Minor Sins : ऐसे गुनाह जिनको लोगों ने मामूली समझ रखा है : Serious Sins



Minor Sins : मोहतरम अज़ीज़ पाठकों! अस्सलामु अलइकुम व रह मतुल्लाहि व ब रकातुहू! इंशा अल्लाह, अब मैं आपकी ख़िदमत में Minor Sins “ऐसे गुनाह जिनको लागों ने मामूली समझ रखा है” के विषय पर कई भागों में लेख पेश करने की कोशिश कर रहा हूँ, जिसमें ऐसे गुनाहों (Minor Sins) का उल्लेख किया गया है जिन्हें लोग बहुत मामूली गुनाह (Minor Sins) समझ कर करते रहते हैं हालांकि ये बड़े ही संगीन गुनाह (Serious Sins) हैं। Now let’s start introduction of Minor Sins and Serious Sins.:


ऐसे गुनाह जिनको लोगों ने मामूली समझ रखा है

बिरिमल्लाहिर्रहमानिर्रहीम

الحمد لله رب العالمين والصلاة والسلام على نبينا محمد و علی و آله و صحبه اجمعين اما بعد

अज़ीज़ साथियों! इस्लामी कानून अच्छाइयों को फैलाने और बुराइयों को रोकने का नाम है। अल्लाह रब्बुल आलमीन और रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जहां कुछ चीजें हलाल की हैं वहीं कुछ चीजें इंसानियत की भलाई के लिये ह़राम फ़रमा दी हैं, और पूरा ईमान उसी वक़्त हासिल हो सकता है जब बन्दा अल्लाह तआला की इताअत व बन्दगी और रसूल अल्लाह सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम की पेरवी में हुक्मों को बजा लाये और जिन चीज़ों से मना किया गया है उनसे बचे, उन्हीं मना की गई चीज़ों में से कुछ चीजें मुहर्रमात (हराम की गई) कहलाती हैं जिनसे बचना हर हाल में ज़रूरी है।

हज़रत हुजै़फा बिन अलयमान (रजियल्लाहु अन्हु) ने फरमायाः लोग अल्लाह के नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से अच्छाई और भलाई के बारे में पूछा करते थे, लेकिन मैं शर व फ़साद और बुरी चीज़ों के बारे में आप सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम से पूछा करता था, इस डर से कि नादानी में कहीं उन बुरी बातों या कामों को ना कर बैठूं, इस लिये जहां इंसान को दीन की तालीमात में अच्छे कामों और हुक्मों की तलाश होनी चाहिये वहीं उसको इस बात का भी ध्यान व लिहाज़ रखना चाहिये कि वह जो काम करने जा रहा है शरीअत में मना किया गया या हराम तो नहीं। सलफ़ स्वालेहीन (गुज़रे ज़माने के बुजुर्ग और परहेज़गार लोगों) ने इस बारे में बहुत सी किताबें लिखी हैं, जैसे इमाम इब्न त्यमिया की ‘अल्जवाजिर’. हाफ़िज़ ज़हबी की ‘अल्कबाइर’ और इब्नुल नहहास की ‘तम्बीहुल गा़फ़िलीन’ वगैरह।।

आपके सामने यह लेख फ़जी़लतश्शैख़ मुहम्मद बिन स्वालेह स्वालेहुल्मुन्जिद (हफ़िज़हुल्लाह) की किताब ‘मुहर्रमात इस्तहान यजिबुल्हज़र मिन्हा’ का तरजुमा है जो मुख्तिसर होने के साथ साथ बहुत मुकम्मल और लोगों के लिये बेहद क़ीमती सरमाया है और बहुत ही फ़ायदेमन्द चुनाव है जिसकी आज-कल के दौर में बहुत ज़रूरत है।

लेखक ने कुरआन पाक और सुन्नते रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम की रोशनी में बड़े अच्छे अन्दाज़ में बहुत सारी सामाजिक बुराइयों को बताया है।

इसके फायदे को देखते हुए मैं इसे आपके सामने पेश कर रहा हूँ। इन पोस्ट के सभी भागों के सिलसिले में यह बताना ज़रूरी है कि आयतों और हदीसों के तरजुमे के लिये मुस्तनद और सभी उलमा के भरोसेमंद तरजुमों से मदद ली गई है।

इस लेख में ज़िक्र किया गया कलिमा “मुहर्रमात’ का मतलब हराम काम या हराम चीजें हैं जो खाने, पीने, उठने, बैठने और सजने, संवरन अख़्लाक़ व आदतों के बारे में हैं।

एक कलिमा पढ़ने वालों को नज़र आयेगा “फलां रावी से मरफूअ़न रिवायत है” नबी करीम सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम के कहने, करने और मंजू़री व आदत, खूबी व तरीक़े को हदीस कहते हैं और मरफूअ़ कहने से उस हदीस का दर्जा बढ़ जाता है और वह हदीस मुहद्दिसीन किराम (हदीसें जमा करने वालों) के लिये पूरा भरोसा करने लायक होती हैं।

हवालों के सिलसिले में अगर हदीस सहीह बुखा़री, या सहीह मुस्लिम में मौजूद है तो इसी को काफ़ी समझा गया है और बहुत सी जगहों पर जिल्द, पेज और हदीस का नाम लिख दिया गया है जो फ़तहुल्बारी और शरहुल्नोवी से लिया गया है, हदीस अगर दीगर हदीस की किताबों में भी है तो उनके साथ सही हुल्जामे उल्सगी़र और सिलसिलतुल अहादीसे सहीहा का हवाला दे दिया गया है जो मुहद्दिसे अस्र अल्लामा नासिर उद्दीनुल्अल्बानी (रहिमहुल्लाह) की मशहूर व मारूफ़ किताबें हैं और सेहत की सनद मानी जाती हैं।

कुरआन करीम के हवाले में सूरत का नाम, नं. और उस सूरत की आयत नं. दे दिया गया है ताकि तलाश करने में आसानी हो।

पढ़ने वालों से गुज़ारिश है कि वह इस पोस्ट को और आने वाली सभी पोस्ट को गौ़र से पढ़ें और ह़राम चीज़ों पर नज़र डाल कर अपनी जांच पड़ताल करलें कि कहीं हमसे यह ह़राम काम नादानी या अंजाने में तो नहीं हो रहे हैं।

अल्लाह तआला से दुआ है कि हमारी सभी पोस्ट को तमाम लोगों के लिये फ़ायदेमंद बनाये, पोस्ट में कोई अच्छी बात है तो यह तौफ़ीक़ और रहमते इलाही का करिश्मा है और अगर कोई ग़लती हुई है तो मेरी और मेरी नफ़स की तरफ़ से है, अल्लाह तआला उससे दरगुज़र फ़रमाये और हम सबको अपने दीने हक़ पर चलने की तौफ़ीक़ इनायत फ़रमाये, आमीन!

मैं अल्लाह तआला का बेइंतिहा शुक्र अदा करता हूं जिसने महज़ अपने फ़ज़लो करम से दीनी कामों की तौफ़ीक़ बख़्शी है और दुआ करता हूं कि अल्लाह तआला इसका अज्रो सवाब मेरे और मेरे वालिदैन के नामाए आमाल में दर्ज फ़रमाये जिनकी मेहनत व मशक्क़त, तरबियत व तालीम, ईसार व कुरबानी और सब्र व शुक्र के बदले अल्लाह तआला ने मुझे कुछ तौफीक बख़्शी। – ولوالدي وللمومنين يوم يقوم الحساب

وصلى الله وسلم على نبينا محمد و على آله وصحبه اجمعين


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