़; Now let’s start Women Rights “Son is woman’s slave daughter-in-law slut."

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम

अलहम्दु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन वस्सलातु वस्सलामु अला सय्यिदिल मुर्सलीन वल आक़िबतु लिल मुत्तक़ीन, अम्मा बाद!

Islamic Marriage Part 01 : निकाह इन्सान के जीवन में अत्यन्त अहम मोड़ की हैसियत रखता है। माँ-बाप के यहाँ जब बेटा पैदा होता है तो उनकी ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं रहता। माँ-बाप बड़े प्यार और मोहब्बत से अपने राज दुलारे के लालन-पालन में लग जाते हैं। दुनिया का हर दुःख और मुसीबत सहन करके अपने बेटे को सुःख सुविधा उपलब्ध करते हैं। बलिदान और त्याग की अनोखी मिसालें पेश करके बच्चे की शिक्षा-दिक्षा और उसके भविष्य के लिए दिन रात एक कर देते हैं तो बूढ़े माँ-बाप की रगों में जवान ख़ून दौड़ने लगता है।

नौजवान बेटा माँ-बाप की आशाओं और सुहाने सपनों का केन्द्र बन जाता है। जवानी की दहलीज़ पर क़दम रखते ही माँ-बाप को बेटे की शादी की चिंता हो जाती है। माँ-बाप अपने प्यारे बेटे के लिए ऐसी बहु की तलाश करना शुरू कर देते हैं जो लाखों में एक हो, मुबारक व सलामती की दुआओं के साथ बहु घर आ जाती है। मुश्किल से कुछ हफ़ते गुज़रते हैं कि मौसमे बहार पतझड़ में बदलने लगता है। बेटा जो पहले माँ-बाप की आँखों का तारा था ‘‘औरत का ग़ुलाम’’ कहलाने लगता है। बहु जो घर में आने से पहले लाखों में एक थी ज़माने भर की ‘‘फूहड़’’ कहलाने लगती है। नौबत यहां तक आ जाती है कि समाज की इस महत्वपूर्ण तिकोन बेटा, बहु ससुराल का एक साथ रहना कठिन हो जाता है।

माँ-बाप के यहां बेटी का पैदा होना अज्ञानता के ज़माने की तरह आज भी बुरा समझा जाता है बच्ची की शिक्षा दीक्षा, उसकी पाकदामनी की सुरक्षा, उचित रिश्ते की तलाश, रस्म व रिवाज़ के अनुसार दहेज की तैयारी और इसी प्रकार के दूसरे मसाइल बेटियों के पैदा होते ही माँ-बाप की नींद उड़ा देते हैं।

ये मसाइल समाज के उस वर्ग के हैं जो नियम के अनुसार जीवन बसर कर रहा है वरना आम घटनाएं इतनी भयानक हैं कि अल्लाह की पनाह।

कुछ समाचारों की सुर्खियां देखिए-

1. बेटी की शादी पर झगड़े में पति ने साथियों की मदद से टाँगें और हाथ काट कर पत्नी को फाँसी दे दी।
2. मर्ज़ी का रिश्ता न करने पर बेटे ने बाप को गोली मार दी।
3. दूसरी शादी की अनुमित न देने पर पत्नी को गोली मार दी।
4. विवाहित औरत ने अपने प्रेमी से मिलकर पति की हत्या कर दी।
5. दूसरी शादी करने पर माँ को मौत के घाट उतार दिया।
6. लब मैरिज में नाकामी पर दुखी जोड़े ने अपने-अपने घर में ज़हर खाकर आत्म हत्या कर ली।
7. पत्नी अदालत से खुलअ लेना चाहती थी। पति ने पत्नी पर तेज़ाब फेंक दिया। हालत बिगड़ने पर बदकारी का मुक़दमा दर्ज करा दिया।
8. बहन को तलाक़ मिलने पर तीन भाइयों ने बहनोई के बाप को क़त्ल कर दिया।
9. लब मैरिज करने वाली लड़की नारी निकेतन से अदालत ले जाते हुए गोली मार दी गयी। जनाज़े की नमाज़ में मौके वाले भी शरीक न हो सके और न ही ससुराल वाले ही। पति पहले ही जेल में था।
10. सन्तान न होने पर पति ने जीवन नरक बना दिया। तलाक़ चाहिए। नारी निकेतन में मौजूद लड़की की मांग।
11. पति और ससुराल वालों की दहेज की मांग को लेकर पत्नी ने ज़हर खाकर की आत्म हत्या।

उपरोक्त समाचारों से यह अनुमान लगाना मुश्किल नहीं कि हमारे समाज में चादर और चार दीवारी के अन्दर का जीवन कितना दुखद, पीड़ा दायक बन चुका है। इस स्थिति को देखते हुए ये चाहिए था कि हमारे बुद्धिजीवी, राष्ट्र के निर्माता क़ौम के रहबर और पढ़े लिखे व औरतें इस्लामी शिक्षाओं का सहारा लेते लेकिन यह सत्यता बड़ी दुखद है कि विगत पचास साल से हमारे देश में ऐसा वर्ग शासन करता चला आ रहा है जो पश्चिमी तौर तरीक़ों से इतना अधिक प्रभावित है कि अपने समस्त मसाइल का हल उसी तौर तरीक़ों के अनुसार तलाश करता है।

 महिलाओं के अधिकारों के आन्दोलनों के नाम

हम पूरी निष्ठा एवं हमदर्दी की भावना के साथ महिलाओं के अधिकारों के समस्त आन्दोलनों को यह दावत देते हैं कि वे नबी सल्ल0 की लायी हुई सामाजिक व्यवस्था का अक़ीदे के रूप में न सही एक सुधारवादी आन्दोलन के रूप ही में सही, गंभीरता के साथ अध्ययन करें और फिर बताएं कि –

  • बेटियों को जीवित दफ़न करने की रस्म को किसने समाप्त किया?
  • एक-एक महिला के साथ एक ही समय में दस-दस मर्दों के निकाह की जाहिलाना रस्म किसने मिटायी?
  • औरतों को मर्दाें के अत्याचारों से बचाने के लिए असीमित तलाक़ों का बर्बर क़ानून किसने निरस्त किया?
  • बेटी के लालन पालन और प्रशिक्षण पर जहन्नम की आग से बचने की शुभ सूचना कौन लेकर आया?
  • औरतों को शिक्षा के ज़ेबर से सजाने की बुनियाद किसने डाली?
  • औरत को मर्द के साथ स्वभाविक समानता का झन्डा किसने बुलन्द किया?
  • और को खाने पकाने की चिन्ता से सम्मानित व प्रतिष्ठित आज़ादी किसने दिलायी?
  • विधवा व तलाक़ शुदा औरतों से निकाह करने और औरत को सम्मान और महानता किसने प्रदान की?
  • औरत को एक इज़्ज़तदार जीवन बसर करने पर जन्नत की ज़मानत किसने दी?
  • औरत के सतीत्व से खेलने वाले अपराधियों को संगसार (पत्थर मारने वाली सज़ा) करने का क़ानून किसने लागू किया?
  • औरत को माँ के रूप में मर्द के मुक़ाबले में तीन गुना अधिक सदव्यवहार का हक़दार किसने ठहराया?
  • औरत के बुढ़ापे को सम्मानित और मान व सुरक्षा किसने प्रदान की? 
हम पूरी सूझबूझ और होश से दावा करते हैं कि मानव इतिहास में पैग़म्बरे इस्लाम, मुहसिने इन्सानियत मुहम्मद सल्ल0 ही वे पहले और अन्तिम व्यक्ति हैं जिन्होंने सृष्टि की सबसे मज़्लूम और सबसे तुच्छ रचना……औरत……को निर्दयी, अत्याचारी और बर्बर जिन्सी दरिन्दों के चंगुल से निकाल कर मानवता से परिचित कराया। औरत के अधिकार निर्धारित किए और उनकी सुरक्षा की व्यवस्था की। उसे समाज में बड़ा सम्मान और प्रतिष्ठा के साथ एक सम्मानित स्थान से सुशोभित किया।

सच बात तो ये है कि क़यामत तक मोहसिने इन्सानियत सल्ल0 के उपकारों के बोझ से अपने को अलग करना चाहे भी तो नहीं कर सकती।

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