Social Rights of Woman : औरत के सामाजिक अधिकार, मां की हैसियत से

The social rights of a woman, as a mother : अस्सलामु अलैकुम व रह मतुल्लाहि व ब रकातुहू! जैसा कि आप लोगों को पहले बताया जा चुका है कि दीन-ए-इस्लाम ने औरतों को कई अधिकारों (हुकूक) से नवाज़ा है। इससे पहले भी हम आप लोगों को कुछ हुकूक के बारे में बता चुके हैं. आज की इस पोस्ट में हम बाात कर रहे हैं औरत के सामाजिक अधिकार, मां की हैसियत से मां के संबंध में जो अधिकार हम पर लागू किये गये हैं उन अधिकारों को विस्तार से बताया जा रहा है अतः आप लोग इसे अच्छी तरह समझ कर पढ़ने की कोशिश करें ताकि आपको मां का मर्तबा, हैसियत और आधिकारों का ज्ञान प्राप्त हो जाए।, मां के हुक़ूक़ अदा करने की तौफ़ीक़ बख़्शे, आमीन! Now let’s start Social Rights of Woman –

मां से सद व्यवहार करना

मां से सद व्यवहार करना सौभाग्य और खुशबख़्ती की निशानी है जैसा कि अल्लाह तआला ने कुरआन की सूरह 19 मरयम की आयत नं0 19,32 में इरशाद फ़रमाया हैः

“और (ईसा अलैहि० ने कहा अल्लाह ने) मुझे मेरी मां का आज्ञा पालक बनाया है, उद्दंडी और अवज्ञाकारी नहीं बनाया।” (सूरह मरयम, आयत 32)

“और ( याहया अलैहि० ) अपने मां बाप से अच्छा सुलूक करने वाला था, उद्दंडी और अवज्ञाकारी न था।” (सूरह मरयम, आयत 14 )

मां और बाप के सामने “उफ़” तक नहीं कहना

इसी प्रकार एक अत्यन्त महत्वपूर्ण बात ये है कि बुढ़ापे की उम्र में मां और बाप के सामने “उफ़” तक नहीं कहना चाहिए , और मां, बाप के सामने अत्यन्त विनम्रता, इज़्ज़त और सम्मान से बात करनी चाहिए । जैसा कि अल्लाह तआला ने कुरआन की सूरह बनी 17 इसराईल कीआयत नं0 23 में इरशाद फ़रमाया हैः

“और तेरे पालनहार ने फ़ैसला कर दिया है कि तुम लोग उसके सिवा किसी और की उपासना न करो, मां बाप के साथ सद व्यवहार करो, अगर तुम्हारी ज़िंदगी में वे दोनों या उनमें से कोई एक बुढ़ापे की उम्र को पहुंच जाए तो उन्हें उफ़ तक न कहो, न उन्हें झिड़क कर जवाब दो और उनके साथ प्रेम भाव से बात करो।”

मां बाप के साथ नर्मी और मुहब्बत से पेश आना और दुआ करना

आजकल औलाद अपने मां बाप के साथ बुरा सुलूक करते हैं और उनके साथ अत्यन्त सख़्ती से पेश आते हैं जबकि ये बहुत बुरा और गुनाह का काम है अल्लाह तआला ने हमें अपने मां बाप के साथ बड़ी नर्मी और मुहब्बत से पेश आने का हुक्म दिया है और उनके लिए हर समय दुआ करते रहना चाहिए। जैसा कि अल्लाह तआला ने कुरआन की सूरह बनी 17 इसराईल कीआयत नं0 24 में इरशाद फ़रमाया हैः

“और उनके सामने मुहब्बत के साथ झुक कर रहो और उनके लिए यह दुआ करो कि ऐ मेरे पालनहार ! इन दोनों पर दया कर जिस तरह इन्होंने रहमत और शफ़क़त के साथ मुझे बचपन में पाला पोसा था।” (सूरह बनी इसराईल, आयत 24 )

मां बाप शिर्क या शरीअत के विरुद्ध मजबूर करें तो औलाद क्या करे?

अगर मां बाप औलाद को शिर्क या शरीअत के विरुद्ध किसी दूसरे काम पर मजबूर करें तो औलाद को उनकी बात नहीं माननी चाहिए अलबत्ता उनके साथ सद व्यवहार में फ़र्क़ नहीं आने देना चाहिए ।

“और अगर तेरे मां बाप तुझे मजबूर करें कि तू मेरे साथ किसी को शरीक ठहराए जिसे तू नहीं जानता तो उनकी बात कदापि न मान लेकिन दुनिया में उनके साथ सद व्यवहार करता रह, लेकिन अनुसरण उस व्यक्ति के रास्ते का कर जिसने मेरी तरफ़ रुजूअ किया है। फिर तुम सबको पलटना मेरी ही तरफ़ है फिर मैं तुम्हें बताऊंगा जो कुछ तुम ( दुनिया में) अमल करते रहे ।”(सूरह लुक़मान, आयत 15 )

बाप के मुक़ाबले में मां का अधिक शुक्र गुज़ार बनना

पैदाइश और लालन पालन के सिलसिले में औलाद पर मां के उपकार अधिक हैं अतः औलाद को बाप के मुक़ाबले में मां का अधिक शुक्र गुज़ार बनकर रहना चाहिए । जैसाकि क़ुरआन की सूरह 31 लुक़मान की आयत नं0 14 में अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त का फ़रमान है कि

“और हमने इंसान को मां बाप का हक़ पहचानने की स्वयं ताकीद की है। उसकी मां ने तकलीफ़ पर तकलीफ़ उठाकर उसे पेट में रखा और ( पैदाइश के बाद ) दो साल उसका दूध छूटने में लगे (अतः हमने उसे ताकीद की कि) मेरा शुक्र अदा कर और ( उसके बाद) अपने मां बाप का, ( और याद रख आख़िरकार ) तुझे मेरी तरफ़ ही पलटना है।”(सूरह लुक़मान, आयत 14 )

स्पष्टीकरण : याद रहे रसूले अकरम सल्ल० ने बाप की तुलना मां से तीन गुना अधिक सद व्यवहार की ताकीद की है। (बुखारी)

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