Islamic Marriage Part 15 : मानव जीवन के चार दौर और शिक्षा प्रद घटना


The Four Stages of Human Life and the Enlightening Event

(बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम)

अलहम्दु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन वस्सलातु वस्सलामु अला सय्यिदिल मुर्सलीन वल आक़िबतु लिल मुत्तक़ीन, अम्मा बाद!

इस्लाम की प्रशिक्षण व्यवस्था

व्यक्ति के समूह का नाम समाज है और व्यक्ति समाज का एक अटूट अंग है। इस्लाम समाज के सुधार का आरंभ करता है ताकि चरित्रवान और भले लोग तैयार होकर एक पाकीज़ा व स्वस्थ समाज का निर्माण हो सके। व्यक्ति के सुधार के लिए इस्लाम की प्रशिक्षण व्यवस्था को समझने के लिए मानव जीवन को चार दौरों में विभाजित किया जा सकता है।

1. पहला दौर – गर्भ ठहरने से लेकर जन्म तक
2. दूसरा दौर – जन्म से लेकर व्यस्क होने तक
3. तीसरा दौर – व्यस्क आयु से निकाह तक
4. चैथा दौर – निकाह के बाद से अन्तिम सांस तक

पहला दौर – गर्भ ठहरने से लेकर जन्म तक

यह एक ठोस हक़ीक़त है कि औलाद का सौभाग्य या दुष्टता बड़ी हद तक मां-बाप की दीनदारी, ईशभय, सदाचार, चरित्र एवं शिष्टाचार पर निर्भर होती है मां-बाप में से भी मां-बाप के दृष्टिकोण, भावनाएं, बुद्धिमानी, आचरण की छाप औलाद पर बाप की तुलना में अधिक गहरी होती है। इस तथ्य को सामने रखते हुए इस्लाम ने निकाह के समय औरत की दीनदारी को बड़ा महत्व दिया है।

अल्लाह के नबी सल्ल0 का इरशाद है कि ‘‘औरत में चार चीज़ों को देखकर निकाह किया जाता है-

1. माल व दौलत
2. हसब व नसब
3. सुन्दरता
4. दीनदारी

तुम्हारे हाथ धूल में अटें तुम्हें दीनदार औरत से निकाह करने से कामयाबी हासिल करना चाहिए।’’ (बुख़ारी)
शिक्षा प्रद घटना
हम यहां हज़रत उमर रज़िअल्लाहु अन्हु की शिक्षा प्रद घटना बयान करना चाहते हैं जो नबी करीम सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम के इस इरशाद की सबसे अच्छी व्यवहारिक टीका है।

हज़रत उमर रज़ि0 का तरीक़ा था कि रात को शहर में जनता का हाल मालूम करने के लिए गश्त किया करते थे। एक रात गश्त करते करते थक गए और एक मकान की दीवार से टेक लगाकर बैठ गए। इतने में मकान के अन्दर से एक औरत के बोलने की आवाज़ आयी जो अपनी बेटी से कह रही थी- ‘‘उठो और दूध में थोड़ा-सा पानी डाल दो।’’ लड़की ने काह- ‘‘मां अमीरूल मोमिनीन ने दूध में पानी मिलाने से मना कर रखा है।’’ मां ने जवाब दिया- ‘‘यहां कौन से अमीरूल मोमिनीन देख रहे हैं उठकर पानी मिला दो।’’ बेटी ने कहा- ‘‘मां! अमीरूल मोमिनीन तो नहीं देख रहे हैं पर अल्लाह तो देख रहा है।’’

सुबह होते ही हज़रत उमर रज़िअल्लाहु अन्हु ने अपनी पत्नी से कहा ‘‘जल्दी से फ़ुलां घर में जाओ और देखो कि उनकी बेटी विवाहित है या अविवाहित।’’ मालूम हुआ कि बेटी विधवा है। आपने बिना किसी संकोच अपने बेटे हज़रत आसिम से उसकी शादी कर दी। इसी लड़की की औलाद से पांचवे ख़लीफ़ा राशिद हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ पैदा हुए।

गर्भ के दौरान मां के दृष्टिकोण और आदतों के अलावा मां की दैनिक कार्रवाई और काम काज जैसे आपस में की जाने वाली बातचीत अध्ययन में रहने वाली पत्र पत्रिकाएं, सुनी जाने वाली कैसिटें या अन्य पसन्दीदा या नापसन्दीदा आवाज़ें, बहस में रहने वाली चीज़ें, खाके और चित्र आदि सब कुछ गर्भ के ज़माने में बच्चे पर प्रभाव डालते हैं अतएक इस्लाम पहले ही दिन से इस बात की व्यवस्था करता है कि मर्द और औरत दोनों को जिन्सी तूफ़ान की उमड़ती भावनाओं में भी शैतान के हमले से सुरक्षित रखा जाए। और अल्लाह से रिश्ता व संबंध किसी भी समय टूटने न पाए। अतएव अल्लाह का इरशाद है कि शादी के बाद पहली रात में मुलाक़ात पर पति को पत्नी के लिए यह दुआ मांगनी चाहिए-

‘‘ऐ अल्लाह मैं तुझसे इस (पत्नी) की भलाई का सवाल करता हूँ और जिस प्रकृति पर तूने इसे पैदा किया है उसकी भलाई का सवाल करता हूँ और तुझसे इस (पत्नी) के शर से पनाह मांगता हूँ और जिस प्रकृति पर तूने इसे पैदा किया है उसके शर से पनाह मांगता हूँ।’’ (अबू दाऊद)

संभोग से पहले जब पति पत्नी भावनाओं की दुनिया में हर चीज़ से बेनियाज़ हो जाते हैं उस समय भी इस्लाम यह चाहता है कि उनकी भावनाएं व इच्छाएं बेलगाम न हों और पत्नी से किसी कार्य करने को केवल एक आनन्द हासिल करने का साधन न समझें बल्कि उनकी निगाह इस जिन्सी कार्य के मूल उद्देश्य एक नेक और भली औलाद पर होना चाहिए।

अतएव रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलइहि वसल्लम ने निर्देश दिया है कि जब कोई व्यक्ति अपनी पत्नी के पास आने का इरादा करे तो उसे यह दुआ मांगनी चाहिए-

‘‘अल्लाह के नाम से ऐ अल्लाह! हमें शैतान से दूर रख और उस चीज़ से भी शैतान से दूर रख जो तू हमें प्रदान करे।’’ (बुख़ारी)

गर्भ ठहरने से पहले ही पति पत्नी अल्लाह की ओर ध्यान लगाने, अल्लाह से भलाई चाहने और शर से पनाह मांगने की शिक्षा देकर इस्लाम दोनों पति पत्नी की भावनाओं, विचारों और इच्छाओं को शर से ख़ैर (भलाई) की ओर, गुनाह से नकी की ओर और बुराई से अच्छाई की ओर मोड़ देना चाहता है ताकि गर्भ के दौरान पति पत्नी के कामों पर नेकी और भलाई छायी रहे और आने वाली रूह (बच्चा) नेकी और भलाई के गुणों को लेकर इस दुनिया में आए।
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