Islamic Marriage Part 19 : दो धारी शैतानी हथियार, चलती फिरती तस्वीरें


(बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम)

प्रिय पाठकों, अस्सलामु अलइकुम वरहमतुल्लाहि वबरकातुहू आज की हमारी पोस्ट में मानव जीवन के तीसरे दौर में जिन्सी बुराइयों और गन्दिगी से पाक व साफ़ रखने के दस आदेशों में से आदेश नं0 7 के आठ प्वाइंट्स का उल्लेख किया गया है जिसमें आप लोगों को इस बात से अवगत कराया जा रहा है कि समाज में नज़र आने वाली छोटी-छोटी बुराइयां किस क़दर ख़तरनाक और गुनाह का सबब हैं जिनसे आज हम इंसान बचने की कोशिश नहीं करते हैं और आज ये बुरे और फ़हश काम हद से तजावुज़ कर चुके हैं जैसे कि औरत का ख़ुश्बू लगाकर बाज़ारों और मिली जुली मेहफ़िलों शामिल होना, ग़ैर मेहरम के साथ मिलना जुलना व छूना, अपनी शोभा का प्रदर्शन करना, गाने बजाने आदि शैतानी हथकंडों से हम सभी को बचना चाहिए, ऐसे कामों से अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम ने सख़्ती से मना फरमाया है। अल्लाह तआला हम सभी को इन तमाम बुरे फ़ह्श और शैतानी कामों से बचने की तौफ़ीक़ अता फ़रमाये, आमीन!

आदेश नं0 7: कुछ अन्य आवेश वढ़ाने वाले कामों की मनाही

(1) ख़ुश्बू लगाकर घर से निकलने की मनाही-

नबी सल्ल0 का इरशाद है- ‘‘जो औरत नमाज़ के लिए मस्जिद जाना चाहे वह (ख़ुश्बू का असर ख़त्म करने के लिए इसी तरह) ग़ुस्ल करे जिस तरह जनाबत से ग़ुस्ल करती है।’’ (निसाई)

(2) ग़ैर मेहरम से साथ मिलने की मनाही-

नबी सल्ल0 का इरशाद है- ‘‘कोई मर्द किसी औरत के साथ कदापि तन्हाई में न मिले या यह कि उसका मेहरम साथ हो न ही औरत मेहरम के बिना सफ़र करे।’’ (मुस्लिम)

नबी सल्ल0 का इरशाद है- ‘‘पतियों की ग़ैर मौजूदगी में औरतों के पास न जाओ क्योंकि शैतान तुममे से हर किसी के अन्दर इस प्रकार गर्दिश कर रहा है जिस तरह ख़ून करता है।’’

(3) ग़ैर मेहरम को छूने की मनाही-

नबी सल्ल0 का इदशाद है- ‘‘कोई मर्द दूसरे मर्द का और कोई औरत किसी दूसरी औरत का सतर न देखे।’’

(4) इकट्ठा सोने की मनाही-

नबी सल्ल0 का इरशाद है- ‘‘कोई मर्द दूसरे मर्द के साथ या कोई औरत दूसरी औरत के साथ एक चादर में न लेटे न सोए।’’ (मुस्लिम)

(5) ग़ैर मेहरमों के सामने शोभा के प्रदर्शन की मनाही-

अल्लाह का इरशाद है- ‘‘ऐ नबी! मोमिन औरतों से कहो अपनी निगाहें (मर्दों की निगाहों में डालने से) बचा के रखें। अपने सतीत्व की रक्षा करें और अपनी शोभा का प्रदर्शन न करें सिर्फ़ उस शोभा के जो आप से आप ज़ाहिर हो जाए। और अपने पांव ज़मीन पर मारती हुई न चलें। ऐसा न हो कि वह शोभा जो उन्होंने छुपा रखी है उसका लोगों को पता लग जाए (सूरह नूर-31)। याद रहे सिवाय हाथों और चेहरे के जो आप स्वयं ज़ाहिर होने वाले हैं औरत का बाक़ी सारा शरीर सर से लेकर पांव तक सतर है जिसे घर के अन्दर मेहरमों से भी (सिवाए पति के) छुपाना ज़रूरी है। शोभा से तात्पर्य घर के अन्दर रोज़ की तरह वे कार्य हैं जिनमें कंघी करना, ख़ुश्बू लगाना, सुर्मा लगाना, मेंहदी लगाना या अच्छे ज़ेवर और कपड़े पहनना शामिल हैं जिसका प्रदर्शन केवल मेहरमों के सामने जायज़ है।

जिन रिश्तेदारों के सामने शोभा का प्रदर्शन करना जायज़ है वे यह हैं- बाप, दादा, परदारा, नाना, परनाना, पति का बाप, दादा, परदादा, नाना, परनाना, आदि। बेटे, पोते, पड़पोते, नवासे, पड़नवासे आदि भाई और उनके बेटे, पोते, पड़पोते, नवासे और पड़नवासे, बहनों के पोते, पड़पोते, नवासे और पड़नवासे।

ग़ैर मेहरमों के अलावा शरीअत ने निर्लज्ज और बदकार औरतों के सामने भी शोभा के प्रदर्शन की इजाज़त नहीं दी ताकि वह समाज में फ़ित्ने न फैलाती फिरें।

(6) ग़ैर मेहरम मर्दों को बिना ज़रूरत आवाज़ सुनाने की मनाही-

अल्लाह के नबी सल्ल्0 का इरशाद है- ‘‘नमाज़ के दौरान किसी ज़रूरत के लिए (जैसे इमाम की भूल आदि) मर्द सुबहानल्लाह कहें लेकिन औरतें ताली बजाएं।’’ (बुख़ारी व मुस्लिम) इसी कारण औरत को अज़ान देने की इजाज़त भी नहीं दी गयी।

(7) गाने बजाने की मनाही-

मर्दों और औरतों की जिन्सी भावनाओं को भड़काने का सबसे प्रभावी साधन गाना बजाना और संगीत है। यदि इस गाने के साथ चलती फिरती तस्वीरें भी हों तो यह एक ऐसा दो धारी शैतानी हथियार बन जाता है जो जिन्सी भावनाओं में आग लगा कर इन्सान को हैवान बना देने के लिए काफ़ी है अतएव नबी सल्ल0 ने हर तरह के संगीत और गाना सुनने से मना किया है और ऐसा करने वाले को अल्लाह की कठोर यातना की ख़बर सुनाई है। नबी सल्ल0 का इरशाद है- ‘‘इस उम्मत के लोगों पर ज़मीन में धंसने, शक्लें बिगड़ने और (आसमान से) पत्थरों की बारिश बरसने का अज़ाब आएगा’’ किसी सहाबी ने कहा- ‘‘ऐ अल्लाह के रसूल सल्ल0! यह कब होगा?’’ आपने इरशाद फ़रमाया- ‘‘जब गाने बजाने वाली औरतों ज़ाहिर होंगी, संगीत के संयत्र आम इस्तेमाल होंगे और शराबें पी जाएंगी।’’ (तिर्मिज़ी)

(8) दुराचारी साहित्य-

औरत की नंगी और अर्ध नंगी रंगीन तस्वीरों पर आधारित दैनिक, साप्ताहिक, मासिक और साहित्य के नाम पर अश्लील गन्दे और ग़लीज़ नाविल और अन्य चरित्र से गिरा हुआ साहित्य समाज में अश्लीलता व निर्लज्जता फैलाने का एक बहुत बड़ा शैतानी हथियार है। अल्लाह ने ऐसे चरित्र को बिगाड़ने वाले साहित्य के प्रकाशन पर क़ुरआन मजीद में दर्दनाक अज़ाब की ख़बर दी है। अल्लाह का इरशाद है- ‘‘जो लोग चाहते हैं कि ईमान वालों में अश्लीलता फैले वे दुनिया व आखि़रत में दर्दनाक यातना के हक़दार हैं।’’ (सूरह नूर-19)

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