Learn Namaz : बिस्मिल्ला हिर्रहमा निर्रहमी: प्रिय पाठकों, अस्सलामु अलइकुम व रह मतुल्लाहि व ब रकातुहू! आज हम आपकी खि़दमत में जिस आर्टिकल को पेश कर रहे हैं ये यक़ीनन तआरूफ़ का मोहताज नहीं है क्योंकि हर धर्म के लोग इससे वाक़िफ हैं वो इसलिए कि मुसलमान की पहचान इसी से होती है। यक़ीनन आपने टाॅपिक से इस बात का अंदाज़ा लगा ही लिया होगा। आप ख़ुद सोचिए कि जिससे मुसलमान की पहचान होती हो और उसी के बारे में मुकम्मल जानकारी न हो तो ये कितनी अजीब व ग़रीब बात है। चुनांचे इसकी मुकम्मल जानकारी और सहीह सुन्नत तरीक़ा हम आप तक पहुँचाने की कोशिश कर रहें हैं। इस पोस्ट का आप ध्यानपूर्वक अध्ययन करें और नमाज़ का मुकम्मल सहीह सुन्नत तरीक़ा सीखें, क्यों कि- नमाज़ (Namaz) दीन का सुतून (स्तम्भ) और इस्लाम का अहम रूक्न (हिस्सा) है, कलिमा-ए-शहादत के इक़रार के बाद नमाज़ (Namaz) क़ायम करने की सबसे ज़्यादा ताकीद की गई है। समझदार होने की उम्र से ही नमाज़ (Namaz) क़ायम करने का हुक्म दिया गया है। नबी-ए-अकरम सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया- ‘‘जब बच्चा सात साल का हो जाये तो उसे नमाज़ (Namaz) (की आदत डालो) का हुक्म दो, जब दस साल का हो जाये तो उसे मार कर नमाज़ (Namaz) पढ़ाओ।’’ (अबू दाऊद) और आप सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम ने फ़रमाया- ‘‘क़यामत के दिन आमाल में सबसे पहले नमाज़ (Namaz) का हिसाब लिया जायेगा।’’ नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम ने सबाहा-ए-किराम को नमाज़ (Namaz) अदा करने का तरीक़ा सिखाया और उन्हें हुक्म दिया ‘‘सल्लू कमा र अयी तुमूनी उसल्ली’’ (बुख़ारी) तुम नमाज़ (Namaz) उसी तरह पढ़ो जिस तरह मुझे पढ़ते हुए देखते हो।
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहमी
إِنَّ الصَّلَاةَ كَانَتْ عَلَى الْمُؤْمِنِينَ كِتَابًا مَّوْقُوتًا
इन्नस़्स़ला त कानत अलल मुअमिनी न किताबम मउक़ू त
यक़ीनन नमाज़ मोमिनो पर मुक़र्रह वक़्तों पर फ़र्ज़ है। (सूरह निसा 4 आयत 103)
لُّوا كما رأيتُموني أُصلِّي सल्लू कमा र अयी तुमूनी उसल्ली
तुम नमाज़ उसी तरह पढ़ो जिस तरह मुझे पढ़ते हुए देखते हो। (सहीह बुख़ारी)
प्यारे रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की प्यारी नमाज़ का तरीक़ा जो सहीह हदीसों से साबित है नीचे पेश किया जा रहा है।
(1) क़िबला की तरफ़ मुंह:
नमाज़ी के लिये ज़रूरी है कि क़िबला की तरफ़ मुंह करके खड़ा हो। (बुख़ारी व मुस्लिम) और नमाज़ के दौरान आँखें खुली और नज़र सजदे की जगह पर हो (बैहक़ी, ह़ाकिम)
(2) नियत करना:
दिल में नियत करे कि वो कौन-सी नमाज़ और कितने रकअत पढ़ना चाहता है, क्योंकि ‘‘आमाल का दारोमदार नियतों पर है।’’ (बुख़ारी व मुस्लिम)
बिदअत: और ज़ुबान से नियत करना कि ‘‘इतनी रकआत नमाज़ फ़र्ज़, अल्लाह तआला के लिये, फ़ुलां के पीछे, मुंह मेरा काबा शरीफ़’’ वग़ैरह नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम और आप के किसी सहाबी और फ़ुक़हा-ए-किराम से साबित नहीं है बल्कि इसे मुहक़्क़कीन ने बिदअत बताया है, लिहाज़ा इससे बचना चाहिए।
(3) तकबीरे तहरीमा:
दिल में नमाज़ की नियत करके ‘‘अल्लाहु अकबर’’ कहते हुए दोनों हाथों को कंधों के बराबर या कानों की लौ के बराबर तक (मुस्लिम) इसे तरह उठायें कि हाथों की उंगलियां नार्मल हों ना ज़्यादा खुली और ना ज़्यादा फैली हों (अबू दाऊद) और हथेलियां क़िबला की तरफ़ हों।
(4) सीने पर हाथ बांधना:
नबी-ए-अकरम सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम ने तकबीरे तह़रीमा के बाद दायें हाथ को बायें हाथ के ऊपर इस तरह रखते कि एक हाथ का जोड़ दूसरे हाथ के जोड़ पर होता और उन्हें सीना मुबारक पर रखते, जैसा कि सहीह इब्ने ख़ुज़ैमा और अबू दाऊद में है ‘‘कानः यज़ु उ हुमा अलस सद्रि’’ नबी-ए-पाक सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम अपने हाथ सीना मुबारक पर बांधते थे।
(5) दुआ-ए-इस्तफ़ताह:
नमाज़ी सीने पर हाथ बांधकर सबसे पहले दुआ-ए-इस्तफ़ताह या सना पढ़े। नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम नीचे लिखी दुआ पढ़ा करते थे।
दुआ : 1
اَللَّهُمَّ بَاعِدْ بَيْنِي وَبَيْنَ خَطَايَايَ كَمَا بَاعَدْتَ بَيْنَ الْمَشْرِقِ وَالْمَغْرِبِ ، اللَّهُمَّ نَقِّنِي مِنَ الْخَطَايَا كَمَا يُنَقَّى الثَّوْبُ الْأَبْيَضُ مِنَ الدَّنَسِ ، اللَّهُمَّ اغْسِلْ خَطَايَايَ بِالْمَاءِ وَالثَّلْجِ وَالْبَرَدِ
(अल्लाहुम्मः बा अिद बइनी व बइना ख़त़ायायः कमा बा अत्तः बइ नल मश्रिक़ि वल मग़रिबि अल्लाहुम म नक़्क़िनी मिनल ख़त़ाया य कमा युनक़्क़स़ स़ौबुल अब यज़ु मिनद्द नसि अल्लाहुम्मग़सिल ख़त़ायायः बिल माई वस़ स़ ल जि वल ब र दि)
तर्जमाः- ऐ अल्लाह! मेरे और मेरे गुनाहों के बीच दूरी डाल दे, जिस तरह तूने पूरब और पश्चिम में दूरी डाली है। ऐ अल्लाह! मुझे गुनाहों से ऐसा साफ़ कर दे, जिस तरह सफ़ेद कपड़ा मैल से साफ़ किया जाता है। ऐ अल्लाह! मेरे गुनाह पानी, बर्फ़ और ओलों से धो दे। (बुख़ारी व मुस्लिम)
या यह दुआ पढ़ें – दुआ: 2
سبحانك اللهم وبحمدك وتبارك اسمك وتعالى جدك ولا إله غيرك
(सुब्हा न कल्ला हुम म वबि हम्दि क व तबा र कस्मु क व तआला जद्दुका वला इलाहा ग़ैरूका)
तर्जुमाः- ऐ अल्लाह! तू पाक है अपनी तारीफ़ के साथ तेरा नाम बरकत वाला है और बुलन्द है तेरी शान और तेरे सिवा कोई सच्चा इबादत के लायक़ नहीं। (अहमद व तिर्मिज़ी)
या ये दुआ पढ़ें: दुआ: 3
الله اكبر الله اكبر كبيرا والحمد لله كثيرا وسبحان الله بكره واصيلا
(अल्लाहु अकरब, अल्लाहु अकबर कबीरा, वल हम्दु लिल्लाहि कस़ीरा, व सुब्हानल्लाहि बुक र तुऊँ व अस़ीला)
तर्जुमाः- अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह सबसे बड़ा है बहुत बड़ा। और सारी तारीफ़ उसकी है। और वो हर ऐब से पाक है। सुबह व शाम हम उसकी पाकी बयान करते हैं। (मुस्लिम)
(6) तअ़व्वुज़:
दुआ-ए-इस्तफ़ताह के बाद तअ़व्वुज़ पढ़ें:
أعوذ بالله السميع العليم من همزه ونفخه ونفثه
(अ ऊ ज़ु बिल्लाहिस समीइल अलीम मिन हम्ज़िही व नफ़्खि़ही व नफ़्सिही)
तर्जुमाः- मैं अल्लाह की पनाह मांगता हूँ जो हर आवाज़ को सुनने और जानने वाला है, मरदूद शैतान के शर से, ख़तरे से उसकी फंूकों से और उसके वसवसे से।
या
أعوذ بالله من الشيطان الرجيم
(अ ऊ जु बिल्लाहि मिनश शइत़ा निर्रजीम)
तर्जुमाः- पनाह मांगता हूँ मैं अल्लाह की शैतान मरदूद से।
(7) तस्मिया:
तअ़व्वुज़ के बाद तस्मिया पढ़ें:
بسم الله الرحمن الرحيم
(बिस्मििल्ला हिर्रहमा निर्रहीम)
तर्जुमा:- शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान निहायत रह़म करने वाला है। (बुख़ारी व मुस्लिम)
(8) सूरह फातिहा:
तस्मिया के बाद सूरह फ़ातिहा (अल हम्दु शरीफ़) पढ़ें, क्योंकि ये नमाज़ का एक अहम रूक्न है, इसके बग़ैर नमाज़ नहीं होती, जैसा कि नबी-ए-अकरम सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम का फ़रमान है:
لا صلاة لمن لم يقرأ بفاتحة الكتاب
(ला स़ला त लिमन लम यक़ रअ बि फ़ाति हतिल किताब)
तर्जुमा:- जो नमाज़ में सूरह फ़ातिहा न पढ़े उसकी नमाज़ नहीं होती। (बुख़ारी व मुस्लिम)
नोट:- सूरह फ़ातिहा एक-एक आयत करके पढ़नी चाहिये।
सूरह फ़ातिहा
الْحَمْدُ لِلَّهِ رَبِّ الْعَالَمِينَ ، الرَّحْمَنِ الرَّحِيمِ، مٰلِكِ يَوْمِ الدِّينِ ، إِيَّاكَ نَعْبُدُ وَإِيَّاكَ نَسْتَعِينُ ، اهْدِنَا الصِّرَاطَ الْمُسْتَقِيمَ ، صِرَاطَ الَّذِينَ أَنْعَمْتَ عَلَيْهِمْ غَيْرِ الْمَغْضُوبِ عَلَيْهِمْ وَلَا الضَّالِّينَ
(अल हम्दु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन, अर्रहमा निर्रहीम, मालिकि यउ मिद्दीन, इय्या क नअ बुदु व इय्या क नस्तईन, इहदि नस्सि़रा त़ल मुस्तक़ीम, सि़रात़ल्लज़ी न अन अ़म्ता अलइ हिम ग़ैरिल मग़ज़ूबि अलइ हिम व लज़ ज़ाॅल्लीन।)
तर्जुमा:- सब तारीफ़ अल्लाह के लिए हैं जो तमाम जहानों का पालने वाला है, बड़ा मेहरबान निहायत रह़म करने वाला, बदले के दिन (यानी क़यामत) का मालिक है, हम सिर्फ़ तेरी ही इबादत करते हैं और सिर्फ़ तुझ ही से मदद चाहते हैं, हमें सीदी (और सच्ची) राह दिखा, उन लोगों की राह जिन पर तूने इनआम किया उनकी नहीं जिन पर ग़ज़ब किया गया और ना गुमराहों की। (बुख़ारी व मुस्लिम)
(9) आमीन:
सूरह फ़ातिहा के पूरा होने के बाद आमीन कहने की नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम ने बड़ी ताकीद और फ़ज़ीलत बयान फ़रमायी है, लिहाज़ा अकेले हों या सिर्री नमाज़ों (जिन में क़िराअत आहिस्ता होती है जैसे ज़ुहर और अस्र वग़ैरह) मंे इमाम के पीछे हों तो आमीन आहिस्ता कहें, अगर नमाज़ जेहरी हो (जिसमें क़िरअत बुलन्द आवाज़ से की जाती है जैसा कि फ़ज्र, मग़रिब, इशा, जुमा व ईदैन वग़ैरह) तो भले ही आप इमाम हों या मुक़्तदी, बुलन्द आवाज़ से आमीन कहें। (बुख़ारी व मुस्लिम)
हज़रत अता बिन रूबाह फ़रमाते हैं कि मैंने दो सौ सहाबा किराम को देखा कि बैतुल्लाह में जब इमाम ‘‘वलज़्ज़ाल्लीन’’ कहता तो सब बुलन्द आवाज़ से आमीन कहते। (बैहक़ी)
(10) दूसरी सूरह मिलाना:
नमाज़ी अगर अकेला नमाज़ अदा कर रहा हो या ज़ुहर, अस्र की नमाज़ों में इमाम के पीछे हो, या ख़ुद इमाम हो तो उसे पहली दो रकअतों में सूरह फ़ातिहा के बाद कोई दूसरी सूरह भी पढ़नी चाहिए। (बुख़ारी व मुस्लिम) यानि आमीन के बाद ‘‘बिस्मिल्ला हिर्रहमा निर्रहीम’’ पढ़ कर कोई भी सूरह पढ़े। अगर नमाज़ जेहरी (जिसमें क़िरअत बुलन्द आवाज़ से की जाती है जैसा कि फ़ज्र, मग़रिब, इशा, जुमा व ईदैन वग़ैरह) हो तो उसमें मुक़्तदी को इमाम के पीछे सिर्फ़ सूरह फ़ातिहा पढ़नी चाहिए और कोई सूरह नहीं पढ़नी चाहिए। (अबू दाऊद)
(11) रूकूअ़:
क़िराअत से फ़ारिग़ होकर ‘‘अल्लाहु अकबर’’ कहते हुए दोनों हाथ कांधों के बराबर इस तरह उठायें कि हथेलियां कांधों के बराबर और हाथ की उंगलियां कानों की लौ के बराबर हों और रूकूअ़ में चले जायें। (बुख़ारी व मुस्लिम)
रूकूअ़ में दोनों हाथ घुटनों पर इस तरह रखें जैसा कि घुटनों को पकड़ रखा हो (तिर्मिज़ी), अपने बाज़ुओं को पहलुओं से अलग रखें (तिर्मिज़ी) और कमर को इस तरह सीधा रखें कि अगर उस पर पानी भी डाला जाये तो उस पर ठहर जाये और सर को कमर के बराबर रखें, न बहुत नीचे झुकायें और न ऊठायें। (बुख़ारी व मुस्लिम)
रूकूअ़ की तस्बीहेंः इत्मीनान के साथ रूकूअ़ करें और कम से कम तीन बार नीचे लिखी तस्बीहों में से कोई एक तसबीह पढ़ें-
(1) سبحان ربي العظيم
(सुब्हान रब्बियल अज़ीम)
तर्जुमा:- पाक है तेरा अ़ज़मत वाला रब। (मुस्लिम)
(2) سبحان ربي العظيم و بحمده
(सुब्हान रब्बियल अज़ीम व बि हम्दिही)
तर्जुमा:- पाह है मेरा रब बुलन्दियों वाला और सब तारीफ उसकी के लिए है। (मुस्लिम)
(3) سبحانك اللهم ربنا و بحمدك اللهم الغفرلي
(सुब्हान कल्लाहुम्मः रब्बना वबि हम्दिका अल्लाहुम्मग़ फ़िर ली)
तर्जुमा:- ऐ अल्लाह! तू पाक है हमारे परवरदिगार, और हम तेरी हम्द बयान करते हैं, ऐ अल्लाह! मुझे बख़्श दे। (बुख़ारी व मुस्लिम)
(4) سبوح قدوس رب الملائكة وَالرُّوحِ
(सुब्बूहुन क़ुद्दूसुन रब्बुल मलाइकति वर्रूह)
तर्जुमा:- पाक है वो बे ऐब बादशाह, वो हर शिर्क और ऐब से पाक है, रब है फरिश्तों का और रूहुल क़ुद्दूस का। (मुस्लिम, अबू दाऊद)
(12) रूकूअ़ से उठना:
रूकूअ़ से उठते वक़्त कहेंः
سمع الله لمن حمده
‘‘समी अल्लाहु लिमन ह़मिदह’’
तर्जुमा:- अल्लाह ने तारीफ़ करने वाले की तारीफ़ सुन ली। (बुख़ारी व मुस्लिम)
और दोनों हाथ उसी तरह कांधों तक उठायें जिस तरह रूकूअ़ में जाते वक़्त उठाये थे। (बुख़ारी व मुस्लिम)
(13) क़ौमा:
रूकूअ़ के बाद बिल्कुल सीधे खड़े होने को क़ौमा कहते हैं। सीधा खडे़ होकर ये दुआ पढ़नी चाहिएः
क़ौमा की दुअ़ाऐं:
(अल्लाहुम्मा) रब्बना व लकल हम्दु हम्दन कस़ीरन तय्यबन मुबारकन फीहि
तर्जुमा:- ऐ हमारे रब! तेरे ही लिये सब तारीफ़ें हैं, बहुत ज़्यादा पाकीज़ा कलिमात जिनमें बरकत दी गई है। (बुख़ारी)
अगर मुक़्तदी हो यानि इमाम के पीछे हो तो उसे भी ‘‘समी अल्लाहु लिमन ह़मिदह’’ कहना चाहिए और इसके बाद उपरोक्त दुआ भी पढ़नी चाहिए।
(14) सजदा:
क़ौमा के बाद ‘‘अल्लाहु अकबर’’ कह कर सजदे के लिए झुकें और ज़मीन पर पहले हाथ रखें और बाद में घुटने। और जिस्म के सात हिस्से ज़मीन पर रख कर सजदा करें। (यानि नाक और माथा, दोनों हाथ, दोनों घुटने और दोनों पांव ज़मीन को छुऐं) (बुख़ारी व मुस्लिम) हाथों की उंगलियां खुली और साथ मिली हुई हो (हाकिम, बैहक़ी), बाज़ू पहलूओं से और पेट रानों से अलग हों (बुख़ारी व मुस्लिम), पांव की ऐड़ियां मिली हुई हों (इब्ने ख़ुज़ैमा) और उंगलियां क़िबला की तरफ़ हों (बुख़ारी) और बहुत इत्मीनान के साथ सजदा किया जाये। (बुख़ारी, मुस्लिम व अबू दाऊद), याद रहे कि हर रकअत में दो सजदे होते हैं और दोनों सजदों में निम्न दुआऐं पढ़ना मसनून है।
दोनों सजदे की दुआऐं
सजदे में कम से कम तीन बार नीचे दी गईं दुआओं में से कोई एक दुआ पढ़ें-
(1) سبحان ربي الأعلى
(सुब्हा न रब्बियल अअला)
तर्जुमा:- पाह है मेरा रब बुलन्दियों वाला। (मुस्लिम)
(2) سبحان ربي الأعلى و بحمده
(सुब्हा न रब्बियल अअला व बि हम्दिही)
तर्जुमा:- पाह है मेरा रब बुलन्दियों वाला और सब तारीफ उसकी के लिए है। (मुस्लिम)
(3) سبحانك اللهم ربنا و بحمدك اللهم الغفرلي
(सुब्हान कल्लाहुम्मः रब्बना वबि हम्दिका अल्लाहुम्मग़ फ़िर ली)
तर्जुमा:- ऐ अल्लाह! तू पाक है हमारे परवरदिगार, और हम तेरी हम्द बयान करते हैं, ऐ अल्लाह! मुझे बख़्श दे। (बुख़ारी व मुस्लिम)
(4) سبوح قدوس رب الملائكة و الروح
(सुब्बूहुन क़ुद्दूसुन रब्बुल मलाइकति वर्रूह)
तर्जुमा:- पाक है वो बे ऐब बादशाह, वो हर शिर्क और ऐब से पाक है, रब है फरिश्तों का और रूहुल क़ुद्दूस का। (मुस्लिम, अबू दाऊद)
(15) दोनों सजदों के बीच बैठना:
‘‘अल्लाहु अकबर’’ कहते हुए पहले सजदे से उठें और अपने बायें पांव को बिछा कर उस पर सीधे बैठ जायें और दायें पांव को उसी तरह खड़ा रखें जिस तरह सजदे में था और दोनों हाथ अपनी रानों पर रखें। इस तरह बैठने को ‘‘जलसा’’ कहते हैं, जलसे में ये दुआ पढ़ेंः
أللهم اغفزلي ورحمي وهدني وعافنياللَّهُمَّ اغْفِرْ لِي، وَارْحَمْنِي، وَاهْدِنِي، وَعَافِنِي، وَارْزُقْنِي
(अल्लाहुम्मग़ फ़िर्ली वर ह़म्नी वहदिनी व आफ़िनी वर ज़ुक़्नी)
तर्जुमा:- ऐ अल्लाह! मुझे बख़्श दे और मुझ पर रह़म फ़रमा और मुझे हिदायत दे और मुझे आफ़ियत बख़्श और मुझे रोज़ी अता कर और मुझे बुलन्द कर। (बुखारी, अबू दाऊद, तिर्मिज़ी व इब्ने माजा)
(15) दूसरा सजदा:
इसके बाद ‘‘अल्लाहु अकबर’’ कह कर उसी तरह दूसरा सजदा करें जैसा कि पहले किया था।
(16) जलसा-ए-इस्तराहत:
दूसरे सजदे के बाद दूसरी रकअत के लिये ख़ड़े होने से पहले सुकून और इत्मिनान से सीधा बैठ जाना चाहिए। इसे ‘‘जलसा-ए-इस्तराहत’’ कहते हैं। सीधे बैठ कर हाथों पर वज़न देकर इस तरह उठें कि पहले घुटने ज़मीन से ऊपर उठायें और बाद में हाथ। (बुख़ारी) जलसा-ए-इस्तराहत में कोई दुआ नहीं पढ़नी है।
(17) दूसरी रकअ़त:
दूसरी रकअ़त के लिए खड़े हो (कर सीने पर हाथ बांध लें) और सूरह फ़ातिहा से क़िराअत शुरू करें। (मुस्लिम) बाक़ी रकअ़त पहली रकअ़त की तरह पूरी करें।
(18) तशह्हुद:
दो रकअत से ज़्यादा की नमाज़ में दूसरी रकअ़त के बाद तशह्हुद करना वाजिब है, सिवाये नमाज़े वित्र के क्योंकि तीन रकअ़त वित्रों में दो रकआत के बाद तशह्हुद करना किसी सही हदीस से साबित नहीं है।
दूसरी रकअ़त के दूसरे सजदे से उठकर दायां पांव खड़ा रखते हुए बायें पांव को बिछा कर उस पर सीधे बैठ जायें और दायां हाथ दायें घुटने पर और बायां हाथ बायें घुटने पर रखें और उस की उंगलियां खुली और क़िबला रूख़ हों। (बुख़ारी व मुस्लिम) और इर दौरान अत्तहियात और दुरुद इब्राहीमी पढ़ें जो इस तरह हैःअत्तहियात:
التَّحِيَّاتُ لِلَّهِ وَالصَّلَوَاتُ وَالطَّيِّبَاتُ، السَّلاَمُ عَلَيْكَ أَيُّهَا النَّبِيُّ وَرَحْمَةُ اللَّهِ وَبَرَكَاتُهُ، السَّلاَمُ عَلَيْنَا وَعَلَى عِبَادِ اللَّهِ الصَّالِحِينَ، أَشْهَدُ أَنْ لاَ إِلَهَ إِلاَّ اللَّهُ وَأَشْهَدُ أَنَّ مُحَمَّدًا عَبْدُهُ وَرَسُولُهُ
(अत्तहिय्यातु लिल्लाहि वस्सलावातु वत्तय्यीबातु अस्सलामु अलइका अय्युहन्नबिय्यु व रह मतुल्लाहि व ब रकातुहू अस्सलामु अलइना व अला इबादिल ला हिस़्स़ाॅलिहीनः अश हदु अंल्ला इलाहा इल्लल्लाहु व अश हदु अन न मुहम्मदन अब्दुहू व रसूलुहू)
तर्जुमा: मेरी तमाम तर ज़ुबानी, बदनी और माली इबादतें सिर्फ़ अल्लाह के लिये हैं, ऐ नबी सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम आप पर अल्लाह तआला की तरफ़ से सलामती रहमतें और बरकतें हों, हम पर भी और अल्लाह के दूसरे नेक बन्दों पर सलामती हो, मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह के अलावा कोई सच्चा माबूद नहीं और बेशक हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम अल्लाह के बन्दे और रसूल हैं। (बुख़ारी व मुस्लिम)
दुरूदे इब्राहीमी:
اللَّهُمّ صَلٌ علَےَ مُحمَّدْ و علَےَ آل مُحمَّدْ كما صَلٌيت علَےَ إِبْرَاهِيمَ و علَےَ آل إِبْرَاهِيمَ إِنَّك حَمِيدٌ مَجِيدٌ ۔
اللَّهُمّ بارك علَےَ مُحمَّدْ و علَےَ آل مُحمَّدْ كما باركت علَےَ إِبْرَاهِيمَ و علَےَ آل إِبْرَاهِيمَ إِنَّك حَمِيدٌ مَجِيدٌ
(अल्लाहुम म स़ल्लि अला मुहम्मदिउं व अला आलि मुहम्मदिन कमा स़ल्लइता अला इब्राही म व अला आलि इब्राही म इन्न क हमीदुम मजीद, अल्लाहुम म बारिक अला मुहम्मदिउं व अला आलि मुहम्मदिन कमा बारकता अला इब्राही म व अला आलि इब्राही म इन्न क हमीदुम मजीद).
तर्जुमा: ऐ अल्लाह रहमत भेज हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम पर और आप की आल पर जिस तरह तूने रहमत भेजी हज़रत इब्राहीम अलइहिस्सलाम और आप की आल पर, बेशक तू तारीफ़ वाला और बुजुर्गी वाला है। ऐ अल्लाह बरकत भेज हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम पर और आप की आल पर जिस तरह तूने बरकत भेजी हज़रत इब्राहीम अलइहिस्सलाम और आप की आल पर, बेशक तू तारीफ़ वाला और बुज़ुर्गी वाला है। (बुख़ारी)
नोट:
(अ) तशह्हुदश में उंगली उठाकर रखना (मुस्लिम) या बराबर हिलाते रहना दोनों तरह जायज़ है। (निसाई, इब्ने हिब्बान, इब्ने ख़ुज़ैमा)
(ब) बीच के तशह्हुद में भी दरूदे इब्राहीमी पढ़ना चाहिए और ये मुस्तहब अमल है। देखें सूरह अहज़ाब 33 आयत नं0 56, तफ़्सीर अह सनुल बयान।
(19) तीसरी रकअ़त:
बीच के तशह्हुद से अल्लाहु अकबर कहते हुए तीसरी रकअ़त के लिये उठें और र-फ़-उल यदैन करें यानि दोनों हाथों को कांधों के बराबर तक उठायें, जैसा कि शुरू नमाज़ में किया था। फिर सीने पर हाथ बांध कर सूरह फ़ातिहा पढ़े, फिर रूकूअ़ करें, फिर सजदे और इसी तरह चैथी रकअ़त पूरी करें।
(20) आखि़री तशह्हुद:
आखि़री रकअ़त पूरी करके उसी हालत में बैठें जिस ह़ालत में बीच के तशह्हुद के वक़्त बैठे थे लेकिन इस बार बायें पांव पर नहीं बैठना है बल्कि बायां पांव अपने दायें पांव के नीचे से निकाल कर बैठें और दायें पांव को पहले की तरह से खड़े रखें और अत्तहियात पढ़ें और इसके बाद दुरूदे इब्राहीमी पढ़ें। अत्तहियात और दुरूद इब्राहीम ऊपर दिया गया है :
फिर ये दुआऐं या इनमें से कोई एक दुआ पढ़ेंः
(1)
اللهم إني أعوذ بك من عذاب القبر واعوذ بك من فتنة المسيح الدجال وأعوذ بك من فتنة المحيا وممات اللهم إني أعوذ بك من الماثم والمغرم
(अल्लाहुम म इन्नी अ ऊज़ुबि क मिन अज़ाबिल क़ब्रि व अ ऊज़ु बि क मिन फ़ित्न तिल मसीहिद्दज्जाल व अ ऊज़ु बि क मिन फ़ित्न तिल महया व ममाति, अल्लाहुम म इन्नी अ ऊज़ु बि क मिनल मअ स़मि वल मग़ रमि)
तर्जुमाः- ऐ अल्लाह! मैं तेरी पनाह में आता हूँ अज़ाबे क़ब्र से और तेरी पनाह में आता हूँ दज्जाल के फ़ितने से और तेरी पनाह में आता हूँ मौत और ज़िन्दगी के फ़ितने से और ऐ अल्लाह! मैं गुनाह और क़र्ज़ से तेरी पनाह मांगता हूँ। (बुख़ारी व मुस्लिम)
(2)
اللَّهمَّ إِنِّي ظَلَمْتُ نَفْسِي ظُلْمًا كثِيرًا، وَلا يَغْفِر الذُّنوبَ إِلاَّ أَنْتَ، فَاغْفِر لي مغْفِرَةً مِن عِنْدِكَ، وَارحَمْني، إِنَّكَ أَنْتَ الْغَفور الرَّحِيم
(अल्लाहुम म इन्नी ज़लम्तु नफ़्सी ज़ुल्मन कस़ीरउं व ला यग़फ़िरूज़्ज़ुनू ब इल्ला अन त फ़ग़ फ़िर ली मग़फि र तम मिन इन्दि क वर हम्नी इन्न क अन्तल ग़फ़ूरूर्रहीम)
तर्जुमाः- ऐ अल्लाह! बेशक मैंने अपनी जान पर बहुत ज़्यादा ज़ुल्म किया और तेरे सिवा कोई गुनाहों को बख़्शने वाला नहीं, लिहाज़ा तू अपनी जानिब से मुझे बख़्श दे और मुझ पर रह़म फ़रमा। बेशक तू ही बख़्शने वाला मेहरबान है। (बुख़ारी व मुस्लिम)
नोटः- अत्तहियात और दूरूदे इब्राहीमी के बाद क़ुरआन व हदीस से जो भी दुआ याद हो पढ़ सकते हैं।
(20) दाईं और बाईं तरफ सलाम फेरें:



पहले दाईं तरह चेहरा घुमाते हुए ‘‘अस्सलामु अलइकुम व रह़ मतुल्लाह’’ कहें और फ़िर दाईं तरफ चेहरा घुमाते हुए ‘‘अस्सलामु अलइकुम व रह़ मतुल्लाह’’ कहें। (अबू दाऊद, तिर्मिज़ी)
(21) नमाज़ से फ़ारिग़ होने के बाद इन दुआओं को ज़रूर पढ़ना चाहिए:
(1) नमाज़ से फ़ारिग़ होने के बाद बुलन्द आवाज़ से ‘‘अल्लाहु अकबर’’ कहें। (बुख़ारी व मुस्लिम)
(2) फिर तीन बार ‘‘अस्तग़ फ़िरूल्लाह’’ यानि मैं अल्लाह से बख़्शिश मांगता हूँ, कहना चाहिए।
(3) ‘‘अल्लाहुम म अन्तस्सलामु व मिन्कस्सलामु तबा र क या ज़ुल जलालि वल इक्रामि’’ (मुस्लिम)
तर्जुमाः- ऐ अल्लाह! तू सलामती वाला है तेरी ही तरफ़ से सलामती है, ऐ ज़ल जलाल वल इकराम तू बड़ा ही बरकत वाला है।
और फिर ये दुआ पढ़नी चाहिएः
(4) ‘‘रब्बि अ इन्नी अला ज़िक रि क व शुक रि क व हुस्नि इबादति क’’ (निसाई, अबू दाऊद)
तर्जुमाः- ऐ मेरे परवरदिगार! अपना ज़िक्र बजा लाने और अच्छी इबादत करने में मेरी मदद फ़रमा।
(5) ‘‘ला इला ह इल्लल्लाहु वह़्दहू ला शरी क लहू लहुल मुल्कु व ल हुल हम्दु व हुवा अला कुल्लि शइ इन क़दीर, अल्लाहुम म ला मानि अ लिमा अअ तइता व ला मुअ ति अ लिमा मनअ त वला यन फ़अु ज़ल जद्दि मिन कल जद्दु’’ (बुख़ारी व मुस्लिम)
तर्जुमाः- अल्लाह के सिवा कोई सच्चा इबादत के लायक़ नहीं, वो अकेला है, उसका कोई शरीक नहीं, उसी की बादशाहत है और उसी के लिये तमाम तारीफ और वही हर चीज़ पर क़ादिर है। ऐ अल्लाह! तेरी अता को कोई रोकने वाला नहीं और जिससे तू रोक ले उसे कोई अता करने वाला नहीं और किसी दौलतमंद को उसकी दौलत तेरे अज़ाब से नहीं बचा सकती।
(6) ला इला ह इल्लल्लाहु वह्दहू ला शरी क लहू लहुल मुल्कु व ल हुल हम्दु व हु व अला कुल्लि शइ इन क़दीर, ला हउला व ला क़ुव्व त इल्ला बिल्लाहि, ला इला ह इल्लल्लाहु व ला नअ बुदु इल्ला इय्याहु लहुन निअ्मतु व ल हुल फ़ज़्लु व ल हुस़्सना उल ह स नु, ला इला ह इल्लल्लाहु मुख़्लिसी न लहुद्दी न व लउ करिहल काफ़िरून’’ (मुस्लिम)
तर्जुमाः- अल्लाह के सिवा कोई सच्चा इबादत के लायक़ नहीं, वो अकेला है, उसका कोई शरीक नहीं, उसी की बादशाहत है और उसी के लिये ही तमाम तारीफें और वही हर चीज़ पर क़ादिर है। गुनाहों से रूकना और इबादत की तौफ़ीक़ मिलना अल्लाह की तरफ़ से है। अल्लाह के सिवा कोई सच्चा इबादत के लायक़ नहीं हम सिर्फ़ उसकी इबादत करते हैं, हर तरह की रोज़ी व नेअमत का वही मालिक और हर अच्छी तारीफ़ उसी के लिये है, अल्लाह के सिवा कोई सच्चा इबादत के लायक़ नहीं, हम सिर्फ़ उसी का दीन अपनाते हैं, अगर्चे काफ़िर बुरा ही क्यों न मानें।
इसके बाद
(7) तस्बीहात पढ़ें- 33 बार ‘‘सुब्हानल्लाह’’ 33 बार ‘‘अल्हम्दु लिल्लाह’’ और 33 बार ‘‘अल्लाहु अकबर’’ और 1 बार यह कलिमाः ‘‘ला इला ह इल्लल्लाहु वह्दहू ला शरी क लहू लहुल मुल्कु व ल हुल हम्दु व हुवा अला कुल्ली शइ इन क़दीर’’ पढ़ना चाहिए।
तर्जुमाः- अल्लाह के सिवा कोई सच्चा माबूद नहीं, वो अकेला है उसका कोई शरीक नहीं, उसी लिये सारी बादशाहत और उसी के लिए सारी तारीफ़ है और वो हर चीज़ पर ख़ूब कु़दरत रखने वाला है।
इसके बाद
(8) ‘‘आयतल कुर्सी’’ पढ़ें।
(निसाई, अमलुल यौमि वल्लैला)
इसके बाद
(9) क़ुरआन मजीद की आखि़री तीन सूरतें, सूरह इख़्लास (बुख़ारी), सूरह फ़लक़ और सूरह नास पढ़ें। (अबू दाऊद, इब्ने हिब्बान) ख़ास कर फ़ज्र और मग़रिब की नमाज़ के बाद तीन-तीन बार पढ़ें बाक़ी नमाज़ों के बाद एक-एक बार पढ़ें।
Please do not share any spam links in this blog.